अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

महिला जगत-6

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निसन्देह मानव समाज के विकास तथा प्रशिक्षण में महिलाओं की निर्णयक भूमिका है। यहॉं तक कि कोई भी क़ानून को अनदेखा नहीं कर सकता हैं। पैग़मबर ईस्लाम (स) के पौत्र हज़रत इमाम सादिक़ (अ) ने इस संबंध में फरमाया है कि :
सबसे अधिक भलाई तथा अच्छाई महिलों के आस्तिव से है।
इस्लामी गणतन्त्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी (र) ने महिलाओं को समाज की शिक्षक तथा आगामी पीढ़ी की सफलताओं तथा विकास का स्रोत बताया है। उनका विचार है कि अपनी प्रशिक्षण की भूमीका के कारण महिलाओं का स्थान मूल्यवान तथा श्रेष्ठ है। इस प्रकार के दृष्टिकोण से, वो लोग या घारणाएं जो महिलाओं को तुच्छ ।और उन्हें सारी बुराइयों की ज़ड़ समझती हैं, बुद्धि तर्क तथा घार्मिक विश्वासों के विपरीत हैं चाहे उनमें कुछ धार्मिक नेता भी सम्मिलित हों।

महिलाओं के प्रशिक्षण की भूमिका सुव्यवस्थित तथा स्पष्ट रूप में पारिवारिक संस्था के ढांचे में दिखाई देती है। इस संदर्भ में पवित्र क़ुरआन महिला की परिपूर्णता की भूमिका को उसके पति की शान्ति एवं विभूति का कारण समझता है। इस आधार पर नर तथा नारी, समाज और सामाजिक संबंधों तथा घर के अन्दर तथा घरेलू वातावरण, दोनों में एक दूसरे के रूप में हें, और कोई भी एक दूसरे से कम नहीं है। दूसरे शब्दों में भूमिकाओं के संबंध में महिला तथा पुरुष की भूमिका के विभिन्न होने का ये अर्थ नहीं है कि एक महत्वपूर्ण है और दूसरा महत्वहीन। इसलामी नियमों के अनुसार पारिवारिक जीवन को सत्य पर आधारित होना चाहिए और नर तथा नारी को एक दूसरे पर बिना किसी तर्क के अपने आदेश नहीं थोपने चाहिए। क़ानूनी विशेषज्ञ श्रीमती डा0 इज़्ज़त सादात मीरख़ानी कहती हैं।

जहॉ पर पति-पत्नी ईशवरीय आदेशों के आनुसार वैवाहिक बंधन में बंधते हैं और अपनी-2 भूमिका भाते हैं, एक प्रेमपूर्ण परिवार का आधार रखते है, तो उसके दोनो सदस्य अर्थात पति एवं पत्नी सहकारिता तथा कर्तव्य के साथ रहते हैं। इस्लाम ने मूल कार्यो जैसे शिक्षा एवँ प्रशिक्षण तथा परिवार में शान्ति एवँ सुरक्षा की स्थापना यदि पत्नी का दाइत्व रखा है तो, उसके मुक़ाबले पति का कतर्व्य बताया है कि सुखद संबंध बनाए रखने के साथ ही वो पत्नी पर भारी अप्रचलित कार्य न थोपे याद रखना चाहिए कि इस्लामी शिक्षाओं के अधार पर पति तथा बच्चों की सेवा तथा घर के कार्य पानी का कर्तव्य नहीं हैं और यदि पत्नी घर में कार्य करती है तो वो पति के साथ सहकारिता तथा प्रेम भावना के कारण होता है। घर में काम के करने के बदले पत्नी अपना वेतन निर्धारित कर सकती है, और उसकी विशेष स्थिति के कारण है जो इस्लाम ने एक माँ तथा पत्नी के लिए निश्चित निया है ताकि वो हर प्रकार के दबाव तथा ज़ोर ज़बरदस्ती से बची रह सके । पवित्र-कुरआन पुरूष को परिवार का मुख्य तथा केन्द्र बिन्दु बताता है।

परन्तु साथ ही एक विशेष कोमलता के साथ पतियों को आदेश देता है कि पत्नियों के साथ नेक तथा उचित व्यवहार द्धारा परिवार में न्याय की स्थापना एवं विकास करें। इस आधार पर पुरुष को ज़बरदस्ती कोई भी आदेश देने का अधिकार नहीं है। परिवारिक कर्तव्यों को निभाने ने में उसे न्याय, प्रेम तथा क्षमा से काम लेना चाहिए। पति को चाहिए कि अपनी पत्नी की योग्यताओं तथा क्ष?मताओं के विकास हेतु उसे स्वतन्त्रता प्रदान करे ताकि वो भी प्रेम तथा वफ़ादारी के साथ परिवार में स्नेह तथा ममता का केंद्र बनी रहे।

सदा से अधिक आज थे बात स्पष्ट है कि पश्चिमी सभ्यता या हर वो दूसरी सभ्यता कि जो महिलों को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, सभी महिलाओं पर घोर अत्याचार करती है। ईश्वर की दृष्टि में, जो कि इन्सान और दृष्टि का जन्मदाता है, पैग़म्बरों तथा ईश्वरीय धर्मों की दृष्टि में, समाज में महिला हर चीज़ से अधिक एक इन्सान के रूप में देखी जानी चाहिए। एक ऐसा इनसान कि जो अपनी सभी क्षमताओं तथा योग्यताओं के साथ, अत्यन्त आदरणीय है और समाज के विकास में जिसकी मूल व महत्वपूर्ण भूमिका है। परिवार के आत्मीय तथा प्रेमपूर्ण वातावरण में व अपने पति के लिए श्रृँगार करके उसको घुमा सकती है। इस संदर्भ में स्वतन्त्रता केवल परिवार के अन्दर ही अर्थपूर्ण हो सकती है। क्योंकि परिवार में एक पुरूष पत्ति के रुप दें उससे ये वादा करता है कि प्रेम स्नेह एवं वफ़ादारी के साथ जीवन भर उसके साथ रहेगा। परन्तु समाज के परिप्रेक्ष्य में ये संबंध-सीमित हो जाते हैं और नर तथा नारी एक मनुष्य के रूप , प्रयास करते हैं, ताकि सामाजिक कल्याण के लिए कोई ख़तरा न होने पाए।

महिलाऐं जो किसी समूह या सार्वजनिक स्थानों पर अपने शरीर के अंगों को उचित रूप से नहीं ढ़कती, वास्तव में वो स्वयं को एक बिकाऊ वस्तु के रुप में ख़रीदारों के सम्मुरव प्रस्तुत करती हैं। वो बजाए इसके कि एक, योग्य सक्षम तथा लाभदायक इन्सान के रूप, में समाज में पहचानी जाए, और अपने झान,शिक्षा वफादारी तथा गुणों व मानवीय मूल्यों को दुसरों को पहचानवाए बने केवल अपने यौंन आकषर्णों को ही दुसरों के सामने प्रस्तुत किया है और इस प्रकार वो मानवीय मूल्यों से स्वयं को दूर कर लेती है।

वर्तमान सम्यता ने महिला के सौन्दर्य तथा आकषर्ण से लाभ उठाते हुए और स्वतंत्रता तथा बराबरी के नाम पर उसे अपने स्वाभाविक तथा मानवीय नियमों के मुकाबले में खड़ा कर दिया है। पश्चिमी महिला जो वेल ड़ोरेन्ट के अनुसार 19 वीं शताबदी के आंरम्भिक काल तक मानवधिनारों से वंचित की, आकस्मिक रूप से लालची लोगों के हाथ लग गई। इस प्रकार इन समाजों में महीला एक वस्तु तथा उपकरण के रूप में सामने आई है। यही कारण है कि इन समाजों में महिला ने अपना गौरव खो दिया है। अब ये इन महीलओं का दाइत्व है कि अपनी खोई हुई मर्यादा को दोबारा प्राप्त करने का प्रयास करें और समाज को अनेक बुराइयों से बचा लें।

 

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