महिला जगत- 26


ग़रीबी या कमी मानव जीवन में एक बड़ा ही चिरपीरचित शब्द है जिसे सुनकर मन में पहला विचार जो आता है वो धन की कमी और आर्थिक समस्याओं के बारे में होता है। परन्तु यदि गहराई से देखा जाए तो हमें पता चले गा कि किसी भी चीज़ से मनुष्य का वंचित रहना ग़रीबी समझा जाए गा। इसी कारण इस शब्द के साथ विभिन्न शब्द हमारी भाषा से जुड़ गए जैसे संस्कृति की कमी, सक्रिथता की कमी, स्नेह की कमी और सम्पर्क की कमी आदि। इनमें से सबसे बुरी कमी जिसने आज के समाजों को जकड़ रखा है और जिससे पीछा नहीं छुड़ाया जा सका है वो स्नेह की कमी और अकेलेपन की भावना है। यहॉ तक कि कभी कभी भीड़ में रहते हुए भी मनुष्य स्वंय को अकेला पाता है।
अकेलापन अर्थात हम यह सोचें कि हमारा कोई सच्चा मिज नहीं है या यह कि किसी को दूसरे की चिन्ता नहीं है, स अपने आप में ही लगे हैं।
मनुष्य के सामाजिक संबंधों में जब स्नेह की भावना की कमी होती है तो वो अकेलेपन का आमास करता है। यह भावना मनुष्य को बन्तरिक रूप से इतना तोड़ देती है कि वो स्वंय को एक भयानक मरूस्थल में बिना किसी साथी या सहायक के समझने लगता है। उसे डर लगने लगता है और इस डर के साथ एक तीव्र नकारात्मक भावना जाग्रत होती है जिसे अवसाद कहते हैं। कुछ युवक इस दुखद भावना से बचने या छुटकारा पाने के लिए ऐसी दवाओं या पदार्थों का सहारा लेते हैं जो उन्हें पतन के मुहाने तक पहुंचा देते हैं और न केवल यह कि उनके अकेलेपन की समस्या का समाधान नहीं करते बल्कि उनको ढेरों अन्य समस्याओं में जकड़ देते हैं। इस मार्ग में न केवल यह कि पहली और अस्ली कठिनाई का समाधान नहीं होता बल्कि ढेरों ऐसी गंभीर समस्याएं खड़ी हो जाती हैं जिनकी क्षति पूर्ति करना असंभव होता है।

यदि वास्तविकताओं के संसार में रहें और वास्तविकताओं को उसी प्रकार देखें वो हैं तो दूसरों की सहायता और सलाह मशवरे से अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। कभी कभी अकेलेपन को दूर करने के लिए अनुचित संबंध और सड़कों पर बेकार फिरने वालों के साथ मिजता पूर्ण संबंध स्थापित किए जाते हैं, परन्तु यह मनुष्य की अस्ली समस्या का समाधान नहीं है और इसी कारण इस मिजता के टूटने से युवाओं विशेषकर युवतियों के जीवन में एक खोखलापन उत्पन्न हो जाता है। इससे वे स्वंय को हारी हुई, धोखा खाई हुई अकेली तथा गहरे अवसाद में पाती हैं। यहॉ तक कि यह संबंध विपरित लिंग के साथ SMS के आदान प्रदान या इन्टरेनट तक भी सीमित रहें , फिर भी पाप के बाद पश्चाताप तथा ग्लानि की भावना से वो गृष्त हो जाते हैं। और इस प्रकार हम देखते हैं कि अकेलेपन को दूर करने के लिए यह मार्ग उचित नहीं हैं।

अकेलेपन को दूर करने के लिए ऐसे ढेरों मार्गों को अपनाया जाता है कि जो न केवल यह कि अकेलेपन के घाव पर मरहम नहीं लगाते बल्कि अपने नकारात्मक परिणामों के कारण समस्याओं को और अधिक जटिल बना देते हैं यहॉं तक कि यह व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर सकते हैं। अब हम यह देखें गे कि इस खोखले और अकेलेपन को समाप्त करने और इससे झुटकारा पाने के मार्ग क्या हैं? इसके लिए हमें गहरे और स्थाई संबंधों पर ध्यान देना होगा। ऐसे संबंध जो कदापि क्षतिगृस्त नहीं होते और मित्र भी ऐसा जो चाहे हम कितने भी स्वार्थी हो जाएं हमें छोड़ कर नहीं जाता। सृष्टि के रचयिता के साथ संबंध , सुन्दर और आन्तरिक संबंध है। इस संबंध को जोड़कर हमें अकेलेपन का अभास कदापि नहीं हो सकता है। क्योंकि हम जानते हैं कि ईश्वर संदव हमारे साथ है और वो हमारे शरीर, आत्मा के रहस्यों तथा आव्शयकताओं तथा इच्छाओं को पूरी तरह से जानता है। वो इतना सक्षम है कि उसका इरादा सभी समस्याओं का समाधान कर सकता है। यदि वो चाहे तो हर असम्भव को संभव बना सकता है।

जब हम ईश्वर को अपने निकट देखते हैं तो कंधों से अकेलेपन का बोझ स्वंय दूर हो जाता है।
अकेलेपन से झुटकारा पाने के लिए किसी ऐसे गुट की सदस्यता प्राप्त की जा सकती है जिसकी गतिविधियों में आप को रूचि हो। ऐसी स्थिति में आप एक सकारात्मक गतिविधि में संलग्न होने के साथ ही ऐसे मित्रों को प्राप्त कर लेंगे जो आप की भांति ही विचार करते हैं और उनकी रूचियां भी आप की रूचियों के समान हैं। इसप्रकार आप स्वंय को उनके निकट समझें गे। किसी के लिए लाभदायक या सहायक होने की भावना अत्यन्त सुखद होती है। इससे आप के भीतर अपने प्रति सकारात्मक भावनाएं जागृत होंगी और आप को अपने जीवन से प्रेम हो जाए गा। चूंकि हर भले काम के बाद शान्ति का आभास होता है, इसलिए ईश्वर की डृष्टि में जो भले कार्य हैं उनको करने से मनुष्य की पवित्र प्रगृत्रि से निकटना होती है। और इससे हमें एक भान्त और सुखी जीवन का उपहार प्राप्त होता है।

क्षमा कीजिए और हमें खेद है जैसे शब्द शब्दकोष में लाए गए हैं ताकि यदि कभी हमसे कोई ग़लती हो जाए या किसी मिज़ का दिल दुखाया हो तो अपनी ग़लती को सुधारने का प्रयास करें और हमारे मैत्रीपूर्ण संबंध कटु होकर टूट न जाएं और हम अकेले रह जाएं। हम इन शब्दों को प्रयोग करने से इतना क्यों कतरोत हैं? क्या इन्हें इसलिए नहीं बनाया गया है कि हमारी ग़लतियां बहुत जटिल न हो जाएं।