महिला जगत- 30

आज हम बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कुछ बिन्दुओं के बारे में चर्चा करेंगे। आशा है हमारा ये प्रयास भी आपको पसंद आयेगा।

आज हम आप को यह बताना चाहते हैं कि नवजात शिशुओं में भी भावनाएं होती हैं। संगति एक मॉं ने बताया कि वो घर से बाहर काम करती थीं उनकी बेटी ७ महीने की थी, उसी समय उन्हें कुछ दिनों के लिए कार्यालय के काम से कहीं बाहर जाना पड़ा उनका कहना है। पहली रात तो बीत गई। दूसरे दिन मैने अपनी बच्ची का हाल पूछने के लिए पति को फ़ोन किया - उन्होंने कहा मुझे लगता है कि बच्ची बहुत उदास और मुरझाई हुई है और अपनी दूध की बोतल भी नहीं ले रही है। हमारी हस मुख और चंचल बच्ची उदास सी हो गई। यद्यपि उसे ज्वर भी नहीं फिर भी हम लोग चिन्तित हो गए, यहां तक कि वो दूसरे दिन तक भी बेहतर नहीं हुई। मैंने अपनी यात्रा अधूरी छोड़ी और शीघ्र ही लौट गई। मेरे घर पहुंचने के कुछ ही घण्टों पश्चात, बच्ची बिल्कुल चुस्त हो गई। मेरे पति ने कहा-

ऐसा लगता है बच्ची तुम्हें देख कर प्रसन्न हो उठी है मेरे विचार में इसकी वो हालत तुम्हारी दूरी के कारण ही थी। पहले तो मुझे-विश्वास नहीं हुआ, मैंने सोचा कि इतना छोटा बच्चा उदास और दुखी कैसे हो सकता है?

अनेक प्रभाणों से ये पता चल्ता है कि बच्चे यहॉं तक कि नव-शिशु की जन्म लेते ही दुख व अनुभवों का आभास करते हैं। शिशुओं के विकास और मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों का विचार है कि यधपि वो अपने आभास को व्यक्त करने में सक्षम नहीं होते परन्तु इसके विपरित दुख, हर्ष व क्रोध को गहराई से समझते हैं। आप ने भी ऐसे बच्चे देखे होंगे जो वातावरण के प्रति पूरी शक्ति से अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं। माता- पिता के लिए ये आवश्यक है कि इन संकेतों को पूर्ण रूप से समझें और उसका उचित जवाब दें। इस प्रकार बच्चे की बोल पाने की प्रक्रिया आरम्भ होने में सरलता होती है।
बच्चे एक मौन भाषा में अपनी अनुभूतियां और प्रेम की अभिव्यक्ति अपने हाव-भाव बदल कर करते हैं विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद संभव है एक १८ महीने का बच्चा यह बता सके कि उसे क्या आभास हो रहा है। आप को समझाने के लिए यहॉं पर हम बच्चों की तीन मूल अनुभूतियों का वर्णन करेंगे गे। ख़ुश होना वो पहली अनुभूति है जो बच्चा अनुभव करता है। ६-७ सप्ताह का बच्चा माता पिता या नर्स को मुस्कुराते देख कर मुस्कुराता है। बच्चा जिनको पहचानता है उनसे निकटता का आभास करता है, उसकी पहली मुस्कुराहट कितनी आत्मिय होती है और उसका अर्थ कितना गहरा होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मुस्कुराहट बच्चों के सामाजिक जीवन के आरम्भ की निशानी है। ख़ुश होने की प्रवृत्ति बच्चों में स्वंय ही विकसित होती है।

जैसे जैसे आप के बच्चे बड़े हों उनकी सहायता कीजिए और बताइए कि वो क्यों ख़ुश है। उदाहरण स्वरूप आप का दो वर्षीय बच्चा यदि अपने नाना या दादा को अचानक देख कर उत्साहित हो उठे तो उससे कहिए कि उन्हें देख कर तो तुम्हें ख़ुश होना ही चाहिए क्योंकि तुम उनको बहुत प्यार करते हो।
दूसरी अनुमूति दुख व समरसता का आभास है। आप का शिशु यदि भूख या गीले होने के कारण रो रहा है तो शायद उसे अभी वास्तविक दुख की अनुभूति न हो क्योंकि बच्चे लगभग ६ महीने की आयु में वास्तविक दुख का आभास करते हैं।

कुछ बच्चे यदि कुछ दिन मॉं से अलग रहें तो परेशान हो जाते हैं और तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, परन्तु कुछ बच्चों के लिए मॉं से चन्द मिनटों की दूरी असहनीय हो जाती है। दो वर्ष के बच्चे में प्रेम भावनाओं के विकास का दूसरा चरण होता है, पहली बार उनमें सहानुभूति की भावना आती है। विशेषज्ञों का मानना है कि छोटे बच्चे यदि अपनी मॉ को चोट लगते देखते हैं या चाक़ू से उसकी उंगली कटी देख लेते हैं तो उससे सहानुमूति व्यक्त करते हैं वो मॉं को चूम कर उससे अपनी सहानुमिति व्यक्त करते हैं।
तीसरी अनुभूति क्रोध की है। अनुसंधानों से पता लगा है कि जब बच्चे को कहीं दर्द हो रहा हो या दूध पीते समय मुंह से निपल निकल जाए तब वो क्रोधित हो उठता है। दूसरे शब्दों में शिशु जीवन के आरम्भिक महीनों से ही क्रोध की भावना का अनुभव करने लगता है।

बच्चा अपना क्रोध विभिन्न पद्धतियों द्वारा व्यक्त करता है। जब बच्चे की आयु लगभग १०वर्ष की हो जाती है तो वो कुछ कार्यों को अकेले ही करना चाहता है और जब वो विफल होता है तो क्रोधित हो जाता है। परन्तु धीरे धीरे वो उस क्रोध पर नियन्त्रण प्राप्त करना सीख लेता है। उससे आप यह मत कहिए कि क्रोधित मत हो, इसके स्थान पर आप उसे ऐसे मार्ग दर्शाएं जिससे वो अपनी भावानायें अभिव्यक्त कर सके। आप उससे कहिए कि जब तुम्हें किसी पर क्रोध आए तो बजाए मार-पीट करने के उससे इस संबंध में बात करो। अन्त में विशेषज्ञों का मानना है कि आप इस बात का ध्यान रखें कि स्वंय आप अपना क्रोध किस प्रकार व्यक्त करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चों के सामने माता-पिता को कभी भी वाद विदान नहीं करना चाहिए, बल्कि यह एक पाठ है ताकि वे सीखें कि बात चीत द्वारा किस प्रकार मतभेदों का समाधान किया जा सकता है। क्योंकि माता पिता बच्चों के सबसे पहले आदर्श होते है।