महिला जगत- 31

ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के पश्चात विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की गतिविधियों में वृद्धि हो गई क्योंकि उनके विकास तथा प्रगति के लिए उचित वातावरण उत्पन्न हो गया है। महिलाओं के वास्तविक रूप को इमाम ख़ुमैनी ने स्पष्ट किया जिसके कारण ईरानी महिला की एक विशेष छवि विश्व के सम्मुख स्पष्ट हुई।

इमाम ख़ुमैनी कहा करते थे - नारी मनुष्य का निर्माण करती है। नारी समाज की प्रशिक्षक है और उसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक मंच पर उसकी रचनात्मक उपस्थिति हो। चारित्रिक मानदण्डों तथा आध्यात्मिक मूल्यों का ध्यान रखते हुए, समाज में ईरानी महिलाओं की उपस्थिति ने विश्व के डा अहमदीनेजाद करेंगे ब्राज़ील का दौरा एक नया आदर्श और समाज में महिला की भूमिका का भिन्न रूप प्रस्तुत किया। जो कि नि:सन्देह एक अध्ययन का विषय बन सकता है। इस संदर्भ में ईरानी महिलाओं की उपस्थिति तथा सहकारिता के केन्द्र ने महिलाओं की क्षमताओं से समाज को अवगत कराने का कार्य किया और एक कल्याणकारी कार्य के रूप में पिछले २१ वर्षों में ईरान की विख्यात महिलाओं के वैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा कलात्मक सम्मेलन का आयोजन किया। इस समारोह का उददेश्य जो स्वंय एक नए रूप का समारोह था, समाज की सफल महिलाओं का परिचय, महिलाओं में आत्म विश्वास उत्पन्न करना तथा उनकी प्रतिभाओं व योग्यताओं को प्रकट करना था।

इस्लामी संस्कृति व शिक्षा के मंत्रि ने इस समारोह के अवसर पर कहा - सौन्दर्य प्रेम, बलिदान की भावना तथा ज्ञान प्राप्ति में रूचि वे विशेषताएं हैं, जो हर काल , हर धर्म और हर वर्ग के सभी लोगों में एक समान रही है। धर्म, चरित्र, ज्ञान, संस्कृति तथा कला में रूचि मनुष्यों की सभी समान आवश्यकताओं तथा उत्सुकता की भावना को सन्तुष्ट करती है तथा यह भावना आध्यात्मिक तथा उपासना की प्रवृत्ति का स्रोत है। इसी संबंध में हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़र्माया है- दो ऐसे भूखे हैं जिनकी भूख कभी नहीं मिटती- ज्ञान का भूखा तथा धन का भूखा।
इस्लामी शिक्षा व संस्कृति के मंत्री ने आगे कहा -

" ज्ञान की भूख से कभी तृप्त न होने की भावना के उत्तर में, नि:सन्देह विश्वविद्यालयों, कलात्मक क्षेत्रों जैसे साहित्य, कला, निर्दोशन तथा दूसरे कलात्मक क्षेत्रों में इस्लामी देशों के बीच ईरानी महिलाएं बहुत आगे बढ़ी हैं, परन्तु ईरान की प्राचीन सम्यता को देखते हुए उन्हें और अधिक प्रयास करने चाहिए।
आज हम विवाह के मानदण्डों की चर्चा करें गे। इस संबंध में हम उन रूकावटों या दबावों का वर्णन करेंगे जो विवाह के मार्ग में प्राय: देखने में आते है।
वास्तविकता यह है कि अधि कांश माता-पिता अपनी युवावस्था के काल को मुला देते हैं। वो यह भूल जाते हैं कि स्वयं भी जब जवान थे तो विवाह में उनकी कितनी रूचि थी। और उन रूकावटों ने उन्हें कितना परेशान किया था जो उनके विवाह को रोक रही थी।
इस कारण वो विवाह के संबंध में अपने बच्चों की रूचि की उपेक्षा भी करते हैं और विभिन्न बहानों से अपने बच्चों के विवाह में रोड़े अटकातें हैं।

कहीं कहीं बच्चों को किसी से विवाह करने पर विवश किया जाता है। कुछ माता - पिता अपनी सन्तान के जीवन - साथी का चयन अपनी पसन्द व रूचि के आधार पर करते हैं और लड़के या लड़की की राय या पसन्द पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते । कभी कभी तो बिन उनसे पूछे कि विवाह के संबंध में जीवन साथी के चयन के लिए उनके क्या भानदण्ड हैं, स्वंय निर्णय ले लेते है।
कई समाजों में इस प्रकार के उदाहरण देखने को मिलते हैं जिसके कारण परिवारों को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसमें बाल - विवाह या कम आयु की लड़कियों का ऐसे बड़ी आयु के व्यक्ति से विवाह जिसका पद ऊंचा हो या जिसके पास धन अधिक हो, जैसे विवाह संबंधों का नाम लिया जा सकता है।

नि:सन्देह हर माता - पिता अपनी सन्तान को सौभाग्यशाली देखना चाहता है। परन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विवाह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है जिसपर युवा को स्वयं विचार करके निर्णय लेना चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेहि व सल्लम के काल में उनके पास एक लड़की आई और शिकायत की कि मेरे पिता ने बिना मेरी इच्छा के मेरे लिए वर चुन लिया और मुझे वो व्यक्ति बिल्कुल पसन्द नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस रिश्ते को तोड़ दिया और उस लड़की के माता- पिता से कहा कि विवाह से पूर्व लड़की से राय लें।
जी हां, इस्लाम में इस प्रकार की बातों और एक तरफ़ा निर्णय की आलोचना की गयी हालांकि इस्लाम माता - पिता के मूल्यवान अनुभवों का सम्मान करता है और विवाह के संबंध में माता - पिता के राय व सलाह को आवश्यक समझता है, परन्तु अन्तिम निर्णय लड़की या लड़के पर छोड़ता है ताकि एक स्वस्थ व रचनात्मक पीढ़ी के प्रशिक्षण का केन्द्र अर्थात परिवार का गठन घृणा या दबाव द्वारा न किया जाए।

निश्चित रूप से विवाह के संबंध में निर्णय लेते समय जल्दी नहीं करनी चाहिए। बल्कि योग्य व्यक्ति का चयन करना चाहिए जिसमें आवश्यक मानदण्डों का भी ध्यान रखा गया हो। अनुभव और अध्ययन दर्शाते हैं कि इन मानदण्डों की उपेक्षा परिवारों में मतभेद व अस्त-व्यस्तता का कारण बनती है। इस संबंध में इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम का कथन है- जब विवाह करने का निर्णय लें तो दो रकअत नमाज़ पढ़ें और ईश्वर से प्रार्थना करें कि आप को ऐसा जीवन साथी मिले कि जो शिष्टाचार, नैतिकता व अच्छी आदतों में एक आदर्श इन्सान हों।
इस्लाम ने जीवन साथी के चयन में कुछ मानदण्ड निर्धारित किए हैं। सबसे अधिक महत्व दोनों के मानसिक व सामाजिक स्तर और उनकी पारिवारिक मान्यताओं का है। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है- मोमिन पुरूष मोमिन महिला का समकक्ष है। इस आधार पर मुसलमान किसी भी स्तर या वर्ग के हों एक दूसरे के समकक्ष हैं। इस्लाम का मूल आधार ईमान व धार्मिक मान्यताओं में समानता है।
परिवार के काल्याण में ईमान की मूल भूमिका है और यह जीवन साथी के साथ वफ़ादारी तथा ज़िम्मेदारी का सबसे महत्वपूर्ण विषय है। इसलिए मुसलमान अपनी बेटी का विवाह किसी भी ग़ैर- मुस्लमान से नहीं कर सकता।

मानव चरित्र और व्यक्तिगत मानवीय मूल्यों पर विवाह के संबंध में इस्लाम ने अत्यन्त बल दिया है। इस्लामी शिक्षाओं में बल देकर कहा गया है कि अशिष्ट या भ्रष्ट या धर्म की उपेक्षा करने वाले व्यक्ति से विवाह न करें। कड़वा स्वभाव और चिड़चिड़ापन जीवन को असहनीय बना देता है और परिवार के कल्याण के लिए ख़तरा है। यहां तक कि कहा गया है कि लापरवाह और मनमौजी व्यक्ति को बेटी न दें। इस्लाम बल देता है कि जीवन साथी के परिवार के बारे में जॉंच - पड़ताल करें, पवित्रता और ईश्वरिय भय जीवन साथी के चयन की शर्त होनी चाहिए। शारिरिक स्वास्थ्य , मानसिक स्वास्थ्य और लड़के - लड़की का वैचारिक समनवय भी जीवन साथी के चयन के निर्धारित मानदण्ड है।
आशा है हमारे युवा इन मानदण्डों पर ध्यान देते हुए प्रेम, आत्मीयता व कल्याण के आधार पर जो वैवाहिक बन्धन स्थापित करें गे उसमें प्रशिक्षित पीढ़ी का लालन - पालन करके शिष्ट नागरिक समाज के हवाले करेंगे।