आयतुल्लाह शहीद मुहम्मद बाक़िरुस सद्र 2

शहीद सद्र और हौज़ ए इल्मिय ए नजफ़े अशरफ़

शहीद सद्र काज़मैन के इब्तेदाई दौर ए तालीम से फ़रागत के बाद

अपने आशना लोगों की तरफ़ से बेहद मना करने के बावजूद अपनी मादरे गिरामी की सिफ़ारिश पर हौज़ ए इल्मिय ए नजफ़े अशरफ़ तशरीफ ले गए और वहाँ दीनी उलूम हासिल करने में मसरुफ हो गये। (नोअमानी, सन 1424 हिजरी, जिल्द 1, सफ़हा 52)

आपने सन् 1365 हिजरी में नजफ़े अशरफ़ की दो बुज़ुर्ग इल्मी शख्सियत यानी मरहूम आयतुल्लाह शैख़ मुहम्मद रज़ा आले यस और मरहूम आयतुल्लाह सैय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई की शागिर्दी इख़्तेयार की, 11 साल की उम्र में मन्तिक पढ़ी और उस मौज़ू पर एक रेसाला लिख डाला। उनके उस रेसाले का मौज़ू वह ऐतेराज़ात थे जो बाज़ मन्तिकी किताबों पर किये गये थे, बारहवे साल की इब्तेदा में आपने अपने भाई सय्यद इस्माईल सद्र के पास किताबे मआलिमुल उसूल पढ़ी और आपकी ज़ेहानत के लिये यही कह देना काफी है कि आपने साहबे मआलिमुल उसूल पर ऐसे ऐतेराज़ात वारिद कर दिये जिनकी तरफ मरहूम आख़ुन्द ख़ुरासानी ने केफ़ायतुल उसूल में इशारा किया है।

मरहूम आयतुल्लाह आले यासीन के दर्स में शिरकत के दौरान आपके हमराह बहुत से उलमा व असातीद जैसे शेख़ सदरा बाद कूबी, शैख़ अब्बास रमासी, शैख़ ताहीर आले राज़ी सय्यद अब्दुल करीम खान भी शिरकत करते थे जो आप के असातेज़ा में से थे। (नोअमान गुज़श्ता हवाला, सफ़हा 68)

आपके भाई मरहूम सय्यद इस्माईल सद्र ने आपके बारे में इस तरह फरमाया हैः हमारे ग्रान क़द्र भाई ने सिन्ने बुलूग़ को पहुँचने से पहले तमाम मदारिजे इल्मी के तय कर लिया है। (हुसैनी हाऐरी गुज़श्ता हवाला, सफ़हा 48)

शैख़ मुर्तज़ा आले यासीन सन् 1370 हिजरी में रहलत कर गए आपने उनके रेसाल ए इल्मिया पर जिसका नाम बुल्ग़तुर राग़ेबीन है, तअलिक़ा लगाया और इसी दौरान रेसाल ए बुल्ग़तुर राग़ेबीन पर लिखे गऐ हवाशी को मुनज़्ज़म फ़रमा रहे थे कि शैख़ अब्बास रमासी ने आपसे फरमायाः (आप पर तक़लीद हराम है) जिसका मतलब ये है कि आप मुजतहिद मुसल्लम हैं। शहीद सद्र ने इल्मे उसूल के दर्स को सन् 1378 हिजरी में और फ़िक़्ही दर्स को सन् 1379 हिजरी को ख़त्म किया। इस तरह आपके तालिमी दौर का सिलसिला 17 या 18 साल तक जारी रहा और ये दौर अगरचे मुख़्तसर था लेकिन हक़ीक़त में बड़ा वसीअ दौर था, क्योंकि आप शबो रोज़ में 16 घन्टा मुतालेआ करते थे और तमाम हालात में सिवाय इल्मी मसायल के और किसी चीज़ के बारे में नहीं सोचते थे।

आपने रस्मी तौर पर ब रोज़े मंगल 12 जमादिस सानी सन् 1378 हिजरी को उसूल का दर्से ख़ारिज कहना शुरु किया और ये दौरा सन 1391 हिजरी तक जारी रहा। इसी तरह आपने फिक़ह का दर्से ख़ारिज किताबे उर्वतुल वुस्क़ा के महवर पर सन् 1381 हिजरी में शुरु किया जो बर्सों तक चलता रहा। (हुसैनी हाऐरी गुज़श्ता हवाला, सफ़हा 49)


शागिर्दाने शहीद सद्र

शहीद सद्र ने अपनी इल्मी हयात में बहुत से ग्रान कद्र शागिर्दों की तर्बियत की। जिन में से बाज़ दर्ज ए इजतेहाद तक आप के दर्स में हाज़िर होते रहे दर हकीक़त शहीद सद्र ने नुमायाँ तुल्लाब की दो नस्ल को तरबीयत दी, पहली नस्ल उन ज़हीन शागिर्दों की थी जो शुरु से ही आप के हलक़ ए दर्स में शरीक होते थे। दूसरी नस्ल उन साहेबाने नज़र मुहक्क़क़ीन की जो आपके दर्से खारीज़ के दौर ए अव्वल के आख़िर में शरीक हुए और दूसरे दौरे के आख़िरी दर्स तक शरीक होते रहे। इन दो नस्लों के अलावा दीगर तुल्लाब भी आपके सर चश्म ए इल्म से सैराब होते रहे और इन्होंने अपने बेपनाह फ़वायद व नुकात आप से हासिल किये हैं।

लेकिन उन सब में सब से अहम आप के दोनो दौरे दर्स में शरीक होने वाले एक चुनिन्दा और नाबेग़ा उलमा की तरफ़ इशारा किया जा सकता है जिनका शहीद सद्र से क़लबी लगाव और जज़्बाती तअल्लुक ग़ैर क़ाबिले तौसीफ़ था। इस दस्ते के नुमायाँ अश्खास में दर्जे ज़ैल शागिर्दों की तरफ इशारा किया जा सकता है। शहीद सय्यद मुहम्मद बाकिर हकीम, सय्यद नुरुद्दीन अशकवरी, सय्यद महमूद हाशमी, शैख़ मोहम्मद रज़ा नोअमानी, सय्यद काज़िम हुसैन हाऐरी, सय्यद अब्दुल ग़नी अर्दबेली, सय्यद अब्दुल अज़ीज़ हकीम, शहीद सय्यद इज़्ज़ुद्दीन कबान्ची, सय्यद हुसैन सद्र, सय्यद मुहम्मद सद्र, सय्यद सदरुद्दिन क़बान्ची, शैख़ गुलाम रज़ा इर्फानायान, शैख़ मुहम्मद बाक़िर इरवानी और दीगर बहुत से होनहार शागिर्द।

उन दिनों जब ईराक़ की काफिर बअसत पार्टी के मज़ालिम और सरकशियों के नतीजे में हालात बहुत सख्त और दुशवार थे। उस्ताद शहीद सद्र के शागिर्दों ने बहुत सख्त व हौलनाक अय्याम गुज़ारे। अक्सर ऐसा होता है कि आप के बाज़ शागिर्द आप क घर में (जो कि बाज़ारे अम्मारा में मदरस ए सग़ीर आयतुल्लाह बुरुजर्दी के नज़दीक वाक़े था) इल्मो दानिश और ज़ोहदो पारसाई के मुजस्समा शहीद सद्र की ख़िदमत में हाज़िर होते थे और आपके इरशादात से फैज़याब हुआ करते थे।

 

शहीद सद्र के आसार व तालीफ़ात

शहीद सद्र ने मुख्तलिफ़ मौज़ूआत पर मोतअद्दिद इल्मी किताबें तालीफ़ की हैं। मोतअद्दिद मौज़ूआत पर आपकी क़लम फ़रसाई से ये अन्दाज़ा होता है कि आप मुख्तलिफ़ समाजी दीनी, सियासी, इक़तेसादी और फ़लसफ़ी मैदानों में वसीअ नज़र और साहबे राय थे। आपने इन तमाम मौज़ूआत पर ग्रान कद्र किताबें तालिफ की हैं कि जिनमें दर्ज ज़ैल की तरफ ईशारा किया जाता है:

 

    इक़तेसादुना

अल उस्सुल मन्तक़िया लिल इस्तेक़रा (ये किताब मोतअद्दिद मर्तबा छपने के अलावा फ़ारसी में तर्जुमा हो चुकी है जिसका फ़ारसी नाम (मबानी मन्तिकी इस्तेक़रा) है और मोतर्ज्जिम जनाब सय्यद अहमद फ़ेहरी हैं)।

अल इस्लाम यकुलुल हईया, इस मजमूऐ के कुल छः जुज़ हैं जो सन 1399 हिजरी में ईरान की इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी की मुनासेबत से ईरान में छप चुकी है छः जुज़ इस तरह हैं.

अ. लम्हतुल फिक़हीया तमहिदिया अन शुरुइल जम्हुरीयतील इस्लामिया फ़ी ईरान

आ. सुरतुन अन इक़्तेसादिल मुजतमिल इस्लामी

इ. ख़ोतुतुन तफ़सीलिया अन इक्तेसादिल मुजतमील इस्लामी

ई. ख़ेलाफ़तुन इन्सान व शहादतुन अम्बिया

उ. मनाबेउल कुदरत फि दौरतुल इस्लामिया

ऊ. अल ओससुल आम्मा लिल बुन्क फिल मुजतमील इस्लामी

अल बन्कुल अर्बविया फ़िल इस्लाम, ये किताब मक़ालात की शक्ल में आका ए गुल्सर के ज़रीये तर्जुमा होकर मक्तब ए इस्लाम में छप चुकी है।

    बोहुसुन फि शर्हे ऊर्वतुल ऊस्क़ा।

बोहुसुन हौलल महदी, ये किताब मोतअद्दिद बार छप चुकी है और फारसी में भी तर्जुमा हो चुकी है। पहले ये किताब सय्यद मोहम्मद सद्र की किताब (तारीख़े ग़ैईबतिस सुग़रा) के ऊपर मुकद्देमे की हैसियत से तहरीर की गई। लेकिन बाद में मुस्तक़िल तौर पर किताब की शक्ल में तबअ हुई उसके फारसी तर्जुमे का नाम (इमाम मेहदी हमासई अज़ नूर) है।

बोहुसुन हौलल वेलायह (ये किताब तशीअ मौलूदे तबीई इस्लाम के नाम से आक़ा ए अली हसन किर्मानी के तवस्सुत से फार्सी में तर्जुमा हो कर छप चुकी है निज़ इसकी दूसरा तर्जुमा जनाब आकाऐ इलाही के ज़रीऐ नशर हो चुका है)

बल्ग़तुर्रागबीन (आयतुल्लाहुल ऊज़्मा शैख मोहम्मद रज़ा आले यासीन के रेसाले अम्लिया पर शहीद सद्र का तालीक़ा)

दुरुसुन फ़ी इल्मिल ऊसूल, (ये किताब तीन मर्हले में हल्क़ात के नाम से लिखी गई है जिसका हल्का सेव्वुम दो हिस्सों पर मुश्तमिल है।

फेदक फित्तारीख़ इल किताब में (सद्र इस्लाम के अहम तरीन हादेसात में से एक वाकऐ पर बहस की गई है जो रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की रेहलत के बाद रौनुमा हुआ और आँ हज़रत के बाद इस्लाम की सियासी व समाजी नेज़ाम की तशकिल का तहकीकी जायज़ा लिया गया है ये किताब मोतअद्दिद बार छप चुकी है और फार्सी में तर्जुमा हो चुकी है।

फ़ल्सफ़तोना, (ये किताब कई बार इरान और बैरुत में तबअ हो चुकी है ये किताब उन इस्लामी फल्सफे के मबाहिस पर मुश्तमिल हैं जिन्हें दूसरे जदीद माद्दी मकातीबे फिक्र ख़ास तौर से मॉर्कसीज़्म के साथ मवाज़ न करके पेश किया गया है)

ग़ायतुल फिक्र फी इल्मिल ऊसूल, (इस किताब का सिर्फ पहला हिस्सा सन 1374 हिजरी शम्सी में छप सका है)

अल मआलिमुल जदीदा लिल ऊसूल, ये किताब मोतअद्दिद बार तबअ हो चुकी है और पहली बार ईराक को ऊसूले दिन कॉलेज से सन 1395 हिजरी में तबअ हुई थी।

अल मदरसतुल इस्लामिया, (इस किताब का दो हिस्सा छप चुका है पहला हिस्साः अल इन्सानुल मोआसिर वल मुश्किलतुल इज्तेमाईया, दूसरा हिस्साः मॉज़ा तऑरफो अनिल इक्तिसादील इस्लामी है।

मिन्हाजुस सालेहीन, (हज़रत आयतुल्लाहुल उज़मा सय्यद मोहसीन हकीम के रेसाल ए इल्मिया पर आप का तालिका है)

मोअजीज़ अहकामील हज

 

शहीद सद्र की इल्मी मनज़ेलत

शहीद की इल्मी ख़ुसूसियात सिर्फ़ इल्मे उसूल और इल्मे फिक़्ह में मुन्हसिर न थी बल्कि आप की फिक्री नज़रियात मन्तिक़, फ़लसफा, इक़्तेसाद, अख्लाक़, तफ़सीर, और तारीख़ के मैदानों में भी क़ाबिले गौर हैं आपने इन तमाम मौज़ूआत पर ग्रान क़द्र किताबें तालीफ़ की हैं आप के जदीद आरा और नये नये अफ़कार मज़कूरा बाला मौज़ूआत में नाक़ाबिले इन्कार हैं।

उस्ताद शहीद सद्र ने किताब (अल मआलमील जदीदा लिल उसूल) में इल्मे उसूल और अदवार की तरक्की के तीन मर्हले ब्यान किए हैं जिन्हे तफसील से यहाँ ज़िक्र नहीं किया जा सकता, लेकिन जिन नऐ मबाहिस को शहीद ने पेश किया है उनसे दर हकीकत चौथा मर्हला वुजूद में आता है जो इल्मे उसूल के मुकद्दिमाती मर्हले से नतीजे गिरी के मर्हले और इल्मी रुश्द और कमाल के मर्हले से चौथे यानी उसूल की इन्तिहाई तरक्की के मर्हले में दाखिल हो जाता है कि जिन में आप की ग्रान कद्र बहसें गौहरे तॉब नाक की मान्निद इल्मे उसूल की पेशानी पर चमक रही हैं शहीद सद्र की सीरते ओक़लाइया और सीरते मोतशर्रेआ और उसके कश्फ के रास्ते उसके ऊपर ग़ालिब व हाकिम क़वाएद व ज़्वाबित की बहसें बतौरे मिसाल पेश की जा सकती हैं। इसके अलावा हुज्जते क़तअ और मौला की मोलवियत के हुदूद के मबाहिस शहीद की नौ आवरी और ईजादात में शुमार होते हैं। (हुसैनी हाऐरी गुज़श्ता हवाला सफहा 67)

इस तरह शहीद के फिक्ही ईजादात, उसूली इजादात से किसी सूरत कम नहीं हैं आप के फिक्ही अब्हास का मजमुआ बहूस फि शर्हे उर्वतुल वुस्क़ा के नाम से चार जिल्दों में ज़ेवरे तबअ से आरास्ता हो चुका है। इन किताबों में ऐसी क़ीमती तहक़ीक़ात नज़र आती हैं जो आप से पहले किसी आलिम ने पेश नही की थीं। शहीद सद्र के मद्दे नज़र जो बात थी वह ये कि इल्मे फिक्ह में वह कई जेहत से तब्दिलियाँ लायें कि जिन में से बाज़ की निस्बत दर्स और तदरीस और किताबों की हद तक कामयाब रहे। आप की भरपूर कोशिश ये थी कि अहकाम के इस्तिंबात और इज्तेहाद में इन्फेरादी व महदूद ज़ाविय ए नज़र खुसूसियात को मुआशेरती व आम ज़ाविय ए नज़र में तब्दिल कर दें।

मिसाल के तौर पर आप चाहते थे कि तक़ईया और जेहाद से मोतअल्लिक रेवायात को समाजी और उमूमी व उरफ़ी अफ़कार और राय आम्मा के पेशे नज़र इस्तेन्बात और इज्तेहाद को महवर बनाऐं। या मिसाल के तौर पर बाकी हुरमत से मोतअल्लिक रिवायात की मुआशेरती मसलहतों और राय आम्मा को मद्दे नज़र रख कर तहलील व तज्ज़िया करें। दर हकीकत आप की भरपूर कोशिश थी कि फ़िक्ही मबाहिस के दायरे को रोज़मर्रा की ज़रुरतों के पेशे नज़र ऐसा साज़गार और हम आहँग बना दें ताकि ये बतला दें कि फिक्ह इन्सान की ज़िन्दगी के तमाम गोशों पर नज़र रखती है और तमाम इन्फ़ेरादी और मोआशेरती हालात के कदम ब कदम आगे बढ़ती है। शहीद अपने रेसाल ए अमलिया अलफ़तावल वाज़ेहा को तहरीर फ़रमा कर और दीगर मराज ए के नसाऐले अमलिया से मोतफ़ावित रविश अपना कर कुछ हद तक अपने मक्सद से नज़दीक हो गऐ थे।

इसी तरह आप ने फ़लसफ़तुना और इक्तेसादुना जैसी किताबें तहरीर फ़रमा कर मार्कस और कैपिटल के माद्दी और इक्तिसादी मकातिबे फिक्र व फ़लसफ़े को अपनी तन्किद का निशाना बनाया और इस सिलसिले में उन्होंने नई रविश और अनोखे उस्लूब निज़ मज़बूत दलायल से भर पूर फायदा उठाया, आपने मन्तिक, तारीख़, तफ़सीर, वगैरह के मैदानों में भी मोवस्सर कदम उठाये और उन में क़ीमती तालीफ़ात पेश कीँ जिनकी तफ़सील की यहाँ गुन्जाईश नहीं है।