पयामे आशूरा

वाक़ेया ए आशूरा तारीख़े इंसानी में अपनी मिसाल आप है। जिस की याद हर नबी के कलेजे को बरमाती रही और हर दौर में इस वाक़ेया ने लोगों को जिला बख़्शी है। शबे आशूर में इमाम हुसैन अलैहिस सलाम ने माद्दी चिराग़ों को गुल कर के क़यामत तक आने वाली बशरीयत के लिये नूरे ईंमान की शमा रौशन कर दी जिस की रौशनी कभी माँद नही पड़ सकती और इस शमा से फ़ूटने वाली शुआयें वादी ए ज़ुल्म व सितम में तड़पते बिलकते इंसानों की हिदायत करती हैं।

 

मुसतज़अफ़ और सितमदीदा इंसानों के कलेजे से ख़ौफ़े ज़ुल्म को दूर कर के उन के दिलों को ख़ौफ़े ख़ुदा का घर करती हैं और जब तक इँसान हक़ीक़ी तौर पर ख़ुदा से डरता है तो ख़ुदा का यह ख़ौफ़ उस को ऐसी हरारत बख़्शता है कि जिस के नतीजे में ख़ौफे दुनिया उस के दिल से रख़्ते सफ़र बाँध कर हमेशा हमेशा के लिये वादी ए फ़ना में अपना बसेरा कर लेता है और फिर उस इंसाने मोमिन की निगाह में ज़ुल्म एक रेत की दीवार की हैसियत रखता है जिस की नाबूदी यक़ीनी होती है और वह इंसान फिर किसी ज़ुल्म से नही डरता और आशूरा बढ़ बढ़ कर उस की हौसला अफ़ज़ाई करती है और कहती है कि अगर तुम जवान हो तो अब्बास व अली अकबर और करबला के जवानों से जीने का सबक़ हासिल करो।

 

अगर ज़ुल्म के लश्कर की तादाद लाखों में हो और तुम अकेले हो तो भी कभी ज़ालिमों की कसीर तादाद से ख़ायफ़ न होना। ख़ुदा वंदे आलम हमेशा कमज़ोर और ज़ईफ़ों का मददगार है और यही वजह है कि ज़ुल्म व ज़ालिमों की कसरत उन की नाबूदी व पशेमानी का सबब बनती है और फ़तह व ज़फ़र ख़ुदा के मुख़लिस बंदों के क़दम चूमा करती है। अगर तुम बूढ़े हो तो लशकरे हुसैनी को एक बूढ़े फ़ौजी के जवान ख़्यालात से दरसे इबरत हासिल करो जिस के ईमान की जवान क़ुव्वत उस के ज़ईफ़, नातवान जिस्म को सहारा दे कर ज़ालिम की क़वी और मुसल्लह अफ़वाज की शिकस्त के लिये मैदाने कारज़ार में ले जा रही है और यह ऐलान कर रही है कि ज़ुल्म कितना कमज़ोर है कि जिस के मुक़ाबले के लिये बूढ़ों में भी यह जुरअत पैदा हो गई है कि बुढ़ापे के लज़रते हुए हाथों से बुनियादे ज़ुल्म व सितम को मुतज़लज़ल करने चले हैं और उन के क़दमों की आहट से क़सरे इसतिबदाद तरज़ा बर अंदाम है और न सिर्फ़ यह कि यहाँ बूढ़ों के अज़्म जवान हैं बल्कि उस से भी बढ़ कर जरा तारीख़े करबला के इख़तेतामिये तक जाईये और देखिये वह बच्चा जिस को चलना नही आता बे बेज़ाअती ए ज़ुल्म व सितम को देख कर अपने ईमान की तवानाई का मुज़ाहिरा करने मैदान में जा रहा है और बच्चे पर तीर चलाना यह ज़ुल्म व सितम के ख़ायफ़ और बुज़दिल होने की दलील है और बच्चे का तीर खा कर हँसना उस की शुजाअत और दिलेरी का सुबूत है और लशकरे ज़ुल्म का रो देना ईमान की कुफ़्र पर फ़तह है और इस तरह से वादा ए इलाही पूरा हो रहा है कि यक़ीनन असली कामयाबी व कामरानी फ़क़त मोमिनीन व मुत्तक़ीन का हक़ है। करबला दुनिया के मज़लूमों से बा बानगें दोहल वादा कर रही है कि तुम ख़ुदा का राह में क़दम रखो तो सही कामयाबी की राह तुम्हारी क़दम बोसी के लिये मुनतज़िर है।

 

सलातीने ज़मन के ताज तुम्हारी जूतियों को बोसा देने के लिये आज भी क़सरे शाही की ज़ीनत बने हुए हैं। मगर शर्त यह है कि ख़ुदा पर तवक्कुल के साथ राहे ख़ुदा पर गामज़न हो जाओ। करबला हर दौर के इंसानों के लिये चिराग़े हिदायत है वह चाहे कोई भी दौर हो अगर इंसान आज भी अपनी फ़लाह व बहबूदी चाहता है तो उस को चाहिये कि वह करबला के दामन से मुतमस्सिक हो जाये और उस के अम्र व नही पर आमिल हो जाये। फिर दुनिया की कोई ताक़त उस के सबाते क़दम को लग़ज़िश नही दे सकती।