अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

संसार की महानतम महिला हज़रत ज़हरा का शुभ जन्म दिवस

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ईश्वर और उसकी प्रार्थना में लीन उसके फ़रिश्तों का सलाम हो फ़ातेमा पर! फ़ातेमा जो लोक परलोक की सब से महान महिला, स्वर्ग की महिलाओं की सरदार और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही वसल्लम के नेत्रों का प्रकाश हैं।आज हज़रत फ़ातेमा ज़हरा(स) का जन्म दिवस है जिन के जन्म से उनका घर ईश्वरीय प्रकाश से जगमगा गया था। आप की माता हज़रत ख़दीजा की प्रसव में सहायता के लिये स्वर्ग से आने वाली महिलाओं ने शिशु को स्वर्ग में बहने वाली नदी, कौसर के पानी से नहलाया और महकते हुये कपड़े में लपेटा था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ईश्वर के आदेश पर उनका नाम फ़ातेमा रखा। हज़रत फ़ातेमा का जन्म पैग़म्बरे इस्लाम के लिये अरब के तपते रेगिस्तान में ठंडी हवा के झोकों की तरह आन्नद दायक था जब कि उनकी माता के लिये ईश्वर का एक ऐसा उपहार था जिसके अस्तित्व ने स्त्री जाति के संबन्ध में हर प्रकार के धर्मान्ध को समाप्त करके उसके महत्व को उजागर और संकुचित विचार वालों को भी महिला के सम्मान पर विवश किया।

मुसलमानों के सुन्नी समुदाय के एक प्रसिद्ध लेखक अहमद ख़लील जुमा अपनी पुस्तक " निसाए अहलुल बैत" अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिवार की महिलाएं में लिखते हैं।:जब भी महान वेशेषताओं और गुणों की टोकरी मनमोहक और विशुद्ध सुगन्ध से परिपूर्ण हो तो उसे फ़ातेमा ज़हरा कहते है, एक मनुष्य किस प्रकार एक पुस्तक में स्वर्ग की महिलाओं की सरदार के सभी गुणों को इकट्ठा कर सकता है। जब मै ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के गुणों को पढ़ने और उनके महान चरित्र व उच्च प्रकृति से पाठ लेने का इरादा किया तो ऐसे लगा जैसे मैं हरे भरे सुन्दर और पवित्र बागों में टहल रहा हूं जहां सांस लेना भी आनन्दमयी है, जहाँ न थकान होती है न हृदय में किसी दुख का आभास होता है। उन बागों में मैने महान विशेषताएं और सुन्दर महल देखे जिनकी हज़रत ज़हरा ने अपने गुणों और उत्कृष्ट व्यवहार से रचना की है।एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत फ़ातेमा को अपने पास बुलाया और कहा: मेरी बेटी अली ने तुम्हारे साथ विवाह का प्रस्ताव दिया है, क्या उनसे विवाह पर सहमत हो? हज़रत फ़ातेमा के माथे पर लज्जा के कारण पसीना आ गया, उन्होंने सिर झुका लिया और धीमें स्वर में पूछाः आपका क्या विचार है? पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा: ईश्वर ने अनुमति दे दी है! यह सुनकर हज़रत ज़हरा ने सन्तुष्ट होकर सुद्दढ़ शब्दों में कहा: जिस बात पर ईश्वर और उसका पैग़म्बर राज़ी हैं में भी राज़ी हूं।हज़रत ज़हरा के लिये बहुत थोड़ा सा दहेज, हज़रत अली से पैसे लेकर तय्यार किया गया और हज़रत अली ने बड़ी उत्सुकता और प्रसन्नता के साथ एक साधारण सा घर अपनी पत्नी के आने के लिये तय्यार किया। विवाह की रात हज़रत फ़ातेमा को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निकट लाया गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपनी सुपुत्री के चेहरे पर पड़ा आंचल हटाया ताकि अली अपनी पत्नी को देखें, फिर हज़रत फ़ातेमा का हाथ अली के हाथ में दिया और कहा: प्रिये अली फ़ातेमा तुम्हारे लिये बहुत अच्छी पत्नी हैं और फिर हज़रत फ़ातेमा से कहा कि: मेरी बेटी, अली तुम्हारे लिये उत्तम पति हैं। इस प्रकार हज़रत फ़ातेमा ने हज़रत अली के घर में क़दम रखा और आरम्भ से ही जीवन साथी से प्रेम के साथ समाज के मुख्य केन्द्र अर्थात पारिवारिक जीवन की सुद्दढ़ आधार शिला रखी।

अपनी क्षमताओं को बढ़ाने और विकसित करने के लिये मनुष्य को अपनी योग्यताओं की पहचान होनी चाहिये। और इसके लिये आवश्यक है कि मनुष्य व्यक्तित्व के उत्तम उदाहरणों को पहचाने और उन्हें अपनी दृष्टि में रखे। इस्लाम की यह महान महिला, परिर्पूण व्यक्तित्व का उज्जवल व उत्कृष्ट उदाहरण हैं। वह व्यक्ति जिसने अपनी बुद्धि और विचारों को परिपूर्णता तक पहुंचाया; संसार की पूर्ण रूप से पहचान की; समाज और इतिहास को गहरी समीक्षात्मक दृष्टि से देखा। पूरे अस्तित्व को प्रेम व कृपा में डुबोये रखा और अपनी सुदृढ़ पहचान बनायी।हज़रत फ़ातेमा के महान पाठों में से एक यह है कि एक स्वस्थ व्यक्तित्व कभी शिथिल नहीं पड़ता, कभी ठहरता नहीं, वह निरन्तर गतिशील रहता है, और अपने सभी आयामों को विकसित करता रहता है।हज़रत फ़ातेमा एक स्वस्थ व उदाहरणीय परिवार की धुरी हैं। और जो भी समय और काल की गलियों से गुज़रते हुये इस घर पर एक दृष्टि डाले तो वह अपने जीवन को इस विकसित और अग्रणी उदाहरण के अनुसार ढ़ाल सकता है। हज़रत फ़ातेमा के जीवन का सब से महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि उन्होंने अपनी छोटी सी आयु में अपने निजी, पारिवारिक और सामाजिक जीवन को एक दूसरे से जोड़ दिया था और परिश्रमी, त्यागी व बलिदानी तथा संघर्ष करने वाली महिला के रूप में सामने आयी थीं।हज़रत फ़ातेमा के घर की एक महत्वपुर्ण विशेषता यह हैं कि यह घर सदैव अज्ञानता के अन्धकार से दूर रहा है। ऐसा घर सौभाग्य और सफलता के प्रचलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दूसरे शब्दों में फ़ातेमा का घर ऐसा है जिसका हर सदस्य बुद्धि का पूर्ण सदुपयोग जानता है और इसके परिणाम स्वरूप ईश्वर को सदैव दृष्टिगत रखना, इस परिवार के सदस्यों के आपसी संबन्धों में सदैव दिखायी पड़ता है। इस परिवार की गृहणी ईश्वर की उपासना को जीवन में सर्वोपरि रखती है। उनके सुपुत्र के अनुसार: माँ जिस समय ईश्वर की उपासना के लिये खड़ी होती हैं, अपने आप को भुला देती हैं और एक दमकता हुआ प्रकाश उन्हें घेर लेता है।

हज़रत फ़ातेमा पूरी गहराई से जीवन का अर्थ समझते हुये आपनी दुआ के एक भाग में कहती हैं हे ईश्वर, मुझे अवसर दे कि जिस उद्देश्य के लिये तूने मेरी रचना की है मैं उसकी पूर्ति कर सकूं और मुझे उस से अलग किसी काम में व्यस्त न होने दे।हज़रत अली (अ) के साथ हज़रत फ़ातेमा के संयुक्त जीवन में पति से प्रतिस्पर्धा, बराबरी या अपने को ऊंचा जताने की भावना कहीं भी देखने में नहीं आती है। वह अपने आप को अपने पति की ही भान्ति एक ऐसा व्यक्ति मानती हैं जिसके भारी कर्तव्य हैं। अत: उस समय जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इस मानवीय केन्द्र को सुदृढ़ बनाने के लिये दायित्वों के विभाजन का प्रस्ताव रखा और हज़रत फ़ातेमा को घर के भीतर और हज़रत अली को घर के बाहर के कामों का ज़िम्मेदार बनाया तो हज़रत फ़ातेमा ने अपनी प्रसन्नता और स्वीकृति इस प्रकार प्रकट की: ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं जानता कि इस प्रकार के विभाजन से मैं कितनी प्रसन्न हूं क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम ने मुझे उन कार्यों से बचा लिया जो पुरुषों से सबंधित हैं।हज़रत फ़ातेमा जानती हैं कि स्त्री घर के काम करने पर विवश नहीं है और पुरुष को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि अपनी पत्नी को एक सेविका समझे। परन्तु पवित्रता, बलिदान की भावना, आत्मीयता तथा जीवन के वास्तविक अर्थ को समझना कारण बनता है कि वह जीवन की कठिन परिस्थतियों को सहन करती हैं और सत्य व प्रेम के केन्द्र अपने छोटे से घर में अपनी सन्तान का ऐसा प्रशिक्षण करती हैं कि इतिहास उनके बच्चों को मानव इतिहास के उच्चतम मनुष्य मानता है। वह अपने पति को अपने बच्चों के लिये आदर्श के रूप में प्रस्तुत करती हैं और अपने ज्येष्ठ पुत्र से कहती हैः हसन! मेरे बेटे! अपने पिता अली जैसे बनो, सत्य के हाथों और पैरों में बंधी रस्सी रवोल दो, कृपालु ईश्वर की उपासना करो और द्वेष रखने वालों से मित्रता न करो। फ़ातेमा, उस घर की रानी थीं जिसकी सब से निकट पड़ोसी निर्धनता थी। परन्तु निर्धनता भी दान दक्षिणा की भावना को इस घर से मिटा नहीं सकी। इस्लामी इतिहासकार इब्ने शहर आशोब कहते हैं: एक दिन अली ने फ़ातेमा से कहा: क्या घर में रवाने की कोई वस्तु है? हज़रत फ़ातेमा ने कहाः ईश्वर की सौगन्ध मैंने और बच्चों ने दो दिनों से कुछ नहीं खाया है। हज़रत अली ने कहा आपने मुझे क्यों नहीं बताया कि मैं उसका कुछ प्रबन्ध करता? हज़रत फ़ातेमा ने कहा: मुझे ईश्वर से लज्जा आई कि ऐसी चीज़ की आपसे इच्छा प्रकट करूं जिसका प्रबन्ध आप न कर सकें। हज़रत अली घर से बाहर आये, किसी से एक दीनार उधार लिया ताकि घर वालों के लिये खाद्य सामग्री खरीदें परन्तु रास्ते में अपने एक साथी को बहुत दुखी देखा। पूछने पर उसने बताया कि घर में भूख से बिलकते बच्चों को देखा नहीं गया इस लिये बाहर निकल आया हूं। यह सुनकर हज़रत अली ने वह एक दीनार उस व्यक्ति को दे दिया।हज़रत फ़ातेमा के घर में हर काम में लोगों की स्वतन्त्रता और मुक्ति को दृष्टिगत रखा जाता है। उनके पति, अली इतिहास के महापुरुष न्याय की आधार शिला रखते हैं और स्वयं हज़रत फ़ातेमा अपने उच्च विचारों के साथ समज की संस्कृति और जनता की विचारधारा को ऊपर उठाने के प्रयास करती हैं। पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री परिवार की महानता व पवित्रता को सुरक्षित रखने के प्रयास के साथ ही साथ जनता के सम्मान और बड़ाई के लिये भी प्रयासरत रहती हैं। वह घर में महिलाओं को शिक्षा देती हैं। इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं से उन्हें अवगत कराती हैं और जब आवश्यकता देखती हैं तो समाज के बीच उपस्थित होकर सत्य और न्याय का समर्थन करती हैं।हज़रत फ़ातेमा का महान व्यक्तित्व ऐसा है कि सभी महिलाओं विशेषकर मुस्लिम महिलाओं के निजी, सामाजिक व पारिवारिक जीवन के लिये आर्दश बन सकता है। महिलाओं को चाहिये कि उनकी बुद्धिमत्ता, उत्तम मानसिकता, उपासना समाज में उपस्थिति और सामाजिक स्तर के कार्यों में उनकी निर्णायक भूमिका को देखें और उससे पाठ लें।सुश्री आतानोस रेनालान ने जिन्होंने अपने लिये इस्लाम धर्म का चयन करने के पश्चात अपना नाम ज़हरा रखा है अपना बचपन और युवा काल फ़्रांस और पूर्व सोवियत यूनियन में बिताया है, कहती हैं: हज़रत फ़ातेमा के व्यक्तित्व ने बड़े जादूई ढ़ंग से मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लिया। मैं अपने पूरे अस्तित्व से उनके महान स्थान का आभास करती हूं। हज़रत फ़ातेमा की जीवनी का अध्ययन करके स्त्री के रुप में एक इन्सान होने का महत्व एवं मूल्य मुझ पर स्पष्ट होगया और आज स्त्री और पुरूष के बीच उत्पन्न की गयी खींचा तानी और प्रतिस्पर्धा मेरे लिये अर्थहीन हो गयी है।

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