इशारा करें तो पहाड़ हट जाए

इस्लामी हिजरी क़मरी वर्ष के बारहवें महीने ज़िल्हज्जा की 24 तारीख़ को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम तथा नजरान क्षेत्र के ईसाइयों के बीच मुबाहेला हुआ था। इसी दिन इस्लाम अपनी पूरी सच्चाई के साथ कुफ़्र एवं अनेकेश्वरवाद के मुक़ाबले में डट गया था और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों का ईमान इस मैदान में विजयी रहा था।

इस्लाम ने कभी भी लोगों को आंख बंद करके तथा बिना सोचे समझे धार्मिक आस्थाओं एवं विश्वासों को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने भी सदैव लोगों को इसी बात की सिफ़ारिश की है कि वे अधिक बेहतर और उच्च मार्ग के चयन के लिए अपनी बुद्धि का सहारा लें क्योंकि मनुष्य की बुद्धि और प्रवृत्ति, मंज़िल तक पहुंचाने के लिए अच्छे पथप्रदर्शक हैं। मुबाहेला की घटना उस समय घटी जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम मदीना नगर में इस्लाम धर्म और ईश्वरीय आयतों का प्रचार कर रहे थे और अपने निरंतर प्रयासों द्वारा इस्लाम के मूल भूत आधारों और सिद्धांतों की नीव रख रहे थे।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने इस्लाम के निमंत्रण को फैलाने के लिए उस समय के विश्व के शासकों, राजनेताओं और धर्मगुरुओं से पत्राचार किया। उनके पत्रों का अध्ययन करने से उनके निमंत्रण की तर्कसंगत शैली का पता चलता है। इन्हीं में से एक पत्र उन्होंने अरब के दक्षिण में स्थित नजरान क्षेत्र के ईसाइयों के धर्मगुरू को लिखा था और ईसाइयों को तीन ईश्वर की आस्था छोड़ कर वास्तविक एकेश्वरवाद की ओर आने का निमंत्रण दिया था। ईसाई धर्मगुरुओं ने, जो अपने पवित्र ग्रंथों में ईश्वर के अंतिम पैग़म्बर की निशानियों के बारे में पढ़ चुके थे, अपने कुछ प्रतिष्ठित लोगों को छान-बीन के लिए पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पास भेजा। उन लोगों ने पैग़म्बर से दो मूल प्रश्न किए। प्रथम यह कि वे उन्हें किन चीज़ों का निमंत्रण देते हैं? और दूसरे यह कि हज़रत ईसा मसीह के बारे में उनका क्या विचार है? पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ईसाइयों के पहले प्रश्न के उत्तर में उन्हें अनन्य ईश्वर की उपासना का निमंत्रण दिया और दूसरे प्रश्न के उत्तर में कहा कि हज़रत ईसा मसीह भी ईश्वर के एक बंदे तथा मुनष्य थे और उन्हें ईश्वर या ईश्वर का पुत्र नहीं समझना चाहिए। इस पर नजरान के ईसाइयों ने कहा कि यदि हज़रत ईसा ईश्वर की रचना और उसके बंदे हैं तो फिर उनका पिता कौन है? हर मनुष्य का पिता होना ही चाहिए। पैग़म्बर ने इसके उत्तर में सूरए आले इमरान की 59वीं आयत की तिलतावत कीः निसन्देह, ईश्वर के निकट ईसा (की सृष्टि) का उदाहरण, आदम (की सृष्टि) की भांति है। ईश्वर ने उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा कि हो जा तो वह हो गया। इसके बाद पैग़म्बर ने कहा कि वस्तुतः हज़रत ईसा की स्थिति इस दृष्टि से हज़रत आदम के समान है कि ईश्वर ने उन्हें अपनी असीम शक्ति से बिना माता-पिता के पैदा किया था। इस आधार पर यदि बिना पिता के पैदा होना, ईश्वर होने का तर्क है तो फिर निश्चित रूप से हज़रत आदम, हज़रत ईसा से श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे तो माता और पिता दोनों के बिना ही पैदा हुए थे।

ईश्वर, अपने पैग़म्बर को तर्क प्रस्तुत करने वालों का आदर्श बनाने हेतु सूरए नहल की 125वीं आयत में कहता है कि (हे पैग़म्बर! लोगों को) तत्वदर्शी बातों तथा अच्छे उपदेश द्वारा अपने पालनहार के मार्ग की ओर बुलाइये और (विरोधियों के साथ) उस पद्धति से शास्त्रार्थ किजिए जो सबसे अच्छी है। ईश्वर ने निमंत्रण के लिए जो साधन प्रस्तुत किया है वह तर्क, उपदेश और अच्छे ढंग से शास्त्रार्थ है। अच्छे शास्त्रार्थ का अर्थ यह है कि व्यक्ति सत्य के अतिरिक्त कुछ नहीं कहता और केवल सत्य को स्वीकार करता है। वह ढीले व कमज़ोर तर्क प्रस्तुत नहीं करता तथा प्रतिद्वंद्वी की कमज़ोरी से अनुचित लाभ नहीं उठाता। जैसा कि हम सूरए अहज़ाब की आयत क्रंमाक 70 में पढ़ते हैं। हे ईमान वालो! ईश्वर से डरो और ठोस बातें करो।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने भी नजरान के ईसाइयों के साथ बात करते समय अत्यंत विनम्रता व स्नेह के साथ हज़रत ईसा मसीह के बारे में क़ुरआने मजीद की आयतों की तिलावत की और ठोस तर्कों के साथ ईश्वर के उस महान पैग़म्बर के बारे में उनसे बात की किंतु चूंकि उन लोगों ने पूर्ण रूप से सत्य की ओर से अपनी आंखें बंद कर रखी थीं और तर्क की भाषा उनकी समझ में नहीं आ रही थी इस लिए उन्होंने बिना किसी ठोस तर्क के अपनी आस्था पर आग्रह किया और कहा कि हम आपकी बातों से संतुष्ट नहीं हुए। अब दोनों पक्षों के बीच सच्चाई को सिद्ध करने के लिए मुबाहेला के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं बचा थ। मुबाहेला उस क्रिया को कहते हैं जिसके अंतर्गत दोनों पक्ष एक स्थान पर एकत्रित हो कर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और उससे अनुरोध करते हैं कि जो कोई ग़लत बोल रहा है, उसे अपने दंड में ग्रस्त कर। इस प्रकार ईश्वर ने अपने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से कहा कि अब जबकि ये लोग ठोस तर्को को सुनने और सत्य को समझने के बाद भी हठधर्म से काम ले रहे हैं और संदेह रह जाने का बहाना बना कर सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं तो आप इन्हें मुबाहेले का निमंत्रण दे दीजिए।

चूंकि मुबाहेला पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के चमत्कारों में से एक है इस लिए हम आपको इसके बारे में संक्षेप में बताते चलते हैं। मुबाहेला, ईश्वर से एक प्रकार की गिड़गिड़ा कर की जाने वाल दुआ और निवेदन है। यह कार्य कभी विभूतियों जैसे वर्षा इत्यादि की प्राप्ति के लिए होता है तो समस्याओं व संकटों को दूर करने के लिए। इसी प्रकार यह किसी व्यक्ति या गुट को ईश्वरीय दंड में ग्रस्त करने के लिए भी होता है जैसे कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने प्रार्थना की थी। सूरए नूह की 26वीं आयत में आया है। (नूह ने अपने पालनहार से कहा) प्रभुवर! धरती पर किसी भी काफ़िर को बाक़ी न रख। इसी प्रकार अन्य पैग़म्बरों ने भी हठधर्मी काफ़िरों के संबंध में ईश्वर से इसी प्रकार का प्रार्थना की है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के मुबाहेला के संबंध में ईश्वर ने सूरए आले इमरान की आयत क्रमांक 61 में इस प्रकार कहा है। तो (हे पैग़म्बर) जो कोई भी (ईश्वरीय संदेश वहि द्वारा) आपके पास आने वाले ज्ञान के पश्चात आपसे (ईसा मसीह के बारे में) बहस और विवाद करे तो उससे कह दीजिए कि हम अपने पुत्रों को लाएं और तुम अपने पुत्रों को, हम अपनी स्त्रियों को लाएं, तुम अपनी स्त्रियों को लाओ, हम अपने आत्मीय लोगों को और तुम अपने आत्मीय लोगों को लाओ तो फिर हम ईश्वर के समक्ष प्रार्थना करें और एक-दूसरे को अभिशाप करें तथा झूठ बोलने वालों के लिए ईश्वरीय लानत अर्थात अभिशाप निर्धारित करें। यह कार्य, तर्क और ठोस प्रमाणों के प्रभावहीन रहने के बाद अंतिम साधन के रूप में प्रयोग किया गया।

ईसाइयों ने पहले से तय कर रखा था कि यदि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम बहुत अधिक लोगों के साथ मुबाहेला के मैदान में आए तो वे पीछे नहीं हटेंगे और मुबाहेला करेंगे किंतु उन्हें एक अप्रत्याशित दृश्य का सामना करना पड़ा और उन्होंने देखा कि पैग़म्बर अपने एक नाती इमाम हुसैन को गोद में लिए हुए हैं तथा दूसरे नाती इमाम हसन का हाथ पकड़े हुए हैं तथा हज़रत अली व हज़रत फ़ातेमा ज़हरा भी उनके पीछे पीछे आ रहे हैं। वे उनसे कह रहे हैं कि जब मैं ईश्वर से प्रार्थना करूं तो तुम लोग आमीन कहना अर्थात प्रभुवर! इस दुआ को स्वीकार कर। नजरान के ईसाई पैग़म्बरे इस्लाम के इस विश्वास और संतोष को देख कर कि वे केलव अपने परिजनों के साथ उनके मुक़ाबले पर आए थे, बहुत अधिक विचलित एवं भयभीत हो गए। उन्होंने मुबाहेला करने से इन्कार कर दिया और संधि करने के लिए तैयार हो गए। इस प्रकार इस्लाम धर्म की सत्यता सभी के लिए विशेष रूप से ईसाइयों के लिए पहले से अधिक स्पष्ट हो गई।

इसी प्रकार यह महान घटना, पैग़म्बरे इस्लाम की अन्य शैली को दर्शाती है जिसमें उन्होंने अपने परिजनों का, जो उन्हीं की भांति ईश्वरीय रहस्यों के अमानतदार थे, औपचारिक रूप से लोगों से परिचय करवाया और इस प्रकार अपने बाद के नेताओं से मुसलमानों को अवगत कराया। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम जब अपने इन चार परिजनों के साथ नजरान के ईसाइयों के पास पहुंचे तो उन्होंने ईश्वर से कहाः प्रभुवर ये मेरे परिजन हैं। इस प्रकार इन चार लोगों की महानता व प्रतिष्ठा सभी के समक्ष स्पष्ट हो गई क्योंकि पैग़म्बर ने मुबाहेला की आयत को व्यवहारिक बनाते हुए अपने अत्यंत निकट व आत्मीय व्यक्ति के रूप में हज़रत अली, अपनी महिलाओं के रूप में हज़रत फ़ातेमा और अपने बच्चों के रूप में इमाम हसन व इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम के अतिरिक्त किसी अन्य को प्रस्तुत नहीं किया था।

मुबाहेला का निमंत्रण, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सच्चाई का एक अन्य स्पष्ट चिन्ह है क्योंकि यह बात संभव नहीं है कि जिसे अपने पालनहार से संबंध पर पूर्ण विश्वास न हो वह इस प्रकार के मैदान में आए और अपने विरोधियों को निमंत्रण दे कि वे ईश्वर से, झूठे को दंडित करने की प्रार्थना करें। निश्चित रूप से यह अत्यंत ख़तरनाक काम है क्योंकि यदि उस व्यक्ति की प्रार्थना स्वीकार न हो और विरोधी ईश्वरीय दंड में ग्रस्त न हों तो इसका परिणाम उसके घोर अपमान के रूप में ही निकलेगा। कोई भी बुद्धिमान एवं दूरदर्शी व्यक्ति परिणाम पर पूरे विश्वास के बिना ऐसा काम नहीं करेगा। यही कारण था कि जब पैग़म्बर मुबाहेला के मैदान में आए तो नजरान के ईसाई उन्हें देख कर, जो बिना किसी ठाठ बाट के केवल अपने नातियों इमाम हसन व हुसैन, सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा और दामाद हज़रत अली के साथ आए थे, अत्यधिक भयभीत हो गए और उन्होंने बड़ी तीव्रता के साथ संधि पर अपनी तत्परता जता दी क्योंकि वे अपने हृदय की गहराइयों से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की सच्चाई को समझ गए थे।