क़ुम शहर

ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार 23 हिजरी क़मरी में क़ुम को मुसलमानों ने फ़तह किया। इस नगर की जनता पर इस्लाम का प्रभाव इतना गहरा था कि अब्बासी शासन काल में यह शहर पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के श्रद्धालुओं का शरणस्थल था। ये लोग उमवी और अब्बासी शासकों के अत्याचार से बचने के लिए क़ुम नगर का रुख़ करते थे। इस प्रकार यह नगर धीरे धीरे पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के श्रद्धालुओं का गढ़ बन गया। उमवी व अब्बासी शासकों का क़ुम समेत इस्लामी नगर पर प्रभाव था यहां तक कि 189 हिजरी क़मरी में जब हारून रशीद का शासन काल था, क़ुम नगर इस्फ़हान से अलग हो गया और एक पृथक शहर के रूप में इतिहास में इसका नाम लिख गया। इसके बाद से क़ुम पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के मत की रक्षा के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हो गया और स्थानीय शक्तियों के प्रभाव को स्वीकार करने से बच गया।

क़ुम नगर की ख्याति का एक और कारण वह पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटी हज़रत मासूमा का आध्यात्मिक वातावरण से ओत-पोत भव्य रौज़ा है। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार हज़रत मासूका के स्वर्गवास और उनके इस शहर में दफ़्न किए जाने के बाद इस नगर का बसना शुरु हुआ। याक़ूबी ने प्रसिद्ध किताब मोजमुल बुलदान में लिखा है कि क़ुम नगर तीसरी हिजरी क़मरी के अंत और चौथी हिजरी क़मरी के आरंभ में इस्लामी जगत के बड़े नगरों में गिना जाता था। आले बूये शासन काल में रुकनुद्दोला की उपाधि से मशहूर वज़ीर साहिब बिन अब्बाद ने क़ुम नगर पर विशेष ध्यान दिया क्योंकि उस समय ईरान पर अब्बासी शासकों का प्रभाव कम हो गया था। किन्तु सलजूक़ी शासकों के सत्ता में पहुंचने के बाद क़ुम नगर उपेक्षा का शिकार होता है। पांचवी शताब्दी के पहले अर्ध में एक बार फिर क़ुम नगर का विकास शुरु हुआ और छठी शताब्दी के मध्य तक इस नगर में बहुत सीमा तक विकास हुआ। क़ुम नगर में विकास की यह प्रक्रिया जारी रही यहां तक कि सातवीं हिजरी क़मरी में ईरान मंगोलों के आक्रमण का निशाना बनता है। मंगोलों ने अपने बर्बरतापूर्ण हमले में छोटे-बड़े किसी पर दया न की। 621 हिजरी क़मरी में क़ुम नगर भी मंगोलों की बर्बरता का निशाना बना।

तैमूरी काल में क़ुम नगर में चहल-पहल फिर से शुरु होती है और कुछ समय के लिए यह राजधानी भी बनता है। 846 हिजरी क़मरी में एराक़ की सत्ता पर आसीन शाहरुख़ ने क़ुम नगर को अपनी राजधानी बनाया और उसके बाद दूसरे राजकुमार भी क़ुम नगर को शीत ऋतु में सैरगाह के तौर पर प्रयोग करते थे। यहां तक कि सफ़वी शासन काल में क़ुम नगर पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाने लगा और ईरान में आधिकारिक रूप से शीया मत की घोषणा के साथ ही क़ुम नगर ईरान के महत्वपूर्ण दर्शनस्थलों में गिना जाने लगा। हालांकि ईरान पर अफ़ग़ानियों के हमलों के दौरान क़ुम भी कई बार उजड़ा और बहुत से लोगों का जनसंहार हुआ किन्तु क़ुम बाक़ी रहा।

हज़रत मासूमा रौज़ा भी क़ुम नगर की ख्याति व चहल-पहल का बहुत बड़ा कारण समझा जाता है। हज़रत मासूमा के रौज़े के अतिरिक्त दसियों धार्मिक विद्यालयों, शोध केन्द्रों, मस्जिदों सहित धार्मिक स्थल की मौजूदगी यह दर्शाती है कि वर्तमान काल में क़ुम इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है। आज क़ुम में विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक विद्यालय है जिसमें ईरान सहित पूरी दुनिया के छात्र शिक्षा हासिल कर रहे हैं। यह ऐसा विद्यालय है जहां समकालीन विश्व में इस्लाम मूल शिक्षाओं एवं सही विचारों का प्रसार होता है। इसी प्रकार यह केन्द्र धार्मिक एवं वैज्ञानिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के अतिरिक्त इस्लामी आंदोलन की स्थिरता व एवं इस्लामी प्रतिरोध का केन्द्र भी समझा जाता है।

पवित्र क़ुम लंबे समय से महान धार्मिक विद्वानों व मुहद्दिसों अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम के कथन के वर्णनकर्ताओं का केन्द्र रहा है। निरंतर कई शताब्दियों के दौरान लोगों में इस्लामी शिक्षाओं की प्राप्ति में रूचि ने क़ुम में धार्मिक शिक्षा केन्द्र के अस्तित्म में आने की पृष्ठिभूमि मुहैया की और इस्लामी जगत के महान दार्शनिक मुल्ला सदरा एवं प्रसिद्ध मुहद्दिस फ़ैज़ काशानी जैसे विद्वानों ने कुछ समय पवित्र नगर क़ुम में पठन-पाठन किया।

तेरहवीं हिजरी के पहले अर्ध में प्रसिद्ध धर्मगुरु आयतुल्लाह मीरज़ाए क़ुम्मी की कोशिशों से क़ुम में धार्मिक केन्द्र शुरु किया गया और आयतुल्लाह अब्दुल करीम हायरी यज़्दी के क़ुम आने से वर्ष 1922 में क़ुम में धार्मिक महाविद्यालय की आधिकारिक रूप से स्थापना हुयी। आयतुल्लाह हायरी यज़्दी ने धार्मिक महाविद्यालय की स्थापना के बाद धार्मिक मदरसों के फिर से निर्माण एवं विकास की कोशिश शुरु की और शिक्षा शैली में परिवर्तन के साथ ही वे क़ुम के धार्मिक केन्द्र में महापरिवर्तन लाए।
इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह, आयतुल्लाह हायरी के विशेष शिष्यों में थे, अपने गुरु के महास्थान के बारे में कहते है,“ उस कठिन समय में जब रज़ा शाह पहलवी धार्मिक पाठशालाओं एवं आध्यात्मिकता को ख़त्म करना चाहता था, आयतुल्लाह हायरी ने न केवल मदरसों बल्कि आध्यात्मिकता की रक्षा की और इस अमानत को हम तक पहुंचाया ताकि हम इसे बाद वालों के हवाले करें।”
क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र के सही तरह स्थापित होने के बाद इस शहर में एक बार फिर इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार बढ़ा और ईरान के सुदूर क्षेत्रों से धर्मशास्त्रियों ने इस शहर का रुख़ किया। इन्हीं धर्मगुरुओं में आयतुल्लाहिल उज़्मा बुरुजर्दी भी थे। आयतुल्लाह बुरुजर्दी ने जब क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र के प्रधानाचार्य का पद संभाला तो उस समय क़ुम के इस केन्द्र की ख्याति दूर दूर तक फैल चुकी थी।
आयतुल्लाह बुरुजर्दी के स्वर्गवास के पश्चात इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने आध्यात्मिक आंदोलनों के केन्द्र क़ुम में नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और सामाजिक व राजनैतिक नियम तथा प्रशासनिक मामलों जैसे इस्लाम के भुलाए जा चुके आयामों को पुनः जीवित किया और हाशिए में जा चुके ईश्वरीय क़ानून को समाज की मुख्यधारा में लाए।
इमाम ख़ुमैनी ने धर्म और राजनीति में दूरी के विचार को रद्द किया और उनका यह मानना था कि धर्म में मनुष्य के सभी युगों व पीढ़ियों के मामलों के अनुरूप होने की शक्ति है और वह मनुष्य की सभी ज़रूरतों को पूरा कर सकता है। इसी दृष्टिकोण के साथ इमाम ख़ुमैनी ने ईरानी जनता के स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा निर्देशित किया और अंततः ईरानी राष्ट्र ने महाक्रान्ति शुरु की। इस पृष्टिभूमि के साथ इस्लामी क्रान्ति सफल हुयी और क़ुम का धार्मिक शिक्षा केन्द्र पूरब और पश्चिम में इस्लामी व क्रान्तिकारी गतिविधियों के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ। हालिया दशकों में यह केन्द्र धार्मिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में हर वर्ष अधिक से अधिक सक्रिय रहा है।
आज क़ुम का धार्मिक शिक्षा केन्द्र विश्वविद्लय बन गया है और धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, अर्थव्यवस्था और क़ुरआन की व्याख्या सहित दूसरी शाखाओं में इस्लामी जगत की सांस्कृतिक एवं वैचारिक ज़रूरतों को पूरी कर सकता है। इस समय क़ुम में ईरान सहित विश्व के दसियों हज़ार छात्र धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र की बरकतों में से एक इस शहर सहित ईरान के दूसरे शहरों में धार्मिक स्कूलों की स्थापना है। क़ुम के प्रसिद्ध स्कूलों में से एक मदरसे फ़ैज़िया भी है। यह मदरसा हज़रत मासूमा के रौज़े से सटा हुआ है और इसकी आधारशिला 934 हिजरी क़मरी में सफ़वी शासन काल में रखी गयी।
अधिकांश समकालीन बड़े धर्मगुरुओं ने फ़ैज़िया मदरसे में शिक्षा प्राप्त की है। पहलवी शासन के ख़िलाफ़ पूरी इस्लामी क्रान्ति के दौरान फ़ैज़िया मदरसा, धार्मिक-राजनैतिक संघर्ष का मूल केन्द्र समझा जाता था। वर्ष 1342 और 1354 हिजरी शम्सी में पहलवी शासन के सुरक्षा तत्वों ने इस मदरसे पर हमला किया जिसमें बहुत से धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र शहीद हुए। फ़ैज़िया मदरसे की इमारत की अनेक बार मरम्मत हो चुकी है और इस मदरसे की वर्तमान इमारत का निर्माण 1214 हिजरी क़मरी में पूरा हुआ।
फ़ैज़िया मदरसे के अतिरिक्त दारुश्शिफ़ा, हुज्जतिया, मासूमिया, जामेअतुज़्ज़हरा सहित दूसरे बहुत से मदरसे क़ुम में मौजूद हैं। इन मदरसों ने न केवल यह कि ज्ञान के जिज्ञासा रखने वाले बहुत से शोधकर्ताओं को अपने यहां आकर्षित किया है बल्कि बहुत से महत्वपूर्ण शोध भी इन मदरसों द्वारा कराए गए हैं। क़ुम में और भी दूसरे धार्मिक केन्द्र व विश्वविद्यालय हैं जो ज्ञान की प्यास बुझाने वाले छात्रों को तृप्त कर सकते हैं।