अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

ईश्वरीय वाणी-1

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पवित्र क़ुरआन चमकता हुआ सूर्य है जो अपने प्रकाशमयी मार्गदर्शन से अज्ञानता और अंधकार से मुक्ति दिलाता है और परिपूर्णता तक पहुंचता है। पवित्र क़ुरआन, स्वच्छ व कल्याणपूर्ण समाज तक पहुंचने के लिए आर्थिक व सामाजिक संबंधों, राजनैतिक व्यवस्था, शिष्टाचारिक, उपासना तथा प्रशिक्षण संबंधी कार्यक्रमों के बारे में लोगों संबंधी कार्यक्रमों को लोगों के लिए रेखांकित करता है और पवित्र क़ुरआन के अनुसार यह सबसे मज़बूत रास्ता व मार्ग है। सूरए फ़ुस्सेलत की आयत संख्या 41 व 42 आया है कि यह पुस्तक एक अटल सच्चाई है जिसके निकट सामने या पीछे से कोई भी ग़लत बात नहीं आ सकती कि यह तत्वदर्शी व महान ईश्वर की ओर से उतारी हुई पुस्तक है।

पवित्र क़ुरआन एक ऐसी पुस्तक है जिसका आधार मज़बूत व सुदृढ़ तर्कों पर है और इसकी बातों में गहराई और इसकी शिक्षाएं मज़बूत प्रेरणादायक है। इसके आदेश व इसकी शिक्षाएं महान व तत्वदर्शी ईश्वर की ओर से उतारी गयी हैं जो पूरी सृष्टि और मनुष्य के पूरे अस्तित्व पर छाया हुआ है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि पवित्र क़ुरआन ने अपने अनुयायियों के जीवन को जितना प्रभावित किया है उतना किसी और पुस्तक ने प्रभावित नहीं किया और लोगों को प्रभावित करने व उनके दिलों को आकर्षित करने में सफल नहीं हुई है। इस ईश्वरीय पुस्तक की शिक्षाओं ने बहुत ही कम समय में अज्ञानता के काल की पतन की शिकार संस्कृति का बोरिया बिस्तरा बांध दिया और एकेश्वरवाद की पताका लहरा दी।

पवित्र क़ुरआन के सूरों के संबंध में कुछ व्याख्याकर्ताओं का यह मानना है कि इन सूरों में से हर एक की अपनी अलग पहचान है। पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकर्ता और फ़ी ज़िलालिल क़ुरआन नामक पुस्तक के लेखक सैयद क़ुतुब कहते हैं कि जिस प्रकार से सारे मनुष्यों के शरीर के अंग होते हैं और इस बारे में वह एक दूसरे के समान हैं और उनका मतभेद उनके व्यक्तिगत व उनकी विशेषता के कारण होता है। पवित्र क़ुरआन के सूरों में भी बहुत सी समानता पायी जाती हैं जो व्यक्तिगत रूप से दूसरों से भिन्न होती हैं और हर सूरे की अपनी एक विशेष पहचान है और हर एक विशेष समय और काल में उतरी हैं।

पवित्र क़ुरआन के सूरों की पहचान की चर्चा में जो विषय महत्त्वपूर्ण है वह मक्की और मदनी सूरों की पहचान है अर्थात कौन सा सूरा मक्के में उतरा है और कौन सा मदीने में। पवित्र क़ुरआन के विशेषज्ञों और व्याख्याकर्ताओं ने पवित्र क़ुरआन के सूरों को मक्की और मदनी दो भागों में विभाजित किया है। निसंदेह मक्के में उतरने वाली सूरों व आयतों की पहचान और मदीने में उतरने वाले सूरों व आयतों से उनको अलग करने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य को इस्लामी इतिहास की पहचान तथा आयतों व इस्लामी शिक्षाओं व नियमों की सही समझ हो। मक्की सूरे और आयत उन्हें कहा जाता है जो पैग़म्बरे इस्लाम के मक्के से मदीने की ओर पलायन से पूर्व उतरीं जबकि मदनी सूरें वे हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम के मक्के से मदीने की ओर पलायन के बाद उतरीं हैं।

पवित्र क़ुरआन के कुछ व्याख्याकर्ताओं ने मक्की और मदनी सूरों के लिए समय को मापदंड रखा है जबकि कुछ लोग स्थान को भी दृष्टिगत रखते हैं, इस संबंध में व्याख्याकर्ताओं के मध्य मतभेद पाये जाते हैं। पवित्र क़ुरआन के संबंध में शोध करने वाले डाक्टर हाशिम ज़ादे हरीसी के अनुसार, मक्की और मदनी सूरों को पहचानने के मार्गों में, सूरे व आयतों के लक्ष्यों व उसमें वर्णित बातों की पहचान है। उनका यह मानना है कि क़ुरआन के संबोधन से ही उसके मक्के और मदनी होने का पता चल जाता है। वे क़ुरआन की पहचान नामक पुस्तक में लिखते हैं कि वे सूरे जिनमें हे लोगों या हे आदम की संतानों जैसे शब्दों से संबोधन किया गया है सामान्य रूप से वे मक्की सूरे हैं क्योंकि उस समय मक्के के लोग, ईमान नहीं रखते थे, इसीलिए उन्हें इस प्रकार संबोधित किया गया किन्तु जिन सूरों में इस प्रकार संबोधित किया गया हो कि हे वह लोग जो ईमान लाए, सामान्य रूप से मदनी होती हैं क्योंकि मदीने के संबोधक मोमिन थे। पवित्र क़ुरआन के प्रसिद्ध व्याख्याकर्ता अल्लामा तबातबाई इस संबंध लिखते हैं कि आयतों के मक्की और मदनी होने की पहचान का केवल एक मार्ग है और वह सूरों में वर्णित बातों में चिंतन मनन करना और आयत को पलायन से पूर्व और बाद की घटनाओं से मिलाकर उसको देखना है।

कुल मिलाकर पवित्र क़ुरआन के सूरों में से 86 सूरें उस समय उतरीं जब रसूले इस्लाम तेरह वर्षों तक मदीने में थे। मक्के में उतरी सूरें सामान्य रूप से छोटी होती हैं । इन सूरों में ईश्वर ने अनेकेश्वरवादियों की वैचारिक व आस्था संबंधी भ्रांतियों व शंकाओं का उत्तर दिया है और ईश्वर तथा प्रलय के बारे में उनके निराधार दावों को रद्द किया है। मक्की सूरें सामान्य रूप से एकेश्वरवाद, पैग़म्बरी, प्रलय और नैतिकता का निमंत्रण तथा सृष्टि की पहचान जैसे विषयों का वर्णन होता है।

पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतें पैग़म्बरे इस्लाम के पलायन के बाद उतरीं। मदीने और वहां के लोगों की स्थिति मक्के की स्थिति से पूर्ण भिन्न थी। मदीने में, इस्लामी सिद्धांतों और मान्यताओं के आधार पर इस्लामी सरकार का गठन हुआ था, मुसलमान भी ताज़ा दम थे और धीरे धीरे उनकी कमज़ोरी, शक्ति में परिवर्तित हो गयी। मदीने में अन्य ईश्वरीय धर्मों के अनुयायी और मिथत्याचारी जैसे विभिन्न गुट मौजूद थे जो भिन्न राजनैतिक, सामाजिक व आस्था संबंधी विचार के स्वामी थे। यही कारण है कि इस नगर में विभिन्न घटनाएं घटीं। नवआधार इस्लामी सरकार के गठन, मदीना नगर की स्थति, इसी प्रकार अरब प्रायद्वीप में शत्रुओं के दिन प्रतिदिन बढते हथकंडों व विरोधों के कारण, मदनी सूरों में वर्णित बातें, मक्की सूरों से पूर्णतः भिन्न हैं। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन की कुछ मदनी आयतों में अनेकेश्वरवादियों से पैग़म्बरे इस्लाम के वैचारिक संघर्ष का वर्णन मिलता है या शत्रुओं से इस्लामी सेना के युद्ध से संबंधित घटनाओं और सैन्य चढ़ाई से संबंधित घटनाओं की ओर संकेत किया गया है। मदनी सूरों में स्थिति के अनुसार मिथ्याचारियों के षड्यंत्रों की ओर संकेत किया गया है और कभी कभी पैग़म्बरे इस्लाम और मिथ्याचारियों के मध्य होने वाली घटनाओं को यह आयतें बयान करती हैं। इस प्रकार से मदनी सूरों से समाज के बारे में बहुत से आवश्यक सिद्धांत व क़ानून प्राप्त किए जा सकते हैं। मदनी सूरे सामान्य रूप से लंबी होती हैं।

यहां पर पवित्र क़ुरआन के छोटे और बड़े सूरों के बारे में कुछ बिन्दु का उल्लेख करना आवश्यक है। पवित्र क़ुरआन के कुछ छोटे या मध्यम सूरे सामान्य रूप से एक बार या एक चरण में उतरी हैं किन्तु बड़े सूरों के बारे में यह शैली भिन्न होती है। अधिकतर यह सूरे, कुछ चरणों में और विभिन्न अवसरों पर उतरे हैं और उसके बाद वह एक सूरे का रूप धारण कर गये। बड़े सूरों में कुछ स्थानों पर मदनी सूरों के बीच में मक्की आयतें भी शामिल हैं और इसी प्रकार कुछ मक्की सूरों के बीच में मदनी आयतों को शामिल किया गया है और इस प्रकार के सूरों को मिश्रित सूरे कहा जाता है।

पैग़म्बरे इस्लाम के काल के अनेकेश्वरवादियों के विरोधों और पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं से अज्ञानता के काल की शत्रुओं के बावजूद यह पुस्तक अपनी सुन्दर व आकर्षित शिक्षाओं के साथ इतिहास में अमर है। आज जो क़ुरआन हमारे पास है निसंदेह यह वही क़ुरआन है जो पैग़म्बरे इस्लाम पर उतरा है। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने भी इस अद्वितीय पुस्तक की शिक्षाओं को असत्य से सत्य की पहचान का बेहतरीन मापदंड और सर्वोच्च क़ानून बताया है।

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