अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

रोक टोक

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याद नहीं पड़ता कि कब से इस प्रथा का खुल कर चलन हुआ शायद बीस पच्चीस साल से !! यही प्रया कि बस अपने काम से काम रखो, रिश्तेदार हों या पड़ोसी, किसी के मामले में भी न पड़ो। उनके यहां आग लगे या पानी बरसे हम से क्या मतलब!!


होता यह है कि आप ने किसी के मामले में टांग अड़ाई तो उसे बुरा लगेगा और जो थोड़ा बहुत मेल मिलाप रह गया है उसका भी अन्त हो जायेगा। फिर यह भी है कि अब पुराना ज़माना तो है नहीं कि पड़ोसियों का लम्बा साथ रहे और उनसे अपनापन हो जाये, शहर- नगर के जीवन में पड़ोसी बदलते रहते हैं कोई कैसा है? क्या करता है? क्या खाता है? क्या पीता है? हमें यह सब सोचना नहीं चाहिये।


सब से बढ़कर यह बात है कि शिक्षित समाज के लोग हैं और दूसरों की खोज में लगे रहना असभ्यता की निशानी है। अब आप यूरोप और अमरीका को देखें लोग बस अपना जीवन जीते हैं, माता पिता तक अपने बच्चों को नहीं टोकते, दूसरों की तो बात ही और है।


यह सब बातें बहुत सही लगती है लेकिन कठिनाई तब होती है जब हम धार्मिक शिक्षाओं में घर वालों, सगे सबन्धियों, नाते रिश्ते दारों यहां तक कि पड़ोसियों के प्रति अपने उत्तर दायित्वों का उल्लेख पाते हैं और यह बात किसी एक ईश्वरीय धर्म में नहीं बल्कि सभी धर्मों और मतों में मौजूद है। ऐसी स्थिति में मन में यह आता है कि यह बातें जो इस समय प्रचलित हो गयी हैं गलत हैं या सही ।ग़लत और सही का पता लगाने के लिये हमें इन बातों की गहराई में जाना होगा। पहले यह देखें कि लोगों ने इन बातों को बुरा समझना क्यों आरम्भ कर दिया?


इसके दो कारण समझ में आते हैं! पहला यह कि कुछ लोग किसी भी व्यक्ति या परिवार की खोज में लगे रहना उसके अच्छे कामों और सफलताओं से जलना और ईर्ष्या करना और उसकी बुराईयों या कमियों का पता लगते ही उन्हें लोगों के बीच फैलाना, उसका मज़ाक उड़ाना, उसे बदनाम करना, उसके पीठ पीछे बातें बनाना, अपनी आदत बना लेते हैं। यह लोग हो सकता है कि हमारे सगे संबंधी हों या पड़ोसी। ऐसे लोगों से घर, परिवार और समाज को बड़ी हानि पहुंचती है। इनकी बुरी आदतों के कारण लोग इनसे दूर भागते हैं। और इनसे अपनी बात छिपाते हैं। दूसरा कारण लोगों की धार्मिक शिक्षा से दूरी है। धार्मिक शिक्षाओं में भी इन आदतों की निन्दा की गयी है। पवित्र क़ुरान में पीठ पीछे किसी की बुराई करने को अपने मुर्दा भाई का मांस खाने के समान कहा गया है। दूसरों के मामले में टांग अड़ा कर झगड़ा कराने वाले को ईश्वरीय दंड का पात्र माना जाता है।


इसी प्रकार दूसरों का मज़ाक उड़ाने वालों को और अफ़वाहें फैलाने वाले को पापी माना गया है। यदि लोग धर्म से दूर न होते तो इन शिक्षाओं पर ध्यान देते और अपने आप को इस प्रकार की बुराईयों से दूर रखते और वह लोग जो इन बातों को बुरा समझते हैं, वह थोड़े से ऐसे लोगों की बुरी आदतों को आधार बना कर परिवार, पड़ोस और समाज के हर व्यक्ति से दूरी बनाने का प्रयास न करते बल्कि उनके प्रति ईश्वर द्वारा दिए गये अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए अपने परिवार और पड़ोस के रिश्तों का मान रखते। कुछ लोगों से बातें छिपाने का यह दायरा धीरे धीरे बढ़ने लगता है और फिर अपना-पराया हर एक ऐसा लगने लगता है कि उससे बातें छिपायी जायें। इस प्रकार दूरियां बढ़ने लगती हैं और रिश्ते ढ़ीले पड़ते पड़ते टूटने लगते हैं। उनके प्रति ईश्वर द्वारा दिये गये अपने कतव्यों का निर्वाह करने के लिये अपने परिवार और पड़ोसे के रिश्तों का मान रखते।


दूसरी बात जो हमें देखना होगी वह यह है कि इन बातों का व्यक्ति और समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है और पड़ सकता है। :परिचम के मनुष्य ने जब अपने निकटवर्ती लोगों से सम्बन्धी तोड़ना आरम्भ किया तो उसे व्यक्तिगत आज़ादी का नाम दिया और साथ ही अपने मन से यह भय दूर करने के लिये कि लोग मुझे क्या कहेंगे, हर प्रकार की रोक टोक को असभ्यता कहना आरम्भ कर दिया। अन्तर्मन की आवाज़ को दबाने के लिये तेज़ और ऊभद्र संगीत और मदिरा का सहारा लेलिया। इस प्रकार स्वतन्त्रता के नाम पर अवध कार्यों और नग्नता के लिये भूमिका त्ययार होगयी। फिर धीरे धीरे घर वालों यहां तक कि माता पिता की ओर से की जाने वाली रोकटोक को भी क़ानून बनाकर समाप्त कर दिया गया परिणाम यह हुआ कि परिवार बिखरने लगे, लोगों का एक दूसरे पर से विश्वास समाप्त होने लगा, शादी ब्याह का प्रचलन कम होता गया और अवैध बच्चों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि होगयी। ऐसे समाज में, जहां अभी कुछ समय पहले तक भौतिक जीवन ऐश्वरिय पूर्ण था, आध्यात्म और प्रेम के अभाव ने अनेक लोगों को अवसाद का शिकार बना रखा है। आत्म हत्या करने वालों और मानसिक रोगियों की संख्या भी वहीं पर अधिक है।ऊपर लिखी गयी बातों को एक ओर रखकर जब हम ईश्वर द्वारा त्ययार की गयी जीवन शैली को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि ईश्वर ने बुराइयों से रोकने के लिये हमारे अस्तित्व में एक अन्तर्गन रखा है जो हमें भलाई करने की प्रेरणा देता है और बुराइयों से रोकता है। यदि कोई ग़लत काम हमारे हाथों हो जाता है तो हमारे अस्तित्व में बैठा हुआ अन्तर्गन रुपी ईश्वरीय दूत हमें कचोके लगाता है और उस ग़ल्ती को दोहराने से रोकता है।


इसके साक्ष ही बाध्य संसार में माता पिता परिवार, सबंधियों और पड़ोसियों को रखा है जो हम पर बचपन से ही कड़ी दृष्टि रख कर हमें अच्छा बुरा समझना सिखाते हैं उनका सम्मान और भय भी कारण बनता है कि हम बहुत सी बुराइयों से बच जाते हैं।यही कारण है कि ईश्वर ने हर व्यक्ति का यह दायित्व बनाया है कि वह दूसरों को भलाई की ओर बुलाये और बुराई से रोके यह एक अनिविय कार्य है इस अरबी भाषा में कहते हैं अम्र बिल माआरुफ़ और नहि अनिल मुनकर !!परन्तु इस कार्य के लिये कुछ शर्तें हैं।

पहली शर्त यह है कि जो उपदेश हम दे रहे हैं उसे पहले अपनी आदत बनायें और अपने व्यवहार द्वारा उसे प्रदार्शित करें।

दूसरी शर्त यह है कि यह काम किसी प्रकार की लालच या दुभावना के साथ न किया जाये ।

तीसरे यह कि कोमल और प्रेमर्पूण शब्दों का प्रयोग किया जाये और वह भी स्थिति, स्थान और व्यक्ति के सम्मान को पूर्ण रुप से ध्यान में रख कर और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह काम अपने घरवालों यदि यह काम केवल ईश्वर की इच्छाओं कत दृष्टि में रखकर किया जायेगा तो स्पष्ट है कि यह अत्यन्त प्रभावी सिद्ध होगा।

और एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपने बच्चों को यह बताना होगा कि तुम्हारी रोक टोक करने वाले तुम्हारे शत्रु नहीं होते, वे तुम्हारा भला चाहते हैं चाहे वह घर में रहते हों या बाहर !!

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