नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार 2

नहजुल बलाग़ा वह किताब है जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कुछ कथनों, पत्रों और भाषणों को एकत्रित किया गया है। इस किताब को पवित्र कुरआन का भाई कहा जाता है। इस किताब में उस महान हस्ती के कुछ भाषणों, पत्रों और उपदेशों को संकलित किया गया है जिसका कलाम महान ईश्वर के कलाम के बाद और पैग़म्बरे इस्लाम के अतिरिक्त समस्त सृष्टि के कलाम से ऊपर है। इस किताब में उस महान हस्ती के वक्तव्यों को एकत्रित किया गया है जो १४ शताब्दियां बीत जाने के बावजूद अब भी अपने उसी आकर्षण पर बाक़ी है और आज तक कोई भी एसा व्यक्ति पैदा नहीं हुआ जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक भाषण के समान भी भाषण दे सका हो।


पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा इब्ने अब्बास पवित्र कुरआन के बहुत बड़े व्याख्याकर्ता और प्रखर वक्ता था फिर भी वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम का भाषण सुनने के लिए आतुर रहते थे क्योंकि वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के भाषण से आनंदित होते थे। इस्लामी इतिहास में आया है कि एक बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम शकशकिया नामक भाषण दे रहे थे। उस समय वहां पर इब्ने अब्बास भी मौजूद थे। उस समय कूफे की ओर से एक व्यक्ति आया और उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को एक पत्र दिया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस पत्र को पढ़ा और भाषण देना बंद कर दिया जबकि इब्ने अब्बास ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि भाषण जारी रखें परंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भाषण नहीं दिया। इसके बाद इब्ने अब्बास ने कहा पूरे जीवन में कभी भी इस प्रकार का दुःख मुझे नहीं हुआ जिस तरह  उस दिन हुआ जब हज़रत अली ने शकशकिया नाम का अपना भाषण देना बंद कर दिया।


अबु सुफयान का बेटा मोआविया हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कट्टर दुश्मन था फिर भी वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के भाषणों की फसाहत और बलाग़त को स्वीकार करता था।


नहज का अर्थ है वार्ता की पद्द्धि व शैली और बलीग़ उस व्यक्ति को कहा जाता है जो अच्छी शैली में बात करे, संबोधकों के हाल को ध्यान में रखे और समय व स्थान को भी दृष्टि में रखे और संबोधक को देखकर वार्ता को संक्षिप्त या विस्तृत करे। वास्तव में प्रभावी बात को कलामे बलीग़ कहा जाता है इस प्रकार से कि संबोंधक को अच्छी लगे और उसे प्रभावित करे।


एक दिन मोहक्किक बिन अबी मोहक्किक नामक मोआविया का एक समर्थक उसके पास आया और चापलूसी तथा मोआविया को खुश करने के लिए वह कहने लगा मैं दुनिया के एसे व्यक्ति के पास से तेरी सेवा में आया हूं जिसे भाषा व ज़बान का ही बोध नहीं है” उसकी यह चापलूसी इतनी स्पष्ट थी कि मोआविया को आपत्ति हो गयी जबकि वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कट्टर शत्रु था। मोआविया ने कहा तुझ पर धिक्कार हो! तू अली को एसा व्यक्ति कह रहा है जिसे ज़बान का लेशमात्र भी बोध नहीं है? अली से पहले कुरैश फसाहत ही नहीं जानता था, अली ने कुरैश को फसाहत सिखाई।


जो लोग हज़रत अली अलैहिस्सलामका भाषण सुनते थे वे बहुत प्रभावित होते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की जो नसीहतें होती थीं उससे दिल कांप जाते थे आंखों से आंसू जारी हो जाते थे। हम्माम बिन शुरैह नाम का एक व्यक्ति था जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम का अनुयाई था। उसने एक बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि आप हमें सदाचारियों व ईश्वर से भय रखने वालों की विशेषताएं इस प्रकार बतायें कि मानो हम उन्हें देख रहे हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने पहले तो हम्माम बिन शुरैह की बात का संक्षिप्त उत्तर दिया परंतु वह इस पर संतुष्ट नहीं हुआ और उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से आग्रह किया और उन्हें शपथ दी कि उसकी बात का उत्तर विस्तार से दें। इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने महान ईश्वर की प्रशंसा की और सदाचारी व ईश्वर का भय रखने वाले व्यक्तियों की विशेषताओं को बयान करना शुरू किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम जितना अधिक सदाचारी व्यक्तियों की विशेषताओं को बयान करते थे उतना अधिक हम्माम बिन शुरैह के दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी यहां तक कि जो लोग वहां मौजूद थे सबने चीख मारने की एक आवाज़ सुनी। चीख मारने वाला हम्माम बिन शुरैह के सिवा कोई और नहीं था। जब लोग उसके सिराने पहुंचे तो देखा कि वह परलोक सिधार चुका है।


चौदह शताब्दियों से लेकर अब तक संस्कृति और साहित्य जगत में बहुत परिवर्तन हुए परंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम की मूल्यवान बातें आज भी साहित्य व अर्थ की दृष्टि से अपने चरमशिखर पर हैं और वे किसी समय व स्थान से विशेष नहीं हैं। उनकी बातें सर्वकालिक और हर व्यक्ति के लिए हैं चाहे उसका संबंध किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से हो।


यद्यपि उनकी बातें अर्थ व साहित्य आदि की दृष्टि से अपने चरम शिखर पर हैं परंतु उन्होंने कभी यह दिखाने के लिए ये बातें व भाषण नहीं दिये थे कि वह बहुत बड़े व प्रवीण भाषणकर्ता हैं। उनके भाषण उद्देश्य नहीं बल्कि उद्देश्य का साधन हैं। उनकी बातें मार्गदर्शन का प्रज्वलित दीपक हैं, उनके संबोंधक समस्त मनुष्य हैं। इसी कारण उनकी मूल्यवान बातों को समय एवं स्थान में सीमित नहीं किया जा सकता।


पूरी नहजुल बलाग़ा में फसाहत और बलाग़त को अपने चरम शिखर पर देखा जा सकता है। महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के कथन व वाणी के अतिरिक्त इस सीमा तक फसीह और बलीग़ कलाम को किसी अन्य स्थान पर नहीं देखा जा सकता। नहजुल बलाग़ा का एक प्रसिद्ध व्याख्याकर्ता इब्ने अबिल हदीद, जो सुन्नी धर्मगुरू व विद्वान है, नहजुल बलाग़ा के भाषण नम्बर २१२ की व्याख्या में लिखता है” जो लोगों को नसीहत करना चाहता है, जो कठोर दिलों को हिला देना चाहता है और दुनिया का वास्तविक चेहरा दिखाना चाहता है उसे चाहिये कि वह हज़रत अली के इस भाषण पर ध्यान दे और इस फसीह व बलीग़ भाषण को बयान करे जो भी नहजुल बलाग़ा के इस भाग में चिंतन मनन करेगा वह इस बात को समझ जायेगा कि मोआविया की यह स्वीकारोक्ति सही है जिसमें वह कहता है कि अली के अतिरिक्त किसी ने भी क़ुरैश के लिए फसाहत का मार्ग प्रशस्त नहीं किया। अगर अरब के समस्त फोसहा अर्थात फसीह बात करने वाले एक सभा में एकत्रित हो जायें और वहां पर हज़रत अली का यह भाषण पढ़ा जाये तो सबके सब उसकी प्रशंसा करेंगे”


एक अन्य स्थान पर इब्ने अबिल हदीद कहता है” मुझे बड़ा आश्चर्य है कि एक व्यक्ति घोर युद्ध की स्थिति में एसा भाषण देता है जो बहादुर व साहसी व्यक्तियों की प्रवृत्ति के अनुरूप है और जब वह नसीहत करता है तो एसे शब्दों का चयन करता है जो विशेष उपासकों और दुनिया से विमुख हो जाने वालों की प्रवृत्ति का सूचक है। सचमुच बड़े आश्चर्य की बात है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम कभी इतिहास के सबसे बड़े पुरुष के रूप में दिखाई देते हैं, कभी यूनान के बड़े दर्शनशास्त्री सोक़रात और कभी मरियम के बेटे ईसा के रूप में दिखाई देते हैं”


इब्ने अबिल हदीद कहता है” समूचे ब्रह्मांड में मौजूद पवित्र मान्यताओं व चीज़ों की सौगन्द खाकर कहता हूं कि अब तक मैंने एक हज़ार बार से अधिक हज़रत अली अलैहिस्सलाम के भाषण नम्बर २१२ को पढ़ा है और हर बार मेरी आत्मा को नई चीज़ प्राप्त हुई है और उसने मेरे दिल एवं शरीर के अंगों में कंपन उत्पन्न कर दिया”


इब्ने अबिल हदीद एक साहित्यकार और बड़ा शायर है। वह नहजुल बलाग़ा की व्याख्या २० खंडों में करता है। भाषण नम्बर १०८ की व्याख्या में वह लिखता है” सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले व्यक्तियों को चाहिये कि वे इस भाषण के शब्दों पर ध्यान दें जो दिल में विशेष प्रकार कंपन उत्पन्न कर देते हैं ताकि वे इस भाषण शैली और उसकी फसाहत व बलाग़त का आभास कर सकें। सच में अबु तालिब के बेटे ने ईश्वरीय धर्म की कितनी सहायता की है और इस्लाम की सेवा की है। कभी हाथ से, कभी तलवार से, कभी ज़बान से, कभी अपने तर्क से, कभी अपने दिल से और कभी अपनी सोच से। अगर अली युद्ध और जेहाद की बात करते हैं तो वे धर्मयुद्धाओं में सर्वोपरि होते हैं। अगर वे धर्मशास्त्र और कुरआन की व्याख्या की बात करते हैं तो वे धर्मशास्त्रियों और व्याख्याकर्ताओं के प्रमुख हैं और अगर वे एकेश्वरवाद की बात करते हैं तो वह एकेश्वरवादियों, न्याय प्रेमियों और उपासकों के इमाम हैं”


एक व्यक्ति सत्य व असत्य की पहचान में ग़लती कर बैठता है और मिस्र के समकालीन साहित्यकार एवं लेखक ताहा हुसैन उस व्यक्ति की कहानी के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मूल्यवान कथन को बयान करते हैं जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम उस व्यक्ति से कहते हैं” तू सच को समझने के लिए लोगों को मापदंड बनाता है! इसके विपरीत अमल कर। पहले सत्य को पहचान उसके बाद असत्य लोगों को पहचान जायेगा उस समय तुम इस बात को महत्व नहीं देगा कि कौन सत्य का पक्षधर है और कौन असत्य का समर्थक है और उन व्यक्तियों के ग़लती पर होने में संदेह नहीं करेगा”


ताहा हुसैन हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस मूल्यवान वाक्य को बयान करने के बाद कहते हैं” मैंने वहि अर्थात ईश्वरीय वाणी के बाद इस प्रकार का सुन्दर नहीं देखा और न ही जानता हूं”


मिस्र के प्रसिद्ध धार्मिक विश्व विद्यालय जामेअतुल अज़हर के प्रोफेसर, मुफ्ती और विद्वान दिवंगत शेख मोहम्मद अब्दे उन लोगों में से हैं जो संयोगवश नहजुल बलाग़ा से अवगत हो गये थे। उनके इस परिचय का अंत आश्चर्यजनक होता है। वह इस किताब की व्याख्या और उसका प्रचार करते हैं। वह नहजुल बलाग़ा से अपने परिचय के बारे में लिखते हैं” मैं नहजुल बलाग़ा का अध्ययन करते हुए एक अध्याय से दूसरे अध्याय तक पहुंचा और मैंने एहसास किया कि वार्ता का दृश्य बदल रहा है और शिक्षा व तत्वदर्शिता की पाठशाला परिवर्तित हो रही है”


नहजुल बलाग़ा के ऊंचे एवं गहरे अर्थ दिलों को उज्जवल एवं प्रकाशमयी बना देते हैं, गुमराही व पथभ्रष्टता से दूर करते हैं और वे परिपूर्णता की ओर मार्गदर्शन करते हैं। दिवंगत शेख मोहम्मद अब्दे ने इसी प्रकार नहजुल बलाग़ा की व्याख्या की भूमिका में लिखा है कि अरब जगत में कोई एक व्यक्ति भी एसा नहीं है जिसका विश्वास यह न हो कि ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के बाद सर्वोत्तम और सबसे फसीह, बलीग़ और व्यापक अली का कलाम है”


दिवंगत इमाम खुमैनी नहजुल बलाग़ा के महत्व के बारे में कहते हैं” नहजुल बलाग़ा, जो अली इब्ने अबी तालिब की उच्च आत्मा से निकली आवाज़ है, हमारी शिक्षा- प्रशिक्षा के लिए है वह व्यक्तिगत एवं सामाजिक घावों को सही व अच्छा करने का एक मरहम है” इसी प्रकार स्वर्गीय इमाम खुमैनी नहजुल बलाग़ा को एक व्यापक किताब मानते हैं जिसमें मानव समाज को लाभ पहंचाने की अपार क्षमता मौजूद है और वह हर समाज, हर काल और हर व्यक्ति के लिए है चाहे उसका संबंध किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से हो।