नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार 11

हज़रत अली की नज़र में सरकारी अधिकारियों के दायित्व


इस्लामी समाज में शासक व अधिकारियों को व्यापक अधिकार हासिल हैं किन्तु साथ ही उनके कंधे पर अधिक ज़िम्मेदारियां भी हैं। नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इस्लामी सरकार के गठन को शासक के दायित्वों में गिनवाया है।  जैसा कि नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 131 में कहते हैं, “ हे ईश्वर तू जानता है कि सत्ता हासिल करने के पीछे हमारा उद्देश्य यह नश्वर संसार और उसकी संपत्ति प्राप्त करना न था बल्कि हम सत्य और तेरे धर्म के चिन्हों को उसके स्थान पर लौटाना चाहते थे, ज़मीन पर सुधार करना चाहते थे ताकि तेरे पीड़ित बंदे शांति व सुरक्षा के साथ ज़िन्दगी गुज़ारें और भुलाए गए नियम व क़ानून पर फिर से अमल शुरु हो जाए।”


इस्लामी शासन का एक दायित्व कर की वसूली भी है। शासक को समाज के संचालन और आम ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बजट की ज़रूरत होती है। बजट की प्राप्ति के सबसे अच्छे मार्गों में से एक कर की प्राप्ति है। इसलिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम कर वसूली को शासक के मूल दायित्वों में बताते हैं। वह इस संदर्भ में मालिक अश्तर को लिखते हैं, “ यह ईश्वर के बंदे अमीरुल मोमेनीन अली का हारिस के बेटे मालिके अश्तर को मिस्र का गवर्नर नियुक्त करते समय आदेश है कि कर जमा करें, शत्रुओं से लड़ें, जनता के कल्याण तथा नगर के लिए विकास के लिए प्रयास करें।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने आदेश के शुरु में ही कर की ध्रुवीय भूमिका का उल्लेख किया और वह सुधार, विशेष रूप से शहरों के विकास को कर पर निर्भर मानते हैं।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम कर का पहला प्रभाव जनता से संबंधित मामलों में सुधार को बताते हैं और मालिके अश्तर को संबोधित करते हुए फ़रमाते हैं,  “कर और राजकोष को इस प्रकार व्यवस्थित करो कि करदाताओं का भला हो।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बिन्दु पर बल देते हैं कि उस समय अधिक कर लिया जा सकता है जब लोगों की स्थिति बेहतर हो। जैसा कि नहजुल बलाग़ा में पत्र संख्या त्रिपन में हज़रत अली ने विकास पर पूरा ध्यान देने पर बल दिया और इसे अंजाम देने या इसे छोड़ने का परिणाम यूं बयान किया है, “ तुम्हारी कोशिश कर इकट्ठा करने से ज़्यादा ज़मीन के विकास पर केन्द्रित हो। कर सिवाए विकास के संभव नहीं होता और जो शासक खेतों के विकास के बिना कर चाहता है वह शहरों का विनाश और ईश्वर के बंदों को तबाह करता है और उसका शासन ज़्यादा दिनों तक बाक़ी नहीं रहता क्योंकि विकास जनता की सहनशीलता को बढ़ाता है।”


जनता के संबंध में शासक का एक दायित्व उसके साथ नर्मी से पेश आना भी है। शासक को चाहिए कि वह जनता पर बहुत अधिक बोझ न डाले और उसकी क्षमता से ज़्यादा की आशा न रखे। ऐसा व्यवहार करने से उसे जनता का विश्वास हासिल होगा जो एक शासन के लिए बहुत बड़ी संपत्ति होती है कि शासक ज़रूरत पड़ने पर जनता के समर्थन की ओर से संतुष्ट होगा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कर में छूट और नर्मी के संबंध में कहते हैं, “ यदि जनता ने कर के भार या प्राकृतिक आपदा या सूखे की शिकायत की तो उन्हें उस सीमा तक छूट दो कि उनका मामला हल हो जाए और ऐसा करना तुम्हारे लिए कठिन न होगा क्योंकि यह वह भंडार होगा जो राष्ट्र के विकास के साथ तुम्हारे पास लौट आएगा।”


इस्लामी समाज में सब मुसलमान को समान अधिकार हासिल हैं और शासक से किसी की निकटता या संबंध से उसे कोई विशिष्टता नहीं मिलती किन्तु इसके साथ ही हज़रत अली अलैहिस्सलाम सभी अधिकारियों से अनुशंसा करते थे कि सदाचारियों और बुरे लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार न अपनाएं। भले कर्म करने वालों और कम कोशिश करने वालों के साथ व्यवहार में अंतर होना चाहिए और हर व्यक्ति को उसके प्रयास के अनुसार महत्व दिया जाए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा में अपने त्रिपनवें ख़त में लिखा है, “तुम्हारी नज़र में सदाचारी और दुराचारी एक जैसे नहीं होने चाहिए क्योंकि ऐसा करने से सदाचारियों में सद्कर्म के प्रति रूचि नहीं रहेगी और बुरे और बुरायी के लिए प्रेरित होंगे।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस ख़त में एक जगह पर लिखते हैं, “ हर एक की कोशिश पर ध्यान दो और किसी की कोशिश को दूसरे के खाते में मत डालो और उसकी कोशिश को हलकी मत समझो। ऐसा न हो कि किसी के व्यक्तित्व के प्रभाव में उसकी कम कोशिश को बड़ी समझो और किसी व्यक्ति के बड़े प्रयास को उसकी गुमनामी के कारण छोटा समझो।”


प्रशासनिक अधिकारियों का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य न्याय की स्थापना है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने राज्यपालों को इस बात की सदैव सिफ़ारिश करते थे और उनसे न्याय करने का आह्वान करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नज़र में न्याय पर आधारित नीति सबसे अच्छी नीति है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जब इब्ने अब्बास को बसरा का राज्यपाल नियुक्त किया तो उनसे ईश्वर से डरने की अनुशंसा के साथ जनता के साथ न्याय करने का आदेश देते हुए कहा था, “ हे इब्ने अब्बास ईश्वर से डरो जिन पर शासन कर रहे हो उनके साथ न्याय करो। लोगों को अपनी सभा में स्थान दो और उनके साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार अपनाओ।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम न सिर्फ़ यह कि अपने अधीन अधिकारियों को जनता के साथ न्याय करने बल्कि ग़ैर मुसलमानों के साथ भी न्याय करने का आदेश देते थे। उन्होंने मोहम्मद बिन अबी बक्र के नाम ख़त में उन्हें लिखा है, “ ग़ैर मुसलमानों के साथ न्याय करो और पीड़ितों को इन्साफ़ दिलाओ और सभी लोगों के साथ क्षमाशील व्यवहवार अपनाओ।”     


शासक के लिए न्याय की स्थापना के लिए ज़रूरी है कि वह आर्थिक न्याय की स्थापना की कोशिश करे। इस क्षेत्र में अत्याचार अन्य सामाजिक अधिकार के क्षेत्र में भेदभाव को जन्म देता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मालिके अश्तर से अनुशंसा करते हैं कि शासक का कर्तव्य है कि जो लोग समाज को आर्थिक सुविधा पहुंचाने वाले साधन मुहैया करते हैं, उन पर विशेष रूप से ध्यान दें और उनकी मुश्किलों को हल करें। किन्तु शासक को इस अहम बिन्दु पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि हर वर्ग में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनमें कंजूसी और संकीर्ण मानसिकता जैसी बुरी आदते होती हैं। यह समाज के स्वास्थय के लिए नुक़सानदेह है और इससे आर्थिक न्याय ख़तरे में पड़ जाता है और विशेष गुट जमाख़ोरी व एकाधिकार की कोशिश करता है इसलिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम मालिक अश्तर से अनुशंसा करते हैं, “ व्यापारियों व उद्योगपतियों के साथ भलाई के साथ पेश आओ। जान लो कि व्यापारियों में कुछ ऐसे होते हैं जो कंजूस होते हैं और जमाख़ोरी करते हैं। मुनाफ़ा बटोरते हैं और वस्तुओं को अपनी मनमानी क़ीमत पर बेचते हैं और यह मुनाफ़ाख़ोरी तथा ऊंची क़ीमत पर वस्तुओं का बिकना समाज के लिए हानिकारक तथा शासक के लिए बड़ा ऐब है।”


हज़रत अली अलैहिस्सलाम का मानना है कि आर्थिक मामलों में शासन को चाहिए कि सभी लोगों के हालात पर ध्यान दे। इसलिए जहां किसी चीज़ से सबको हानि पहुंचे तो शासक पर ज़रूरी है कि वह नियम बनाकर यहां तक दंडित करके जनता के अधिकारों को सुनिश्चित करे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मालिक अश्तर से कहते हैं कि हमेशा ऐसा काम करो जिससे आम लोग संतुष्ट हों चाहे इससे वर्ग विशेष अप्रसन्न होता हो। उन्होंने इस बिन्दु का उल्लेख किया है कि यदि किसी काम से आम लोगों का फ़ायदा हो तो ऐसा काम न्याय के ज़्यादा निकट है उस काम की तुलना में जिससे वर्ग विशेष का फ़ायदा हो रहा हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं, “ ऐसे काम पसंद करो जो सत्य की दृष्टि से मध्यमार्गी और न्याय की दृष्टि से व्यापक हो, तथा ज़्यादा लोगों को आकर्षित करे। जान लो कि आम लोगों की नाराज़गी, निकटवर्तियों की प्रसन्नता को ख़त्म कर देती है किन्तु आम लोगों की प्रसन्नता, निकटवर्तियों की नाराज़गी को प्रभावहीन बना देती है।”


विनम्रता उन नैतिक मूल्यों में है जिस पर इस्लाम ने बहुत बल दिया है किन्तु अधिकारी वर्ग में विनम्रता की अहमियत ज़्यादा है। आम लोगों का सत्ताधारियों के सामने झुकना अच्छी आदत नहीं है किन्तु सत्ताधारी वर्ग का जनता से विनम्रतापूर्वक पेश आना बहुत मूल्यवान है। ऐसा करने से ईश्वर के निकट अधिकारियों का स्थान ऊंचा होता है और इसके परिणाम में जनता के बीच लोकप्रियता बढ़ती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम जगह जगह पर अपने बयान में पीड़ित व कमज़ोर वर्ग के साथ विनम्रता अपनाने पर बल देते हुए कहते हैं, “ लोगों के सामने मुंह मत फुलाओ बल्कि ईश्वर के लिए विनम्र बनो ताकि ईश्वर तुम्हारा स्थान ऊपर उठाए।” वह मालिके अश्तर से कहते हैं ऐसे अधिकारियों का चयन करो जो जनता के साथ विनम्रता से पेश आएं। इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम अनुंशसा करते हैं, “ अपने वक़्त का एक हिस्सा उन लोगों के साथ बिताओ जिन्हें तुम्हारी ज़रूरत है ताकि उनके मामलों को स्वयं हल करो और आम सभा में उनके साथ बैठो, ईश्वर के लिए विनम्रता अपनाओ और अपने अंगरक्षकों, साथियों और फ़ौजियों को अपने पास से हटा कर आम लोगों से बातचीत करो ताकि लोग बिना किसी हिचकिचाहट के तुमसे बात कर सकें। ताकि ईश्वर अपनी कृपा के द्वार तुम पर खोले और तुम्हें अपने आज्ञापालन का बदला दे। लोगों को देना तुम्हें बोझ न लगे और यदि कोई चीज़ किसी को नहीं दे सकते तो उसे विनम्रतापूर्वक मना करो।”