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नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार 13

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इमाम अली अलैहिस्सलाम की नज़र में सत्ता में जनता की भूमिका


नहजुल बलाग़ा एक ऐसा अनमोल ख़ज़ाना है जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने ईश्वरीय भय, विनम्रता, उपासना, परिज्ञान, राजनीति और सत्ता सहित अन्य सामाजिक व शिष्टाचारिक विषयों को बहुत ही सुन्दर ढंग से बयान किया है। इसीलिए हम इस कार्यक्रम के दौरान आपकी सेवा में इस मूल्यवान पुस्तक के कुछ संक्षिप्त अंश बयान करते रहे हैं। आज के कार्यक्रम में हम हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नज़र में सत्ता में जनता की भूमिका के विषय पर चर्चा करेंगे।


स्पष्ट है कि हर समाज को एक कुशल नेतृत्व की आवश्यकता होती है ताकि वह क़ानून का क्रियान्वयन करे और समाज के विभिन्न मामलों को सुव्यवस्थित करे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 40 में इस वास्तविकता की ओर संकेत किया गया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि लोग चाहे वे अच्छे हों या बुरे उन्हें नेतृत्व की आवश्यकता होती है।


निसंदेह, इस्लाम धर्म में इस्लामी सरकार में योग्य, सक्षम और युक्तिकर्ता नेतृत्व का पाया जाना बहुत आवश्यक है। इस्लामी समुदाय में सबसे कुशल व सबसे अच्छे नेता स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम थे। उन्होंने अपने शासन काल के बाद स्वयं हज़रत अली और अपने परिजनों में से कुछ को इस्लामी जगत के कुशल नेता के रूप में पेश किया। प्रत्येक दशा में इस्लामी समाज में शासक और नेतृत्व उसी समय समाज में अपना वास्तविक स्थान प्राप्त कर सकता है जब समाज के अधिकतर लोग नेता के रूप में उसकी भूमिका को स्वीकार करें और उसके आदेशों का पालन करें। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सत्ता को पथभ्रष्टता के मार्ग पर जाने से रोकने और इस्लामी समाज के नेतृत्व पर आधारित अपने अधिकार को सिद्ध करने के लिए किसी सीमा तक प्रयास किया किन्तु जब उन्होंने यह देखा कि शांतिपूर्ण कार्यवाहियां और तर्कसंगत बातों से कोई लाभ होने वाला नहीं है तो उन्होंने धैर्य और चुप रहने की नीति अपनाई। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अयोग्य लोगों के सत्ता में पहुंचने से होने वाली हानियों से भलि भांति परिचित थे किन्तु कभी भी उन्होंने हिंसा का सहारा लेकर या रक्तपात करके अपने नेतृत्व के अधिकार को किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के ख़तबे क्रमांक 208 में कहते हैं कि मैं नहीं चाहता है कि तुम्हें उस चीज़ के लिए विवश करूं जो तुम्हें पसंद न हो। इसके अतिरिक्त सशस्त्र शैलियों के प्रयोग के कारण नवआधार इस्लामी समाज बिखर जाता, इसीलिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक कृपालु व दयावान पिता की भांति समस्त कठिनाइयों और कष्टों को सहन किया और इस्लामी समाज के पौधे को अपने ख़ून से सींचा ताकि वह फले फूले।


पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के 25 वर्ष बाद जब इस्लामी समाज को यह समझ में आ गया कि उसने बहुत कुछ खो दिया और पूरे समाज में अव्यवस्था, अन्याय और भेदभाव का राज हो गया तो वास्तविकता और अधिक खुलकर सामने आया। लोग टूटकर हज़रत अली के पास आये जिनकी सरकार और जिनके नेतृत्व का अधिकार लोगों पर स्पष्ट था और जो न्याय व सदगुणों के ध्वजवाहक थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सत्ता का नेतृत्व स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है। संसार मोही और सत्तालोलुप लोगों की नज़र से विपरीत, हज़रत अली अलैहिस्सलम की नज़र में सत्ता मूल्यहीन थी किन्तु यह कि उसकी छत्रछाया में वह सत्य को पुनर्जीवित कर सकें और पथभ्रष्टता से लोगों को रोक सकें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के ख़ुतबे क्रमांक 33 में कहते हैं कि ईश्वर की सौगंध, मेरी यह फटी हुई जूतियां, मेरे लिए तुम्हारी इस सरकार से अधिक प्रिय है किन्तु यह कि सत्य को पुनर्जीवित करूं या असत्य को दूर करूं। हज़रत अली द्वारा सत्ता स्वीकार न करने का दूसरा कारण वह पथभ्रष्टता जो उनके पच्चीस वर्ष तक घर में बैठने से अस्तित्व में आई थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पता था कि समाज के ढांचे में सुधार का मुख्य आधार ढह चुका है और पैग़्मबरे इस्लाम के आचरण की ओर पलटने की आवश्यक तैयारी समाप्त हो चुकी है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस विषम परिस्थिति के दृष्टिगत अपने कार्यक्रमों और रणनीतियों के व्यवहारिक होने में कठिनाई देख रहे थे, इसीलिए जब लोगों ने उनसे सत्ता की बागडोर संभालने का आग्रह किया तो उन्होंने आरंभ में इसे स्वीकार नहीं किया और उनसे कहा कि किसी अन्य को इस काम के लिए ढूंढ लो। उन्होंने कहा कि उनका अस्तित्व सत्ता की बागडोर संभालने से बेहतर परामर्श देना है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मुझे छोड़ो और किसी दूसरे के तलाश करो, मैं उसकी बातों को अन्य लोगों से अधिक ध्यान से सुनुऊंगा जिसके हवाले तुम अपना काम करोगे, मेरे लिए शासक से बेहतर मंत्री बनना है।
 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर पर लोगों का टूटकर आना और सत्ता की बागडोर संभालने पर बारम्बार उनके आग्रह के कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अंततः सत्ता की बागडोर संभालने को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार से इन वर्षों के दौरान जिन्होंने विभिन्न मार्गों और शैलियों से भारी धन संपत्ति एकत्रित की वे हज़रत अली के न्याय को सहन नहीं कर पाये। इसी लिए हज़रत अली अलैहिस्सला ने सत्ता की बागडोर संभालने के बाद अपने पहले भाषण में अपनी सरकार की नीतियों को बयान किया और कहा कि जो मैं कह रहा हूं, उसकी ज़िम्मेदारी लेता हूं और स्वयं भी उस पर कटिबद्ध हूं। होशियार हो जाओ कि पैग़म्बरे इस्लाम के काल की समस्याओं और परिक्षाओं का एक बार फिर तुम्हें सामना है, उस की सौगंध जिसने सत्य पर पैग़म्बरे इस्लाम को भेजा है, तुम्हारी कठिन परिक्षा होगी। जैसा कि छलनी में एक दाना डालने या पतीली में खाना डालने से एक दूसरे में मिल जाता है, ऊपर नीचे हो जाता है, ईधर उधर हो जाता है, वे लोग जो इस्लाम धर्म में अग्रणी थे और अब तक अलग थलग थे, वे आगे आएंगे और जिन्होंने अत्याचार से दूसरों पर वरियता प्राप्त की, पीछे कर दिये जाएंगे।


योग्य व शालीन नेता या इमाम का अनुसरण, समाज को असंमजसता से छुटकारा दिला है। जब समाज पर अंधेरा छाया हो और पूरे वातावरण में शंका व संदेह विराजमान हो तो योग्य व ईश्वरीय भय रखने वाले नेतृत्व की तलाश से समाज सही मार्ग को बेहतरीन ढंग से पहचान सकता है और ख़तरों से सुरक्षित रह सकता है। यदि हम लोग सांसारिक मायामोह के कारण कुशल व योग्य नेतृत्व का समर्थन न करें और उसको अकेले छोड़ दें, तो विभिन्न प्रकार की आपदाएं उन्हें आ घेरेंगी और अत्याचारी का उन पर वर्चस्व हो जाएगा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में समाज की सफलता और उसके शिखर पर पहुंचने का मुख्य कारण, जनता द्वारा सरकार का समर्थन है और इसके मुक़ाबले में सरकार की विफलता का मुख्य कारक जनता द्वारा अपने नेताओं का समर्थन न करना है। वे नहजुल बलाग़ा के भाषण संख्या 166 में इसी विषय की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि हे लोगों यदि सत्य के समर्थन से हाथ नहीं उठाएंगे और असत्य को लज्जित करने में लापरवाही से काम नहीं लेंगे तो कभी भी शत्रु तुम्हारी बर्बादी की कामना नहीं करेगा और कोई भी शक्ति तुम पर विजयी नहीं हो सकती। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी जाति के लोगों की बनी इस्राईल के लोगों से तुलना करते हैं कि जो हज़रत मूसा के आदेशों का अनुसरण न करने के कारण हैरानी और असमंजस का शिकार थे। वे अपने भाषण में कहते हैं कि तुम लोग बनी इस्राईल की भांति हैरानी और असमंजस का शिकार हो गये, होशियार रहो, यदि तुमने अपने इमाम का अनुसरण किया तो वह तुम्हारा मार्गदर्शन उस रास्ते की ओर करेगा जिस पर पैग़म्बरे इस्लाम चले और पथभ्रष्टा का शिकार होने से बच जाओगे और अपने कांधे से समस्याओं के भारी बोझ उतार दो गे।

 
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने अल्पावधि के शासन काल में अपने साथियों के मतभेद और उनके मध्य एकजुटता न पाये जाने के कारण दुखी थे और निरंतर उन लोगों को नसीहत करते रहते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ख़ुतबे क्रमांक 113 में इस्लामी समाज की विषम परिस्थिति और उसके बिखराव तथा संसार मोह, उद्देश्य को खो देने और प्रलय को भूलने को उनकी विफलता का मुख्य कारक बताया और कहा कि आप सब ईश्वरीय धर्म की नज़र में भाई हैं और समान हैं, भीतरी बुराई और बुरी नीयत के अतिरिक्त किसी और चीज़ ने आप लोगों को अलग नहीं किया है, न तो एक दूसरे की सहायता करते हैं और न ही एक दूसरे का भला चाहते हैं और न ही कोई वस्तु किसी को देते हैं और न ही एक दूसरे से मित्रता करते हैं। आप लोगों को क्या हो गया है कि थोड़ा सा सांसारिक माल प्राप्त करके प्रसन्न हो जाते हो किन्तु परलोक की विभिन्न विभूतियों से वंचित होने तुम्हें तनिक भी दुख नहीं होता? जब भी संसार की तुच्छ चीज़ तुमसे छिन जाती है तो तुम परेशान और दुखी हो जाते हो और उसका प्रभाव तुम्हारे चेहरे पर दिखने लगता है और जो वस्तु तुमसे छिन जाती है उस पर तुम्हारे धैर्य का बांध टूट जाता है मानो यह स्थान सदैव तुम्हारे रहने का स्थान हो।


संक्षिप्त में यह कि मतभेद और बिखराव, सरकारों के पतन का मुख्य कारक रहे हैं। इस्लाम धर्म ने आरंभ से ही मुसलमानों के मध्य एकता और एकजुटता बनाने पर अपने प्रयास केन्द्रित कर दिए। पवित्र क़ुरआन की आयतों में मुसलमानों को एकता और एकजुटता के लिए प्रेरित किया गया है और उनसे मतभेद और विवाद से दूर रहने की अपील की है क्योंकि यह मुसलमानों की कमज़ोरी और शत्रुओं के उन पर वर्चस्व जमाने का कारण बनता है। इसी संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के ख़तबे क्रमांक 192 में अज्ञानता के काल की बातों को पुनर्जीवित होने और मतभेद के पैदा होने और अपने काल के समाज के कई टुकड़ों में बंटने की ओर संकेत किया और इसे समाज के कमज़ोर होने और इसके सुदृढ़ दुर्ग के टूटने का कारण बताया है जिसका परिणाम इस्लामी समाज पर अत्याचारों के वर्चस्व जमान के रूप में निकलता है।

 

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