नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार 17

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में सरकार का लक्ष्य/ सरकार और सरकारी अधिकारियों के हितों की रक्षा करना नहीं है बल्कि मानवीय मूल्यों एवं नैतिक गुणों के आधार पर आदर्श समाज का गठन है। एक एसा समाज जो न्याय के प्रकाश में परिपूर्णता का मार्ग तय करे। आज के कार्यक्रम में हम सरकार और समाज के संबंध में  हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कुछ अन्य दृष्टिकोणों  की चर्चा करेंगे। कृपया हमारे साथ रहें।


महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पवित्र कुरआन के सूरे नूर में वादा किया है कि” निश्चित रूप से ईश्वर उन लोगों को ज़मीन पर शासक बनायेगा तुममें से जिन लोगों ने स्वीकार किया लाये और अच्छे कार्य अंजाम दिये जिस तरह उसने इनसे पहले वालों को ज़मीन पर उत्तराधिकारी बनाया था और जो धर्म उनके लिए पसंद करेगा वह बाक़ी रहेगा और उनके भय को शांति व सुरक्षा में परिवर्तित कर देगा” अलबत्ता आदर्श समाज की बुनियाद पैग़म्बरे इस्लाम के ज़माने में मदीना नगर में रख दी गयी और उसकी बाग़डोर पैग़म्बरे इस्लाम जैसी महान हस्ती के पावन हाथों में थी और ईमानदार एवं वफादार अनुयाइयों की उपस्थिति में इस्लामी सरकार के जारी रहने की परिस्थिति उपलब्ध कर दी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी अपनी सरकार के दौरान एक आदर्श समाज के गठन के लिए बहुत प्रयास किया।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सदाचरण में देखा जाये तो एक आदर्श समाज का गठन असंभव नहीं है। इस प्रकार के समाज के गठन के लिए पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की परम्परा को आधार बनाना चाहिये। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में पवित्र कुरआन इंसानों का सबसे अच्छा मार्गदर्शक है इसलिए वह बल देकर कहते हैं कि मुसलमानों की सफलता व कल्याण इस आसमानी किताब के प्रति वफादारी अर्थात उस पर अमल करने में है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के भाषण नंबर १५६ में फरमाते हैं” कुरआन का पालन तुम्हारे लिए मुबारक हो जो कुरआन के साथ बात करता है वह सही बात करता है और वह सफल हुआ जिसने कुरआन पर अमल किया”


हज़रत अली अलैहिस्सलाम इंसानों के मार्गदर्शन के लिए पवित्र कुरआन के साथ पैग़म्बरे इस्लाम की परम्परा को भी बेहतरीन आधार बताते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार केवल धार्मिक शिक्षाओं  के पालन और ईश्वरीय दूतों के अनुसरण के प्रकाश में मुक्ति व कल्याण संभव है। इसी आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने खलीफा निर्धारित करने के दौरान पवित्र कुरआन की शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम की परम्परा को अपनी सरकार का आधार घोषित किया। जब लोगों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बैअत कर दी अर्थात उनकी आज्ञा पालन के प्रति प्रतिबद्धता जता दी तो इमाम ने उसके बाद अपने पहले भाषण में पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल करने को अपनी मूल नीति बताया।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम समाज को न्याय पर चलने के लिए विभिन्न चीज़ों को दृष्टि में रखते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदैव न्याय पर बल देते थे और न्याय को मापदंड व आधार बनाकर अपनी सरकार के कार्यक्रमों को लागू करते थे। न्याय को समाज की कठिनाइयों व समस्याओं के समाधान का मूल कारक समझते और फरमाते थे” लोंगो के जीवन को सुखमय बनाने के लिए न्याय सर्वोपरि है” इस बात के बहुत से प्रमाण हैं कि न्याय का पालन करने में हज़रत अली अलैहिस्सलाम किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लेते थे और सबके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करते थे और इस दिशा में वे अपने और पराये में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं करते थे। एक रात की बात है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम राजकोष में बैठे हिसाब- किताब कर रहे थे कि उसी बीच तलहा और ज़ुबैर उनसे मिलने के लिए आये और कहा कि आप से हमें काम है।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन दोनों से पूछा कि आप लोगों के कार्य का संबंध सरकार और मुसलमानों से संबंधित है या व्यक्तिगत कार्य है? उन दोनों ने उत्तर दिया कि हमें आपसे व्यक्तिग कार्य है। इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस चेराग़ को बुझा दिया जो उनके समक्ष जल रहा था और वहां रखा दूसरा चेराग़ जला दिया। इस पर तलहा और ज़ुबैर दोनों ने पूछा कि इसका क्या कारण है? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि उस चेराग़ में जो तेल है वह राजकोष का है यानी लोगों के माल का है और तुम्हारा कार्य व्यक्तिगत है और यह सही नहीं है कि बैतुल माल अर्थात राजकोष को व्यक्तिगत कार्यों के लिए खर्च किया जाये और इस चेराग़ का तेल मेरा व्यक्तिगत तेल है तो आप लोग जो चाहे कहें। तलहा और ज़ुबैर दोनों ने एक दूसरे को देखा और कहा चलो चलते हैं यह व्यक्ति धर्म के रास्ते पर चल रहा है और यह हमसे सौदेबाज़ी नहीं करेगा”


हज़रत अली अलैहिस्सलाम बैतुलमाल के कम खर्च करने पर बल देते थे। वे अपनी सरकार में काम करने वालों से कहते थे कि अपनी कलमों को पतली करो, पंक्तियों के बीच की दूरी को कम करो, अनावश्यक बातों को कम करो, यानी उन्हें न लिखो अस्ल बात पर बस करो और लम्बा लिखने से परहेज़ करो ताकि मुसलमानों के धन को क्षति न पहुंचे”


हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बात को पसंद नहीं करते थे कि उनकी सरकार के कर्मचारी धन सम्पन्न लोगों के साथ उठें बैठें। धन सम्पन्न लोगों के यहां खाना खाने के कारण उन्होंने अपने एक गवर्नर उसमान बिन हुनैफ को फटकार लगायी और उनके नाम अपने पत्र में लिखा हे हुनैफ के बेटे मुझे सूचना मिली है कि बसरा के एक धनी आदमी ने तुम्हें खाने पर बुलाया है और तुम भी जल्दी से उसके यहां चले गये। मैंने नहीं सोचा था कि तुम उस व्यक्ति का निमंत्रण स्वीकार करोगे जिसने अत्याचार करके आवश्यकता रखने वालों को वंचित कर रखा है और सम्पन्न लोगों को अपने यहां खाने पर बुलाया है। सोचो तुम कहां हो? तुम किस दस्तरखान का खाना खा रहे हो? तो जिस खाने के हराम व हलाल होने को नहीं जानते हो उसे हाथ न लगाओ और उस खाने का प्रयोग करो जिसके पवित्र होने का विश्वास हो”


हज़रत अली अलैहिस्सलाम हमेशा लोगों को राजनीतिक एवं सामाजिक मंचों पर उपस्थिति के लिए प्रोत्साहित करते थे। क्योंकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम का मानना था कि लोगों की उपस्थिति और उनकी सक्रिय भागीदारी की समाज की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका है। जब लोगों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ बैअत कर दी तो उन्होंने अपने पहले भाषण में लोगों की उपस्थिति को उनकी खिलाफत को स्वीकार करने का कारण बताया और उसे समाज के संचालन में अपने लिए तर्क समझा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलागा में फरमाते हैं” उसकी सौगन्ध जिसने दाने को चीरा है जीव जन्तुओं को पैदा किया है अगर इतने अधिक लोग न होते या अनुयाइ व चाहने वाले एकत्रित न हुए होते तो मेरे लिए तर्क पूरा न होता और अगर ईश्वर विद्वानों व ज्ञानियों से यह वचन न लिये होता कि वे भूखे लोगों के संबंध में अत्याचारियों के मुकाबले में चुप नहीं बैठेगें तो मैं भी चुप बैठ जाता और लोगों को उनके हाल पर छोड़ देता”
 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी सरकार के दौरान सामाजिक परिवर्तन, प्रगति या उसके पतन में लोगों की आधारभूत भूमिका पर विशेष ध्यान देते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम समाज के विकास के लिए लोगों को मूल पूंजी बताते थे। वे हमेशा लोगों से कहते थे कि वे ईश्वर के मार्ग में जेहाद करने से न रुकें और जान लें कि अगर वे ईश्वरीय मार्ग अपनायेंगे और उस पर डटे रहेंगे तो ईश्वर भी उनकी सहायता करेगा और वे सफल होंगे”


हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के भाषण नंबर ४७ में जेहाद के संबंध में सावधान करते हुए फरमाते हैं” ईश्वर के मार्ग में अपने माल, अपनी जान और अपनी ज़बान से जेहाद करो”


इस्लामी समाज में इंसान केवल अपने व्यक्तिगत हितों के बारे में नहीं सोचता है और समाज के दूसरे लोगों को अपनी इच्छाओं व आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन नहीं समझता है बल्कि वह दूसरों को ईश्वर का बंदा होने की दृष्टि से देखता है और सबके संबंध में स्वयं को उत्तरदायी समझता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को जब मोआविया के सैनिकों द्वारा अंबार शहर पर आक्रमण करने की सूचना मिली तो नहजुल बलागा के भाषण नंबर २७ में इस प्रकार फरमाया” मुझे सूचना मिली है कि शाम की सेना का एक व्यक्ति उस महिला के घर में घुस गया जो आसमानी धर्म की अनुयाई थी और वह इस्लामी सरकार की छत्रछाया में रह रही थी और वह सैनिक उसके आभूषण को लूट ले गया। अगर इस कटु घटना की याद में कोई मुसलमान दुःखी होकर मर जाये तो मेरी दृष्टि में वह निंदा का पात्र नहीं है”


सैनिक शक्ति को मज़बूत करना वह कार्य था जिस पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम विशेष ध्यान देते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम सैनिक शक्ति को मज़बूत करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते थे और सदैव उन्हें दुनिया की लालच व मोह माया से दूर रहने की सिफारिश करते थे क्योंकि दुनिया की लालच शत्रु के मुकाबले में कमज़ोरी का कारण बनता है।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम लोगों को इस बात से मना करते थे कि वह सत्य व असत्य को पहचानने में लोगों को मापदंड न बनायें क्योंकि यह कार्य पथभ्रष्ठ करने वाला है और लोगों को सत्य की पहचान से रोक देता है। जमल नामक युद्ध के दौरान हारिस नाम का एक व्यक्ति हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास आया और इस प्रश्न के उत्तर में कि तुम क्यों ऊंट के मालेकिन के अनुयाइयों का अनुपालन कर रहे हो? कहा कि वे सब मुसलमान हैं और सत्य उनके साथ है। इस पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उससे फरमाया कि तुम ने सत्य को ही नहीं पहचाना कि सत्य वालों को पहचानो और असत्य को भी नहीं पहचानते कि असत्य लोगों को पहचानो।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बात पर बल देकर कहते हैं कि इंसान को सत्य व असत्य की पहचान में लोगों को मापदंड नहीं बनाना चाहिये बल्कि लोगों की पहचान के लिए सत्य व असत्य को मापदंड बनाना चाहिये। इस संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि तुम्हें सबसे पहले सत्य को पहचानना चाहिये उसके बाद तुम उस इंसान को पहचान जाओगे जो सत्य पर होगा और इसके विपरीत अमल न करो यानी कुछ लोगों को सत्य पर समझो उसके बाद उन लोगों के कार्यों को सत्य का मापदंड बनाओ”