अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

हबीब इबने मज़ाहिर एक बूढ़ा आशिक

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“हबीब इबने मज़ाहिर” का अस्ली नाम “हबीब बिन मज़हर” है। (1) आप एक महान और सम्मानीय क़बीले से संबंधित हैं जिसका नाम इतिहास की पुस्तकों में “बनी असद” बताया गया है, और आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सहाबियों में से हैं, आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेसत से एक साल पहले पैदा हुये, और आपका बचपन उस युग में व्यतीत किया है जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) मक्के में लोगों को तौहीद और एकेश्वरवाद का निमंत्रण दे रहे थे, और आपने अपनी जवानी आरम्भिक दिनों से ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पवित्र शैली को देखा और आपको पाक निमंत्रण को पहचाना और आपके पवित्र दीन इस्लाम से आशना हुये।

 

हबीब इस्लामी इतिहास की वह महान हस्ती हैं जिनका चेहरा सूर्य की भाति इस्लामी इतिहास में सदैव चमका रहेगा, क्योंकि आप पैग़म्बर (स) के सहाबियों में से थे और आपने बहुत सी हदीसें पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुन रखीं थी, और दूसरी तरफ़ आपने 75 साल की आयु में कर्बला के पवित्र आन्दोलन में शिरकत की और विलायत एवं पैग़म्बर (स) के हरम की सुरक्षा में अपनी जान निछावर कर दी।

 

और चूँकि हबीब ने अपने जीवन में पाँच मासूमों को देखा था जिनमें पैग़म्बर इस्लाम (स) इमाम अली (अ) हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) और इमाम हसन (अ) व इमाम हुसैन (अ) हैं और आपने अपनी आत्मा को उनसे मिला दिया था इसलिये आप मानवी एवं आध्यात्म के उस महान दर्जे पर पहुंच चुके थे जहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नही है। (2) इस प्रकार की, इबादत, वीरता, ज्ञान, ज़ोहद और विलायत की सुरक्षा में सबकी ज़बानों पर आपका ही नाम था।

 

हबीब इबने मज़ाहिर पैग़म्बर (स) के चहीते

रिवायत में है किः पैग़म्बरे इस्लाम (स) एक दिन अपने कुछ सहाबियों के साथ किसी स्थान से गुज़र रहे थे, आपने देखा कि कुछ बच्चे खेल रहे हैं, पैग़म्बर (स) आगे बढ़े और एक बच्चे के पास बैठ गये, और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा, फिर उसके माथे को चूमा, और प्यास से उसके अपने ज़ानू पर बैठाया!

 

सहाबियों ने जब आपका यह कार्य देखा तो इसका कारण पूछा। आपने फ़रमायाः एक दिन मैंने देखा कि यह बच्चा मेरे हुसैन (अ) के साथ खेल रहा था, और खेलते खेलते “हुसैन” के पैरों के नीचे की मिट्टी उठाता और अपने चेहरे और आँखों पर लगाता। इसलिये मैं भी उसके चाहता हूँ। क्योंकि वह मेरे बेटे को दोस्त रखता है, और जिब्रईल से सूचना दी है किः वह कर्बवा की घटना में मेरे हुसैन (अ) के साथियों और सहायता करने वालों में से होगा। (3)

स्वर्गीय हाजी शेख़ जाफ़र तुस्तरी ने अपनी तक़रीरात में संभावना वयक्त की है कि वह बच्चा हबीब इबने मज़ाहिर थे।

 

हबीब इबने मज़ाहिर का ज्ञान

 

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निधन के बाद हबीब ने हज़रत अली (अ) की बैअत की और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद इमाम अली (अ) को उनका वास्तविक और पहला ख़लीफ़ा मान लिया, क्योंकि आपने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ज़बानी बहुत बार सुना था कि आपने फ़रमाया «انا مدینة العلم و علی بابها فمن اراد المدینة فلیات الباب » मैं ज्ञान का शहर और अली उसके द्वार हैं, जो भी ज्ञान चाहता है वह उस द्वार से प्रवेश करें। इसलिये आपने मौक़े के ग़नीमत समझा और इमाम अली (अ) के सच्चे शागिर्दों और पक्के सहाबियों में से हो गये। (4) और आपसे बहुत ज्ञान बटोरा।

आप हर प्रकार के ज्ञान जैसे फ़िक़्ह, क़राअत, हदीस, अदबियात (साहित्य) जदल, मुनाज़ेरा में माहिर थे, और इतने माहिर थे कि लोग उनको देख कर आश्चर्य किया करते थे। (5) और आपके ज्ञानों में से एक आपका “बलाया और मनाया” यानी भविष्य की घटनाओं का ज्ञान था।

 

हबीब इबने मज़ाहिर की वीरता

हबीब इबने मज़ाहिर, वीर, बहादुर और शक्तिशाली व्यक्ति थे, और इमाम अली (अ) के युग में होने वाले सारे युद्धों में आप समिलित हुए और बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, और उस ज़माने में आप इमाम अली (अ) के साथियों में कूफ़े के एक बहुत ही बहादुर व्यक्ति माने जाते थे। (6)

आप शाशूरा के दिन भी वीरता और साहस के साथ उमरे साद की सेना के सामने डट गये, और आपने उनको नसीहत देनी शुरू की ताकि यह शाशीरिक इच्छाओं के मारे और दुनिया के क़ैदी किसी प्रकार जाग जाएं।

संक्षेप में यह कह दिया जाए कि हबीब वह व्यक्ति थे जो केवल ईश्वर से डरते थे आपने अपनी सारी शक्ति और साहस के साथ विलायत की सुरक्षा की ठान ली थी और उसके लिये कमर कस ली थी।

 

हबीब इबने मज़ाहिर की इबादत

 

हबीब ईश्वर की अराधना करने वाले और धर्मात्मा मनुष्य थे और ईश्वर के आदेशों का पालन करते थे और तक़वा रखते थे, आप पूर्ण क़ुरआन के हाफ़िज़ थे, और हर रात ईश्वर की इबादत किया करते थे। (7)

इमाम हुसैन (अ) के कथानुसारः हर रात्रि एक बार परा क़ुरआन पढ़ा करते थे। (8)

आप वह व्यक्ति थे जिन्होने अपने जीवन की अंतिम रात (आशूर) भी ईश्वर से प्रार्थना करने और इबादत में गुज़ार दी।

 

हबीब इबने मज़ाहिर का ज़ोहद (वैराग्य)

 

आप ईश्वर द्वारा हलाल और हराम की गई चीज़ों का ध्यान रखते थे, और एक पवित्र लेकिन सादा जीवन व्यतीत करते थे। आपने दुनिया की चाहत से इतना अधिक दूर थे और आपने ज़ोहद को अपने जीवन में वह स्थान दे दिया था कि कर्बला के मैदान में जितना भी आपको पैसे और जान बच जाने का लालच दिया गया लेकिन आपने कभी भी शत्रु के निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया और फ़रमायाः हमारे पास पैग़म्बर (स) के सामने कोई बहाना नहीं है कि हम तो जीवित रह जाएं लेकिन पैग़म्बर (स) का बेटा मज़लूम क़त्ल कर दिया जाये। (9)

निसंदेह यह कहा जा सकता है कि हबीब उन लोगों में से हैं जिनके बारे में इमाम अली (अ) ने फ़रमयाः ارادتهم الدنیا فلم یریدوها (10) दुनिया उनकी तरफ़ आती थी लेकिन उन्होंने दुनिया से मुंह मोड़ लिया था।

 

हबीब इबने मज़ाहिर हुसैनी आन्दोलन के आरम्भ से शहादत तक

 

इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद शियों ने इमाम हुसैन (अ) को पत्र लिखे और आपसे मोआविया के विरुद्ध युद्ध करने का निमंत्रण दिया, पहला पत्र “सुलैमान बिन मरयम ख़ज़ाई” जो एक शिया थे के घर में लिखा गया, और यह पत्र कूफ़े के चार सम्मानी व्यक्तियों के हस्ताक्षर के साथ “अब्दुल्लाह बिन मसमअ हमदानी” और “अब्दुल्लाह बिन वाल” के माध्यम से मक्के भेजा गया, और उन हस्ताक्षर करने वालों में से एक हबीब भी थे। (11)

इस आधार पर हम यह समझ सकते हैं कि हबीब ने उसी आरम्भ से ही उस ईश्वरीय आन्दोलन के लिये गतिविधियां आरम्भ कर दी थीं। और “मुसलिम बिन औसजा” के साथ जो कूफ़े में गुपचुप तरीक़े से “हज़रत मुसलिम” के लिये लोगो के बैअत ले रहे थे, इस राह में किसी प्रकार की कोताई नहीं की और उनसे जो कुछ भी हो पाया उन्होंने इस आन्दोलन के लिये किया। (12)

 

हबीब उस मुजाहिद और वीर बूढ़े का नाम है जिसने दृढ़ इरादा कर लिया था कि जिस प्रकार भी संभव होगा वह अपने आप को इमाम हुसैन (अ) की ख़िदमत में कर्बला अवश्य पहुंचाएंगे और अपने इस निश्चय को पूरा करने ले लिये आप रातों को यात्रा करते और दिन में आराम ताकि आप इबने ज़्याद के गुर्गों के हाथों गिरफ़्तार न किये जा सकें, और आख़िरकार आप सात मोहर्रम को कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के क़ाफ़िले के साथ मिल गये। (13)

 

कर्बला पहुंचते ही, आपने इमाम के साथ अपनी वफ़ादारी को दोबारा सिद्ध कर दिया। जब आपने देखा कि इमाम के साथियों की संख्या बहुत कम है और शत्रु बहुत अधिक हैं तो आपने इमाम हुसैन (अ) से फ़रमायाः यहां पास में ही क़बीला बनी असद रहता है अगर आप आज्ञा दें तो में शत्रुओं से पहले उनके पास जाकर आपकी सहयाता के लिये कहूँ, शायद ईश्वर उनका मार्गदर्शन कर दे। आपने इमाम से आज्ञा ली और बनी असद के पास पहुँचे और उनकी नसीहत की। (14)

शहादत

 

आप शहादत के आशिक़ थे, आपका दिश शहादत चाहता था, आप शबे आशूर ईश्वर की अराधना और प्रार्थना में व्यस्त थे, और प्रतीक्षा कर रहे थे कि किस प्रकार सुबह हो और आशूर का दिन और अपने मौला व आक़ा इमाम हुसैन (अ) लेकिन अपनी जान क़ुरबना करके जामे शहादत नोश कर लें।

आख़िरकार, जान देने का समय आ गया, यह बूढ़ा आशिक़ अपने सीने में जवानों का दिल और हौसला रखता था, अपनी तेज़ तलवार के साथ शत्रु की सेना में घुस गया और जो भी सामने आया उसको नर्क पहुँचायाः और इस प्रकार रजज़ (सिंहनाद) पढ़ाः

मैं हबीब, मज़ाहिर का बेटा हूँ, जब जंग की आग जल जाती है तो, युद्ध के मैदान के एक सवार हूँ, तुम लोग अगरचे लोगों की संख्या में हमसे अधिक हो लेकिन हम तुसमे अधिक वफ़ादार और प्रतिरोधी हैं, हमारी हुज्जत और दलील ऊँची हैं, और हमारी मंतिक स्पष्ट है और हम तुमसे अधिक परहेज़गार और दृढ़ हैं। (15)

 

हबीब इबने मज़ाहिर उस आयु में भी एक विजेता की भाति तलवार चला रहे थे और आपने शत्रु के 62 लोगों को नर्क पहुंचाया।

प्यास और थकान आप पर हावी होने लगी थी, और उसी समय अचानक “बदील बिन मरयम अक़फ़ानी” ने आप पर हमला किया और आपके सर पर तलवार मारी दूसरे ने भाले से आप पर हमला किया, यहां तक कि अब हबीब घोड़े पर संभल न सके और ज़मीन पर गिर पड़े, आर की दाढ़ी ख़ून से लाल हो गई, उसके बाद “बदील बिन मरयम” ने आपका सर शरीर से अलग कर दिया।

 

इस बूढ़े आशिक़ की शहादत इमाम हुसैन (अ) के लिये बहुत दुखद थी, आप स्वंय आपके सरहाने पहुंचे, हबीब की शहादत का इमाम पर इतना अधिक प्रभाव हुआ कि आपने फ़रमायाः

احتسب نفسی و حماة اصحابی

अपना और अपने साथियों का सवाब मैं ईश्वर से लूँगा। (16) हे हबीब! तुम महान व्यक्ति थे जो एक रात में क़ुरआन पढ़ा करते थे। (17)

आख़िरकार इमाम हुसैन (अ) के वफ़ादार साधी हबीब इबने मज़ाहिर असदी 75 साल की आयु में दस मोहर्रम सन 61 हिजरी को कर्बला की पवित्र ज़मीन पर शहीद हो गये।

 

सीख

 

इतिहास हम सबको सिखाता है, इसीलिये हमको इतिहास को केवस इतिहास के तौर पर नहीं देखना चाहिए बल्कि हमको चाहिए कि महान व्यक्तियों की जीवनी को पढ़ने के बाद उनसे सीख लें और उसपर अपने जीवन में अमल करें।

इमाम हुसैन (अ) के इस वीर, और वफ़ादार साथी के जीवन से जो सीख ली जा सकी है उसकों मैं यहां पर बयान कर रहा हूँ।

कभी सोंचा हैं कि क्यों हबीब जैसे लोग अपने ख़ून की अंतिम बूंद तक विलायत और इमामत की सुरक्षा में डटे रह ते हैं और अपनी सारी हस्ती को उस पर क़ुरबान कर देते हैं?

इसका कारण यह है कि हबीब जैसे लोग अहलेबैत के सच्चे दोस्त और आशिक़ होते हैं, उनका दावा केवल ज़बानी नहीं होता है बल्कि वह कोशिश करते हैं, अक़ीदे, सोंच, अख़लाक़, राजनीतिक समझ, व्यक्तिगत जीवन और समाजिक जीवन में एस प्रकार व्यवहार करें जो अहलेबैत के आदेशानुसार हो।

अतं में ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमको अहलेबैत के दोस्तों में क़रार दे। (आमीन)

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1.    अलरेजाल, तक़ीउद्दीन हसन बिन अली बिन दाऊद हिल्ली।

2.    मजलिसुल मोमिनीन, पेज 308, क़ाज़ी नूरुल्लाह।

3.    बिहारुल अनवार, जिल्द 10, अल्लामा मजलिसी, मुनतख़बु तवारीख़, पेज 278 हाज मोहम्मद हाशिम ख़ुरासानी।

4.    अलमजालिसुल सुन्निया फ़ी मनाक़िब व मसाएबिल इतरतिन नबविया, जिल्द 1, सैय्यद महन अल अमीन।

5.    अमाली मुनतख़बा, पेज 49

6.    अबसारुल ऐन फ़ी अंसारुल हुसैन, पेज 56, मोहम्मद बिन ताहिर समावी

7.    आयानुश शिया, जिल्द 4, पेज 554, सैय्यद महन अल अलमीन

8.    तरजुमा नफ़सुल महमूम, शेख़ अब्बास क़ुमी, पेज 343

9.    रेजाल, कश्शी।

10.    नहजुल बलाग़ा, सैय्यद रज़ी, ख़तुबा हम्माम

11.    इर्शाद, शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 34- 35

12.    आयानुश शिया, जिल्द 4, पेज 554, सैय्यद महन अल अलमीन

13.    आयानुश शिया, जिल्द 4, पेज 554, सैय्यद महन अल अलमीन

14.    अबसारुल ऐन फ़ी अंसारुल हुसैन, पेज 57, मोहम्मद बिन ताहिर समावी

15.    तारीख़ तबरी, जिल्द 7, पेज 347

16.    तारीख़ तबरी, जिल्द 7, पेज 349

17.    मुनतहल आमाल, शेख़ अब्बास क़ुमी, पेज 430

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