प्रकाशमयी चेहरा “जौन हबशी”

जौन बिन हुवैइ बिन क़तादा बिन आअवर बिन साअदा बिन औफ़ बिन कअब बिन हवी (1), कर्बला के बूढ़े शहीदों मे से थे। आप अबूज़र ग़फ़्फ़ारी और इमाम हुसैन (अ) के दास थे। आप अबूज़र ग़फ़्फ़ारी के दास होने से पहले फ़ज़्ल बिन अब्बास बिन मुत्तलिब के दास थे लेकिन इमाम अली (अ) ने आपको फज़्ल से 150 दीनार में ख़रीद के अबूज़र को दे दिया ताकि आप अबूज़र की सेवा करें, जब उस्मान ने पैग़म्बर के सहाबी अबूज़र को मदीने से मबज़ा निर्वासित कर दिया तो हज़रत जौन भी आपके साथ रबज़ा चले गए और सन 32 हिजरी में अबूज़र के निधन के बाद आप वापस मदीने आए और इमाम अली (अ) के घर में दोबारा रहने लगे और उसके बाद सदैव इस ख़ानदान के सेवक बन के रहे, पहले इमाम अली (अ) की सेवा की फ़िर इमाम हसन के ग़ुलाम रहे उसके बाद इमाम हुसैन और अंत में इमाम सज्जाद (अ) की दासता का सम्मान आपको नसीब हुआ।

 

कर्बला में उपस्थिति

 

सन साठ हिजरी में जब इमाम हुसैन ने मदीने से मक्के की तरफ़ अपनी यात्रा आरम्भ की तो जौन भी आपके साथ साथ मक्के आ गए और फिर आपने अपने आक़ा इमाम हुसैन के साथ मक्के से कर्बला तक का सफ़र किया और शत्रुओं के साथ जंग में अपने ख़ून की अंतिम बूंद तक अपने इमाम की सुरक्षा की।(2)

बहुत से इतिहासकारों और रेजाल के ज्ञाताओं ने अपनी पुस्कों में हज़रत जौन के बारे में इस प्रकार लिखा हैः

चूँकि यह दास हथियारों का अच्छा जानकार और हथियार एवं युद्ध अस्त्रों को बनाने में माहिर था इसलिये, आशूरा की रात को इमाम हुसैन (अ) के विशेष ख़ैमे में केवल यह जौन ही थे जो इमाम के पास थे और तलवारों को सही कर रहे थे और उनकी धार तेज़ कर रहे थे। (3)

 

इमाम सज्जाद (अ) से मिलता है किः जौन मेरे पिता के ख़ैमे में तलवारों पर धार रख रहे थे और मेरे पिता यह शेर पढ़ रहे थेः

یا دهر اف لک من خلیل، کم لک بالاشراق و الاصیل...

हे ज़माने वाय हो तुझ पर कि हर सुबह और शाम मेरे एक दोस्त को मुझसे छीन लेता है.... (4)

 

जंग की अनुमति मांगना

 

आशूर के दिन जौन ने ज़ोहर की नमाज़ इमाम के साथ पढ़ी लेकिन उसके बाद जब इस बूढ़े ग़ुलाम ने मौला के साथियों को एक के बाद एक मैदान में जाकर अपनी जान क़ुरबान करते देखा तो एक बार यह बूढ़ा दास अपनी कमर को थामे हुए इमाम हुसैन (अ) के पास आता है और आपने युद्ध की अनुमति मांगता है।

इमाम ने फ़रमायाः یا جون، انت فی اذن منی، فانما تبعتنا طلبا للعافیة فلا تبتل بطریقتنا

 

हे जौर तुम तो हमसे आराम और सुकून के लिये मिले थे और हमारे अनुयायी हुए थे तो अपने आप को हमारी मुसीबत में न डालो।

जब जौन ने यह सुना तो अपने आप को इमाम के पैरों पर गिरा दिया और कहाः मैं सुकून के दिनों में आपकी क्षत्रछाया में आराम के साथ था, यह कहां का इंसाफ़ है कि अब जब आपकी मुसीबतों के दिन आरम्भ हुए हैं मैं आपको अकेला छोड़ दूँ और यहां से चला जाऊँ,

लेकिन इसके  बाद भी इमाम हुसैन (अ) ने जौन को मैदान में जाने की आज्ञा नहीं दी तो जौन ने एक जुम्ला कहाः हे मेरे आक़ा यह सही है कि मेरे बदन के ख़ून से बदबू आती है, मेरा स्थान छोटा है, मेरा रंग काला है लेकिन क्या आप मुझे स्वर्ग में जाने से रोक देंगे? मेरे लिये दुआ कीजिये... ख़ुदा की क़सम मैं आपसे अलग नहीं होऊँगा यहां तक की अपने काले ख़ून को आपके ख़ून से लिया दूँ।

 

हज़रत जौन का सिंहनाद

उसके बाद जौन को मैदान में जाने की अनुमति मिलती है आप मैदान में आते हैं और इस प्रकार सिंहनाद करते हैः

 

کَیْفَ یَریَ الْفجَّارُ ضَرْبَ الأَسْوَدِ • بِالْمُشْرِفِی الْقاطِعِ الْمُهَنَّدِ

بِالسَّیْفِ صَلْتاً عَنْ بَنی‏ مُحَمَّدٍ • أَذُبُّ عَنْهُمْ بِاللِّسانِ وَالْیَدِ  (5)

أَرْجُو بِذاکَ الْفَوْزَ عِنْدَ الْمَوْرِدِمِنَ الالهِ الْواحِدِ الْمُوَحَّدِ (6)

 

कैसा देखते हैं पापी हिन्दुस्तानी तलवार की मार को एक काले ग़ुलाम के हाथों

में अपने हाथ और ज़बान से पैग़म्बर (स) के बेटों की सुरक्षा करूँगा

ईश्वर के नज़दीक एकमात्र शिफ़ाअत करने वाले से शिफ़ाअत की आशा लगाये हूँ।

 

शहादत

 

इतिहासकारों के कथानुसार आपने 25 यजीदियों (7) और मक़तले अबी मख़निफ़ के अनुसार आपने 70 यज़ीदियों को नर्क भेजा और कुछ को घायल कर दिया, लेकिन चूँकि जौन भी तीन दिन से भूखे प्यासे थे और ऊपर से उनकी आयु भी अधिक हो चुकी थी इसलिये थकन आप पर हावी होने लगी और इसी बीच एक मलऊन ने आप पर तलवार से हमला कर दिया तलवार आपके सर पर लगी और आप घोड़े से नीचे गिर पड़े अपने आक़ा को आवाज़ दी, इमाम हुसैन दौड़ते हुए जौन के पास पहुँचे और जौन के सर को अपने ज़ानू पर रख लिया और इमाम को याद आया कि जौन के किस प्रकार अपने काले रंग और बदबू का ख़्याल था एक बार हुसैन ने आसमान की तरफ़ हाथों को प्रार्थना के लिये उठाया और फ़रमायाः

 

हे ईश्वर उनके चेहरो को सफ़ेद कर दे औऱ उसकी बू को ख़ुशबू में बदल दे और उनके अच्छों के साथ महशूर कर और उसके और मोहम्मद व आले मोहम्मद के बीच दूर न पैदा कर।

इमाम बाक़िर (अ) से रिवायत है किः आशूर के बाद लोग शहीदों की लाशों को जब दफ़नाने के लिये आये तो दस दिन के बाद जौन की लाश उनको मिली और उस समय भी आप से मृगमद की ख़ुशबू आ रही थी। (8)

 

ज़ियारत

 

इमामे ज़माना (अ) से मंसूब जियारते नाहिया में हज़रत जौन को इस प्रकार याद किया गया है और समय का इमाम हुसैन पर अपनी जान निछावर कर देने वाले दास पर इन शब्दों में ज़ियारत पढ़ रहा हैः

السَّلامُ عَلی جُونِ بْنِ حَرِیّ مَوْلی ابی‏ ذَرِ الْغَفّارِیِّ (9)

 

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1.    तंक़ीहुल मक़ाल, जिल्द 1 पेज 238

2.    रेजाले शेख़ तूसी, पेज 99

3.    तारीख़े तबरी, जिल्द 5, पेज 420

4.    फ़रहंगे आशूरा

5.    मनाक़िब इबने शहर आशोब, जिल्द 3, पेज 252

6.    बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 23

7.    मक़तलुल हुसैन (अ) मक़रम, पेज 252

8.    नफ़सुल महमूम, पेज 264

9.    बिहारुल अनवार जिल्द 45. पेज 71