सात आसमानों की हक़ीक़त

कुरआन में कई जगह जि़क्र आया है कि आसमान सात हैं। मसलन कुरआन हकीम की 67 वीं सूरह मुल्क की तीसरी आयत, ''जिसने (अल्लाह ने) एक के ऊपर एक सात आसमान बनाये। तुम रहमान की आफरनिश में कोई क़सर न देखोगे।

इस तरह की आयतों के बारे में अक्सर लोगों को कौतूहल रहता है कि क्या वाक़ई सात आसमान हैं और अगर हैं तो उनकी हक़ीक़त क्या है? कुछ लोग इसको साइंस के खिलाफ भी कह देते हैं। लेकिन अगर इमाम अली(अ.) की एक हदीस पर गौर किया जाये तो सात आसमानों की हक़ीक़त न सिर्फ स्पष्ट होती है बलिक उसका समर्थन साइंस भी करती नज़र आती है।  

यह हदीस शेख सुददूक (अ.र.) की किताब अललश्शराअ में दर्ज है और 'नादिर अलल और असबाब' के टाइटिल के अन्तर्गत इस तरह है : एक मरतबा हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम मसिजदे कूफा में थे। मजमे से एक मर्द शामी उठा और अर्ज किया या अमीरलमोमिनीन में आपसे चन्द चीजों के मुतालिक कछ दरियाफ्त करना चाहता हूं। आपने फरमाया सवाल करना है तो समझने के लिये सवाल करो। महज़ परेशान करने के लिये सवाल न करना। उसके बाद सायल ने सवाल किये उनमें से दो सवाल इस तरह थे,

उसने सवाल किया कि ये दुनियावी आसमान किस चीज़ से बना?आपने फरमाया आंधी और बेनूर मौजों से। फिर उसने सातों आसमान के रंग और उनके नाम दरियाफ्त किये। तो आपने फरमाया

पहले आसमान का नाम रफीअ है और उसका रंग पानी व धुएँ की मानिन्द है। और दूसरे आसमान का नाम क़ैदूम है उसका रंग तांबे की मानिन्द है। तीसरे आसमान का नाम मादून है उसका रंग पीतल की मानिन्द है। चौथे आसमान का नाम अरफलून है उसका रंग चाँदी की मानिन्द है। पाँचवें आसमान का नाम हय्यून है उसका रंग सोने की मानिन्द है। छठे आसमान का नाम उरूस है उसका रंग याक़ूत सब्ज़ की मानिन्द है। सातवें आसमान का नाम उज्माअ है उसका रंग सफेद मोती की मानिन्द है।

अब हम इन सवालों व जवाबों को मौजूदा साइंस की रोशनी में गौर करते हैं।

अगर ज़मीन के आसमान की बात की जाये तो पूछने वाले का मतलब वायुमंडल से था जो ज़मीन के ऊपर हर तरफ मौजूद है। हम जानते हैं कि वायुमंडल में गैसें हैं और साथ में आयनोस्फेयर है जहां पर आयनों की शक्ल में गैसों की लहरें हैं। ये गैसें कभी एक जगह पर तेजी के साथ इकटठा होती हैं तो आँधियों की शक्ल में महसूस होती हैं और कभी बिखरती है तो मौसम पुरसुकून होता है। इसके बावजूद फिज़ा कभी इन गैसों से खाली नहीं होती।

अगर आम आदमी को समझाने के लिये कहा जाये तो ज़मीन की फिज़ा में आंधियां हैं और लहरें या मौजें। चूंकि ये मौजें रोशनी की नहीं है बलिक मैटर की हैं लिहाज़ा हम इन्हें बेनूर मौजें कह सकते हैं। और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम के जवाब में आ रही है।  

सवाली का अगला सवाल आसमान के रंग के मुताल्लिक था। जब हम ज़मीन पर रहते हुए आसमान की तरफ नज़र करते हैं तो यह नीले रंग का दिखाई देता है। जबकि शाम या सुबह के वक्त इसका रंग थोड़ा बदला हुआ लाल या काला मालूम होता है।

लेकिन जो लोग स्पेसक्राफ्ट के ज़रिये ज़मीन से बाहर जा चुके हैं। उन्हें न तो ये आसमान नीला दिखार्इ दिया और न ही लाल। दरअसल ये रंग ज़मीन पर इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि ज़मीन का वायुमंडल सूरज की रोशनी में से खास रंग को हर तरफ बिखेर देता है।

चूंकि ज़मीन के बाहर वायुमंडल नहीं है इसलिए वहां ये रंग नहीं दिखाई देते। तो फिर वहां कौन सा रंग दिखाई देगा? ज़ाहिर है कि वहां चारों तरफ ऐसा कालापन दिखाई देगा जिसमें पानी की तरह रंगहीनता (colorlessness) होगी। यही रंग बाहर जाने वाले फिजाई मुसाफिरों ने देखा और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने जवाब में बता रहे हैं कि पहले आसमान का रंग पानी व धुएं की मानिन्द है।

पानी का रंग नहीं होता और धुएं का रंग काला होता है। दोनों को मिक्स करने पर जो रंग बनता है वही फिजाई मुसाफिरों को ज़मीन से बाहर निकलने पर दिखाई देता है।

उसके आगे के आसमानों तक साइंस की पहुंच ही नहीं हुई है अत: कुछ कहना बेकार है। तमाम सितारे पहले आसमान में ही हैं।

जो बातें आज साइंसदानों को ज़मीन से बाहर निकलने पर मालूम हुई हैं वह इमाम अली अलैहिस्सलाम चौदह सौ साल पहले मस्जिद में बैठे हुए बता रहे थे। और इस्लाम के सच और इल्म की गवाही दे रहे थे। वह इल्म जो दुनिया के सामने चौदह सौ साल बाद आने वाला था।