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परदा : क्या कुप्रथा है?

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यह कहा जा रहा है कि आज के जमाने में इस तरंह की प्रथाओं का कोई औचित्य नहीं। तो क्या वाकई परदे की रस्म को मिटा देना चाहिए?

 

पर्दे के विरोध में जो तर्क सबसे ज्यादा दिया जाता है वह यह कि परदा औरतों की गुलामी की प्रतीक है। तो जनाब मैंने पूरा इतिहास खँगाल डाला, कहीं नहीं मिला कि गुलामों को परदे में रखने का रिवाज रहा हो। हाँ यह जरूर मिला कि पुराने जमाने में गुलाम औरतें बाजार में बिकने के लिए सजा सँवार कर खड़ी की जाती थीं। लोग आँखें फाड़ फाड़कर उनकी खूबसूरती के दाम लगाते थे और दुकानदार उन औरतों को खरीददार को बेचकर अपने पैसे सीधे करता था। क्या आज के फैशन शो , मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड जैसे शो यही काम नहीं कर रहे हैं। तो फिर औरतों की गुलामी के प्रतीक इस तरह के शो हुए न कि परदा?

 

कुछ लोगों का ये भी कहना है कि बुर्के में दिखाई देना कम हो जाता है और औरतें एक्सीडेंट का शिकार हो जाती है। अगर ऐसा है तो पहले हेलमेट पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि हेलमेट के साथ भी यही कहानी है।


अगर इलाही कानून ने परदे का सिस्टम बनाया है तो निस्संदेह वह इंसान के फायदे के लिए ही होगा। रूहानी फायदे तो अपनी जगंह लेकिन आईए एक नज़र करते हैं इसके दुनियावी फायदों पर।

 

किसी भी औरत के लिए जाहिरी तौर पर सबसे कीमती चीज़ उसका हुस्न होती है। और वह अपने हुस्न को बरकरार रखने के लिए तरह तरह की तरकीबें करती है। तरह तरह के केमिकल और हर्बल इस्तेमाल करती है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में कास्मेटिक्स का कारोबार सात बिलियन डालर सालाना है। लेकिन ये केमिकल वक्ती फायदा देकर उसके चेहरा का कुदरती भोलापन और नर्मी छीन लेते हैं। बालीवुड की हीरोईनों को अगर कोई सुबह उठकर देख ले तो उसे डराउनी ड्रामों  से उसे बिल्कुल डर नहीं लगेगा।

 

इन कास्मेटिक्स के दाम इतने ऊंचे होते हैं कि गरीब घर की लड़कियां उनका इस्तेमाल सोच भी नहीं सकतीं। लेकिन परदा औरतों की खूबसूरती का ऐसा प्रोटेक्टर है जो आसानी से हर जगह उपलब्ध है, सस्ता है और इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं। सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट रेज़ स्किन की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं। ये स्किन की नमी सोख लेती हैं और उसे खुरदुरा बना देती हैं। स्किन में झुर्रियां पड़नी शुरू हो जाती हैं और इंसान वक्त से पहले बूढ़ा दिखाई देने लगता है। नर्म स्किन की ये रेज़ खास तौर से दुश्मन होती हैं। अगर चमड़ी गोरी है तो ये रेज़ उसके मेलानिन से रिएक्शन कर चमड़ी का रंग गहरा कर देती हैं। ये रेज़ स्किन कैंसर की भी वजह होती हैं। गोरी और नर्म चमड़ी में स्किन कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है.

 

लेकिन अगर इंसान का जिस्म अच्छी तरंह ढंका हुआ है तो वह इन खतरनाक रेज़ से काफी हद तक बचा रहता है। अरब जैसे इलाकों में जहाँ सूरज अपनी पूरी तपिश बिखेरता है वहां लोग इसीलिए अपने जिस्म को पूरी तरंह ढंककर चलते हैं। मर्दों की सख्त स्किन तो कुछ हद तक इन किरणों को बर्दाश्त कर लेती है लेकिन औरतों की नर्म खाल तो इन्हें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाती।

 

गर्मियों में हल्के रंग का परदा और जाड़ों में गहरे रंग का परदा जिस्म का सर्दी और गर्मी से बचाव भी करता है। साथ ही अगर नाक ढंकी हुई है तो हवा में मौजूद धूल, मिट्‌टी, धुवां और नुकसानदायक बैक्टीरिया इंसानी जिस्म से दूर रहते हैं और इंसान सेहतमन्द रहता है। साथ ही स्किन की नरमी भी बरकरार रहती है।

 

औरतों में सजने संवरने की ख्वाहिश मर्दों से ज्यादा होती है। और वे अपनी अपनी हैसियत के अनुसार श्रृंगार करती हैं। लेकिन सोसाइटी में अमीर लड़कियों का सजना गरीब लड़कियों के लिए दिलआज़ारी का सबब बन जाता है। परदे की प्रथा सबको एक रंग में रंग देती है और कोई दूसरे से ज्यादा अमीर नहीं दिखाई देता। परदा कमसूरत औरत की बदसूरती को भी छुपाता है और उसे हीन भावना का शिकार नहीं होने देता।

 

आज के दौर में परदे के उठते चलन ने तलाक के केसेज बढ़ा दिये हैं क्योंकि पहले परदे की वजह से मर्द परायी औरतो को देखने से महरूम रहता था और उसे अपनी बीवी ही खूबसूरत मालूम होती थी। लेकिन अब शादी से पहले ही मर्दों के सामने से बहुत सी खूबसूरत लड़कियां गुजर चुकी होती हैं नतीजे में उसे अपनी बीवी पसंद नहीं आती।  

 

शायद शहर में रहने वाली लड़कियों ने इन सच्चाईयों को पहचान लिया है इसलिए वे बाइक या स्कूटी चलाती हुई अपने हाथों में पूरे दस्ताने पहने हुए और चेहरे को पूरी तरह ढंके हुए नज़र आती हैं। ये परदा नहीं तो और क्या है? अल्लाह ने औरत को फूल (Not Fool) की तरंह बनाया है। और इस फूल की हिफाजत के लिए उसने परदे का इंतिजाम किया है।

 

लेकिन आखिर में मेरा ये भी विचार है कि औरतों के परदे का मामला औरतों पर ही छोड़ देना चाहिए। और इस बारे में उनपर किसी तरह की जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि बहरहाल यह उन्हीं की भलाई के लिए है।

 

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