कैसे आते हैं ज़लज़ले

दुनिया की तारीख हादसों और कुदरती आफतों से भरी पड़ी है। उनमें से कुछ ने तो इंसानी आबादी के बड़े हिस्से को देखते ही देखते दुनिया से मिटा दिया। ये हकीकत है कि कुदरती हादसों में ज़लज़ले से बढ़कर कोई आफत नहीं। ज़लज़ला या भूकम्प एक निहायत खतरनाक सिचुएशन है। और हर इंसान यही दुआ करता है कि ज़लज़ला कभी न आये। ये बिना किसी पेशनगोई के एकाएक नमूदार होता है। आज भी साइंस कोई ऐसा तरीका नहीं ढूंढ पायी है जो ज़लज़ले के बारे में पहले से खबर दे सके। बड़े ज़लज़लों में इमारतें ज़मींदोज़ हो जाती हैं। उस जगह का पूरा सिस्टम बिगड़ जाता है। हज़ारों इंसान मौत की आगोश में समा जाते हैं। और कभी कभी आग और सूनामी जैसी मुसीबतें आकर आग में घी का काम करती हैं। एक अनुमान के मुताबिक अब तक आये ज़लज़लों ने आठ करोड़ से ज्यादा इंसानों का हलाक किया है। ज़मीन की पपड़ी से अचानक निकलने वाली एनर्जी ज़मीन के ऊपर लहरें पैदा करती है जो ज़लज़ले का सबब होती हैं। इन लहरों को सीसमिक लहरें कहते हैं। ज़लज़लों को नापने के लिये सीसमोमीटर का इस्तेमाल किया जाता है जो ज़मीन के ऊपर पैदा सीसमिक लहरों के उतार चढ़ाव को नापकर ज़लज़लों की तीव्रता मालूम करती हैं। या उतार चढ़ाव रिचर स्केल पर नापा जाता है। रिचर स्केल पर 7 से ज्यादा रीडिंग का भूकम्प ज़मीन के बड़े हिस्से पर विनाश करता है जबकि 9 रीडिंग का भूकम्प महाविनाशकारी होता है। ज़लज़ले कभी कभी मुल्कों के नक्शे को बदल देते हैं और कभी कभी तो उन्हें अपनी जगह से खिसका देते हैं। कई बार तो पूरा महाद्वीप ही अपनी जगह से खिसक जाता है। यह माना जाता है कि संसार के सारे महाद्वीप लाखों साल पहले एक दूसरे से जुड़े हुए थे। फिर ज़लज़लों ने उन्हें एक दूसरे से दूर कर दिया। अक्सर ज़लज़ले ज्वालामुखी फटने की वजह बनते हैं।

 

कुछ ज़लज़ले तो इतने भयंकर होते हैं कि ज़मीन के घूमने की रफ्तार और घूमने के मरकज़ को ही बदल देते हैं। ज़लज़ले की शुरूआत जिस जगह से होती है उसे केन्द्र या हाइपोसेन्टर (Hypocenter) कहते हैं।

 

सदियों पहले ज़लज़लों के बारे में लोग अजीबोग़रीब ख्यालात रखते थे। मसलन ईसाई पादरियों का ख्याल था कि ज़लज़ले खुदा के बागी और गुनाहगार बन्दों के लिये सज़ा और चेतावनी के तौर पर आते हैं। कुछ लोगों का ख्याल था कि ज़मीन के अन्दर निहायत विशाल और ताकतवर जानवर पाये जाते हैं जिनकी हरकत से ज़लज़ले पैदा होते हैं। कदीमी जापान के बासियों का ख्याल था कि एक ताकतवर छिपकली ज़मीन को अपनी पीठ पर उठाये हुए है और उसके हिलने से ज़लज़ले आते हैं। कुछ ऐसा ही अकीदा अमरीकी रेड इंडियन का था कि ज़मीन एक कछुए की पीठ पर टिकी है और जब वह हिलता है तो ज़लज़ला आता है। भारत में कुछ लोगों का अकीदा था कि ज़मीन गाय के एक सींग पर रखी हुई है और जब वह ज़मीन को दूसरी सींग पर ट्रांस्फर करती है तो ज़लज़ला आता है। ये सभी ख्यालात साइंस से कोसों दूर थे।

 

कुछ हद तक अरस्तू की थ्योरी साइंस के क़रीब मालूम होती है। उसके मुताबिक जब ज़मीन के अन्दर से गर्म हवा बाहर निकलने की कोशिश करती है तो ज़लज़ले पैदा होते हैं। प्लेटो का नज़रिया भी कुछ इसी तरह का था कि जब ज़मीन के अन्दर की तेज और गर्म हवाएं ज़लज़लों को जन्म देती हैं। आज से लगभग सत्तर साल पहले साइंसदानों का ख्याल था कि ज़मीन धीरे धीरे ठंडी हो रही है और इसके नतीजे में उसकी बाहरी पपड़ी चटख रही है जिससे ज़लज़ले आते हैं। कुछ दूसरे साइंसदानों का कहना था कि ज़मीन के अन्दर गर्म आग का जहन्नुम दहक रहा है। इस गर्मी की वजह से ज़मीन गुब्बारे की तरह फैल रही है।

 

लेकिन मौजूदा साइंस ज़लज़ले के सिलसिले में प्लेट टेक्टोनिक्स की थ्योरी को ही कुबूल करती है। इस थ्योरी के मुताबिक ज़मीन कई जगहों पर एक दूसरे से जुड़ी हुई है। ज़मीन के ये अलग अलग हिस्से प्लेट्‌स कहलाते हैं। जब ज़मीन के भीतरी हिस्से में मौजूद गर्म पिघले हुए माददे यानि मैग्मा में लहरें पैदा होती हैं तो ये प्लेट्‌स भी उसके झटके से हिल जाती हैं। मैग्मा उनको चलाने में ईंध्ना का काम करता है। ये प्लेटस एक दूसरे की तरफ खिसकती हैं। ऊपर, नीचे या पहलू में हो जाती हैं। या फिर उनके बीच फासला बढ़ जाता है। आमतौर पर ज़लज़ला इन प्लेटों के ज्वाइंट्‌स पर ही आता है। प्लेटों के चलने से इन ज्वाइंटस में दरार पैदा होती है जिनमें पैदा होने वाली लहरों से ज़लज़ला आता है।

 

ऊपर की थ्योरीज़ पर एक नज़र मारने के बाद अगर हम इस्लामिक थ्योरी पर आयें तो यहां पर ज़लज़ले के बारे में ऐसी थ्योरी देखने को मिलती है जो साइंटिफिक थ्योरी से पूरी तरह मैच कर जाती है। किताब एललुश्शराये में दर्ज हदीस के मुताबिक एक मरतबा इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से ज़लज़ले के मुताल्लिक दरियाफ्त किया गया कि वह क्या है? तो आपने फरमाया कि अल्लाह तआला ने ज़मीन के हर रग और रेशे पर एक एक मलक मुअय्यन किया है और जब वह किसी ज़मीन पर ज़लज़ला लाने का इरादा करता है तो उस मलक की तरफ वही फरमा देता है कि फलां फलां रग को हरकत दे कि जिसका अल्लाह तआला ने हुक्म दे दिया था तो वह ज़मीन मय अपने साकिनों के हरकत में आ जाती है।

 

किसी जिस्म के रग और रेशे जिस्म के अलग अलग हिस्सों को जोड़ते हैं ठीक इसी तरह ज़मीन के ज्वाइंटस ज़मीन की प्लेटस को आपस में जोड़ते हैं। इससे साफ ज़ाहिर है कि इमाम उस ज़माने के लोगों की अक्ल के लिहाज से ज़मीन की प्लेटस और उनके ज्वाइंटस की बात कर रहे थे। अब आगे अगर इस जुमले पर गौर किया जाये कि मलक इन रगों को हरकत देते हैं तो कुरआन और कुछ दूसरी हदीसों की रोशनी में हमें मालूम है कि मलक नूर यानि कि एनर्जी का पैकर होते हैं इसका मतलब साफ है कि इमाम के कहने का मतलब कि ज़मीन की प्लेटों को हरकत देने वाली शय एनर्जी ही है और यह बात पूरी तरह मौजूदा थ्योरी से मैच कर रही है। इस तरह ज़लज़ले की सबसे सही थ्योरी देने में इस्लाम ही सबसे आगे रहा। जबकि साइंस आज से पचास साठ साल पहले तक ज़लज़ले के आने की सही वजह नहीं जानती थी।