अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

कैसे करते हैं जानवर शिकार?

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आज का बच्चा बच्चा डिस्कवरी और नेशनल ज्योग्रेफिक जैसे टीवी चैनलों से वाकिफ है। इन चैनल्स पर साइंस की नित नयी नयी रिसर्च लोगों के सामने पेश की जाती हैं। हमारी ज़मीन पर कौन कौन से जानदार पाये जाते हैं और उनका बिहैवियर कैसा होता है। वो अपनी खुराक कैसे हासिल करते हैं। इस बारे में रिसर्च करने वाले कड़ी मेहनत से जानकारियां हासिल करते हैं और फिर उन हैरतअंगेज़ जानकारियों को हमारे सामने पेश करते हैं। लोग इन जानकारियों को देखकर चौंक जाते हैं क्योंकि ये ऐसी नयी बातें होती हैं जिनके बारे में इससे पहले लोगों ने न तो देखा होता है और न ही सुना। इसके लिये हम उन खोजकर्ताओं के शुक्रगुज़ार होते हैं जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से ऐसी खोजों को हमारे सामने पेश किया।

 

लेकिन अगर इन ही खोजों को कोई आज से बारह सौ साल पहले पेश कर रहा हो, तो यकीनन न सिर्फ हमें उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए, बल्कि उसे ऐसा महामानव (सुपरमैन) यकीनन मानना चाहिए जो अपने वक्त से सैंकड़ों साल आगे था। उस सुपरमैन के सामने आज के डिस्कवरी जैसे चैनल्स और खोजकर्ता फेल हो जाते हैं। और हमें उसे अपना उस्ताद, नमूनये अमल और इमाम मानने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।

 

उस सुपरमैन का नाम है इमाम जाफर अल सादिक अलैहिस्सलाम। किताब तौहीदुल अईम्मा में उनकी एक लम्बी हदीस दर्ज है जो हदीसे मुफज्ज़ल नाम से मशहूर है इस हदीस में इमाम ने दुनिया पर गौरो फिक्र करके तौहीद यानि अल्लाह के वजूद पर दलीलें पेश की हैं। इस हदीस में जानवरों से मुताल्लिक उनके जो कौल दर्ज हैं, डिस्कवरी जैसे चैनल्स बहुत मेहनत करने के बाद उन खोजों तक पहुंच पाये हैं। जानवर किस तरह अपना पेट भरने के लिये शिकार करते हैं, इसपर उनके कुछ कौल इस किताब में इस तरह हैं :

 

लोमड़ी, जब उसे खुराक नहीं पहुंचती तो अपने को मुरदा बना लेती है और अपना पेट फुला लेती है। इसलिए कि परिन्दे उसे मुरदा समझें। और जैसे ही परिन्दे उसको नोचने और खाने के लिये उसपर गिरते हैं, फौरन उनपर हमला करती और पकड़ लेती है।

 

दुल्फीन (डाल्फिन) जब परिन्दों का शिकार चाहता है तो उसकी इस मामले में ये तदबीर होती है कि पहले मछली को पकड़ कर मार डालता है। ताकि वह पानी पर उभरी रहे, और खुद उसके नीचे छुपा रहता है और पानी को उछालता रहता है कि कहीं उसका जिस्म न दिखाई दे। जब कोई परिन्दा उस मरी हुई मछली पर गिरता है तो उसे उचक कर शिकार कर लेता है।

 

उस जानदार को देखो जिसे लैस (शेर) कहते हैं और आम लोग उस को मक्खियों का शेर कहते हैं। ये एक किस्म की मकड़ी है जो मक्खियों का शिकार करती है। तुम देखोगे जब उसे मक्खी का एहसास होता है कि उस के क़रीब आयी, तो देर तक उसे छोड़े रखती है गोया खुद एक मुरदा चीज़ है जिसमें कुछ हरकत ही नहीं। जब मक्खी को मुतमईन पाती है और खुद से उस को गाफिल देखती है तो निहायत आहिस्ता आहिस्ता उस की तरफ चलती है। जिस वक्त इतनी करीब पहुंच जाती है कि उसे पकड़ सके तब उसपर जस्त लगाकर पकड़ लेती है और फिर इस तरह उसके तमाम जिस्म से चिमटती है कि कहीं छूट न जाये और इतनी देर तक उसको मज़बूत थामे रहती है कि उसे महसूस हो जाता है कि मक्खी अब कमज़ोर हो गयी है और हाथ पाँव उसके ढीले हो गये। फिर मुत्वज्जे होती है और उसे किसी महफूज़ मुकाम पर ले जाकर अपनी गिज़ा बनाती है और उसी के ज़रिये से उसकी हयात है।

 

लेकिन आम मकड़ी, तो वह जाला तनती और उसे मक्खियों के शिकार का जाल और फन्दा बनाती है और खुद उसके अन्दर छुप कर बैठ जाती है। ज्योंही मक्खी उसमें फंसती है, उसको लपक कर दम बदम काटना शुरू कर देती है। उसकी जिंदगी इसी तरह बसर होती है।

 

यही जानकारियां आज डिस्कवरी जैसे चैनल्स हमें दे रहे हैं और हम इन्हें लेटेस्ट रिसर्च समझ रहे हैं। इन जानकारियों को देखकर हम हैरतज़दा रह जाते हैं। जबकि हकीकत ये है कि इन बातों को हमारे इस्लाम गुरू बारह-चौदह सौ साल पहले ही बता चुके हैं।


यकीनन इस्लाम एक साइंटिफिक मज़हब है, वरना इसके उस्ताद हरगिज़ इस तरह की साइंटिफिक खोजों को दुनिया के सामने न रखते। हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम और दूसरे इमामों का जिन्होंने हमें दुनिया की पहचान के तरीके बताये।

 

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