चाँद और सूरज की शादी

दूसरी हिजरी क़मरी के ज़िलहिज महीने की पहली तारीख़ को इमाम अली और हज़रत फ़ातेमा का विवाह बहुत ही साधारण ढंग से संपन्न हुआ। हालांकि यह एक साधारण सा विवाह था किंतु आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श में परिवर्तित हो गया। इमाम अली और हज़रत फ़ातेमा की सादे ढंग से शादी इस बात को सिद्ध करती है कि विवाह इस्लामी ढंग से संपन्न किया जाना चाहिए और इसमें अपव्यय करने तथा बुरी परंपराओं को अपनाने से बचना चाहिए। इस अति पवित्र विवाह की वर्षगांठ पर आपकी सेवा में बधाई प्रस्तुत करते हैं।


विवाह, महिला और पुरुष के बीच एक पवित्र बंधन का नाम है। दूसरे शब्दों में विवाह का संस्कार महिला और पुरुष को क़ानूनी तथा धार्मिक रूप में एक साथ रहने की अनुमति प्रदान करता है। ईश्वर ने मानव जाति को बाक़ी रखने के लिए विवाह को निर्धारित किया है। मनुष्य, शारीरिक एवं भौतिक दो आयामों का मिश्रण है। इनमें से प्रत्येक आयाम की अपनी विशेष आवश्यकताए हैं। विवाह मनुष्य की शारीरिक आवश्यकता का एक भाग है। विवाह वास्तव में समाज को गठित करने वाली सबसे छोटी इकाई का आधार है। प्रत्येक व्यक्ति में अपोज़िट सेक्स के विरुद्ध विशेष आकर्षण पाया जाता है। यह आकर्षण ईश्वरीय देन है और इसकी पूर्ति विवाह के माध्यम से होती है। जानकारों का कहना है कि विवाह की आयु हो जाने के बाद इस ओर से निश्चेतता उचित नहीं है बल्कि यह प्राकृतिक नियमों के विपरीत है। लंबे समय तक विवाह की अनदेखी करने से व्यक्तिगत और सामाजिक स्तरों पर समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।


विवाह का मुख्य उद्देश्य एक स्वस्थ्य समाज का गठन करना है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कहना है कि ईश्वर के निकट विवाह से अच्छा कोई अन्य कार्य नहीं है। इसी प्रकार उनका एक अन्य कथन यह है कि जो भी मेरी परंपरा का अनुसरण करना चाहता है उसे विवाह करना चाहिए क्योंकि यह मेरी परंपरा है।


विवाह एसा विषय है जिसे न केवल धार्मिक दृष्टि से मान्यता प्राप्त है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों में इसे प्राकृतिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। मानवाधिकारों के घोषणापत्र के 16वें अनुच्छेद में कहा गया है कि बालिग़ पुरुषों और महिलाओं को जाति, राष्ट्रीयता या धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर एक-दूसरे से विवाह करने का अधिकार है। इस प्रकार वे परिवार का गठन कर सकते हैं।


दूसरे शब्दों में विवाह, महिला और पुरुष के बीच साथ रहने का एक समझौता है और यह समझौता, शारीरिक संबन्धों से बहुत आगे की बात है। विवाह करके महिला और पुरुष, बहुत से व्यक्तिगत और सामाजिक अधिकारों से लाभान्वित होते हैं।


पवित्र क़ुरआन के अनुसार विवाह के लाभों में से एक प्रमुख लाभ मानसिक शांति है। इस बारे में पवित्र क़ुरआन के सूरए रूम की आयत संख्या 21 में कहा गया हैः और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही जाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए ताकि तुम उसके पास से शान्ति प्राप्त करो और उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दया पैदा की। और निश्चय ही इसमें बहुत-सी निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो सोच-विचार करते है।


मनुष्य की आंतरिक आवश्कयताएं विभिन्न प्रकार की हैं। इन आवश्कताओं की पूर्ति न होना या उनकी अनुचित ढंग से पूर्ति के नकारात्मक प्रभाव सामने आते हैं। यह बातें मनुष्य के व्यक्तित्व को क्षतिग्रस्त करती हैं। मनुष्य की आंतरिक इच्छाओं में उसकी एक सशक्त इच्छा, उसकी यौन इच्छा है जिसकी पूर्ति विवाह के माध्यम से होती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि नैतिक ढंग से यौन इच्छा की पूर्ति का सर्वोत्तम मार्ग विवाह ही है। इस्लामी शिक्षाओं में यह भी कहा गया है कि विवाह, न केवल यौन इच्छा की पूर्ति करता है बल्कि विवाह से आजीविका में भी वृद्धि होती है।


विवाह का एक अन्य लाभ मानव जाति की रक्षा है। संतान के पैदा होने से जहां पति-पत्नी में परिपूर्णता आती है वहीं पर यह मानव पीढ़ी के आगे बढ़ने का कारण है।


बढ़े बूढ़ों का कहना है कि विवाह यदि धार्मिक और बौद्धिक मानदंडों के आधार पर किया जाए तो यह संतान के उचित प्रशिक्षण और समाज के सही संचालन का कारण बनता है। इस बारे में शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी कहते हैं कि इस्लाम में विवाह को उपासना की दृष्टि से देखा गया है। वे कहते हैं कि विवाह का महत्वूपर्ण आयाम, व्यक्तिगत सोच से निकाल कर सामूहिक सोच में प्रविष्ट करना है। विवाह से पहले तक लोग केवल अपने ही बारे में सोचते हैं और उनके अंदर व्यक्तिगत सोच ही पाई जाती है। अबतक वह मनुष्य, जो केवल व्यक्तिगत रूप से अपने बारे में सोचता था, विवाह के बाद वह इस सोच से बाहर आ जाता है। घर में संतान के आगमन से यह सोच बिल्कुल समाप्त हो जाती है। अब मैं के स्थान पर हम का प्रयोग होने लगता है। विवाह के बाद महिला और पुरुष में एक प्रकार की परिपक्वता आ जाती है। यह परिपक्वता किसी पाठशाला, स्कूल या विश्वविद्यालय से नहीं मिल सकती।


किसी समाज के निर्माण में परिवार की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवारों की स्थिति जितनी अच्छी होगी उसी अनुपात में समाज विकसित होता है। बड़े खेद की बात है कि वर्तमान समय में पश्चिमी समाजों ने धार्मिक मूल्यों से दूरी बनाकर परिवारों को नैतिक संकट में डाल दिया है।


हालिया वर्षों में पश्चिमी समाजों में विवाह की आयु में तेज़ी से वृद्धि हुई है।  इसी वजह से पश्चिमी समाजों में नैतिकता का पतन बहुत तेज़ी से हो रहा है। पश्चिमी युवाओं में विवाह के प्रति झुकाव कम हुआ है और वे विवाह जैसी ज़िम्मेदारी से वे बचते हैं। इसके परिणाम स्वरूप पश्चिमी समाजों में बहुत तेज़ी से नैतिक पतन हो रहा है। पश्चिम में पारिवारिक संबन्ध विच्छेद हो रहे हैं। अमरीका के एक समाजशास्त्री एंड्रो चर्लिन अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि पश्चिमी समाजों में हालिया वर्षों के दौरान विवाह के प्रति झुकाव कम होता जा रहा है। पश्चिमी युवा विवाह करने में रुचि नहीं रखते। वहां विवाह के स्थान पर समलैंगिक्ता का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।


पश्चिम में तलाक़ और परिवारों के विघटन के कारण बच्चों को बहुत क्षति हो रही है। अमरीकी समाजशास्त्री एंड्रो चर्लिन कहते हैं कि बच्चों को निगलने के लिए यौन क्रांति आरंभ हो चुकी है। वे कहते हैं कि अमरीकी समाज में गर्भपात, तलाक़ में वृद्धि, बच्चों की जन्मदर में कमी, एक अभिभावक वाले परिवारों की संख्या में बढ़ोत्तरी, युवाओं में आत्महत्या की ओर झुकाव, मादक पदार्थों का प्रयोग, बच्चों और महिलाओं के साथ दुरव्यवहार, स्वतंत्र ढंग से यौन सबन्धों की स्थापना तथा इसी प्रकार की अन्य बुराइयों के कारण यह समाज विघटन की ओर बढ़ता जा रहा है।


पश्चिमी समाजों में तलाक़ की संख्या में वृद्धि के कारण एक अभिभावक वाले परिवारों की संख्या बढ़ रही है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि संयुक्त राज्य अमरीका में लगभग 50 प्रतिशत विवाह, तलाक़ पर समाप्त होते हैं। योरोपीय देशों में भी स्थिति कुछ एसी या इससे भी बदतर है। जानकार सूत्रों का कहना है कि योरोप में वर्ष 2010 में होने वाले 22 लाख विवाहों में दस लाख विवाहों का अंजाम तलाक़ के रूप में सामने आया। इसी प्रकार एक अभिभावक वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। ब्रिटेन में प्रत्येक 5 बच्चों में से एक बच्चा, अपनी माता या पिता में से किसी एक के साथ जीवन व्यतीत करता है। अमरीका में लगभग 15 मिलयन बच्चे बिना बाप की छत्रछाया में बड़े हो रहे हैं जबकि 5 मिलयन बच्चे बिना मां के जीवन व्यतीत कर रहे हैं।


योरोप में पिछले दो दशकों के दौरान बिना विवाह के पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। यह कुरीति उन समाजों में प्रचलित परंपरा में परिवर्तन की सूचक है। अमरीका में वर्ष 2006 से 2010 तक 42 प्रतिशत बच्चे अविवाहित माता-पिता से जन्मे हैं। यह कुरीति इतनी तेज़ी से बढ़ रही है कि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अमरीका में वर्ष 2016 तक आधे बच्चे अविवाहित माता-पिता से पैदा होंगे।


इस्लाम की दृष्टि में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। इस्लाम ने विवाह के माध्यम से न केवल उसकी यौन इच्छा जैसी आंतरिक इच्छा की वैध ढंग से पूर्ति की है बल्कि इससे उसने नई, सुदृढ़ एवं सभ्य पीढ़ी के निर्माण का भी मार्ग प्रशस्त किया है।