अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

दुआ कैसे की जाए

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दुआ एक ऐसी चीज़ है जिससे इस दुनिया का कोई भी इन्सान इन्कार नहीं कर सकता है और हर इन्सान अपने जीवन में किसी न किसी चीज़ के लिये दुआ करते हुए दिखाई देता है।

 


मासूमीन की सीरत और दुआ के दुनियावी और परलोकी लाभों को अगर देखा जाए तो दुआ का महत्व चमकते हुअ सूर्य की भाति रौशन हो जाता है।

 


स्वंय ख़ुदा ने भी अपने बंदो को संबोधित करते हुए कहा है कि तुम लोग मुझसे दुआ मांगों में तुम्हारी दुआ को स्वीकार करने वाला हूँ

 


  اُدْعُوْنِیْ اَسْتَجِبْ لَکُمْ

 


मुझसे दुआ करों मैं तुम्हारी दुआ को स्वीकार करने वाला हूँ

 


दूसरे स्थान पर इर्शाद होता है

 

قُلْ ادْ عُوْا اَﷲ

 


हे मेरे रसूल मेरे बंदों से कहो कि मुझसे दुआ मांगे।

 


इसके अतिरिक्त भी बहुत सी आयतें हैं जिन में दुआ का आदेश दिया गया है लेकिन हम उनको यहां पर बयान नहीं करेंगे।

 


क़ुरआन के अतिरिक्त अगर हम अहलेबैत के कथनों में देखें तब भी हमको दुआ का बहुत अधिक महत्व दिखाई देगा।

 


जैसे कि एक हदीस में आया है कि दुआ मोमिन का हथियार है।

 


या एक हदीस में रसूले इस्लाम का कथन हैः जब पापी बंदा ज़माने का परेशान क़ुबूलियत की आशा के साथ अल्लाह की बारगाह में दुआ के लिए हाथ उठाता है तो अल्लाह उसकी तरफ़ देखता भी नही है, बंदा दोबारा दुआ करता है, अल्लाह फिर उसकी तरफ़ से नज़रें फिरा लेता है, बंदा फिर रोते और गिड़गिड़ाते हुए दुआ करता है तो अल्लाह उसकी सुनता है और अपने फ़रिश्तों से कहता है कि मेरे फ़रिश्तों मुझे अपने इस बंदे से लज्जा आती है कि इसका मेरे अतिरिक्त कोई और नहीं है, इसकी दुआ को मैंने स्वीकार किया और इसकी आशा को पूरा किया और रोने से मुझे लज्जा आती है।

 


तो दुआ का बहुत महत्व है और क़ुरआन के अतिरिक्त रिवायतों और हदीसों में भी इसकी तरफ़ बहुत अधिक ध्यान दिलाया गया है यहां पर हमने केवल एक हदीस को बयान किया है लेकिन अगर हदीस की किताबों में देखा जाए तो अनगिनत रिवायतें मिल जाएंगी।

 


अगर हम अपने मासूमीन की तरफ़ निगाह दौड़ाएं तो हमको एक इमाम ऐसा दिखाई देता है जिसको अगर दुआओं का ख़ुदा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा जिसको आज सारी दुनिया दुआओं का इमाम समझती है यानी इमाम ज़ैनुलआबेदीन (अ) जिनकी सहीफ़ए सज्जादिया दुआओं का एक ऐसा संग्रह है जिसके मुक़ाबले में कोई दूसरी पुस्तक नहीं आ सकती है।

 


और अगर दुआओं की प्रसिद्ध किताब मफ़ातीहुल जनान को देखें तो उसमें मुनाजाते ख़मसता अशर वह दुआएं हैं जिनमें इमाम सज्जाद (अ) ने ख़ुदा की श्रेष्ठता और बंदे को उससे दुआ करने का सलीक़ा बताया है।

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