अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

जिन चीज़ो के लिए वुज़ू करना ज़रूरी है।

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छः चीज़ों के लिए वुज़ू करना वाजिब है।


1. नमाज़े मय्यित के अलावा हर वाजिब नमाज़ के लिए। मुस्तहब नमाज़ों में वुज़ू उनके सही होने की शर्त है।


2. उस सजदे और तशाहुद के लिए जिसे इंसान भूल गया हो और उसको अदा करने व नमाज़ के बीच उसका वुज़ू बातिल हो गया हो। लेकिन सजद-ए- सहव के लिए वुज़ू करना वाजिब नही है।


3. ख़ान-ए-काबा के वाजिब तवाफ़ के लिए जो कि हज व उमरह का जुज़ है।


4. वुज़ू करने की मन्नत मानी हो, या अहद किया हो या क़सम खाई हो।


5. क़ुरआने करीम को बोसा देने के लिए।


6. अगर कुरआन नजिस हो गया हो तो उसको पाक करने या उसे किसी निजासत से निकालने के लिए, जबकि इन कामों के लिए इंसान मजबूर हो कि अपना हाथ या बदन का कोई दूसरा हिस्सा कुरआने करीम के अलफ़ाज़ को लगाये। लेकिन अगर देखे कि क़ुरआन को पाक करने या निजासत से निकालने के लिए अगर वुज़ू करेगा तो इस में लगने वाले वक़्त की वजह से इस दौरान कुरआन की बेहुरमती होती रहेगी तो इंसान को चाहिए कि वुज़ू किये बिना ही फ़ौरन कुरआन को निजासत से बाहर निकाले और अगर नजिस हो गया है तो उसे पाक करे।


जो इंसान वुज़ू से न हो उसके लिए क़ुरआने करीम के अलफ़ाज़ को छूना हराम है। लेकिन अगर कुरआने करीम का किसी दूसरी ज़बान में तर्जमा हुआ हो तो उस तर्जमें को छूने में कोई हरज नही है।

 बच्चे और पागल को क़ुरआने करीम को छूने से रोकना करना वाजिब नही है। लेकिन अगर उनका कुरआन को छूना उसकी बे हुरमती व तौहीन का सबब हो तो उन्हें रोकना ज़रूरी है।

 वुज़ू के बग़ैर अल्लाह के नामों और उसकी उन सिफ़तों को छूना हराम है जो सिर्फ़ उसकी ज़ात से मख़सूस हैं चाहे वह किसी भी ज़बान में लिखी हों। और एहतियाते वाजिब यह है कि इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम (स.), आइम्मा-ए- मासूमीन अलैहिमु अस्सलाम व हज़रत ज़हरा सलामु अल्लाहि अलैहा के नामों को भी बग़ैर वुज़ू के न छुवे।

अगर कोई इंसान नमाज़ के वक़्त से पहले बा तहारत रहने के इरादे से वुज़ू या ग़ुस्ल करे तो सही है और नमाज़ के वक़्त भी नमाज़ अगर नमाज़ के लिए तैयार होने की नियत से वुज़ू करे तो कोई हरज नही है।

 अगर किसी इंसान को यक़ीन हो कि नमाज़ का वक़्त हो चुका है और वह वाजिब की नियत से वुज़ू करे और बाद में पता चले कि अभी नमाज़ का वक़्त नही हुआ था तो उसका वुज़ू सही है।

नमाज़े मय्यित के लिए ,कब्रिस्तान जाने के लिए, मस्जिद में दाखिल होने के लिए, आइम्मा-ए- मासूमीन के हरम में जाने के लिए, कुरआने करीम को साथ रखने के लिए, कुरआन को पढ़ने के लिए, कुरआन को लिखने व उसके हाशिये को छूने के लिए और सोने से पहले वुज़ू करना मुस्तहब है। और अगर कोई इंसान वुज़ू से हो तब भी हर नमाज़ के लिए दोबारा वुज़ू करना मुस्तहब है। अगर इंसान ऊपर बयान किये गये कामों में से किसी एक के लिए भी वुज़ू करे तो फिर वह उसी वुज़ू से वह तमाम काम कर सकता है जिनके लिए वुज़ू करना ज़रूरी है। मसलन उस वुज़ू के साथ नमाज़ पढ़ सकता है।

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