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ग़ुस्ल के अहकाम

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378  चाहे ग़ुस्ल तरतीबी हो या इरतेमासी, ग़ुस्ल से पहले पूरे बदन का पाक होना ज़रूरी नही है। बल्कि अगर पानी में डुबकी लगाने या ग़ुस्ल के इरादे से बदन पर पानी डालने से बदन पाक हो जाये तो ग़ुस्ल सही है।


379  अगर कोई इंसान अपने वीर्य को हराम प्रकार से निकाले के बाद गर्म पानी से ग़ुस्ल करे और उसे पसीना आ जाये तो उसका ग़ुस्ल सही है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि वह ठंडे पानी से ग़ुस्ल करे।  


380  ग़ुस्ल में अगर जिस्म का बाल बराबर हिस्सा भी बग़ैर धुला रह जाये तो ग़ुस्ल बातिल है। लेकिन कान, व नाक के अन्दुरूनी हिस्सों का धोना ज़रूरी नही है। इसी तरह बदन के अन्य वह हिस्से जो अन्दुरूनी समझे जाते हैं उनका धोना बी ज़रूरी नही है।


381  अगर किसी इंसान को यह शक हो कि बदन का यह हिस्सा बाहरी होता है या अन्दुरूनी, तो ज़रूरी है कि वह उसे धोये।


382   अगर, कान में बाली पहन ने वाला सुराख़ या इसी जैसा कोई और सुराख इतना खुला हुआ हो कि उसे बदन का ज़ाहिरी हिस्सा समझा जाता हो तो उसे धोना ज़रूरी है, लेकिन अगर बाहरी हिस्सा न समझा जाता हो तो उसे धोना ज़रूरी नही है।


383  अगर इंसान के बदन पर कोई ऐसी चीज़ लगी हो जो बदन तक पानी पहुँचने में रुकावट हो, तो ग़ुस्ल से पहले साफ़ कर देना चाहिए। लेकिन अगर उसके साफ़ होने का यक़ीन किये बग़ैर ग़ुस्ल कर ले , तो ग़ुस्ल बातिल है।


384  अगर ग़ुस्ल करते वक़्त इंसान को शक हो कि बदन पर कोई ऐसी चीज़ तो मौजूद नही है जो बदन तक पानी के पहुँचने में रुकावट हो, तो उसे चाहिए कि पहले इस शक को दूर करे और जब मुतमइन हो जाये कि ऐसी कोई चीज़ नही है तो ग़ुस्ल करे।


385  ग़ुस्ल में बदन के उन छोटे छोटे बालों का धोना ज़रूरी है जो बदन का जुज़ माने जाते हैं, मगर लम्बे बालों का धोना वाजिब नही है, बल्कि अगर इनके धोये बिना बदन की खाल तक पानी पहुँच जाये तो ग़ुस्ल सही है। लेकिन अगर इनको धोये बिना पानी बदन की खाल तक न पहुँचता हो तो इनका धोना भी ज़रूरी है।


386  वह तमाम शर्तें जो वुज़ू के सही होने के लिए ज़रूरी हैं, जैसे पानी का पाक होना, ग़स्बी न होना आदि , वह तमाम शर्तें ग़ुस्ल के सही होने के लिए भी ज़रूरी है। लेकिन ग़ुस्ल में यह ज़रूरी नही है कि बदन को ऊपर से नीचे की तरफ़ धोया जाये। दूसरे यह कि ग़ुस्ले तरतीबी में ज़रूरी नही है कि सरव गर्दन धोने के फ़ौरन बाद बदन को भी धोये,बल्कि अगर सर व गर्दन धोने के बाद कुछ देर रुक जाये और बाद में बाक़ी बदन के धोये तो कोई हरज नही है। यह भी ज़रूरी नही है कि सर व गर्दन और तमाम बदन को एक साथ धोये। मसलन अगर अगर एक इंसान सर धोने के बाद रुक जाये और कुछ देर गुज़रने के बाद गर्दन धोये तो यह जायज़ है।लेकिन जो इंसान पेशाब या पख़ाने को न रोक सकता हो अगर उसको इतनी देर के लिए पेशाब या पख़ाना न आता हो जितनी देर में वह वुज़ू कर के नमाज़ पढ सके, तो उसके लिए ज़रूरी है कि फ़ासले किये बिना गुस्ल करे और नमाज़ पढ़े।


387  अगर कोई इंसान यह इरादा करे कि हमाम वाले के पैसे उधार करेगा, और वह हमाम वाले से यह पूछे बग़ैर कि वह उधार पर राज़ी है या नही ग़ुस्ल कर ले, तो अगर वह बाद में हमाम वाले को राज़ी कर ले तब भी उसका ग़ुस्ल बातिल है।


388   अगर हमाम का मालिक उधार ग़ुस्ल कराने पर राज़ी हो, लेकिन ग़ुस्ल करने वाले उसके पैसे न देने या हराम माल से देने का इरादा रखता हो तो इसका ग़ुस्ल बातिल है।


389  अगर कोई इंसान हमाम वाले को ऐसी रक़म से पैसा दे जिसका ख़ुमुस न निकला हो, तो वह एक हराम काम का तो मुरतकिब होगा लेकिन उसका ग़ुस्ल सही है। और ख़ुमुस के हक़दारों को खुमुस देना उसके ज़िम्मे रहेगा।     


390  अगर कोई इंसान हमाम के हौज़ के पानी से पखाने की तहारत करे और ग़ुस्ल करने से पहले शक करे कि  चूँकि उसने हमाम के हौज़ के पानी से तहारत की है लिहाज़ हमाम वाला उसके ग़ुस्ल करने पर राज़ी है या नही, तो अगर वह ग़ुस्ल से पहले हमाम वाले को राज़ी कर ले तो उसका ग़ुस्ल सही है,वरना बातिल है।


391  अगर कोई इंसान शक करे कि उसने ग़ुस्ल किया है या नही तो उसके लिए ज़रूरी है कि ग़ुस्ल करे, लेकिन अगर ग़ुस्ल करने के बाद शक करे कि उसने ग़ुस्ल सही किया है या नही तो दोबारा ग़ुस्ल करना सही नही है।


392  अगर ग़ुस्ल करते वक़्त कोई हदसे असग़र सर ज़द हो जाये मसलन वह पेशाब कर दे या उसकी रीह ख़ारिज हो जाये तो, नये सिरे से ग़ुस्ल करना ज़रूरी नही है, बल्कि वह अपने ग़ुस्ल के पूरा करे और एहतियाते लाज़िम की बिना पर वुज़ू भी करे। लेकिन अगर वह ग़ुस्ले तरतीबी से ग़ुस्ले इरतेमासी की तरफ़ या ग़ुस्ले इरतेमासी से तरतीबी की तरफ़ या इरतेमासी दफ़ई की तरफ़ पलट जाये तो वुज़ू करना ज़रूरी नही है।


393  अगर वक़्त कम होने की वजह से किसी की ज़िम्मेदारी तयम्मुम करना हो, लेकिन वह इस ख़्याल से कि अभी उसके पास ग़ुस्ल व नमाज़ का वक़्त बाक़ी है, ग़ुस्ल करे, तो अगर उसने ग़ुस्ल क़ुरबत की नियत से  किया है तो उसका ग़ुस्ल सही है चाहे उसने नमाज़ पढ़ने के लिए ही ग़ुस्ल क्योँ न किया हो।


394  जिस इंसान का वीर्य निकला हो, अगर वह शक करे कि वीर्य निकलने के बाद उसने ग़ुस्ल किया है या नही तो जो नमाज़े वह पढ़ चुका है वह सही हैं, लेकिन बाद की नमाज़ों के लिए ग़ुस्ल करना ज़रूरी है। और अगर नमाज़ के बाद उससे कोई हदसे असग़र सादिर हुआ हो (अर्थात पेशाब, पख़ाना या रीह का निकलना) तो ज़रूरी है कि वुज़ू भी करे। और अगर वक़्त बाक़ी हो तो एहतियाते लाज़िम यह है कि इस हालत में पढ़ी हुई नमाज़ों को दोबारा पढ़े।


395  जिस इंसान पर कई ग़ुस्ल वाजिब हो, वह उन सब की नियत कर के एक ग़ुस्ल कर सकता है। और ज़ाहिर यह है कि अगर उन में से किसी एक मख़सूस ग़ुस्ल की नियत करे, तो वह बाक़ी ग़ुस्लों के लिए भी काफ़ी है।


396  अगर बदन के किसी हिस्से पर क़ुरआने करीम की कोई आयत  या अल्लाह का नाम लिख़ा हो, तो उसे चाहिए कि वुज़ू या ग़ुस्ले तरतीबी करते वक़्त अपने बदन पर पानी इस तरह पहुँचाये कि उसका हाथ इन अलफ़ाज़ों को न लगे।


397  जिस इंसान ने ग़ुस्ले जनाबत किया हो उसके लिए ज़रूरी नही है कि नमाज़ के लिए वुज़ू करे। बल्कि ग़ुस्ले इस्तेहाज़ा मुतवस्सेता के अलावा अन्य वाजिब ग़ुस्लों और मुस्तहब ग़ुस्लों के बाद जिनका बयान मसला न. 651 में आयेगा, नमाज़ वुज़ू केन बग़ैर पढ़ सकता है, लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि इन ग़ुस्लों के बाद नमाज़ के लिए वुज़ू करे।

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