कुरआन के चमत्कारी आयाम

यहां पर हम कु़रआन के कुछ चमत्कारी पहलुओं पर चर्चा करेगें


1.कुरआन में सरलता सुलभता

 

कुरआन मजीद की पहली विशेषता और चमत्कारी पहलु उस की सरलता व सुलभता है।अर्थात र्इश्वर ने विभिन्न विषयों के वर्णन के समय हर स्थान पर ऐसे शब्दों और अथोंका उच्चतम वाक्यो व बनावट के साथ प्रयोग किया है जो पूर्ण रूप से दृष्टिगत अर्थ को लोगो तक पहुँचाने में सक्षम हैं। इस प्रकार के शब्दों व वाक्य के ढाँचे का चयन केवल उसी के लिए संभव है जो सभी शब्दों व अथों का बिल्कुल सही रूप मे ज्ञान रखता हो तथा उसे अलग अलग शब्दों के मध्य पाए जानें वाले संबंधों तथा उन्हें एक साथ प्रयोग करने की दिशा में सामने आने वाली स्थिति व अर्थ का भलीभाँति और पूर्ण ज्ञान हो तथा ये भी मालूम हो की प्रयोग किए गये शब्द सर्वश्रेष्ठ और वाक्य की बनावट सर्वेत्तम हो और इस प्रकार का ज्ञान र्इश्वरीय संदेश के बिना किसी भी मनुष्य के लिए सम्भव नही है ।


     कुरआन मजीद का मनमोहक सुर सब के लिए और उस की विशेष शैली अरबी भाषा और अरबी साहित्य में रूचि रखने वाले जानकारों के लिए स्पष्ट है किन्तु कुरआन के चमत्कार होने को ठोस प्रमाणो के साथ समझना केवल उन्ही लोगो के लिए संभव है जिन्हें अरबी साहित्य में दक्षकता प्राप्त हो और वे अन्य रचनाओं से कुरआन की तुलना करने मे सक्षम हों और फिर अपने पुरे ज्ञान के साथ कुरआन की चुनौती को कसौटी पर रखें। और यह काम अरब के कवियों और साहित्य में ज्ञान रखने वाले बड़े बड़े बुध्दिजीवियों द्रवारा ही संभव था क्योंकि कुरआन के आने के समय अरबों के मध्य सब बड़ी व महत्वपूर्ण कला,साहित्य थी और इस्लाम के उदय के समय वह अपनी चरम सीमा पर पँहुच चुकी थी। उस काल में अरब सब से अच्छी कविताओं का चयन करते उन्हें सर्वोत्तम रचना के रूप सुरक्षित रखते थे।


  मुल रूप से र्इश्वर की कृपा व उस के ज्ञान के लिए यह आवश्यक था कि प्रत्येक पैगंम्बर का मोजिज़ा और चमत्कार उस काल मे प्रचलित कला के अनुसार हो ताकि उस मोजिज़े के चमत्कारी पहलू को अच्छी तरह समझा जा सके जैसा कि जब इमाम अली नकी अलैहिस्सलाम से इब्ने सिक्कीत ने पूछा कि हजरत मूसा का मोजज़ा सफेद हाथ और अजगर था और र्इसा का मोजिज़ा ,रोगियों को स्वस्था करना था पैगंम्बरे इस्लाम का मोजिज़ा कुरआन मजीद था तो उन्होने उत्तर दिया.... हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के काल मे जादू प्रचालित कला थी इस लिए र्इश्वर ने उन्हें वैसा ही चमत्कार दिया था ताकि मोजिज़े के काम करने में लोगों को अपनी अक्षमता का पता चल सके। इसी प्रकार हज़रत र्इसा अलैहिस्साम के काल में चिकित्सा का बहुत ज़ोर था इसी लिए र्इश्वर ने उन्हे असाध्य रोगों के निवारण का मोजिज़ा प्रदान किया था ताकि लोगों को उस के महत्व का भलीभाँति ज्ञान हो सके। किंतु पैगम्बरे इस्लाम के काल मे कविता व साहित्य को अत्याधिक महत्व प्राप्त था इस लिए र्इश्वर ने कुरआन को सर्वश्रेष्ठ शैली में पैगम्बरे को प्रदान किया ताकि लोगों को उन की श्रेष्ठता और चमत्कार का पता चल सके।


   उस काल के बड़े बड़े कवि और साहित्य का ज्ञान रखने वाले जैसे वलीद बिन मुगैरह मख़जूमी,अतबह बिन रबीह, तुफैल बिन अम्र आदि ने कुरआन मजीद के इस चमत्कारी आयाम की गवाही दी और उस की पुष्टि की है और लगभग सौ वषों बाद अबू इब्नेलअवजा,इब्ने मुकफ्फअ, अबू शाकिर दीसानी तथा अब्दुल मलिक बसरी जैसे लोगों ने कुरआन की चुनौती का उत्तर देने का निर्णय लिया और पूरे एक वर्ष तक अनथक प्रयास के बाद भी जब उन्हें विफलता का मुँह देखना पडा तो अन्तत. विवश होकर उन्हो ने अपनी अपनी अक्षमता को स्वीकार कर लिया मक्के में वह काबे के निकट बैठ कर अपनी एक वर्ष की मेहनत की समीक्षा कर रहे थे तो इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम ने उन के पास से गुज़रते हुए कुरआन की यह आयत पढीः

    हे पैगम्बर कह दो अगर मनुष्य और जिन्न एक साथ हो जाएं ताकि इस कुरआन की भॉति कुछ ले आएं तो वह उस के जैसा कुछ नही ला पाएगे भले ही वे एक दुसरे की सहायता ही क्यो न करें ।


2. पैगम्बर का पढा न होना भी कुरआन के र्इश्वरीय रचना होने का एक प्रमाण है

 

कुरआन मजीद ऐसी किताब हे जो अपने कम पृष्ठों के बावजूद विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत व सामाजिक जानकारियों व ज्ञान को अपने भीतर समेटे हुए है और उन सारे विषयों की समीक्षा के लिए वीभिन्न क्षैत्रों में दक्ष समझे जाने वाले विशषज्ञों की आवश्यकता है जो वर्षो तक अध्ययन करके उस मे छिपे हुए रहस्य से पर्दा हटाएं हालॉकि कुरआन के रहस्यों  से पर्दा उठाना वास्तव में उन्हीं लोगो के बस की बात नही है जिन्हें र्इशवर ने विशेष ज्ञान प्रदान किया हैं।


   विभिन्न प्रकार की जानकारियों, उपदेशों, एतिहासिक घटनाओं और नियमों बल्कि एक शब्द में मनुष्य के  लिए आवश्यक सभी प्रकार के नियमो व बातों पर आधारित यह किताब अभूतपूर्ण रचना शैली रखती  है कुछ इस प्रकार से कि समाज है।


इस प्रकार की एक किताब में इतनी अधिक जानकारियो समेटना साधारण मनुष्य का काम नही हो सकता किंतु जो विषय अधिक आश्चर्यजनक है वो यह है कि इस महान किताब से मनुष्य को जिस ने परिचित कराया है उस ने किसी पाठ शाला अथवा किसी व्यक्ति से शिक्षा प्राप्त नही कि थी और इस से भी अधिक विचित्र बात यह है कि उस महान व्यक्ति ने अपनी  पैगम्बरी घोषणा से पुर्व चालिस वर्षो तक कभी भी वैसी बात नही की थी जैसी कुरआन मे वर्णित है उन्होनें र्इश्वरीय संदेश के रूप में जो बातें लोगों तक पहुँचार्इ वह उन की अपनी शैली से पुर्ण रूप से भिन्न थी और कुरआन के बाद भी पैगम्बरे इस्लाम के कथनों और र्इश्वरीय संदेश के मध्य स्पष्ट अंतर को देखा जा सकता है।


      कुरआन मजीद ने भी इस ओर संकेत करते हुए कहा हैः और तुम उस से पुर्व कोर्इ किताब नही पढते थे और न ही उसे अपने दाहिने हाथ से लिखते थे अन्यथा शंका करने वाले लोग संदेह मे पड़ जाते ।
    इस प्रकार एक अन्य स्थान पर कुरआन मे आया हैः कह दो अगर र्इश्वर चाहता तो मैं उसे तुम्हारे लिए न पढता और तुम्हें उस के बारे मे न बताता मै ने इस से पुर्व वर्षो तुम्हारे साथ जीवन व्यतीत किया है तो क्या तुम लोग समझते नही।


3.समन्वय होना और विपरीत न  होना

 

  कुरआन मजीद,पैगम्बर इस्लाम की पैगम्बरी के 23 वर्षो के दौरान कि जो संकटमयी काल तथा विभिन्न प्रकार की घटनाओ से भरा हुआ था, र्इश्वर द्वारा भेजा गया किंतु इन 23 वर्षो के दोरान सामने आने वाली विभिन्न घटनाओं ने कुरआन मजीद की सुव्यवस्था पर कोर्इ प्रभाव नही डाला। पुरे कुरआन मे पाया जाने वाला विचित्र समन्वय भी उस का एक चमत्कारी आयाम है जैसा कि स्वंय कुरआन में इस ओर संकेत हुआ हैः
 

 क्या वे कुरआन पर ध्यान नही देते अगर वह र्इश्वर अलावा किसी और के पास से होता तो उन्हे उस में बहुत विरोधाभास दिखार्इ देते।


यहॉ पर इस ओर ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक मनुष्य कम से कम दो प्रकार के परिवर्तनों का शिकार होता है।


   प्रथम यह कि समय बीतने के साथ साथ उस ज्ञान व जानकारी में वृध्दि होती है जिस का सीधा प्रभाव उस की बातों और क्षमताओं पर पड़ता है और स्वाभविक रूप से बीस वर्ष के दौरान उस की बातो में अतंर को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।


  दूसरी बात यह कि जीवन में घटने वाली विभिन्न घटनाएं, मनुष्य के भीतर विभिन्न प्रकार की मानसिक दशाओं के जन्म लेने का कारण बनती हैं जैसे आशा,निराशा,उत्साह,दुख,प्रसन्नता आदि और स्वाभिक है कि इस प्रकार की दशाएं उस की विचार धाराओं और कथनों और चरित्र को भी प्रभावित करती हैं और स्वाभाविक रूप से इस प्रकार की भावनाएं जितनी तीव्र होंगी उतना ही उस की बातो मे अन्तर व विरोधाभास बढता जाएगा। वास्तव में बातों मे परिवर्तन,मानसिक दशाओं में परिवर्तन पर निर्भर होता है जो स्वंय ही प्राकृतिक व सामिजक परिस्थतियों के प्रभाव में होती हैं। अब अगर यह मान लिया जाए कि कुरआन मजीद एक मनुष्य के रूप में पैगम्बर इस्लाम सल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की अपनी रचना है तो फिर पैगम्बर इस्लाम के जीवन मे आने वाले बड़े बड़े परिर्वतन और वीभिन्न प्रकार की घटनाओ के दृष्टिगत कुरआन मे प्ररूप व अर्थ की दृष्टि से बहुत से विरोधाभास होने चाहिए थे किंतु आज तक कुरआन मे ऐसा कोर्इ विरोधाभास नज़र नही आया है।


तो इस प्रकार से हम इस परिणाम पर पहुचते है की क़ुरआन के विषय मे पाया जाने वाला समंवय और विरोधाभास का न होना उसकी सुंदर शैली व साहित्य से अलावा चमत्कार का एक अन्य पहलु है जो इस बात को प्रमाणित करता है कि यह किताब स्थार्इ व अनन्त ज्ञान स्त्रोत अर्थात र्इश्वर द्वारा भेजी गयी है जो पूरी सृष्टि का स्वामी है और बदलते युगों व परिस्थतियों का उस पर कोर्इ प्रभाव नही पडता।