सही सोंच और क़लम

ईश्वर ने मनुष्य की प्रकृति में बहुत सी ऐसी विशेषतायें और गुण रखे हैं जिनहें उभार कर सामने लाना परिवार और समाज का दायित्व होता है। और यह गुण जब सामने आ जाते हैं तो कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति का उसके परिवार ने बड़ा अच्छा प्रशिक्षण किया है परन्तु यदि सही वातावरण न मिले तो प्रकृति में ईश्वर द्वारा रखा गया गुणों का उपहार अवगुणों और बुराइयों का रूप धार लेता है।


जिस प्रकार एक मनुष्य की सकारात्मक बातें, विशेषतायें और गुण समाज को प्रभावित करते हैं और उसे दूसरों के लिये उदाहरण स्वरूप ब्यान किया जाता है ताकि दूसरों को उससे प्रेरणा मिले ठीक उसी प्रकार अवगुण और बुराइयां भी अपने सभी नकारात्मक आयामों के साथ दूसरो को प्रभावित करती हैं। यही कारण है कि सभी ईश्वरीय धर्मों में बुराई को बयान करने से रोका गया है। वह बुराई अपनी हो या दूसरों की।


अच्छाइयों की ही तरह बुराईयों और भ्रष्टाचार में भी यह विशेषता होती है कि वह लोगों को बहुत तेज़ी से प्रभावित करते हैं और यदि इन बुराइयों को गर्व के साथ या फिर बिल्कुल प्राकृतिक बात का रूप देकर लोगों के सामने रखा जाये तो स्थिति और भी ख़तरनाक हो जाती है तथा भ्रष्टाचारी को और अधिक दुस्साहस मिल जाता है। पिछले वर्ष की बात है कि भारत में बहुत अधिक सुने जाने वाले एक विदेशी रेडियो की हिन्दी और उर्दू वेब साइट्स पर समलैंगिकता पर एक लेख लिखा गया और उसके बाद उसके संबन्ध में बहुत से ऐसे कमेंट्स आये कि जिनमें समलैंगिकता जैसे अभद्र और मानव जाति के लिये हानिकारक कृत्य को बहुत ही अच्छा बनाकर प्रस्तुत किया गया था।


स्पष्ट सी बात है कि हर समझदार पढ़ने वाले ने इसे पूर्वी समाजों के लिये एक षड्यंत्र ही माना क्योंकि यह हमारी युवा पीढ़ी ही नहीं बल्कि परिवारों को तबाह करने के लिये बड़ा प्रभावी हथकंडा था। इसी प्रकार अभी हाल ही में एक हिन्दी समाचार पत्र की वेब साइट पर एक शादी शुदा व्यक्ति ने एक समस्या के रूप में एक पत्र लिखा था कि उसे एक विधवा से प्रेम हो गया है और उसके साथ उसके...........संबन्ध भी है और उस विधवा के कुछ दूसरों के साथ भी ऐसे ही सबन्ध हैं।इस प्रकार की बातें लिखकर सबसे पहले यह कि समाज को निर्लज्ज बनाने का प्रयास किया जा रहा है और पति पत्नी के बीच जो अविश्वास पश्चिमी देशों में परिवारों के टूटने और बिखरने का कारण बना है उसे अपने गौरवपूर्ण और पवित्र पारम्परिक परिवारों में फैलाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त ऐसी महिलाओं के लिये ख़तरा उत्पन्न किया जा रहा है जो पति की मृत्यु के कारण या अविवाहित रह जाने के कारण अकेली रहती हैं और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहती हैं। इस प्रकार के पत्र या लेख लिखने वालों से यह पूछा जाये कि उनकी इस समस्या का समाधान दूसरे लोग कैसे कर सकते हैं तो उनके पास इसका कोई उत्तर नहीं होगा या फिर यह कहा जाये कि समाज में विधवा-विवाह के प्रचलन के लिये प्रयास करो और यह काम अपने आप से ही आरम्भ करो तो भी वे तय्यार नहीं होंगे। तो इस प्रकार परिणाम यह निकलता है कि इस प्रकार के लोगों का काम बेशर्मी फैलाना और बुरे को अच्छा बना कर प्रस्तुत करना है और बस !! वरना समाज से सहानुभूति रखने वाले लोग अपनी और दूसरों की बुराईयों को छिपाते हैं। और उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं ताकि वह फैलने न पाये। संक्रामक रोग से पीड़ित लोगों की तरह संक्रामक कलम भी समाज से दूर रहे तो इसी में भलाई है