सलमाने फारसी

 एक दिन सलमान के दोस्त नें उनसे कहा, तुम्हे पता है कि एक आदमी मदीने आया है और सोच रहा है कि वह अल्लाह का भेजा हुआ है। सलमान नें कहा, तुम मेरे वापस आने तक यहीं रहना, और मदीने चले गए। उन्हें क्या पता कि क़िस्मत उन्हें कहां पहुँचाएगी।


रसूलुल्लाह स.अ. के सहाबी हज़रत सलमाने फ़ारसी नें 8 सफ़र 25 हिजरी को इस दुनिया से कूच कर गए। आपको पैग़म्बरे अकरम स. नें अपने अहलेबैत में से कहा और फ़रमाया, सलमानो मिन्ना अहलल बैत। जी हाँ हुज़ूर स. के दुनिया से जाने के बाद सलमाने मोहम्मदी उन कुछ लोगों में से थे जो हक़ और सत्य के रास्ते से नहीं फिरे और हज़रत अली अ. को अपना इमाम और ख़लीफ़ा माना। उमर बिन ख़त्ताब की ख़िलाफ़त के ज़माने में आपको मदाएन का गवर्नर बनाया गया। आपनें सरकारी ख़ज़ाने (बैतुलमाल) से कभी अपने लिये कुछ नहीं लिया, जो वेतन मिलता उसे सदक़ा (दान) दे देते और ज़िन्दगी गुज़ारने के लिये बोरियां बुनते थे।


जनाबे सलमान फ़ारसी का मज़ार


मौला अली अ. के इस सच्चे शिया मदाएन में दुनिया से कूच कर गए और वहीं दफ़्न किये गए।


सलमाने फ़ारसी की रोचक कहानी


आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी सूरए बक़रा की आयत न. 62 की तफ़सीर बयान करते हुए सलमाने फ़ारसी के हक़ और सत्य तलाश करने की कहानी कुछ यूँ सुनाते हैं:


सलमान जुंदीशापूर के रहने वाले थे। आपके पिता ज़रतुश्त थे, वहाँ के राजा के लड़के से आपकी बहुत पक्की दोस्ती थी। एक दिन दोनों शिकार के लिये जंगल गए। वहाँ अचानक उनकी नज़र एक राहिब (संसार-त्यागी) पर पड़ी जो कोई किताब पढ़ रहा था। इन लोगों नें उससे उसकी किताब के बारे में कुछ सवाल पूछे तो उसनें जवाब दिया,यह किताब ख़ुदा की तरफ़ से नाज़िल हुई है जिसमें अल्लाह के आज्ञापालन का हुक्म दिया गया और उसकी अवहेलना से रोका गया है। बलात्कार और लोगों का माल हड़पने से मना किया गया है। यह वही इन्जील है जिसे ईसा मसीह पर उतारा गया था।


राहिब की बातों से वह दोनों बहुत प्रभावित हुए और यह लोग कुछ और रिसर्च करने के बाद उनके दीन पर ईमान ले आए। राहिब नें उन्हें हुक्म दिया वह लोग वहाँ के लोगों की ज़िब्ह की हुई भेड़ों का गोश्त न खाएं,हराम है। सलमान और बादशाह का बेटा दोनों प्रतिदिन उससे कुछ न कुछ सीखते। कोई त्यौहार आया तो बादशाह ने शहर के ख़ास और जाने माने लोगों को दावत पर बुलाया औऱ अपने बेटे से कहा कि वह भी इसमें शिरकत करे पर वह न माना। जब बहुत ज़्यादा आग्रह किया गया तो उसनें कहा कि उन लोगों का खाना उस पर हराम है। पूछा गया, यह किसनें हुक्म दिया? तो उसनें राहिब का पता बता दिया।


बादशाह नें राहिब को दरबार में हाज़िर किया और उससे कहा, मौत की सज़ा हमारी नज़र में बहुत बड़ी और बुरी है इस लिये हम तुम्हे मारेंगे नहीं। तुम बस इस इलाक़े से निकल जाओ! यहाँ सलमान और उनका दोस्त उससे मिले और वादा किया कि वह लोग मूसल के आश्रम में उससे मुलाक़ात करेंगे।


जब राहिब वहाँ से निकल गया तो सलमान कुछ दिन तक अपने वफ़ादार दोस्त का इन्तेज़ार करते रहे कि दोनों साथ में राहिब से मिलने चलेंगे। सफ़र की तैयारी में लगे रहे और अनंततः ज़्यादा इन्तेज़ार न कर पाए और अकेले ही चल पड़े।


आश्रम में सलमान बहुत ज़्यादा इबादत करते थे। राहिब जोकि आश्रम का ज़िम्मेदार था सलमान को ज़्यादा इबादत करने से मना करता था कि कहीं बीमार न पड़ जाएं। सलमान नें पूछा, ज़्यादा इबादत करना अच्छा है या कम? राहिब ने कहा, ज़्यादा इबादत करने का सवाब बेशक ज़्यादा है।


कुछ समय बाद राहिब बैतुल मुक़द्दस जाने लगा तो सलमान को भी साथ ले गया। वहाँ उसनें उन्हें हुक्म दिया कि मस्जिद में ईसाई आलिमों के क्लास में जाएं और इल्म हासिल करें।


एक दिन राहिब नें देखा कि सलमान परेशान हैं। कारण पूछा तो कहने लगे, सारी ख़ूबियां हमसे पहले वाले लोगों को मिल गईं जिन्हें ख़ुदा के पैग़म्बरों के साथ रहना नसीब हुआ। राहिब नें बशारत दी कि इन्हीं दिनों अरब में एक पैग़म्बर ज़ाहिर होगा जो पहले के सारे पैग़म्बरों से बड़ा और श्रेष्ठ होगा। उसके बाद कहा, मैं बूढ़ा हो गया हूँ शायद उन्हें न देख पाऊँ लेकिन तुम जवान हो उम्मीद है कि तुम देख लोगे और उनसे मिल पाओगे। लेकिन यह भी याद रखो कि उस पैग़म्बर स. की कुछ निशानियां हैं


एक ख़ास निशानी उसके कंधे पर है, वह सदक़ा (दान) नहीं लेगा लेकिन उपहार (गिफ़्ट) क़ुबूल करेगा।


मूसल की ओर वापसी के सफ़र में उन्हें एक सख़्त परेशानी उठानी पड़ी और सलमान जंगल में राहिब से बिछड़ गए। बनी कल्ब क़बीले के दो अरब आए और सलमान को गिरफ़्तार कर लिया। इन लोगों नें उन्हें ऊँट पर बैठाया और मदीना लाकर जहीना क़बीले की एक औरत के हाथ बेच दिया।


सलमान और उस औरत का दूसरा ग़ुलाम बारी बारी दिन को उसके जानवर चराने ले जाते थे। इस बीच सलमान नें कुछ पैसे इकट्ठे कर लिये और आख़िरी नबीं की बेसत (अवतीर्ण) का इन्तेज़ार करने लगे। एक दिन जानवर चरा रहे थे कि उनका साथी आया और कहने लगा, तुम्हे पता है मदीने में एक आदमी आया है जो ख़ुद को पैग़म्बर और ख़ुदा का भेजा हुआ बताता है।


सलमान नें पैग़म्बरे इस्लाम स. के तीन इम्तेहान लिये आपने अपने साथी से कहा, तुम मेरे वापस आने तक यहीं रहना। शहर में दाख़िल हुए, पैग़म्बरे इस्लाम स. के पास जा पहुँचे और आपके चारो ओर चक्कर लगाने लगे। इन्तेज़ार था कि आपके कंधे से कुर्ता हटे और वह मख़सूस निशानी देख लें।


हुज़ूर स. समझ गए कि वह क्या चाहते हैं। आपने लेबास हटाया तो उन्होंनें कंधे पर वह मख़सूस निशानी यानी पहली निशानी देख ली। उसके बाद बाज़ार गए और उसके बाद भेड़ और कुछ रोटियां ख़रीद लाए और फिर यह चीज़ें हुज़ूर स. की सेवा में भेट कर दीं। आपने पूछा, यह क्या है? तो उन्होंने जवाब दिया कि सदक़ा है। आपनें फ़रमाया, मुझे इनकी ज़रूरत नहीं है, ग़रीब मुसलमानों को दे दो इस्तेमाल कर लें। सलमान दोबारा बाज़ार गए और कुछ गोश्त और रोटियां ले आए। आपने पूछा यह क्या है? जवाब दिया,गिफ्ट है। आपनें फ़रमाया, बैठ जाओ। उसके बाद हुज़ूर स. और वहाँ मौजूद सभी लोगों नें गोश्त और रोटियां खाईं। अब सलमान के लिये बात साफ़ हो गई इस लिये कि उन्होंनें तीनों निशानियाँ देख ली थीं।


फिर सलमान नें मूसल के अपने दोस्तों, साथियों और राहिबों का ज़िक्र किया, उनके नमाज़, रोज़े, पैग़म्बर पर ईमान औऱ आपकी बेसत के इन्तेज़ार की बात बताई तो वहाँ मौजूद लोगों में से किसी नें कहा, वह लोग जहन्नमीं हैं। यह बात सलमान को बुरी लगी इसलिये कि उन्हें यक़ीन था कि अगर वह आज होते तो हुज़ूर स. पर ईमान लाते और आपका आज्ञापालन करते।


यहीं पर यह आयत नाज़िल हुई:


«إِنَّ الَّذِینَ آمَنُوا وَ الَّذِینَ هادُوا وَ النَّصارى‏ وَ الصَّابِئِینَ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَ الْیَوْمِ الْآخِرِ وَ عَمِلَ صالِحاً فَلَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ وَ لا خَوْفٌ عَلَیْهِمْ وَ لا هُمْ یَحْزَنُون‏»


इस आयत में ऐलान किया गया कि जो लोग किसी सच्चे दीन पर सही मानों में ईमान रखते रहे हैं और उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम स. का ज़माना नहीं मिल सका तो उन्हें भी मोमिनों ही जैसा सवाब और बदला मिलेगा।