अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

पड़ोसियों का महत्व और अधिकार

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हालिया कुछ दशकों में नगरों की बढ़ती हुई जनसंख्या और आधुनिक प्रगतियों ने लोगों के जीवन के रंगरूप और उसके मूल ढांचे में भारी परिवर्तन कर दिया है। गांवों से नगरों की ओर लोगों का तेज़ी से बढ़ते पलायन के कारण मनुष्य का जीवन एक छोटे से घर और अपार्टमेंट में सिमट कर रह गया। यद्यपि घरों और अपार्टमेंट की चार दीवारी लोगों को एक दूसरे से अलग कर देती है और हर कोई अपने घर में सीमित और अपने जीवन में मस्त रहता है किन्तु सामाजिक जीवन हर व्यक्ति को परिवार की एक डोर में बांध देता है जो एक दूसरे से जुड़े होते हैं और एक दूसरे से संपर्क और सहयोग में रहते हैं। इस प्रकार दोनो पड़ोसियों को एक दूसरे की छत्रछाया में शांति से रहना चाहिए और हर एक को अपने पड़ोसी के साथ सुरक्षा, विश्वास और अपनेपन का आभास होना चाहिए। यह वह वस्तु है जिस पर इस्लाम ने बहुत अधिक बल दिया है।


इस्लाम धर्म ने जो लोक परलोक में मनुष्य के कल्याण के लिए व्यापक और परिपूर्ण कार्यक्रम लाया है, मनुष्य की व्यक्तिगत, सामाजिक,शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं के आयाम पर विशेष रूप से ध्यान दिया है। इस समग्र और व्यापक धर्म में संबंध में पड़ोसी के क्या अधिकार होते हैं, बहुत ही अच्छी, लाभदायक व रोचक बातें बताई हैं। सूरए निसा की आयत संख्या 36 में आया है कि और ईश्वर की उपासना करो और किसी को उसका शरीक न ठहराओ और माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो और इसी प्रकार निकट परिजनों, अनाथों, मुहताजों, निकट और दूर के पड़ोसी, साथ रहने वाले, राह में रह जाने वाले यात्री और अपने दास-दासियों सबके साथ भला व्यवहार करो। नि:संदेह ईश्वर इतराने वाले और घमंडी लोगों को पसंद नहीं करता।


इस आयत में पड़ोसियों के साथ भलाई करने की सिफ़ारिश की गयी है। भलाई की सिफ़ारिश का दर्जा, न्याय और क़ानून से ऊपर होता है। भलाई, कृपा और दया, न्याय व क़ानून की परिधि में नहीं आता क्योंकि यदि यह क़ानून हो जाए तो वह भलाई और दया नहीं होगा। जब भलाई व्यवहारिक होती है तो मनुष्य जितना भी चाहे और यदि वह उसके क़ानून के दायित्व की परिधि में न भी हो तो उसे दूसरों के लिए भलाई करनी होती है।


 हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी वसीयत में कहते हैं कि ईश्वर से डरो, ईश्वर से डरो, पड़ोसियों के बारे में जिस पर तुम्हारे पैग़म्बर सदैव बल देते रहे, वे पड़ोसियों के बारे में इतनी सिफ़ारिश करते थे कि यह लगने लगा कि वही समझा कि पड़ोसी भी वारिस नही जाएं।


पड़ोसियों का इतना महत्त्व है कि पैग़म्बरे इस्लाम उनके बारे में अलग ही अधिकार को मानते हैं और इस अधिकार में उनका धर्म और उनके संस्कार बाधा नहीं बनते।


वे कहते हैं कि पड़ोसी तीन प्रकार के होते हैं, कुछ पड़ोसियों के तीन अधिकार हैं, पड़ोसी होने का अधिकार, इस्लाम का अधिकार, सगे संबंधियों का अधिकार, कुछ पड़ोसियों के दो अधिकार होते हैं, इस्लाम का अधिकार और पड़ोसी होने का अधिकार और इसी प्रकार कुछ पड़ोसी के एक अधिकार होते हैं वह अनेकेश्वरवादी है जिसका केवल पड़ोसी होने का अधिकार होता है।


इस्लाम धर्म ने पड़ोसियो के लिए जो अधिकार और संस्कार दृष्टिगत रखे हैं वे बहुत अधिक हैं। एक दिन की बात है कि पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम ने अपने साथियों से पूछा कि क्या आप लोग जानते हैं कि पड़ोसी का क्या अधिकार है? उपस्थित लोगों ने कहा नहीं, उन्होंने कहा कि पड़ोसियों का अधिकार यह है कि यदि वह तुमसे मदद की गुहार करे तो उसकी सहायता करो, यदि उसे ऋण की आवश्यकता हो तो उसे ऋण दिया जाए, जब उसके हाथ ख़ाली हों, तो उसका साथ दो और जैसे ही उसका काम पूरा हो उसे बधाई दो। बीमारी की स्थिति में उसे देखने जाओ, परेशानियों और कठिनाइयों में उसे सांत्वना दो, यदि मर जाए तो उसकी शवयात्रा में उपस्थित हो, उसकी अनुमति के बिना अपने घरों को ऊंचा न करो कि उसकी ताज़ा  हवा के मार्ग में रुकावट बन जाए। जब भी तुम फल ख़रीदो, तो उसमें कुछ उसे उपहार स्वरूप दो और यदि तुम यह नहीं करना चाहते तो फलों को छिपा कर अपने घर ले जाओ और ध्यान रखो कि तुम्हारे बच्चे  फल लेकर बाहर चले जाएं कि उसकी संतान देखे और उससे ज़िद करे। अपने स्वादिष्ट खानों की सुगंध से उसे परेशान मत करो, मगर यह कि  उसमें से थोड़ा सा उनके लिए भेजा दी।


पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कथन में जो अधिकार बयान किए गये हैं उसमें नैतिक से अध्यात्मिक मामले सहित समस्त मामले निहित हैं। यदि समस्त लोग इस सलाह पर अमल करें तो मानवीय समाज के एक नये रंग के हम साक्षी होंगे।


पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम का कहना है कि मोमिन व सज्जन पड़ोसी, मनुष्य की शांति और कल्याण की पूर्ति में प्रभावी होता है और अपने साथियों को अनुशंसा करते हैं कि उस स्थान पर घर बनाओ जहां अच्छे पड़ोसियों से लाभान्वित हो सको। एक बार उनके एक साथी ने उनसे पूछा कि या रसूल्ललाह, मैं एक घर ख़रीदना चाहता हूं, आपकी दृष्टि में मैं कौन से मोहल्ले का चयन करूं? पैग़म्बरे इस्लाम ने किसी विशेष मोहल्ले की ओर संकेत किए बिना उसे सुझाव दिया कि पहले पड़ोसियों के बारे में सोचो फिर घर ख़रीदना।


इस बयान को उस समय सुदृढ़ता मिलती है जब हम इस्लाम की दृष्टि में पड़ोसी की सीमा को समझें। एक व्यक्ति का कहना है कि मैंने इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम से पूछा कि, पड़ोसी की सीमा कहां तक है? उन्होंने कहा कि घर के चारो ओर चालीस घर तक।


पड़ोसियों के सम्मान पर भी इस्लाम ने बहुत अधिक बल दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम इस संबंध में कहते हैं कि पड़ोसियों का सम्मान, मां के सम्मान की भांति हर मनुष्य पर अनिवार्य है।


पड़ोसियों की हाल चाल से अनभिज्ञ रहना और उनके अधिकारों की अनदेखी करना, उन विषयों में से है जिसकी इस्लाम ने निंदा की है। पैग़म्बरे इस्लाम का कहना है कि वह व्यक्ति मुझ पर ईमान नहीं लाया जो भरपेट खाना खाकर सोए जबकि उसका पड़ोसी भूखा हो।


इस्लाम धर्म ने पड़ोसी की हर स्थिति में व्यापक हाल चाल पूछने पर बल दिया है किन्तु वह इस बात की आलोचना करता है कि पड़ोसियों के व्यक्तिगत जीवन में झांको और उनकी बुराइयों को उजागर करो। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम कहना है कि गोपनीयता, दूसरों पर पड़ोसियों का एक अन्य अधिकार है। वे कहते हैं कि जब तुम अपने पड़ोसी की किसी बुराई से अवगत हो गये हो तो उसे गुप्त रखो।


एक अन्य बुरी आदत जिसकी इस्लाम के महापुरुषों ने निंदा की है, पड़ोसियों को सताना है। पैग़म्बरे इस्लाम का कहना है कि पड़ोसियों को न सताना, मोमिनों की निशानी है। उनका कहना है कि बंदे को तब तक ईमान प्राप्त नहीं होता जब तक उसका पड़ोसी उसकी शैतानी से सुरक्षित न हो, अर्थात वास्तविक मोमिन वह है जिसकी शरारत से सभी लोग विशेष रूप से पड़ोसी सुरक्षित हों।


दूसरी ओर जब एक जुट एक साथ जीवन व्यतीत करते हैं तो संभव है कि कुछ लोग साथ रहने और पड़ोसियों के अधिकारों का सम्मान न करें और उसका पालन न करें, यह मतभेद उत्पन्न करने और दिलों में बुराई पैदा करने का कारण बनता है। इस स्थिति में योग्य यह है कि जो लोग अपने पड़ोसियों की ओर से जब कुछ बुरा देखें तो जहां तक संभव हो सहन किया जाए और झगड़े लड़ाई और शत्रुता से बचा जाए। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का कहना है कि भला पड़ोसी होना, उसे न  सताना नहीं है बल्कि भला पड़ोसी होना, पड़ोसी के सताए जाने पर धैर्य करना है।


पड़ोसियों का एक दूसरे से भला व्यवहार करना, अनेक विभूतियों का कारण बन सकता है। इस्लाम की दृष्टि में पड़ोसी होने के अच्छे व उचित प्रभाव तभी सामने आएंगे जब वे नैतिक व मानवीय सिद्धांतों की परिधि में हों। इस स्थिति में उस पर बहुत से भौतिक, अध्यात्मिक तथा लोक परलोक के बहुत से प्रभाव प्रकट होंगे।


अच्छे पड़ोसी के प्रभावों में नगरों की आबादी और व्यक्ति की आयु में वृद्धि की ओर संकेत किया जा सकता है क्योंकि अच्छा पड़ोसी उचित सहयोग द्वारा उचित जीवन स्थिति को उत्पन्न करता है। शांति, स्वयं आंतरिक शांति के पैदा होने कारण बनता है जिससे मनुष्य की आयु में भी वृद्धि होती है। बुरे पड़ोसियों के कारण दोनों पक्षों में पैदा होने दबाव और तनाव, दोनों की मानसिकता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं और शारीरिक व मानसिक बीमारी का कारण बनते हैं।


पड़ोसियों के साथ अच्छे व्यवहार का एक अन्य प्रभाव, ईश्वर के निकट लोकप्रिय होने की ओर संकेत किया जा सकता है। जो भी अपने पड़ोसियों के साथ भलाई करता है, उस पर ईश्वर और उसके पैग़म्बर की कृपा दृष्टि होती है क्योंकि भलाई करना, ईश्वर की विशेषता है और जो भी ईश्वर की विशेषता से स्वयं को सुसज्जित कर लेता है, ईश्वर उसे पसंद करता है और अपना निकटवर्ती बंदा बना लेता है।


अच्छा शिष्टाचार, मनुष्य के स्वर्ग में प्रविष्ट होने का कारण बनता है क्योंकि स्वर्ग शिष्ट लोगों का ठिकाना है। इस आधार पर अपने निकटवर्तियों, सगे संबंधियों और पड़ोसियों से अच्छे व्यवहार के कारण मनुष्य स्वर्ग में प्रविष्ट होता है और सदैव जारी रहने वाले विभूतियों से लाभान्वित होता है। पैग़म्बरे इस्लाम अच्छे व्यवहार विशेषकर पड़ोसियों के साथ अच्छे आचरण के बारे में कहते हैं कि अपने शिष्टाचार को अच्छा करो और अपने पड़ोसियों के साथ दयालु रहो और अपनी महिलाओं का सम्मान करो ताकि बिना हिसाब किताब के स्वर्ग में प्रविष्ट हो।


उन लोगों के पापों को क्षमा करना जो अपने पड़ोसियों से राज़ी होते हैं, ईश्वरीय इनाम में से है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि जो भी व्यक्ति मरता है और उसके तीन पड़ोसी हों और सब ही उससे राज़ी हों, उसके पापों को माफ़ कर दिया जाएगा। इस आधार पर समाज में जितनी भी भाईचारे की भावना पैदा होगी, संबंध उतने ही मज़बूत और निकट होंगे और दूरियां उतनी ही कम होंगी और पड़ोसी एक दूसरे के बाज़ू अर्थात शक्ति होते हैं और दुख व ख़ुशियों में एक दूसरे के भागीदार होते हैं। दूसरी ओर पड़ोसियों से निकट संबंध, समाज में एकता व एकजुटता में वृद्धि होने का कारण बनता है । यही कारण है कि इस्लाम धर्म की शिक्षाएं इस सीमा तक पड़ोसियों के साथ भलाई पर बल देती हैं।

 

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