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क़ुरआन की फेरबदल से सुरक्षा भाग 2

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क़ुरआन से कुछ कम नही हुआ हैं

शिया और सुन्नी समुदाय के बड़े बड़े धर्म गुरूओं ने इस बात पर बल दिया है कि जिस तरह से क़ुरआन में कोई चीज़ बढाई नही गयी है उसी तरह से उसमें से किसी वस्तु को कम भी नही किया गया है। और इस बात को सिध्द करने के लिए उन्होने बहुत से प्रमाण पेश किए हैं किंतु खेद की बात है कि कुछ गढ़े हुए कथनों तथा कुछ सही कथनों की गलत समझ के आधार पर कुछ लोगों ने यह संभावना प्रकट की है बल्कि बल दिया है कि क़ुरआन से कुछ आयतों को हटा दिया गया है।

 

किंतु क़ुरआन में किसी भी प्रकार के फेर बदल न होने के बारे में ठोस ऐतिहासिक प्रमाणों के अतिरिक्त स्वंय क़रआन द्वारा भी उसमें से किसी वस्तु के कम न होने को सिध्द किया जा सकता हैं।

 

अर्थात जब यह सिध्द हो गया कि इस समय मौजूद क़ुरआन ईश्वर का संदेश है और उसमें कोई चीज़ बढ़ाई नही गयी है तो फिर क़ुरआन की आयतें ठोस प्रमाण हो जाएगी। और क़ुरआन की आयतों से यह सिध्द होता है कि ईश्वर ने अन्य ईश्वरीय किताबों को विपरीत कि जिन्हे लोगों को सौंप दिया गया था, क़ुरआन की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्वंय ली हैं।

उदाहरण स्वरूप सुरए हिज्र की आयत 9 में कहा गया हैः निश्चित रूप से स्मरण(1) को उतारा है और हम ही उसकी सुरक्षा करने वाले हैं।

 

यह आयत दो भागों पर आधारित है। पहला यह कि हम ने क़ुरआन को उतारा है जिससे यह सिध्द होता है कि क़ुरआन ईश्वरीय संदेश है और जब उसे उतारा जा रहा था तो उसमें किसी प्रकार का फेर-बदल नही हुआ और दूसरा भाग वह है जिस में कहा गया हैं वह अरबी व्याकरण की दृष्टि से निरतरंता को दर्शाता है अर्थात ईश्वर सदैव क़ुरआन की सुरक्षा करने वाला हैं।

 

यह आयत हाँलाकि क़ुरआन में किसी वस्तु की वृध्दि न होने को भी प्रमाणित करती है किंतु इस आयत को क़ुरआन मे किसी प्रकार की कमी के न होने के लिऐ प्रयोग करना इस आशय से है कि अगर क़ुरआन मे किसी विषय के बढ़ाऐ न जाने के लिऐ इस आयत को प्रयोग किया जाऐगा तो हो सकता है यह कल्पना की जाऐ कि स्वंय यही आयत बढ़ाई हुई हो सकती है इस लिऐ हमने क़ुरआन मे किसी वस्तु के बढ़ाऐ न जाने को दूसरे तर्को और प्रमाणो से सिध्द किया है और इस आयत को क़ुरआन मे किसी वस्तु के कम न होने को सिध्द करने के लिऐ प्रयोग किया है। इस प्रकार से क़ुरआन मे हर प्रकार के फेरबदल की संभावना समाप्त हो जाती है।
अंत मे इस ओर संकेत भी आवश्यक है कि क़ुरआन के परिवर्तन व बदलाव के सुरक्षित होने का अर्थ ये नही है कि जहाँ भी क़ुरआन की कोई प्रति होगी वह निश्चित रूप से सही और हर प्रकार की लिपि की ग़लती से भी सुरक्षित होगी या ये कि निश्चित रूप उसकी आयतो और सूरो का क्रम भी बिल्कुल सही होगा तथा उसके अर्थो की किसी भी रूप मे ग़लत व्याख्या नही की गई होगी।

 

बल्कि इसका अर्थ ये है कि क़ुरआन कुछ इस प्रकार से मानव समाज मे बाक़ी रहेगा कि वास्तविकता के खोजी उसकी सभी आयतो को उसी प्रकार से प्राप्त कर सकते है जैसे वह ईश्वर द्वारा भेजी गई थी।इस आधार पर क़ुरआन की किसी प्रति में मानवीय गलतियों का होना हमारी इस चर्चा के विपरीत नही हैं।

 

 

(1)    यहाँ पर क़ुरआन के लिऐ ज़िक्र का शब्द प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ स्मरण और आशय क़ुरआन है।

 

(सलवात)

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