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इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की दुखद शहादत

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हिजरी क़मरी वर्ष के रजब महीने के तीसरी तारीख़ आ गई है। यह तारीख़ पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत की तारीख़ है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की विख्यात उपाधि हादी अर्थात मार्गदर्शक है। निश्चित रूप से पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन ईश्वरीय ज्ञान वहि के संरक्षक हैं तथा ईश्वरीय ज्ञान और अलौकिक तथ्यों से सुसज्जित हैं। इसी लिए पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के अनुयायी यह प्रयास करते हैं कि अपने जीवन को इन्हीं मार्गदर्शकों के जीवन के रंग में ढालें और उनकी शिक्षाओं पर चलें। हम इस महान हस्ती के शहादत दिवस पर हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और इसी उपलक्ष्य में अपनी इस चर्चा में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की जीवनी से कुछ मार्गदर्शक शिक्षाएं प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।
 
सबका सलाम हो महान मार्गदर्शक पर, सबका सलाम हो इस ईश्वरीय ज्योति पर, सलाम हो धर्म के महान स्तंभ और रक्षक पर जहां सबको पनाह मिलती है।
 

 
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म वर्ष 212 हिजरी क़मरी के बारवहें महीने ज़िलहिज्जा में मदीना नगर के निकट स्थित सरबा नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम थे और मां हज़रत समाना थीं जो इतिहास की बहुत महान महिला हैं। पिता की शहादत के बाद इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इमाम बने और 33 साल तक यह ईश्वरीय दायित्व निभाते रहे।
 
इमामत का एक महत्वपूर्ण आयाम ज्ञान है जिसके आधार पर इमाम इंसानियत को विनाश से मुक्ति दिलाता है। इमामत का दायित्व संभालने से पहले ही इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व निखर चुका था। ज्ञान की सभाओं और वाद-प्रतिवाद की बैठकों में उनकी कुशलता, ज्ञान संबंधी कठिन प्रश्नों के उत्तर देना और गुत्थियों को हल करना तथा महान शिष्यों का प्रशिक्षण इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण पहलू थे। इन विशेषताओं के कारण बड़ी संख्या में लोग उनके क़रीब आए और इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने इस्लामी सिद्धांतों और शिक्षाओं के अनुसार उनका प्रशिक्षण किया तथा समाज की आवश्यकता के अनुसार उन्हें अनेक ज्ञानों से सुसज्जित किया।
 


तत्कालीन ख़लीफ़ा की ओर से भारी दबाव और कड़ी निगरानी के कारण इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के लिए अपने दायित्वों का निर्वाह बहुत कठिन था तथा बहुत से लोग इसी कारण इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम तक नहीं पहुंच पाते थे लेकिन फिर भी उनका अभियान जारी रहा। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से विभिन्न इस्लामी ज्ञान सीखने वालों और उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों की संख्या 185 से अधिक है जिनमें महान धर्मगुरू शामिल हैं। इन्हीं हस्तियों में से एक अब्दुल अज़ीज़ हसनी हैं जिन्होंने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से ज्ञान अर्जित किया। वह इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से पत्राचार रखते थे और अपने पत्रों में धर्मशास्त्र सहित अनेक विषयों के बारे में प्रश्न पूछा करते थे। वह ईरान के लोगों की समस्याओं से इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अवगत करवाते थे। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने सैयद अब्दुल अज़ीज़ हसनी को अपना प्रतिनिधि घोषित किया था।
 
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में छह अब्बासी शासक गुज़रे। इनमें मोअतसिम, वासिक़, मुतवक्किल, मुंतसिर, मुसतईन और मोतज़्ज़ शामिल हैं। जैसा की आप जानते हैं महान धार्मिक हस्तियों का जीवन अनेक प्रकार की कठिनाइयों और प्रतिकूल परिस्थितियों से घिरा रहता था जो उस समय के शासन उत्पन्न करते थे किंतु इनमें से कोई भी कठिनाई कभी भी इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को उनके दायित्वों के निर्वाह से नहीं रोक सकी। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का पूरा जीवन ईश्वर के समक्ष समर्पण तथा कठिनाइयों के सामने संघर्ष का दर्पण है।
 
 
जब मुतवक्किल को शासन मिला तो उसे हेजाज़ से बार बार यह ख़त मिले कि मक्के और मदीने के लोगों का इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की ओर झुकाव बढ़ रहा है। मुतवक्किल को यह डर सताने लगा कि कहीं इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम उसकी अत्याचारी सरकार के विरुद्ध विद्रोह न शुरू कर दें। उसने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को सामर्रा नगर बुलाया जिसे उसने अपनी राजधानी बनाया था। मुतवक्किल चाहता था कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम पर कड़ी नज़र रखे और जब चाहे उन पर दबाव डाले। इस प्रकार विवशतः इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम सामर्रा गए। अब्बासी शासक इस प्रकार इमाम को उनके समर्थकों और श्रद्धालुओं से दूर कर देना चाहता था। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को सामर्रा में सिपाहियों के क्षेत्र में रखा गया किंतु इसके बावजूद उन पर सरकारी कारिंदों की कड़ी निगरानी रहती थी लेकिन इस सब के बाद भी इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की लोकप्रियता लगातार बढ़ती रही और उनके श्रद्धालुओं की का दायरा बहुत व्यापक हो गया।
 
 

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी समाज में अनेक दिगभ्रमित मत फैल गए थे। इस बीच इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इस्लाम धर्म के विचारों और शिक्षाओं की व्याख्या करते थे। उस समय इस्लामी हल्क़ों में भ्रामक विचार फैल रहे थे। अतः इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने कठिन प्रयास करके इन विचारों की त्रुटियों को बयान किया और इस्लाम के नाम पर फैलाई जाने वाली इन ग़लत बातों के बारे में लोगों को बताया। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम समाज में इस्लाम धर्म की शिक्षाओं को शुद्ध रूप में पेश करते थे। और यह सारी गतिविधियां एसी स्थिति में होती थीं कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के सिर पर अब्बासी शासक की तलवार लटकी रहती थी और यह शासक कदापि नहीं चाहते थे कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम धर्म और ज्ञान के क्षेत्र में कोई काम करें।
 
ईश्वर का स्मरण और उसके अस्तित्व का ज्ञान पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान और उनके परिजनों की विशेषता है। हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार ईश्वर को पहचानता और उसके अस्तित्व का ज्ञान रखता है लेकिन जब पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन ईश्वर के बारे में कुछ बयान करते हैं तो उसकी मिठास और उसकी गहराई बिल्कुल अलग होती है। क्योंकि वे सबसे महान और सबसे विश्वस्नीय ज्ञान स्रोत अर्थात वहि से जुड़े होते हैं।
 

 
ईश्वर के बारे में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यक़ीनन ईश्वर एसा है कि जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती उसके बारे में केवल वही कहा जा सकता है जो स्वयं ईश्वर ने बयान किया है। उस हस्ती का कोई क्या व्याख्यान करे कि जो इंद्रियों के दायरे से बहुत ऊपर है। कल्पना वहां तक पहुंचने में अक्षम है, विवेक उसकी हस्ती की वस्तविकता को समझ नहीं सकते, आंखों में इतनी गुंजाइश नहीं कि वह उनमें समा सके। वह क़रीब होते हुए भी बहुत दूर और बहुत दूर होते हुए भी बहुत क़रीब है। उसने स्थान की रचना की जबकि वह स्वयं किसी स्थान तक सीमित नहीं है। वह अनन्य है उसका वैभव और उसकी गरिमा महान है और उसके नाम पवित्र हैं।
 
इस्लाम की महान संस्कृति में ईश्वर की पहचान प्राप्त करने और उस पर आस्था रखने के बाद इंसान के लिए दूसरी सबसे महान चीज़ है ईश्वर की उपासना है। इससे अधिक महान स्थान इंसान को प्राप्त नहीं हो सकता। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम बंदगी की महानता को बयान करते हुए कहते हैं कि जो ईश्वर की अवज्ञा से बचता है लोग उसकी अवज्ञा नहीं करते और जो ईश्वर का आज्ञाकारी होता है लोग उसके आज्ञाकारी बन जाते हैं, जो भी ईश्वर के आदेशों का पालन करता है उसे किसी अन्य के क्रोध का कोई भय नहीं होगा और जो ईश्वर को क्रोधित करे उसे जान लेना चाहिए कि वह लोगों के आक्रोश से सुरक्षित नहीं रहेगा।

 
 
इस महान स्थान की व्याख्या में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि अगर इंसान ईश्वर की उपासना को अपने जीवन का ध्रुव बना ले उसे एसी सुरक्षा प्राप्त होगी कि जिसकी छत्रछाया में वह निश्चिंत होकर दूसरे इंसानों के साथ घनिष्ठ सामाजिक जीवन व्यतीत कर सकता है। ईश्वर ने जिन चीज़ों का आदेश दिया उनका पालन करना और जिन चीज़ों से रोका है उनसे दूर रहना इंसान को सच्ची बंदगी की डगर पर पहुंचा देता है। इस प्रकार देखा जाए तो एक ईश्वर की उपासना इंसान के जीवन का एजेंडा तैयार कर देती है। इस एजेंडे में ईश्वरीय इच्छा सबसे केन्द्रीय बिंदु है और इंसान का लोक परलोक में कल्याण सुनिश्चित हो जाता है। बंदगी का महत्व इतना अधिक है कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ईश्वर का बंदा होने और उसकी उपासना करने पर गर्व करते हैं। उनका कथन है कि हे ईश्वर मेरे लिए यही गौरव बहुत है कि मैं तेरा बंदा रहूं और मेरे लिए सबसे बड़े गर्व की बात यह है कि तू मेरा पालनहार है। तू वैसा ही जैसा मैं चाहता हूं तो तू मुझे वैसा बना दे जैसा तू पसंद करता है।
 
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने लोगों के प्रशिक्षण और बुराइयों को दूर करने के संदर्भ में स्वार्थ और आत्म मुग्धता के कारणों को चिन्हित करते हुए कहते हैं कि ईश्वर के कड़े हिसाब किताब से जो ख़ुद को सुरक्षित समझता है वह घमंड करता है। लेकिन जो इंसान अपने ईश्वर से ज्योति प्राप्त कर लेता है दुनिया की कठिनाइयां उसकी नज़र में आसान हो जाती हैं।
 

इस मूल्यवान शिक्षा के अनुसार हर इंसान के लिए आवश्यक है कि महान स्थानों की ओर अपनी प्रगति के दौरान ईश्वर की ओर से किए जाने वाले हिसाब किताब से निश्चेत न हो। ईश्वर और क़यामत की उपेक्षा इंसान को अनेक बुराइयों में उलझा देती है और ईश्वर को भूल जाने के परिणाम स्वरूप इंसान अपने आप को भी भूल जाता है तथा वह अपने जीवन का लक्ष्य भी गवां बैठता है।
 
हसन बिन मसऊद इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के श्रद्धालु थे। वह बताते हैं कि मैं एक बार इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के सेवा में पहुंचा। उस दिन मेरे लिए कई कटु घटनाएं घटी थीं। मेरी उंगली में चोट लग गई थी और अपने घोड़े से टकरा जाने के कारण मेरे कंधे में भी दर्द था। इसी लिए मैंने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से कहा कि आज का दिन मेरे लिए बड़ा मनहूस दिन था। ईश्वर इस दिन की बुराइयों को मुझ से दूर करे। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने उत्तर में कहा कि दिनों का क्या दोष है। दिनों की क्या ग़लती है? आप लोग जब अपनी ग़लतियों के नतीजे का सामना करते हैं तो दिनों को दोष देते हैं। यह ईश्वर है जो सज़ा और पारितोषिक देता है तथा दुनिया में किए गए कर्मों का बदला देता है।

 

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