नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार-18

अली अलैहिस्सलाम के दृष्टिकोण से दुनिया या संसार

इस्लामी दृष्टिकोण से यदि देखा जाए तो संसार का सीधा संबन्ध परलोक से है और यह उससे बिल्कुल अलग नहीं है।  इसका कारण यह है कि मनुष्य अपने जीवन में जो कुछ करता है उसका भुगतान उसे परलोक में करना होगा।  लोक और परलोक का संबन्ध खेती करने और फ़स्ल काटने जैसा है।  इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि इसी दुनिया से परलोक के लिए कार्य करो ताकि वहां पर स्वयं को उनके माध्यम से सुरक्षित रख सको।  इमाम अली के इस वक्तव्य से ज्ञात होता है कि परलोक के लिए हमे दुनिया में ही कुछ करना होगा।  इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि दुनिया, परोलक की खेती है।

 

यह संसार या दुनिया, ईश्वर की निशानियों में से एक निशानी है।  दुनिया को ईश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया है।  ईश्वर ने इस दुनिया को अपनी असंख्य अनुकंपाओं और विभूतियों से सुसज्जित किया है ताकि मनुष्य उनसे लाभ उठाते हुए अपने परलोक को सुधारे और जीवन में सदकर्म करे।  इस्लामी शिक्षाओं में संसार को दो दृष्टिकोणों से देखा गया है।  प्रशंसनीय संसार और निंदनीय संसार।

 

यह दुनिया जब जनसेवा और परलोक का माध्यम बन जाए तो यही प्रशंसनीय है किंतु जब यही दुनिया भ्रष्टता और बुराई का माध्यम बन जाए तो फिर यह निंदनीय हो जाती है।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा में कई स्थानों पर दुनिया की प्रशंसा करते हुए उसे स्वर्ग का माध्यम बताया है।  अपने भाषण क्रमांक 214 में दुनिया की प्रशंसा करते हुए इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यह दुनिया उन लोगों के लिए अच्छा स्थान है जो प्रलय के लिए इससे पूंजी एकत्रित करते हैं।  पाठ लेने वालों के लिए यह बहुत अच्छी पाठशाला है।  दुनिया, ईश्वर के चाहने वालों का नतमस्तक स्थल है।  यही दुनिया ईश्वर के आदेश आने का स्थल भी है।  प्रलय के लिए व्यापार करने वालों के लिए संसार अच्छा व्यापारिक स्थल है।  इसी के साथ कुछ स्थानों पर इमाम अली ने दुनिया की भर्त्सना भी की है।  वे संसार को धोखा देने वाला स्थल बताते हुए कहते हैं कि हर सुबह और शाम ईश्वर से डरते रहो और धोखा देने वाले इस संसार से स्वयं को बचाओ तथा किसी भी स्थिति में उसपर भरोसा न करो।

 

सलमान फ़ारसी को दुनिया की वास्तविकता समझाते हुए हज़रत अली कहते हैं कि दुनिया सांप की भांति है।  यदि तुम उसके विदित सुन्दर एवं आकर्षक स्वरूप को देखते हुए उसे छुओगे तो यह नर्म है जबकि उसके भीतर ज़हर मौजूद है।  तो एसे में तुम दुनिया के धोखा देने वाले आकर्षण से बचो क्योंकि तुम उसके भीतर बहुत कम समय तक रह पाओगे।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के काल में एसे लोग भी थे जो सत्ता में पहुचंने के बाद संसार पर मंत्रमुग्ध हो चुके थे।  इन लोगों की आर्थिक स्थिति विगत की तुलना में बहुत बदल चुकी थी।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल के इस्लामी मूल्यों से वे बहुत दूर हो चुके थे।  मुसलमानों के बीच दुनिया के प्रति बढ़ते झुकाव के कारण हज़रत अली ने कई स्थानों पर दुनिया की निंदा की  है।  ज़ुबैर बिन अवाम ने बसरा, कूफ़ा, मिस्र और एलेक्ज़ेंडेरिया में बड़े आलीशान घर बनवा रखे थे।  तारीख़े मसऊदी जैसे एतिहासिक स्रोतों के अनुसार ज़ुबैर बिन अवाम की मृत्यु के बाद 50000 दीनार, 1000 घोड़े और 1000 दास उसकी संपत्ति का एक भाग थे।  इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक अन्य साथी तल्हा बिन उबैदुल्लाह तमीमी के कूफ़े और मदीने में आलीशान महन बने हुए थे।  उनकी दैनिक आय 1000 दीनार थी।  ज़ैद बिन साबित की मौत के बाद उनके पास सोना और चांदी इतना अधिक था कि उसे तोड़ने के लिए हथोड़े का प्रयोग करना पड़ा था।  इसके अतरिक्त उनके पास अचल संपत्ति भी बहुत अधिक थी।  यही कारण था कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने बहुत से भाषणों में मायामोह की कड़े शब्दों में निंदा की है।  उनके बहुत से भाषणों में दुनिया के धोखे से बचने को कहा गया है।  इमाम अली के काल में बहुत सी एसी छोटी और बड़ी घटनाएं घटीं जिनका स्रोत मायामोह और अहंकार में निहित था।  इन्ही बातों के दृष्टिगत हज़रत अली लोगों से मायामोह और सांसारिक प्रलोभनों से बचने का आह्वान किया करते थे।

 

इमाम अली अलैहिस्सलाम लोगों से संसार में रहकर उसके सदुपयोग की सिफ़ारिश करते थे और साथ ही इसकी अनुकंपाओं से लाभान्वित होने को कहते थे।  एक बार जब एक व्यक्ति ने, जो सांसारिक मायामोह का शिकार था, जब संसार की भर्त्सना की तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनकी निंदा करते हुए कहा कि हे संसार की भर्त्सना करने वाले तू किस प्रकार से उसकी निंदा कर रहा है जिसका तू स्वंय दीवाना है।

 

एक वरिष्ठ धर्मगुरू “मुल्ला अहमद कूज़े कनानी” इस बारे में लिखते हैं कि हे मनुष्यः संसार की निंदा न कर और यह न कह कि वह भ्रष्टाचार का केन्द्र है।  दुनिया यदि धोखा देने वालों का ही स्थल होता तो फिर मनुष्य अपने जन्म से मृत्यु तक भांति-भांति की अनुकंपाओं से लाभान्वित नहीं हो पाता।  तो इससे पता चलता है कि वास्तविकता एसी नहीं है।  मनुष्य संसार में विभिन्न प्रकार की परिस्थतियों से गुज़रता है।  एक दिन वह प्रसन्न होता है तो अगले दिन दुखी।

इमाम अली अलैहिस्सलाम संसार में मनुष्य की इच्छाशक्ति के बारे में कहते हैं कि जो उसकी ओर दूरदर्शिता की दृष्टि से देखता है उसकी सूझबूझ मध्यम होगी और जो भी संसार को अपना लक्ष्य बनाए उसका अंतरमन नेत्रहीन हो जाएगा।  अपने इस बयान से इमाम अली अलैहिस्सलाम स्पष्ट करते हैं कि संसार निर्माणकारी और विध्वंसकारी दोनो प्रकार की भूमिका निभा सकता है अर्थात मनुष्य चाहे तो यह विफलता और भ्रष्टता दोनो का का कारण बन सकता है और इसके विपरीत सफलता एवं प्रगति का भी।  यदि मनुष्य संसार में चिंतन-मनन करे और सोच-विचार से काम ले तो वह अपने जीवन में आध्यात्मिक परिपूर्णता के उच्च चरण तक पहुंच सकता है।

 

एक अन्य बिंदु जिसकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिए वह संसार के प्रति प्रेम है।  कुछ लोग यह सोचते हैं कि संसार से बिल्कुल भी प्रेम नहीं करना चाहिए।  हालांकि यह एक वास्तविकता है कि मनुष्य के भीतर नाना प्रकार की इच्छाएं पाई जाती हैं।  यह इच्छाएं ईश्वर ने ही उसके भीतर रखी हैं।  मनुष्य अपनी इच्छाओं के माध्यम से मानव जाति से संपर्क में आता है।  जिसकी भर्त्सना की गई है वह संसार से सीमा से अधिक प्रेम और लगाव है।  यह प्रेम मनुष्य को मुख्य लक्ष्य से दूर कर देता है।  इस आधार पर संसार के प्रति मनुष्य का स्वभाविक प्रेम निंदनीय नहीं।  इस बारे में इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि लोग दुनिया की संतान हैं।  इसलिए किसी भी संतान को अपनी माता-पिता के प्रेम के कारण बुरा-भला नहीं कहा जा सकता।  यह प्रेम या लगाव, ईश्वर ने ही मनुष्य में भरा है।  यही विषय उसके जीवन के संचालन का कारण बनता है।  हालांकि यह लगाव यदि लक्ष्य में परिवर्तित हो जाए तो निंदनीय हो जाता है।  संसार आगे की ओर बढ़ने और प्रगति का स्थल है।  यह कोई ठहरने का स्थल नहीं है।  संसार में रहकर मनुष्य को उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयास करने चाहिए।  मनुष्य के भीतर जब संसार के प्रति सीमा से अधिक प्रेम उत्पन्न हो जाता है तो एसे में वह मुख्य लक्ष्य से दूर हो जाता है।  इस लगाव की निंदा ईश्वरीय दूतों और महापुरूषों ने बहुत की है।  एक बार जब अशअस बिन क़ैस इमाम अली अलैहिस्सलाम के घर पर आया और उसने उपहार की आड़ में रिश्वत देनी चाही तो इमाम ने उससे कहा कि ईश्वर की सौगंध, मुझको यदि संसार का सबकुछ इसलिए दे दिया जाए कि मैं उसकी अवज्ञा करूं तो भी मैं एसा नहीं करूंगा।  तुम्हारी यह दुनिया मेरी दृष्टि में अति महत्वहीन है।

 

अन्तिम बात यह है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ओर से संसार को तुच्छ दर्शाने का उद्देश्य यह है कि लोग परलोक की ओर ध्यान दें और संसार को महत्वहीन समझें।  इस प्रकार वे अपने भीतर उचित ढंग से सुधार कर सकते हैं।  नहजुल बलाग़ा के 173 वें ख़ुत्बे में इमाम अली कहते हैं कि यह संसार जिसकी तुम अभिलाषा करते हो और जिसको प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हो वह तुम्हारे लिए नहीं है और वह स्थिर भी नहीं है इसीलिए तुम इसमें सदैव नहीं रह सकते।  वे इसी प्रकार कहते हैं कि मानो कि संसार समाप्त हो गया और उसने अपने अंत की घोषणा कर दी है।  उसकी अच्छाइयां बिना पहचाने रह गईं और और वह बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है।  अपने वासियों को विनाश की ओर ले जा रही है तथा अपने पड़ोसियों को मौत की ओर धकेल रही है।  हे ईश्वर के बंदों! उस शरणस्थल से चले जाओ जिसे अंततः समाप्त ही हो जाना है।  एसा न हो कि तुम्हारी इच्छाएं बढ़ती जाएं और तुम दीर्धकालीन आयु की आशा करने लगो।