नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार-19

सृष्टि की रचना

ब्रहमांड की सृष्टि एसा विषय है जिसपर समस्त ईश्वरीय धर्मों में वार्ता की गई है।  ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में लोगों से चाहा है कि वे सृष्टि के बारे में चिंतन-मनन करें।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी नहजुल बलाग़ा में सृष्टि को ईश्वर की निशानी बताया है।  उन्होंने ईश्वर की पहचान के लिए इसे सुदृढ़ माध्यम कहा है।  इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मैं इस बात की गवाही देता हूं कि आसमानों और ज़मीन पर और जो कुछ उसके बीच है वे सबकी सब ईश्वर की एसी निशानियां हैं जो तेरी ओर मार्गदर्शन करती हैं।

 

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के स्वर्गवास के बाद ज्ञान का प्रकाश समाप्त नहीं हुआ बल्कि प्रकाशमई रहा।  अपने एक कथन में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने स्वयं को ज्ञान का शहर और हज़रत अली को इस शहर का दरवाज़ा बताया है।  पवित्र क़ुरआन, मानवता के लिए मूल्यवान उपहार है।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के पश्चात पवित्र क़ुरआन और उनके पवित्र परिजन, प्रलय के दिन तक लोगों के मार्गदर्शक हैं।  इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि मैं तुम्हारे बीच से जा रहा हूं और अपने पीछे तुम्हारे लिए दो मूल्यवान चीज़ छोड़े जा रहा हूं।  इनमें से एक क़ुरआन और दूसरे मेरे परिजन हैं।  यह दोनों एक-दूसरे से अलग नहीं होंगे यहां तक कि मुझसे चीज़ कौसर पर आकर मिलेंगे।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन भर इस बात का प्रयास किया कि इस्लाम की शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाया जाए और इनको सुरक्षित आगामी पीढ़ियों के लिए हस्तांतरित किया जाए।  इमाम अली अलैहिस्सलाम के कथन उसे ऊंचे पर्वत की भांति थे जिसके पर्वतांचल में ज्ञान की नदियां बह रही हों।  यही कारण है कि आज शताब्दियां बीत जाने के बावजूद इमाम अली अलैहिस्सलाम के कथन ताज़ा लगते हैं जो मानव के मन में उठने वाले बहुत से प्रश्नों का उत्तर देते हैं।

 

मानव के मन में जो प्रश्न उठते हैं उनमें से एक सृष्टि से संबन्धित है।  प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह सवाल पैदा होता है कि पूरी सृष्टि कैसे अस्तित्व में आई और किस प्रकार यह चल रही है?  दर्शनशास्त्र से संबन्धित विचारधाराओं में संसार की सृष्टि के बारे में विभिन्न आयामों से उत्तर दिये गए हैं।  सृष्टि के बारे में इमाम अली अलैहिस्सलाम मानव को वास्तविकता को समझने की अनुशंसा करते हैं।  नहजुल बलाग़ा के पहले ख़ुत्बे में इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना वैसे ही की जैसी की जानी चाहिए थी।  उसने प्रत्येक की सृष्टि, उसके निर्धारित समय पर की।  उसने विभिन्न प्राणियों के अलग-अलग स्वभावों के बावजूद समन्वय उत्पन्न किया।  प्रत्येक प्राणी को उससे विशेष स्वभाव प्रदान किया।  जिन चीज़ों की ईश्वर ने उत्पत्ति की उन्हें वह जानता था और वह उनके पूरे अस्तित्व से भलि भांति अवगत था।  वह उनके आंतरिक और बाहरी रहस्यों को उचित ढंग से समझता है।

फिर उसने चट्टानों, टीलों, पर्वतों और धरती की सृष्टि की।  उसने उन्हें अपने स्थानों पर स्थिर किया।  पर्वत, मैदानी क्षेत्रों में बाहर आए और ऊंचे होते गए।  उसने पर्वतों की जड़ों को धरती की गहराई मं  निहित किया।  उनकी चोटियों को ऊंचा करके आकाश की ओर बढ़ाया।  ईश्वर ने इन पर्वतों को धरती को रोकने वाला बनाया।

 

पर्वतों के लाभ का उल्लेख करते हुए हज़रत अली कहते हैं कि क्योंकि उनकी जड़ें धरती के भीतर होती हैं अतः वे धरती के भीतर बनने वाले दबाव से उत्पन्न होने वाले भूकंपों को रोकने में सहायक होते हैं।

उसने धरती के कंपन को बड़ी-बड़ी चट्टानों और पर्वत की चोटियों से नियंत्रित किया।  इस प्रकार धरती कंपन से मुक्त होकर स्थिर हुई।

इमाम अली के कथनानुसार पर्वत पहले तो धरती पर टिके उसके बाद झरने बहने आरंभ हुए।  इसके बाद इन झरनों का पानी धरती के अन्य भागों में पहुंचा।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम जल और वायु की ओर संकेत करते हुए, जो ईश्वरीय विभूतियों के संदेश वाहक हैं, कहते हैं कि फिर उसने धरती पर पाई जाने वाली किसी भी ऊंचाई को, जहां पर किसी नदी या झरने की पहुंच नहीं है, उसी के हवाले नहीं छोड़ा बल्कि उसने बादलों को भेजा ताकि वहां के सूखे क्षेत्रों को तृप्त किया जाए और वहां पर भांति-भांति की वनस्पतियां पैदा हों।  उसने बादलों को एक दूसरे के निकट किया ताकि वे सरलता से गतिशील हो सकें।  बादलों के आपस में टकराने से बिजली चमकती है।  बादलों को लगातार भेजा ताकि वे हर ओर छा जाएं फिर हवाओं ने बादलों से दूध रूपी जल दुहा और उन्हें धरती की ओर भेजा।  बादल नीचे की ओर आए, स्वयं को झुकाया और अपने भीतर जो कुछ था उसे फेक दिया।  उसके बाद सूखी धरती पर रंग-बिरंगी हरी-भरी वनस्पतियां उग कर फैल गईं।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम हवा की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हवा के कारण बिखरे हुए बादल एक-दूसरे में गुथ जाते हैं।  उसके बाद बिजली की चमक, पानी बरसाने में बादलों की सहायता करती है।  हवा, पानी को बादलों से अलग कर देती है।  इमाम अली के कथनानुसार हवाएं वर्षा को बादलों से निकालती हैं और हर ओर उसे फैलाती हैं।  इस प्रकार वर्षा से पेड़-पौधे निकलते हैं जो लोगों के लिए ईश्वरीय विभूति हैं।  वास्तव में महान ईश्वर ने मनुष्य की उत्पत्ति से पूर्व ही उसकी आवश्यकता की समस्त वस्तुओं को उपलब्ध करा दिया था।  इस प्रकार से उसने मानव जाति को अपनी शक्ति और ज्ञान से अवगत करवाने के साथ ही अपने दास के भीतर आभार की भावना को निहित किया है।

 

इमाम अली अलैहिस्सलाम मिट्टी से हज़रत आदम की सृष्टि का भी उल्लेख करते हैं।  इस बारे में वे कहते हैं कि ईश्वर ने धरती के अलग अलग भागों से मिट्टी एकत्रित की।  फिर उस मिट्टी को पानी से गूंधा।  मिट्टी को गूंधकर उससे एक पुतला बनाया।  उसके बाद अपने फ़रिश्तों से उसे सजदा करने को कहा।  फिर ईश्वर ने उसे अपने घर में जगह दी ताकि आराम से जीवन व्यतीत करे और शैतान के धोखे और षडयंत्र से सुरक्षित रखे।

अपने एक अन्य बयान में इमाम अली मनुष्य को सचेत करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर की उत्पत्ति (मनुष्य) तुझे उसने कितने संतुलित ढंग से पैदा किया गया है।  उसने तुझे माता के गर्भ में किस प्रकार रखा।  उसके बाद तुझे एस वातावरण में भेजा जिसका तुझे अनुभव नही था।  वास्तव में वह ईश्वर है जिसका जितना गुणगान किया जाए कम ही है। मनुष्य अपनी विशेषताओं के कारण ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है।  एसा प्राणी जिसके भीतर सृष्टि के तुच्छ और उच्च दोनों ही तत्व निहित हैं।  इस हिसाब से कहा जा सकता है कि मनुष्य की उत्पत्ति, व्यर्थ नहीं है बल्कि उसे किसी उच्च लक्ष्य के दृष्टिगत पैदा किया गया है।  इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मनुष्य को उसकी हाथ पर नहीं छोड़ किया गया है बल्कि उसको किसी लक्ष्य के दृष्टिगत पैदा किया गया है।  हे ईश्वर के दासों! तुमको यह समझना चाहिए कि ईश्वर ने तुमको व्यर्थ पैदा नहीं किया है और तुमको तुम्हारे हवाले नहीं किया है।  तुमको दी जाने वाली अनुकंपाओं की संख्या से वह भलिभांति अवगत है।  ईश्वर से सफलता की मांग करो और सफलता अर्जित करने के लिए ईश्वर के मार्ग पर आगे बढ़ो।

 

इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि जानवरों की सृष्टि भी ईश्वर की क्षमता और उसकी ओर मानव जाति के मार्गदर्शन का माध्यम है।  अपने एक संबोधन में वे कहते हैं कि पवित्र है वह ईश्वर जिसने, चींटी और मच्छर जैसे छोटे और जटिल प्राणियों से लेकर मगरमच्छ और हाथी जैसे प्राणियों को बनाया।  इसके बाद वे चींटी की सृष्टि के बारे में कहते हैं कि क्या तुम उसकी छोटी सृष्टि के बारे में सोच-विचार नहीं करते? देखो उसने किस प्रकार इसे बनाया।  उसे सुनने और देखने की शक्ति दी और छोटा सा बदन दिया।  यदि ध्यान से देखा जाए तो पता चलेगा कि चींटी नामक इस छोटे से प्राणी को कितनी सूक्ष्मता से बनाया गया है।  यदि तुम अपनी बुद्धि का प्रयोग करोगे तो पाओगे कि छोटी सी चींटी का बनाने वाला भी वही है जिसने खजूर जैसा विशाल वृक्ष को बनाया है।