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नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार-21

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मानव जाति का सत्य की ओर मार्गदर्शन, अति अनिवार्य विषय है।  इस बारे में पवित्र क़ुरआन के सूरए ताहा की आयत संख्या 50 में कहा गया है कि हमारा पालनहार वह है जिसने हर वस्तु की रचना की फिर उसका मार्गदर्शन किया।  यही कारण है कि ईश्वर ने मानव की सृष्टि के बाद मार्गदर्शन के समस्त मार्ग उनके अधिकार में दे दिये और साथ ही मार्गदर्शन के रास्तों को उसके लिए अधिक स्पष्ट किया।  इसी प्रकार से मानव को मार्गदर्शन के मार्ग की बाधाओं से भी अवगत कराया गया है।

 

निश्चित रूप से क़ुरआन मार्गदर्शन का स्रोत है।  क़ुरआन अपनी अन्य आयतों में स्पष्ट करता है कि यह किताब पूरे विश्ववासियों के लिए मार्गदर्शक है। क़ुरआन सदाचारियों का मार्गदर्शन करता है इसका एक कारण यह है कि जबतक व्यक्ति अपने भीतर आवश्यक परिवर्तन न लाए और मन को पवित्र न बनाए उस समय तक क़ुरआन से मार्गदर्शन प्राप्त नहीं किया जा सकता। मनुष्य का अस्तित्व ऐसा है कि जब तक वह भेदभाव और हठधर्मी से दूर नहीं होगा उस समय तक उसका मार्गदर्शन नहीं हो सकता।  वास्तव में ईश्वर से वे ही लोग डरते हैं जो पहले अपनी स्वच्छ प्रवृत्ति से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं और फिर पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं से अपने भीतर विशेषताएं पैदा करते हैं।   इस बात में शक नहीं कि जिस व्यक्ति का मन जितना पवित्र व स्वच्छ होगा वह क़ुरआन से उतना ही लाभ उठाएगा और वह पवत्रि क़ुरआन के प्रकाश से मन को उतना ही प्रकाशमय बनाएगा।    

 

हिदायत का अर्थ होता है मार्गदर्शन।  यह दो प्रकार का होता है।  एक प्राकृतिक मार्गदर्शन है, जो स्वभाविक रूप से समस्त प्राणियों में पाया जाता है और दूसरे एसा मार्गदर्शन है जो ईश्वरीय दूतों और आसमानी पुस्तकों के माध्यम से प्राप्त होता है।  पहला मार्गदर्शन एसा है जो समस्त प्राणियों में पाया जाता है और वह उसके भीतर निहित होता है।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने दोनो प्रकार के मार्गदर्शनों के बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं।

 

पहले प्रकार के मार्गदर्शन का उल्लेख करते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हे मनुष्य! अपनी माता के गर्भ में तू भ्रूण था, तुम किसी की बात का उत्तर नहीं दे पाते थे और किसी की आवाज़ नहीं सुन पाते थे।  यहां तक कि तुमको संसार में लाया गया।  तुम एसे स्थल में आए जिसको तुमने पहले देखा ही नहीं था।  तुमको अपने हितों का भी ध्यान नहीं था।  एसे में किसने तुमको मां के सीने से दूध पीने का मार्गदर्शन किया और तुमको सिखाया कि तुम अपनी मांगों की किस प्रकार से पूर्ति करे? फिर हज़रत अली ने ईश्वर की सृष्टि के कुछ अन्य नमूनों का उल्लेख किया।

 

ईश्वरीय दूतों का पाया जाना, ईश्वर के मार्गदर्शन का एक स्पष्टतम उदाहरण है।  यह वह विषय है जिससे मनुष्य कभी भी वंचित नहीं रहा है।  ईश्वरीय दूतों के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने अपने बंदों को किसी भी कालखण्ड में अपने दूतों से वंचित नहीं रखा।  ईश्वरीय दूतों का कम संख्या में होना और उनके विरोधियों की संख्या का अधिक होना भी कभी इन दूतों को अपने दायित्व के निर्वाह में रोक नहीं सका।  वे ईश्वरीय दूत जो पहले आए वे अपने बाद वाले दूतों को जानते थे।  इस प्रकार शताब्दियों का समय व्यतीत हो गया।  इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम हज़रत मुहम्मद (स) की पैग़म्बरी की ओर संकेत करते हैं।

 

इस बारे में वे कहते हैं कि अंततः ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) को अपना अन्तिम दूत नियुक्त किया ताकि वे उसके वचनों को पूरा कर सकें।  ईश्वर ने ही लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के माध्यम से पथभ्रष्टता से सुरक्षित रखते हुए उनका मार्गदर्शन किया।  इस प्रकार उनको अज्ञानता से बचाया।  मानवता की सेवा के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ओर से किये जाने वाले अथक प्रयासों का उल्लेख करते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनकी बहुत प्रशंसा करते हैं।  वे कहते हैं कि लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) का अनुसरण करना चाहिए।  हज़रत अली कहते हैं कि लोगों को हज़रत मुहम्मद (स) के मार्गदर्शन को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि वह उच्च मार्गदर्शक हैं।  इसके बाद मानव जाति के मार्गदर्शन में पवित्र क़ुरआन की भूमिका के संदर्भ में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि निःसन्देह, ईश्वर ने मार्गदर्शन करने वाली पुस्तक उतारी जिसमें अच्छाइयों और बुराइयों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।  उसके बाद सत्य के मार्ग को अपनाया गया ताकि तुम्हारा मार्गदर्शन हो सके और बुराइयों से बचो ताकि सच्चाई तक पहुंच सको।  इस्लाम ने अन्तिम एवं परिपूर्ण ईश्वरीय धर्म के रूप में मानव जाति के मार्गदर्शन के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किया है।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने 198 वें ख़ुत्बे में इस ओर संकेत करते हैं कि ईश्वर ने इस्लाम को ही सच्चा धर्म निर्धारित किया है।  यह प्रलय के दिन तक बाक़ी रहेगा।  इस्लाम की शिक्षाएं सदा रहने वाली हैं।  हज़रत अली कहते हैं कि ईश्वर ने इस्लाम को इस प्रकार से बयान किया है कि उसकी जड़ें न हिलने वाली हैं।  इसका आधार टूटने वाला नहीं है।  यह अमर धर्म है।  हज़रत अली के इस कथन से यह समझा जा सकता है कि इस्लाम के बारे में कही जाने वाली यह बात पूर्ण रूप से निराधार है कि इसकी शिक्षाएं पुराने ज़माने के लिए हैं आधुनिक युग के लिए नहीं हैं।  जो लोग एसी बातें करते हैं वे वास्तव में इस्लाम की उचित जानकारी से वंचित हैं।  एसे लोग इस नियम से अनभिज्ञ हैं कि मनुष्य को जहां नए विषयों और नई शिक्षाओं की आवशयकता होती है वहीं पर मानवता उसके भीतर एक स्थाई और स्वभाविक बात है।

 

मानवता का संबन्ध किसी विशेष काल खंड से नहीं है।  उदाहरण स्वरूप समय के परिवर्तन के साथ वस्तुएं, यंत्र, शैलियां और बहुत से नियम परिवर्तित हो गए हैं किंतु मानवता अपने स्थान पर पूर्व की ही भांति मौजूद है।  प्राचीनकाल में भी चोरी, डकैती, झूठ और हत्या आदि को बुराई समझा जाता था और आज भी यह बातें बुरी ही मानी जाती हैं।

 

ईश्वर के मार्गदर्शन में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों को विशेष स्थान प्राप्त रहा है।  सूरए अहज़ाब की आयत संख्या 33 में, जो आयए ततहीर के नाम से विख्यात है, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को हर दृष्टि से पाक एवं पवित्र बताया गया है।  यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने पवित्र क़ुरआन और अपने परिजनों को अपने बाद के दो महत्वपूर्ण मानदंडों के रूप में पहचनवाया है।  वे कहते हैं कि जब तक लोग इन दोनों से मार्गदर्शन प्राप्त करते रहेंगे वे कभी भी पथभ्रष्ट नहीं हो सकते।

 

इसी प्रकार से पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने पवित्र परिजनों को नूह की नाव की संज्ञा दी है।  जिस प्रकार से हज़रत नूह के काल में आने वाली भीषण बाढ़ में लोग नूह की कश्ती पर सवार होकर तूफ़ान से मुक्ति पा गए थे उसी प्रकार से वर्तमान समय में पथभ्रष्टता से बचने का मार्ग यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के मार्गदर्शन को स्वीकार किया जाए।  हज़रत अली अलैहिस्सलाम लोगों से कहते थे कि वे पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से दूर न हों और उन्हें अपने लिए आदर्श के रूप में स्वीकार करें।  वे कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन किसी भी स्थिति में तुम्हारे साथ विश्वासघात नहीं कर सकते बल्कि वे सदैव ही तुमको बुराइयों से बचाकर सही मार्ग का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

 

नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एसे लोगों का उल्लेख किया है जो ईमान और ईश्वर पर विश्वास की छाया में इस विशेषता को प्राप्त करने में सफल रहे हैं इस प्रकार से कि विशेष ईश्वरीय मार्गदर्शन के स्वामी हो गए।  वे लोग ईश्वरीय मार्गदर्शन का उच्चतम आदर्श हैं।  इन लोगों के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर के निकट सबसे प्रिय बंदा वह है जो अपनी आंतरिक इच्छाओं का विरोध करते हुए ईश्वरीय आदेश का अनुसरण करे।  एसा व्यक्ति जो भीतर से भयभीत और बाहर से भी डरा हुआ हो।  एसे व्यक्ति के हृदय में मार्गदर्शन का प्रकाश जलता रहता है और जो अगले सफ़र अर्थात प्रलय के लिए यात्रा हेतु पूरी तरह से तैयार है।  इस प्रकार के लोग केवल अपने मार्गदर्शन को पर्याप्त नहीं मानते बल्कि वे इस बात का प्रयास करते हैं कि मार्गदर्शन के प्रकाश को हर ओर फैलाया जाए ताकि अन्य लोग भी इससे लाभ उठाएं।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम, ईश्वर की याद को मार्गदर्शन की एक झलक बताते हैं।  वे कहते हैं कि वे लोग जो ईश्वर की याद के बीज को अपने हृदय में बोते हैं वे मार्गदर्शन की ओर क़दम बढ़ाते हैं।  इसका मुख्य कारण यह है कि ईश्वर की याद, हृदय से अज्ञानता के अंधकार को समाप्त कर देती है।

 

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