नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार-24

हज़रत अली (अ) समस्त गुणों एवं विशेषताओं के स्वामी हैं। उनके व्यक्तित्व के असीम सागर में समस्त मानवीय सदगुण पाए जाते हैं। उनकी इबादत और बंदगी उनके सबसे विशिष्ट गुणों में से हैं। हज़रत अली (अ) इबादत की उस शिखर चोटी पर आसीन थे कि कई महान ईश्वरीय दूत भी वहां तक नहीं पहुच सके। इमाम ज़ैनुल आबेदीन कि जो अपने समय के सबसे महान उपासक थे अपने दादा हज़रत अली (अ) की इबादत के संबंध में आश्चर्य जताते हुए कहते हैं कि “किस में अली जैसी इबादत की शक्ति है।”


आज के कार्यक्रम में हम हज़रत अली (अ) की इबादत और बंदगी के अनंत सागर की ओर संकेत करेंगे।

हज़रत का संपूर्ण अस्तित्व बंदगी का प्रतीक है। यह बंदगी उनके अस्तित्व की अथाह हराईयों तक उतर गई थी जिसने उन्हें सर्वश्रेष्ठ मानव बना दिया था। वे व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के हर आयाम जैसे कि युद्ध, शांति, शासन, न्याय, शिक्षा दीक्षा और पारिवारिक जीवन इत्यादि में ईश्वर के बंदे हैं। हज़रत अली किसी भी समय वह उनके शासन या सफ़लता के चरम का हो या उन पर अत्याचारों के पहाड़ टूटने का एक क्षण के लिए भी ईश्वर की बंदगी से बाहर नहीं हुए। हज़रत अली (अ) की इबादतों की गहराई का थोड़ा सा अंदाज़ा उनकी दुआओं से लगाया जा सकता है कि जो ईश्वरीय ज्ञान और उसे पहचानने के लिए अनमोल ख़ज़ाना हैं। हज़रत अली अपनी एक प्रसिद्ध दुआ कि जो दुआए कुमैल के नाम से जानी जाती है, ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे मेरे ईश्वर मेरे स्वामी मेरे मौला, हे वह कि जिसके हाथ में मेरा चयन है, हे वह कि जो मेरी निर्धनता से अवगत है, हे मेरे पालनहार...तुझसे तेरे अधिकार, पवित्रता और सर्वश्रेष्ठ विशेषताओं एवं नामों द्वारा मांग करता हूं कि मेरे रात दिन को अपनी यादों से भर दे। यह वाक्य और शब्द कि जो हज़रत अली सामान्य रूप से आधी रातों और एकांतवास में दिल की गहराईयों से ज़बान पर लाते थे, उनकी सुन्दरतम एवं महानतम आत्मा एवं बंदगी को दर्शाते हैं।

 

इबादत और पुण्य कर्म करने में हज़रत अली (अ) समाज में सबसे अग्रहणि व्यक्ति थे और कभी भले कार्य अंजाम देने के लिए बड़ी बड़ी कठिनाईयां सहन करते थे। कभी कभी एक रात में हज़ार रकअत नमाज़ें पढ़ते थे यहां तक कि लैलतुल हरीर नामक रात में कि जो सिफ़्फ़ीन युद्ध की एक बहुत ही कठिन एवं भयानक रात थी नमाज़े शब या मध्य रात्री की नमाज़ नहीं छोड़ी। पैग़म्बरे इस्लाम के एक साथी अबूदरदा कहते हैं कि मैंने अली को देखा जो लोगों के बीच थे, लेकिन अचानक लोगों की निगाहों से ओझल हो गए। उन्होंने स्वयं को खजरों के एक बाग़ में छुपा लिया, वह मुझे नहीं मिले और मैंने सोचा कि वह घर चले गए हैं। इस दौरान रोने और गिड़गिड़ाने की आवाज़ मेरे कानों तक पहुंची। मैं उस आवाज़ के पीछे गया तो मुझे पता चला कि यह अली की आवाज़ है। मैं निकट ही छुप कर बैठ गया और उन्हें देखने लगा। अली ने नमाज़ पढ़ी और उसके बाद दुआ और प्रार्थना में लीन हो गए। वह प्रार्थना में इतना लीन हो गए कि उनके शरीर ने हिलना जुलना बंद कर दिया। मैंने सोचा कि अली को नींद आ गई है और अब उन्हें जगा दूं ताकि सुबह की नमाज़ पढ़ लें। जैसे ही निकट गया तो मैंने देखा कि किसी सूखी लकड़ी के समान ज़मीन पर पड़े हुए हैं। मैंने उन्हें हिलाया, लेकिन वह शांत ही रहे। मैंने उन्हें अपने हाथों में भरकर उठाना चाहा लेकिन उनका शरीर अकड़ा हुआ था। मैंने स्वयं से कहा, ईश्वर की सौगंध अली अब इस दुनिया में रहे। उसके बाद दौड़ा हुआ अली के घर की ओर गया ताकि उनके परिवार को इस घटना की सूचना दूं। मैंने उनकी पत्नि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेटी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) को इसकी सूचना दी। फ़ातिमा (स) ने कहा, ईश्वर की सौगंध यह स्थिति ईश्वर के भय से उत्पन्न हुई है और हर रात ही उनकी यह स्थिति होती है।

 

हज़रत अली (अ) इबादत की शिखर चोटियों के विजेता हैं। उनकी इबादत केवल नमाज़ एवं ईश्वर का नाम जपना नहीं है, बल्कि उनका हर कार्य, विचार और स्थिति इबादत है। उनकी वित्तीय इबादत का एक नमूना यह है कि उन्होंने एक हज़ार खजूर के पेड़ लगाए औऱ उसके बाद, उन्हें ग़रीबों एवं निर्धनों के लिए वक्फ़ कर दिया। अपने पैसों से हज़ार दास ख़रीदकर उन्हें आज़ाद किया। मदीना, कूफ़ा और बसरा में मस्जिदों का निर्माण किया। अनेक बार अपनी संपत्ति निर्धनों को दान कर दी, इस संबंध में क़ुरान में आयतें नाज़िल हुईं। हज़रत अली (अ) की दृष्टि में बंदगी का महत्व उनके इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि सौगंध उसकी कि जिसके हाथ में अबूतालिब के बेटे की जान है, मेरे लिए तलवार के हज़ार घाव इससे कहीं आसान हैं कि मैं ऐसी स्थिति में इस दुनिया से जाऊं कि ईश्वर के आदेश की अवहेलना की हो। हज़रत अली ईश्वर से इतना प्रेम करते थे कि उसकी इबादत और बंदगी में डूब जाते थे। इसीलिए हज़रत अली (अ) को याद करना, उनका गुणगान करना यहां तक कि उनकी ओर देखना इबादत है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं, अली की ओर देखना इबादत है। स्वयं अली (अ) फ़रमाते हैं कि हे ईश्वर मेरे लिए यही सम्मान काफ़ी है कि मैं तेरा बंदा हूं।

हज़रत अली (अ) की दृष्टि में बंदगी एवं श्रद्धा, समस्त सृष्टि की विशेषता है और दुनिया का कण कण ईश्वर का अनुपालन करता है। हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं कि उसकी महानता के सामने हर कोई नतमस्तक है और उसकी शक्ति का गुणगान करता है। लोक एवं परलोक उसका अनुसरण करते हैं धरती और आकाश उसके अधीन हैं और हरे भरे वृक्ष रात दिन उसका सजदा करते हैं। मानव का अपने पालनहार के साथ संपर्क भी इबादत द्वारा होता है। हज़रत अली (अ) की दृष्टि में इंसान को संपूर्णता के लिए पैदा किया गया है और यह संपूर्णता केवल इबादत द्वारा ही संभव है। जैसा कि ईश्वर क़ुराने मजीद के सूरए ज़ारियात की 56वीं आयत में फ़रमाता है, मैंने इंसानों और जिनों को नहीं रचा लेकिन यह कि वह मेरी इबादत करें। हज़रत अली बंदे और ईश्वर के बीच संबंध को बहुत ही सुन्दरता से बयान करते हैं, वह कि जिसके हाथ में धरती और आकाश के ख़ज़ाने हैं, उसने तुझे दुआ और प्रार्थना का अवसर प्रदान किया। तुझे उसने आदेश दिया कि उससे मांग ताकि वह प्रदान करे, उससे कृपा की मांग कर ताकि वह कृपा करे, ईश्वर ने तेरे और ख़ुद के बीच कोई पर्दा नहीं रखा है और माध्यम बनाने के लिए तुझे बाध्य नहीं किया है। इसलिए जब भी उसे पुकारेगा वह सुनेगा।

हज़रत अली (अ) इस कथन में ईश्वर से इंसान के संपर्क को सभी के लिए और हर स्थिति में संभव क़रार देते हैं।

 

ईश्वर की बंदगी और उसका गुणगान करना इंसान की सृष्टि में शामिल है। यही कारण है कि इबादत और बंदगी की इच्छा समस्त इंसानों में है, जबकि कुछ लोग अपनी इस इच्छा पर कान धरते हैं और कुछ उसकी उपेक्षा करते हैं।

जो कोई ईश्वर का वास्तविक बंदा होता है, उसके अलावा हर चीज़ की बंदगी से स्वतंत्र एवं आज़ाद होता है। आज हमारे युग में ईश्वर के अलावा धन, काम वासना, पद और दूसरे इंसानों की बंदगी अधिक देखने को मिलती है। इनमें से हर एक चीज़ इंसान को अपनी ओर आकर्षित करती है और उसे अपना दास बना लेती है। हज़रत अली इस संदर्भ में फ़रमाते हैं  कि जिस व्यक्ति की दृष्टि में दुनिया बड़ी हो जाती है, वह उसे ईश्वर पर वरीयता देता है, बस उसी का होकर रह जाता है और उसका ग़ुलाम बन जाता है।

 

इबादत के प्रकाश में ईश्वर से निकट हुआ जा सकता है और सदगुणों का प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार, इबादत के अनगिनत लाभ हैं। इंसान इबादत द्वारा ईश्वर की अनंत कृपा से लाभान्वित होता है। हज़रत अली (अ) इस विषय को बयान करते हुए फ़रमाते हैं कि अगर नमाज़ी को यह पता चल जाए कि इस इबादत में उस पर किया कृपा होती है तो वह सजदे से सिर नहीं उठाता।


इंसान की दृष्टि में व्यापकता ईश्वर की बंदगी की एक दूसरी उपलब्धि है। जो व्यक्ति ईश्वर की बंदगी के मार्ग में आगे बढ़ता है, न केवल कठिन से कठिन परिस्थितियों में नहीं डगमगाता बल्कि ईश्वर का भी शुक्रिया अदा करता है। क़ुरान धर्म में आस्था रखने वाले ऐसे लोगों के बारे में कि जिन्हें किसी ख़तरे का सामना होता है फ़रमाता है, (ख़तरे से न केवल वे नहीं घबराए बल्कि ख़तरे से) उनकी आस्था में वृद्धि हुई और उन्होंने कहा, ईश्वर हमारे लिए काफ़ी है और वह हमारा सर्वश्रेष्ठ समर्थक है। वास्तव में बंदा जानता है कि जब तक वह ईश्वर की बंदगी में है, उसे उसका पूर्ण समर्थन प्राप्त है, इसीलिए कठिनाईयां और समस्याएं उसके लिए आसान और सहन करने योग्य हो जाती हैं। इस दृष्टिकोण द्वारा बंदा सुविधाओं को ईश्वर की कृपा मानता है और कठिनाईयों को पापों के धुलने का माध्यम क़रार देता है।