अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार 26

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हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अबू बक्र के बेटे मोहम्मद बिन अबी बक्र से फरमाया कि पैग़म्बरे इस्लाम ने मुझसे कहा है कि मुझे अपने अनुयाइयों के लिए न मोमिन से भय है और न अनेकेश्वरवादी से क्योंकि मोमिन को उसका ईमान पथभ्रष्टता से रोकता है और ईश्वर अनेकेश्वरवादी का अंत उसके अनेकेश्वरवाद के कारण कर देगा मैं तुम्हारे लिए मित्थ्याचारी व्यक्ति से डरता हूं। उसके दो चेहरे होते हैं और उसकी ज़बान ज्ञानियों जैसी होती है और उसकी बातें दिल को लुभाने वाली और कार्य अप्रिय होते हैं।

 

मित्थ्याचार का अर्थ इंसान का दो रूपी होना है और उसका आंतरिक रुप उसके बाह्य से भिन्न होता है। मुनाफिक़ व मित्थ्याचारी उस व्यक्ति को कहते हैं जो विदित में तो मुसलमान होता है पर दिल में काफिर होता है।  सामान्यत: मित्थ्याचार के बारे में चर्चा नैतिक विषयों अन्त्रगत में की जाती है परंतु पवित्र कुरआन की जो आयतें मित्थ्याचार से संबंधित हैं उनमें से अधिकतर का संबंध राजनीति और समाज से है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम के उदयकाल में भी मित्थ्यारचार की जड़ें बहुत मज़बूत थीं और पूरा इस्लामी इतिहास इस बात का साक्षी है कि मित्थ्यारचार बहुत से लोगों की पथभ्रष्टता का कारण रहा है।

 

नेफाक़ अर्थात मित्थ्यारचार शब्द नफ्क़ से बना है। उसका अर्थ होता है ज़मीन के नीचे बनाया जाने वाला वह रास्ता जिसमें छिपा जा सके या समय पड़ने पर उससे लाभ उठाया जा सके। कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि चूहा और लोमड़ी जैसे जानवर अपने बिल में दो सूराख बनाते हैं। एक दिखाई पड़ता है जिससे वे आते- जाते हैं और एक गुप्त होता है। उसका प्रयोग वे उस समय करते हैं जब खतरे का आभास करते हैं। मित्थ्यारचारी व्यक्ति भी अपने लिए दो द्वार बनाकर रखता है। एक द्वार से वह इस्लाम में प्रविष्ठ होता है जबकि दूसरे से, जो गुप्त होता है, वह बाहर निकल जाता है। वास्तव में मित्थ्यारचारी अपने कुफ्र को छिपा कर रखता है और विदित में ईमान व्यक्त करता है और ईमान की बातें करता है। दूसरे शब्दों में जो कुछ वह बयान करता है वह उस चीज़ से भिन्न होता है जो उसके दिल में होती है। मित्थ्यारचार की एक स्पष्ट निशानी की ओर पवित्र कुरआन संकेत करते हुए। कहता है” हे ईमान लाने वालों क्यूं वह बात करते हो जिस पर अमल नहीं करते? ईश्वर के निकट बहुत क्रोध का कारण है कि तुम उस बात को कहो जिस पर अमल नहीं करते हो”

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी मित्थ्यारचारियों की विशेषता बयान करते हुए कहते हैं” सबसे स्पष्ट मित्थ्यारचारी वह है जो लोगों को ईश्वर के आदेशों के अनुपालन के लिए आमंत्रित करता है और स्वयं उस पर अमल नहीं करता है वह दूसरों को तो पापों से रोकता है और स्वयं पाप करने से नहीं रुकता”

पवित्र कुरआन की आयतों के आधार पर लोगों के तीन गुट हैं एक मोमिन दूसरे मुनाफिक़ व मित्थ्यारचारी और तीसरे काफिर। दूसरे शब्दों में ईश्वरीय धर्म इस्लाम लोगों को तीन गुटों में बांटता है। कुछ लोग एसे हैं जो तन- मन से इस्लाम को स्वीकार करते हैं इस्लाम एसे लोगों को मोमिन कहता है जबकि कुछ एसे लोग हैं जो केवल ज़बान से इस्लाम स्वीकार करते हैं और उनके दिल में कुफ्र होता है एसे लोगों को मुनाफिक़ व मित्थ्यारचारी कहा जाता है। एसे लोग काफिर से भी बदतर होते हैं जबकि लोगों का तीसरा वह गुट है जो इस्लाम को न तो ज़बान से स्वीकार करता है और न ही दिल से। इस्लाम एसे व्यक्ति को काफिर कहता है और उसका भी ठिकाना नरक है परंतु काफिर मुनाफिक़ से कम बुरा होता है।

 

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सौभाग्य या दुर्भाग्य का संबंध इंसान की आंतरिक वास्तविकता से है। मित्थ्याचारी चूंकि अपने चेहरे पर नकाब डाले होता है और लोग उसे नहीं पहचानते हैं इसलिए समाज के लिए उसका खतरा काफिर से अधिक है। पवित्र कुरआन में मित्थ्यारचारियों के लिए कड़े दंड की बात गयी है। महान ईश्वर कहता है मित्थ्यारचारी नरक के सबसे निचले दर्जे में होगें”

हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने जीवन में मित्थ्यारचार और मित्थ्यारचारियों का सामना था। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी के रूप में तबूक नामक युद्ध में मित्थ्यारचारियों को निराश कर दिया और उनके षडयंत्रों पर पानी फेर दिया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मित्थ्यारचारियों की विशेषता के बारे में कहते हैं” तुम्हें मैं मित्थ्यारचारियों से सचेत करता हूं क्योंकि वे स्वयं गुमराह हैं और दूसरों को गुमराह करने वाले हैं और विभिन्न परिस्थितियों में विविध रूप धारण करते हैं। यह लोग हर रास्ते व साधन से तुम्हें गुमराह करने का इरादा रखते हैं और हर रास्ते से तुम्हारी घात में हैं”

 

इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम मित्थ्यारचारियों की आंतरिक बीमारी और समाज में उनके विनाशकारी क्रिया -कलापों की ओर संकेत करते हुए फरमाते हैं” उनके दिल बीमार हैं और वे विदित अच्छे तथा वे गोपनीय ढंग से कार्य करते हैं, वे विषैले जानवर की भांति धीरे धीरे डंसते हैं और बिना सूचना के अपना ज़हर छोड़ देते हैं वे लोगों के आराम से ईर्ष्या करते हैं और समस्याओं व संकटों को हवा देते हैं अगर वे किसी चीज़ को चाहते हैं तो उसके लिए आग्रह करते हैं अगर वे किसी की भर्त्सना करते हैं तो उसके रहस्यों का पर्दा फाश कर देते हैं अगर वे फैसला करते हैं तो अतिवाद से काम लेते हैं और हर सत्य के मुकाबले में उनके पास ग़लत व असत्य होता है”

मित्थ्यारचारियों की एक आदत लोगों के मध्य संदेह उत्पन्न करना है। वे अपनी चिकनी- चुपड़ी बातों से लोगों को गुमराह करते हैं और वास्तविकता को उल्टा करके दिखाते हैं और लोगों के लिए सत्य व असत्य की पहचान कठिन बना देते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में फरमाते हैं” बात करते हैं और लोगों में संदेह उत्पन्न करते हैं।  विशेषता बयान करते हैं और वास्तविकता को उल्टा करके दिखाते हैं गलत मार्ग में जाने का रास्ता सरल बनाते हैं ताकि लोग सरलता से गलत रास्ते में चले जायें और उसमें फंस जायें और उससे बाहर निकलना या असंभव हो जाये या कठिन। वे शैतान के दल हैं और जान लो कि शैतान का दल वही घाटा उठाने वाला है”

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने शासनकाल के दौरान पैग़म्बरे इस्लाम की नीतियों को लागू किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने सत्ता की बागडोर संभालने के बाद अयोग्य कर्मचारियों के मुकाबले में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया और उन्हें अविलंब उनके पदों से हटा दिया। इसी तरह हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मोआविया को शाम अर्थात वर्तमान सीरिया की सरकार से बर्खास्त कर दिया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जब यह देखा कि मोआविया ने शत्रुतापूर्ण नीति अपना ली है तो उन्होंने मोआविया के लिए तर्क पेश किया और जब शांतिपूर्ण शैली का कोई लाभ व प्रभाव नहीं हुआ तब उन्होंने उससे युद्ध किया।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शासन काल में पैग़म्बरे इस्लाम की जीवन शैली लागू थी और किसी प्रकार के संकोच के बिना उन्होंने हर प्रकार के अन्याय का डटकर मुकाबला किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मित्थ्यारचारी की उपमा एक बहुत ही कड़वे मदार के वृक्ष से देते और फरमाते हैं” मित्थ्यारचारी मदार के पेड़ की भांति है जिसके पत्ते हरे- भरे हैं परंतु उसका स्वाद कडुवा होता है”

उसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने समय में मौजूद मित्थ्यारचारियों की ओर संकेत करते हुए फरमाते हैं” तुम एसे काल में रह रहे हो कि सत्य कहने वाले कम हैं और सच बोलने के लिए ज़बानें खुलती नहीं हैं। समस्त मित्थ्यारचारी षडयंत्रकारी, उनके युवा झगड़ालू, उनके बूढ़े पापी और विद्वान मित्थ्यारचारी हैं उनके छोटे उनके बड़ों को बड़ा नहीं समझते हैं और उनके सक्षम व धनी उनके निर्धनों की सहायता नहीं करते हैं”

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सत्ताकाल के मित्थ्यारचारियों के विभिन्न एतिहासिक उदाहरणों का उल्लेख किया गया है। उनमें से एक अशअस बिन कैस है। अशअस यमन के कन्दा  कबीले का सरदार था और वह अपने समय के मित्थ्यारचारियों का अगुवा था। अशअस को अपने कबीले के मुखिया के रूप में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सेना में स्थान मिल गया और सिफ्फीन नामक युद्ध के अंतिम दिनों में उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सेना को बहुत ही चालाकी व धूर्तता से मोआविया की सेना से युद्ध जारी रखने से रोक दिया। उसने कूफा की सुरक्षा और मोआविया की दिखावटी शांतिप्रेमी चाल को आधार बनाकर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सेना को पीछे हटने के लिए कहा। अशअस विदित रुप में तो नहरवान युद्ध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के विरुद्ध हो जाने वाले लोगों से नहीं मिला परंतु अपने समय की बहुत सी घटनाओं में उसके कृत्यों के परिणामों को भलिभांति देखा जा सकता है। नहजुल बलाग़ा के प्रसिद्ध व्याख्याकर्ता और सुन्नी विद्वान इब्ने अबिल हदीद हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शासन काल के समस्त षडयंत्रों का स्रोत अशअस को मानते हैं। वे उसके बारे में कहते है” अगर उसका कार्य न होता तो नहरवान युद्ध न होता और अली नहरवान के लोगों के साथ मोआविया से युद्ध करने के लिए जाते और शाम अर्थात वर्तमान सीरिया पर नियंत्रण कर लेते क्योंकि उन लोगों ने अपनी सहमति की घोषणा कर दी थी” अशअस इतना बड़ा षडयंत्रकारी था कि स्वयं हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कूफा के मिमंबर से उसे मित्थ्यारचारी कहा।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शासन काल का एक अन्य मित्थ्यारचारी अबू मूसा अशअरी था। जिस समय जमल नामक युद्ध हुआ था उस समय वह कूफा का गवर्नर था। उसे चाहिये था कि हज़रत अलैहिस्सलाम की सहायता के लिए सेना एकत्रित करके रणक्षेत्र रवाना करता परंतु उसने एसा नहीं किया और कहा कि अली सच्चे मार्गदर्शक हैं और उनके साथ बैअत भी सही है परंतु उनके साथ मुसलमानों से युद्ध करना सही नहीं है” उसने इस प्रकार का मित्थ्यारचारपूर्ण व्यवहार करके कूफा के लोगों को हज़रत अली अलैहिस्सलाम का साथ देने से रोक दिया। जब इस बात की खबर हज़रत अली अलैहिस्सलाम को मिली तो उन्होंने अबू मूसा अशअरी के नाम पत्र लिखा और उसे अपने साथ सहकारिता करने के लिए आमंत्रित किया परंतु अबू मूसा ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने मित्थ्यारचारपूर्ण व्यवहार को जारी रखा यहां तक कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसे उसके स्थान से बर्खास्त कर दिया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अबू मूसा अशअरी को बर्खास्त करने के लिए जो पत्र लिखा था उसमें उसकी भर्त्सना की थी और उसे बारगाह से निकाला गया बताया था और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बयान का स्रोत पवित्र कुरआन था। सांसारिक मोह रखने वाले व्यक्तियों का भविष्य व अंत अबू अशअरी जैसा होता है।  

 

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