बहलोल और हारून

अगले रोज़ बोहलोल दरबार में हाज़िर था- हारून अपने ज़र-निगार तख़्त पर शाही लिबास पहने बङी तमकेनत से बैठा हुआ था- बोहलोल अपनी बोसीदा पापोश और पेवंद लगी गुदङी के साथ उसके उसके हुज़ूर में पेश किया गया- हारून ने एक क़हर आलूद निगाह उसपर डाली और ख़श्मगीन लहजे में बोला- "बोहलोल- तू बहुत होशियार बनता है- लेकिन हमें पता चला के तू हुकूमत के बाग़ी मूसा बिन जाफ़र (अ0) के दोस्तदारों में से है- उन्हीं के हुक्म पर तू दीवाना बना हुआ है- ताकि अवाम को उनकी तरफ़ मुतावज्जेह करके हमारी हुकूमत का तख़्ता उलट दे- तू समझता है के पागल होने की वजह से तेरी कोई पूछ-ताछ नहीं होगी- लेकिन याद रख़ हुकूमत तेरी तरफ़ से ग़ाफ़िल नहीं है- तेरी सब सर-गर्मियों की ख़बर हमें बराबर मिलती है"-

बोहलोल ने मज़हक़ा-ख़ेज़ सूरत बनाई "ज़ाहिर है के तुम्हारे नमक हलाल शिकारी कुत्ते सही इत्तेलाअ ही लेकर आये होगें- तो अब ख़लीफ़ा मुझसे कैसा सुलूक करेंगें"-

भरे दरबार में मज़ाक़ उङाने पर हारून और तेश में आया- "तुम्हे ऐसा सबक़ सिखाया जायेगा के तुम दूसरो के लिए नमूना-ए-इबरत बन जाओगे"-

उसने ग़ुस्से से कहा और अपने ग़ुलाम को पुकारा- "मसरूर ले जाओ इस ग़ुस्ताख़ को- इसके कपङे उतार लो और इस पर गधे का पालान डाल दो- इसके मुँह में लगाम दो- इसे महल और हरम-सरा में फिराओ और उसके बाद मेरे सामने इसका सिरे पुर ग़ुरूर उङा दो"-

दरबार में सन्नाटा छा गया- दरबारी हैबते शाही से काँप गये- लेकिन बोहलोल शाने बेनियाज़ी से ख़ङा मुस्कुराता रहा- मसरूर आगे बढ़ा और उसने बोहलोल की गुदङी घसीट कर परे उछाली- उसका बोसीदा लिबास नोचकर उस-पे-गधे का पालान कस दिया- उसके मुँह में लगाम दी और उसे ख़ींचता हुआ महल और हरम-सरा की तरफ़ ले गया-

शाही दरबारों और महल सराओं में इन्सानियत की तज़लील रोज़ का मामूल है- इसलिये बोहलोल की इस हैबते कज़ाई पर किसी को ताज्जुब नहीं हुआ- महल और हरम-सरा के मकीन, इन्सानियत की इस तौहीन को तमाशे की तरह देखते रहे- किसी ने सोचा के बोहलोल तो दीवाना है- इसलिये सज़ा का मुस्तौजब नहीं लेकिन जान के ख़ौफ़ ने ज़बान को बन्द कर रखा था- कोई कुछ न कह सका-

मसरूर उसकी लगाम खींचता हुआ उसे दरबार में वापिस ले आया- और हारून के सामने अदब से झुक कर बोला- "आली-जहा आपके हुक्म की तामिल हुई- क्या इसकी गर्दन उङा दी जाये-

हारून ने अभी जवाब नहीं दिया था कि नागाह उसका वज़ीर जाफ़र बर-मक्की दरबार में दाख़िल हुआ- "उसने हैरत से बोहलोल की यह हालत देखी और बोला-

बोहलोल ख़ैरियत तो है- ऐसा क्या कुसूर हो गया तुझसे जो यह हालत बनी है"- ?

बोहलोल हँसा- "जनाबे आली- यह तो कुछ भी नहीं अभी तो मेरी गर्दन भी मारी जायेगी"-

"मगर किस जुर्म में" - ?  जाफ़र बर-मक्की ने पूछा

"मैने एक सच्ची बात कह दी थी- जिसके इनाम में ख़लीफ़ा ने मुझे ख़ुल-अते फाख़ेरा अता की है और जामे मर्ग मेरा इन्तेज़ार कर रहा है"-

हारून को बे साख़्ता हँसी आ गयी- ख़लीफ़ा को हँसते देखकर दरबारी और जाफ़र बर-मक्की जो अपनी हँसी ज़ब्त कर रहे थे- वह भी हँस पड़े  हारून का ग़ुस्सा काफ़ूर हो गया और उसने शाही हुक्म जारी किया- जैसा बोहलोल ने कहा है उसे वैसा ही ख़ुल्अते फ़ाखरा अता किया जाये"-

"ख़लीफ़ा के इस करम का शुक्रिया मुझे अपनी पेवंद लगी गुदङी ही ग़नीमत है"- बोहलोल ने अपनी गुदङी शाने-पे डाली-

"बोहलोल को दरहम व दीनार अता किये जायें" – शाही फ़रमान जारी हुआ-

"नहीं- मुझे अहले जहन्नम की पेशानियों और पुश्तो पर लगने वाली मोंहरों की ज़रूरत नहीं"- बोहलोल चलने पर तैयार हो गया-

हारून ने उसे रोका- "बोहलोल तुम अगर इस इनाम व इकराम को अपने इस्तेमाल में नहीं लाना चाहते तो ग़रीबो और मोहताजो में बाँट देना- उनका भला हो जायेगा"

बोहलोल रूक गया और उसने रक़म की थैलियाँ ग़ुलाम से ले लीं- चन्द क़दम चला और रूक गया- कुछ सोचने लगा- फिर आगे बढ़ा और रूक गया- फिर कुछ सोचा और वापिस पलट आया-

उसने रक़म की थैलियाँ हारून के सामने ढेर कर दीं- और बोला "हारून- मैंने बहुत सोचा है के इन अशर्फ़ियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत किसको है लेकिन मुझे तुझसे ज़्यादा मुस्तहक़ कोई और नज़र नहीं आया- तुझसे ज़्यादा नादार और ज़रूरतमन्द शायद और कोई नहीं- क्योंकि में रोज़ देखता हूँ के तेरे कारिन्दे हर जगह लोगो को कोङे मार मारकर उनसे टैक्स वुसूल करते हैं- ताकि तेरे ख़ज़ाने पूर हों- सारे शहर में सबसे बङा ज़रूरतमन्द तो तू ख़ुद है- इस लिये यह रक़म तू ही रख ले"-

ख़लीफ़ा दम-ब-ख़ुद रह गया- अहले दरबार सन्नाटे में आ गये- बोहलोल के अन्जाम को सोचकर उनके रोंगटे ख़ङे हो गये- लेकिन बोहलोल इत्मीनान से चल ख़ङा हुआ-

"रोको- इस दीवाने को रोको"-

अचानक ख़लीफ़ा हारून की आवाज़ गूँजी-

अहले दरबार इस तसव्वुर से ही काँप गये के अब बोहलोल का इताबे शाही से बचना मोहाल है-

दो ग़ुलाम तेज़ी से आगे बढ़े और बोहलोल को घसीट कर हारून के सामने ले आये"-

हारून की आँखे नम थी और पशेमानी ने उसकी आवाज़ को पस्त कर दिया था- वह गहरी साँस लेकर बोला- "बोहलोल- तेरी दीवानगी हम जैसे होशमन्दों के लिये एक नेमत है-

तेरी इस बात ने मेरे दिल को नर्म कर दिया है मेरा जी चाहता है के तुझसे कुछ पंद व नसीहत की फ़रमाइश करूँ"-

ग़ुलामों ने फ़ौरन ही बोहलोल को छोङ दिया- वह अपनी मख़सूस शाने बेनियाज़ी से गोया हुआ- "हारून- पिछले ख़लीफ़ाओं के महलों और उनकी क़ब्रों को देखकर इबरत हासिल कर- तू ख़ूब जानता है कि यह लोग अर्स-ए-दराज़ तक उन महलों में ऐश व इशरत की ज़िन्दगी ग़ुज़ारते रहे- और अब क़ब्रों में पङे पछताते और अफ़सोस करते हैं के काश- उन्होने अपनी आख़ेरत के लिये कुछ नेक आमाल अपने साथ ले लिये होते- मगर अब उन्हे इस पछतावे से कुछ हासिल नहीं हो सकता- हम सब भी जल्द-या-ब-देर इसी अन्जाम को पहुँचने वाले हैं- जब यह शाही रोब व दबदबा और व शौकत कोई काम नहीं देगी"- हारून पर कपकपी सी तारी हो गई-
मुतास्सिफ़ लहजे में बोला- "बोहलोल कुछ ऐसे आमाल बता जिनके बजा लाने से अल्लाह मुझसे राज़ी हो जाये"-

"उसकी मख़लूक़ को ख़ुश कर- वह तुझसे राज़ी हो जायेगा"- बोहलोल ने जवाब दिया-

"अब इसकी तदबीर भी बता दो के ख़ल्के ख़ुदा को किस तरह ख़ुश रखा जा सकता है"- हारून ने पूछा

"अदल व इन्साफ़ में सबको बराबर का दरजा दो जो अपने लिये मुनासिब नहीं समझते- दूसरो को भी उसका मुस्तहक़ न समझ- मज़लूम की फ़रियाद तवज्जोह से सुनो और इन्साफ़ से फ़ैसला करो- "बोहलोल ने बुर्दबारी से कहा"

"आफ़रीन सद आफ़रीन बोहलोल-मरहबा- तुमने कैसी हक़ बात कही है- मरहबा हारून ने तौसीफ़ी लहजे में कहा- उसकी हाँ में हाँ मिलाने वाले दरबारियों ने भी नारा-हाय-तहसीन बलन्द किये

हारून ने हुक्मे शाही जारी किया- "हुक्म दिया जाता है के शाही ख़ज़ाने से बोहलोल के तमाम क़र्ज़ अदा कर दिये जायें"-

"हारून क़र्ज़ से भी कभी क़र्ज़ अदा हुआ है"-

बोहलोल ने उसे मुख़ातब करके कहा- "शाही ख़ज़ाने में जो कुछ है वह अवाम का माल है और ख़लीफ़ा पर क़र्ज़ है- तुम्हारे लिये यही मुनासिब है के अवाम का क़र्ज़ उन्हे लौटा दो- मुझे तुम्हारा यह एहसान नही चाहिये"-

"तो फिर बोहलोल कोई तो ख़्वाहिश करो- मैं दिल से चाहता हूँ के तुम्हारी कोई आरज़ू पूरी करूँ"- हारून ने ज़ोर देकर कहा-

"तो फिर मेरी ख़्वाहिश और आरज़ू यही है के मेरी नसीहतों पर अमल करो- लेकिन अफ़सोस के दुनिया की शान शौकत और इक़्तेदार का नशा बहुत जल्द मेरी इन नसीहतों को फ़रामोश कर देगा"-

यह कहता हुआ वह दरबार से बाहर निकल गया- हारून और अहलेदरबार झुके हुए सरों के साथ ख़ामोश बैठे रह गये ।