अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

भाप की कीमत

0 सारे वोट 00.0 / 5

किसी ने हारून से कहाः बहलोल कल बग़दाद के बड़े बाजार में एक फकीर नानबाई की दुकान के सामने से गुज़र रहा था- उसने तरह- तरह के खाने चुल्हो पर चढ़ा रखे थे- ज़िससे भाँप निकल रही थी- उन खानो की ख़ुश्बू उन खानो की लज़्जत का पता दे रही थी और इर्द- गिर्द गुज़रने वालो को अपनी तरफ मुतावज्जेह कर रही थी

 
"बेचारे फकीर का दिल भी ललचाया- लेकिन ग़रीब की गिरह में माल कहाँ था- जो इन खानो की लज़्ज़त खरीद सकता- मगर वहाँ से हटने को भी उसका दिल नहीं चाहता था- खानो की खुश्बू उसकी भूक बड़ा रही थी- बिल आख़िर उसने अपने थैले में से सूखी रोटी निकाली और खाने की देग़ की भाँप से नर्म करके उसे खाने लगा ,जिसमें खाने की ख़ुश्बू बसी हुई थी-


नानबाई चुपचाप यह तमाशा देखता रहा- जब फकीर की रोटी ख़त्म हो गई और वह चलने लगा- तो नानबाई ने उसका रास्ता रोक लिया- "क्यों ओ मुस्टण्डे- कहाँ भागा जाता है- ला मेरे पैसे निकाल"-


"कौन से पैसे-" ?फकीर ने हक दक हो कर पूछा- "अच्छा ।।। कौन से पैसे"-


उसने अल्फाज़ चबाकर उगले- "अभी जो तूने मेरे खाने की भाँप के साथ रोटी खाई है- वह क्या तेरे बाप की थी- उसकी क़ीमत कौन चुकायेगा"


"अजीब इन्सान हो ,तुम- वह भाँप तो उड़कर हवा में मिल रही थी- अगर मैंने उसके साथ रोटी खाकर ख़ुद को बहलाने की कोशीश की है तो उसमें तेरा क्या चला गया है जिसकी मैं क़ीमत अदा करूँ- फकीर ने परेशान होकर कहा-


"बस-बस- ।।। अब इधर-उधर की बाते मत कर- मैं तेरी जान हर्गिज़ न छोडूँगा- मैं अपना माल वसूल कर रहूँगा"- नानबाई ने उसका गरेबान पकड़ लिया- फकीर बेचारा परेशान हो गया के इस हट्टे-कट्टे नानबाई से किस तरह जान छुड़ाये- उनकी तकरार बढ़ती जा रही थी- के बोहलोल उधर से गुज़रा और उनके क़रीब रूककर उनकी बाते सुनने लगा- फकीर ने अपना हमदर्द समझकर यह बात उसे सुनाई- जो मो वह बोहलोल नानबाई से बोला- "भाई यह बात बताओ के क्या इस ग़रीब आदमी ने तुम्हारा खाना खाया है"


"नहीं- खाना तो नहीं खाया- मगर मेरे खाने की भाँप से फायदा तो उठाया है- मैंने उसी की क़ीमत माँगी है- लेकिन इसकी समझ में यह बात ही नहीं आती"- नानबाई ने बताया-


"बिल्कुल दुरूस्त कह रहे हो बरादर- बिल्कुल दुरूस्त"- बोहलोल ने सर हिलाया और अपनी जेब से मुटठी भर सिक्के निकाले- वह एक-एक करके उन सिक्को को ज़मीन पर गिराता जाता और कहता जाता- "नानबाई- नानबाई- यह ले पैसों की आवाज़ पकड़ ले- यह ले अपने खाने की भाँप की क़ीमत इन सिक्को की खनक से वुसूल कर ले- ले-ले- यह सिक्को की आवाज़ तेरे खाने की ख़ुश्बू की क़ीमत है- इसे अपने गुल्लक  में डाल ले" इर्द-गिर्द खड़े हुए लोग हँस-हँस कर दोहरे हो गये-


नानबाई अपनी ख़िफ़्फ़त मिटाने को बोला- "यह पैसे देने का कौन-सा तरीक़ा है-" ?


बोहलोल ने जवाब दिया- "अगर तू अपने खाने की भाँप और ख़ुश्बू बेचेगा- तो उसकी क़ीमत तुझे सिक्कों की आवाज़ की सूरत में ही अदा की जायेगी"-

आपका कमेंन्टस

यूज़र कमेंन्टस

कमेन्ट्स नही है
*
*

अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क