अम्र बिल मारूफ़ और नहीअनिल मुन्कर

अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर की मंज़िलत व शरायत


अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर इस्लामी क़वानीन में से दो अहम क़ानून और फ़ुरुए दीन में से हैं। क़ुरआने करीम और मासूम राहनुमाओं ने इस फ़रीज़े के बारे में काफ़ी ताकीद की है। सिर्फ़ इस्लाम ही नही बल्कि दूसरे अदयाने आसमानी ने भी अपने तरबीयती अहकाम को जारी करने के लिये इन का सहारा लिया है लिहाज़ा अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर की तारीख़ बहुत पुरानी है। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस सलाम फ़रमाते हैं कि अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर अंबिया का रविश और नेक किरदार अफ़राद का शेवा और तरीक़ ए कार है।

(वसायलुश शिया जिल्द 1 पेज 395)
अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर का मफ़हूम

अम्र यानी फ़रमान और हुक्मे दुनिया, नही यानी रोकना और मना करना।

मारुफ़ यानी पहचाना हुआ, नेक, अच्छा, मुन्कर यानी ना पसंद, ना रवा और बद।

इस्तेलाह में मारुफ़ हर उस चीज़ को कहा जाता है जो इताअते परवर दिगार और उस से क़ुरबत और लोगों के साथ नेकी के उनवान से पहचानी जाये और हर वह काम जिसे शारेअ मुक़द्दस (ख़ुदा) ने बुरा जाना है और हराम क़रार दिया है उसे मुन्कर कहते हैं।

(मजमउल बहरैन कलेम ए मारुफ़ और मुन्कर)
मारूफ़ और मुन्कर के वसीअ दायरे

मारूफ़ और मुन्कर सिर्फ़ सिर्फ़ जुज़ई उमूर ही में महदूद नही हैं बल्कि उन का दायरा बहुत बसीअ है, मारूफ़ हर अच्छे और पसंदीदा काम और मुन्कर हर बुरे और ना पसंदीदा काम को शामिल है।

दीन और अक़्ल की नज़र में बहुत से काम मारूफ़ और पसंदीदा हैं जैसे नमाज़ और दूसरे फ़ुरु ए दीन, सच बोलना, वअदे को वफ़ा करना, सब्र व इस्तेक़ामत, फ़ोक़रा और नादारों की मदद, अफ़्व व गुज़श्त, उम्मीद व रजा, राहे ख़ुदा में इन्फ़ाक़, सिलए रहम, वालेदैन का ऐहतेराम, सलाम करना, हुस्ने ख़ु्ल्क़ और अच्छा बर्ताव, इल्म को अहमियत देना, हम नौअ, पड़ोसियों और दोस्तों के हुक़ूक़ की रिआयत, हिजाबे इस्लामी की रिआयत, तहारत व पाकीज़गी, हर काम में ऐतेदाल और मयाना रवी और सैंकड़ों। उस के मुक़ाबले में बहुत से ऐसे उमूर पाये जाये हैं जिन्हे दीन और अक़्ल ने मुन्कर और ना पसंद शुमार किया है जैसे तर्के नमाज़, रोज़े न रखना, हसद, कंजूसी, झूट, तकब्बुर, ग़ुरूर, मुनाफ़ेक़त, ऐब जूई और तजस्सुस, अफ़वाह फैलाना, चुग़ल ख़ोरी, हवा परस्ती, बुरा कहना, झगड़ा करना, ना अम्नी पैदा करना, अंधी तक़लीद, यतीम का माल खा जाना, ज़ुल्म और ज़ालिम की हिमायत करना, मंहगा बेचना, सूद ख़ोरी, रिशवत लेना, इंफ़ेरादी और इज्तेमाई हुक़ूक़ को पामाल करना वग़ैरह वग़ैरह।
अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर की अहमियत

परवरदिगारे आलम इरशाद फ़रमाता है कि मोमिन मर्द और मोमिन औरतें आपस में एक दूसरे के वली और मददगार हैं कि एक दूसरे को नेकियों का हुक्म देते हैं और बुराईयों से रोकते हैं। (सूर ए तौबा आयत 71)

मौला ए कायनात हज़रत अली अलैहिस सलाम उन दो वाजिबे इलाही का दूसरे इस्लामी अहकाम से मुक़ायसा करते इरशाद फ़रमाते हैं कि याद रखो कि जुमला आमाले ख़ैर बशुमूले जिहादे राहे ख़ुदा, अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर के मुक़ाबले में वही हैसियत रखते हैं जो गहरे समन्दर में लुआबे दहन के ज़र्रात की हैसियत होती है। (नहजुल बलाग़ा कलेमा 374)

रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम एक ख़ूब सूरत मिसाल में मुआशरे को एक कश्ती से तशबीह देते हुए फ़रमाते हैं कि अगर कश्ती में सवार अफ़राद में से कोई यह कहे कि कश्ती में मेरा भी हक़ है लिहाज़ा उस में सूराख़ कर सकता हूँ और दूसरे मुसाफ़ेरीन उस को इस काम से न रोकें तो उस का यह काम सारे मुसाफ़िरों की हलाकत का सबब बनेगा। इस लिये कि कश्ती के ग़र्क़ होने से सब के सब ग़र्क़ और हलाक हो जायेगें और दूसरे अफ़राद इस शख़्स को इस काम से रोर दें तो वह ख़ुद भी निजात पा जायेगा और दूसरे मुसाफ़ेरीन भी।

(सही बुख़ारी जिल्द 2 पेज 887)

इस्लाम सिर्फ़ इंसानों के मुतअल्लिक़ ही अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर का हुक्म नही देता है बल्कि जानवरों के सिलसिले में भी उस को अहमियत दी है। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस सलाम फ़रमाते हैं कि बनी इसराईल में एक बूढ़ा आबिद नमाज़ में मशग़ूल था कि उस की निगाह एक बच्चे पर पड़ी जो एक मुर्ग़े के पर को उखाड़ रहे थे आबिद उन बच्चों को इस काम से रोके बग़ैर अपनी इबादत में मसरुफ़ रहा, ख़ुदा वंदे आलम मे उसी वक़्त ज़मीन को हुक्म दिया कि मेरे इस बंदे को निगल जा।

(बिहारुल अनवार जिल्द 97 पेज 88)
शरायते अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर

उलामा और मराजे ए कराम ने अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर के कुछ शरायत बयान किये हैं जिन को ख़ुलासे के साथ बयान किया जा रहा है:

1. मारूफ़ और मुन्कर की शिनाख़्त

अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर को सही तरीक़े से अंजाम देने की सब से अहम शर्त मारूफ़ और मुन्कर, उन के शरायत और उन के तरीक़ ए कार को जानना है लिहाज़ा अगर कोई शख़्स मारूफ़ और मुन्कर को न जानता हो तो किस तरह उस को अंजाम देने की दावत दे सकता है या उस से रोक सकता है?।। एक डाक्टर और तबीब उसी वक़्त बीमार का सही इलाज कर सकता है जब वह दर्द, उस की नौईयत और उस के असबाब व अवामिल से आगाह हो।

2. तासीर का ऐहतेमाल और इमकान

अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर की दूसरी शर्त अम्र व नही की तासीर का ऐहतेमाल और इमकान पाया जाता हो। अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर एक बेकार और बे मक़सद काम नही है बल्कि एक अमल है हिसाब व किताब और ख़ास क़वानीन व शरायत के साथ इस फ़रीज़े की अहमियत इस हद तक है कि ख़ुदा वंदे आलम ने तासीर न रखने के क़वी गुमान के बावजूद भी अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर को वाजिब क़रार दिया है। इसी बेना पर मराजे ए तक़लीद फ़रमाते हैं कि यहाँ तक कि अगर हम बहुत ज़ियादा ऐहतेमाम दें कि फ़लाँ मक़ाम पर अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर का असर न होगा उस का वुजूब इंसान की गर्दन से साक़ित नही होगा लिहाज़ा अगर गुमान रखते हुए हों कि अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर करना असर अंदाज़ होगा तो ऐसी सूरत उस पर अमल करना बाजिब है।

3. ज़रर और नुक़सान का ख़तरा न हो

अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुन्कर की तीसरी शर्त यह है कि अम्र व नही करने की वजह से ज़रर और नुक़सान का ख़तरा न हो। इस फ़रीज़ ए इलाही के बहुत अहम और क़ीमती नतायज सामने आते हैं लिहाज़ा अगर यह काम सही और अच्छे तरीक़े से अंजाम न पाये या नुक़सानदेह हो जाये ऐसी सूरत में एक अम्रे इलाही नही हो सकता इस लिये कि अपने हदफ़ और मक़सद से मुनासेबत नही रखता।