हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के इरशाद

१. आपस में इत्तेहाद (मेल जोल) क़ायम करने के लिये झूठ भी नापसन्दीदा नहीं है।


२. ख़ुशकिस्मत वह है जो बुज़ुर्गों (अपने से बढ़ों) और नेक लोगों से मेल मिलाप रखे।


३. क्या कहना उस शख़्स का जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी बर्ते और बुरे वक़्तो में काम आए।


४. वायदे का वफ़ा करना (पूरा करना) और मुआहदे (समझौते) का एहतेराम (सम्मान) करना ईमान का जुज़ (टुकड़ा) है।


५. अगर किसी को कोई चीज़ नहीं मालूम तो मालूम करने में शर्म महसूस न करे क्योंकि हर इन्सान की क़ीमत उसकी मालूमात (ज्ञान) पर है।


६. जो शख़्स इस हाल में सुबह करे कि किसी पर ज़ुल्म का ख़्याल भी दिल में न लाये ख़ुदा उसके गुनाहों को दरगुज़र करेगा।


७. कभी भी ओमूरे ख़ैर (अच्छे कार्य) को मिन्नत (अहसान) जता कर ज़ाया मत करो।


८. अपनी ज़िन्दगी के दौरान हमेशा ओमूरे ख़ैर में मशग़ूल (वयस्त) रहो और दरियाए रहमते ख़ुदा से सेराब होते रहो।


९. पस्त अफ़राद के पास सिवाये यावा सराई (अपनी बड़ाई करना) और नासज़ा कल्मात (बुरे शब्द) के कोइ और हर्बा नहीं है।


१०. आज़ाद वह है जो अपने को ख़्वाहिशाते नफ़्स (आत्मइच्छाओं) से आज़ाद रखे।


११. अपने दुश्मनों से अच्छे अख़लाक़ (शिष्टाचार) का बर्ताव (व्यवहार) करो जल्दी कामयाब (सफ़ल 0होगे।


१२. जो कोई अपने भाई के लिये कुआँ खोदेगा ख़ुद उसका शिकार होता है।


१३. ग़ौर व फ़िक्र (सोच विचार) नूरानियत का बायस (कारण) और ग़फ़लत व बेख़बरी तारीकी लाती है।


१४. सबसे ख़तरनांक मर्ज़ हवा व हवस (इच्छापूर्ति) की पैरवी है।


१५. नेकी (अच्छाई) करो ताकि दूसरे तुमसे नेकी करें दूसरों पर रहम करो ताकि तुम पर रहम किया जाये।


१६. अल्लाह की राह (राह) में काम करते वक़्त (समय) लोगों की सरज़निश (ऐतेराज़) की परवाह मत करो।


१७. जो शख़्स (मनुष्य) दूसरों के ओयूब (ऐब का बहु) पर से परदा उठायेगा नागाह (अचानक) ख़ुद उसके उयूब बे परदा हो जायेगें।


१८. तहसीले इल्म (ज्ञान प्राप्ती) में अगर कोई लुक़्मा ए अजल (मर जाये) हो जाये तो गोया वह शहीद है।


१९. मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो इससे दिल के कीने (द्वेष ,वह शत्रुता जो मन में रहे) दूर हो जाते हैं।


२०. इल्म (ज्ञान) बेहतरीन मीरास (नानकार) है और अख़लाक़ (शिष्टाचार) बेहतरीन ज़ेवर है।


२१. नेक अख़लाक़ (सुशीलता) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की हमनशीनी (संगत) से हासिल होता है।


२२. बुरी आदतें जाहिलों (अज्ञानियों) की हमनशीनी (संगत) की देन है।


२३. सितमगर के लिये हिसाब का दिन (महाप्रलय) ज़्यादा सख़्त (कठोर) होता है मुक़ाबले में मज़लूम (जिसके साथ अन्याय किया गया हो) पर सितम करने के दिन से।


२४. जो अपनी ख़्वाहेशात (इच्छाओं) का ग़ुलाम हुआ गोया उसने अपने दुश्मन की ख़्वाहेशात (इच्छाओं) को पूरा कर दिया।


२५. जिस शख़्स में जितना अदब होगा ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक़ वह उतना ही मोहतरम होगा।


२६. जिस दस्तरख़ान पर शराब हो उस पर खाना खाना हराम है।


२७. पाकदामनी हवस को कम करती है और सदाक़त रहमते ख़ुदावन्दी का बायस (कारण) होते हैं।


२८. दूसरों की लग़्ज़िशों (त्रुटियों) से चश्मपोशी (अनदेखी) करना बेहतरीन नेकी है और उससे तुम्हारे बुज़र्गी (बड़ापन) भी ज़ाहिर होती है।


२९. ईमान वाला हमेशा कीना (द्वेष) और शक़ावत (ज़ुल्म) से दूर रहता है।


३०. ख़ुद पसन्दी (ख़ुद को अच्छा समझना) हिमाक़त (बेवक़ूफ़ी) व नादानी की अलामत है।


३१. यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी (दायित्व) है के हमेशा हक़ गो (सही बात कहो) रहो अहद व पैमान को पूरा करो अमानत (धरोहर) को अदा करो ख़्यानत (दूसरें के धरोहर के प्रति बेईमानी का विचार) तर्क (छोड़ दो) करो।


३२. हरगिज़ लोगों की ख़ुशनूदी के लिये अल्लाह को ग़ज़बनांक न करना और लोगों से क़ुरबत (क़रीबी) के लिये अल्लाह से दूर मत होना।


३३. एक दूसरे को तोहफ़ा (उपहार) देकर मोहब्बत बढ़ाओ और जो तुम्हें तोहफ़ा (उपहार) दे तुम भी उसे हदिया दो।


३४. कितना बद बख़्त है वह इन्सान जो दुनिया में फ़क़ीर रहे और आख़ेरत (परलोक) में अज़ाबे इलाही (ईश्वरीय प्रकोप) में गिरफ़्तार रहे।


३५. सबसे बड़ा ज़ुल्म व सितम वह है जो इन्सान अपने आइज़्ज़ा (रिश्तेदारों) पर करे।


३६. जब मुस्तहब (जिसके करने में सवाब हो) काम वाजिब ओमूर (जिनके न करने में अज़ाब हो) में रूकावट (बाधा) का बायस (कारण) हों तो उन्हें तर्क (छोड़) कर दो।


३७. सहर (प्रातः) के वक़्त सफ़र शुरू करो बहुत फ़वायद (फ़ायदे का बहु) हासिल होते हैं।


३८. मुश्किलात पर सब्र (सहनशीलता) के ज़रिये क़ाबू हासिल करो क्योंकि बेताबी से अज्र (इनाम) भी ज़ाया (चला जाता) होता है और मुसीबत भी बढ़ जाती है।


३९. जो शख़्स ऐसा काम करे जिससे ज़न व शौहर (मियाँ बीवी) में जुदाई हो जाये उस पर दुनिया व आख़ेरत (परलोक) में ग़ज़बे ख़ुदावन्द (इश्वरीय प्रकोप) रहेगा।


४०. अल्लाह से नज़दीक होने की अलामत है के हमेशा उससे मागें और लोगों से नज़दीक होने के लिये ज़रूरी है के उनसे मागें।


(सलवात)