अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

नजफे हिन्द जोगीपुरा

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1657 सितम्बर के महीने में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ  बीमार पड़ा तो ये मशहूर हो गया की शाहजहाँ का इन्तेकाल हो गया | बादशाहत इस से कमज़ोर होने लगी लेकिन उनका बेटा औरंगजेब तो सियासत में तेज़ था  उसने अपने बड़े भाई जो शाहजहाँ का वारिस था उसे एक साल के अंदर ही इस दौड़ से अलग कर दिया और  शाहजहाँ को किले में ही क़ैद कर लिया और बादशाह बन बैठा|

तख़्त पे बीतते ही उसने शाहजहाँ के वफादार कमांडर और गवर्नर को जान से मार दिए जाने का हुक्म सुना दिया| उन्ही कमांडर में से एक थे राजू दादा जिन्होंने ने औरंगजेब को पसंद नहीं किया| औरंगजेब से बचने के लिए राजू दादा अपने वतन जोगी राम पूरा , बिजनौर वापस चले आये| वहां उन्होंने अपने गाँव वालों को बता दिया कि औरंगजेब के फ़ौज से उनकी जान को खतरा है| राजू दादा की इमानदारी और गरीब परवर मिज़ाज ने उन्हें गाँव में अच्छी इज्ज़त दे रखी थी| गाँव वाले उनकी हिफाज़त करने लगे और बहुत ही सावधान रहते थे कि कहीं औरंगजेब के लोग राजूदादा का कोई नुकसान न कर दें| राजू दादा अपने गाँव के पास वाले जंगल में छुपे रहते थे|

राजू दादा मौला अली (अ.स ) के चाहने वाले थे और उन्होंने मौला अली (अ.स) को मदद के लिए नाद ऐ अली और या अली अदरिकनी पढ़ के बुलाना शुरू किया | एक दिन एक बूढ़े हिन्दू ब्राह्मण जो घास काट रहा था और इतना बुध था की ठीक से देख भी नहीं सकता था उसने एक आवाज़ सुनी और जब नज़र डाली तो उसे महसूस हुआ की कोई शख्स घोड़े पे सवार है और उस से कह रहा है कहा है राजू दादा जो मुझे बुलाया करता था? जाओ उस से कह दो मैंने मिलने को बुलाया है| उस बूढ़े ने कहा मैं ठीक से देख नहीं सकता और कमज़ोर भी हूँ जंगले में कैसे जाऊं उन्हें बुलाने ?अचानक उस बूढ़े को महसूस हुआ की उसे सब कुछ दिखाई देने लगा और उसके जिस्म में ताक़त भी आ गयी| फिर हजरत अली (अ.स ) ने कहा अब जाओ और राजू दादा से कहो मैं आया हूँ|

जब राजू दादा ने उस किसान से सुना तो वो समझ गए की हजरत अली (अ.स) आये हैं और राजू दादा दौड़ के उस मुकाम की तरफ चले| गाँव वालों ने जब राजू दादा को दौड़ते देखा तो समझे औरंगजेब के सिपाही आये हैं और राजू दादा की मदद के लिए उनके पीछे भागने लगे| राजू दादा जब उस जगह पे पहुंचे तो वहाँ कोई नहीं था लेकिन घोड़े के खड़े होने के निशाँ बाकी थे| लोगों से उस जगह को घेर दिया लेकिन राजू दादा उसी जगह पे जहां मौला अली (अ.स ) आये थे वहाँ बिना कुछ खाए पिये सात दिन तक नादे अली पढ़ पढ़ के मौला अली (अ.स ) को बुलाने लगे|

सातवें दिन मौला अली (अ.स०) ने राजू दादा को बशारत दी और कहा मत घबराओ औरंगजेब तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता तुम्हे उस से डरने की ज़रुरत नहीं है| राजू दादा ने मौला अली (अ.स) से कहा की वो चाहते हैं की आप ऐसी कोई चीज़ दे जायें जिस से कौम को शिफा हो उनका भला हो|तो मौला मौला अली (अ.स) के मोजिज़े से वहाँ एक पानी का चश्मा फूटा जो आज भी मौजूद है| जहां मौला अली (अ.स) खड़े थे वहाँ की मिटटी में आज भी शिफा है।

 

(वल्लाहो आलम)

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