अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

आलमे बरज़ख़ के बारे में चन्द सवालात

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उल्माऐ आलाम और सादाते किराम की एक बुज़ुर्ग शख़सियत ने जो शायद अपना नाम ज़ाहिर न करना चाहते हों नक़्ल फ़रमाया है कि मैंने अपने पिदरे अल्लामा को ख़्वाब में देखा और उनसे कुछ सवालात किये और उन्होंने उनके जवाबात दिये।

 

1. मैंने पूछा कि जो रूहें आलमें बरज़ख़ के अन्दर अज़ाब में मुब्तिला हैं उनका अज़ाब और सख़्तियाँ किस तरह की हैं ?उन्हों ने फ़रमाया चूँकि अभी तुम आलमे दुनिया में हो लिहाज़ा मिसाल के तौर पर यही बताया जा सकता है कि जिस तरह तुम किसी कोहिस्तान में एक दर्रे के अन्दर हो और उसके चारों तरफ़ इतने बलन्द पहाड़ हों कि कोई शख़्स उन पर चढ़ने की ताक़त न रखता हो और इस आलम में एक भेड़िया तुम पर हमला करदे जिस से फ़रार कोई रास्ता न हो।

 

2. फ़िर मैंने दरयाफ़्त किया कि मैंने दुनिया में आपके लिये जो उमूरे ख़ैर आपके लिये अन्जाम दिये हैं वो आप तक पहुँचे या नहीं ?और हमारी ख़ैरात से आपको किस तरह से फ़वायद हासिल होतें हैं ?फ़रमाया हाँ वो सब हम तक पहुँच गऐ लेकिन उस से फ़ायदा उठाने की कैफ़ियत भी तुम्हारे सामने एक मिसाल के ज़रिये बयान करता हूँ ,जिस वक़्त तुम एक ऐसे हम्माम के अन्दर जो बहुत ही गर्म और मजमे के हुजूम से छलक रहा हो वहाँ सांस लेने की कसरत ,बुख़ारात और हरारत की वजह से तुम्हें साँस लेना दुशवार हो जाऐ ऐसे आलम में एक गोशे से हम्माम का दरवाज़ा खुल जाए और उस से ख़ुशगवार नसीमे सहरी का ठन्डा झोंका तुम्हारे पास पहुँचे तो तुम किस क़दर मसर्रत ओ राहत ओ आज़ादी महसूस करोगे ?बस तुम्हारी ख़ैरात देखने क बाद यही कैफ़ियत हमारी होती है।

 

3. जब मैंने अपने बाप को सही ओ सालिम और नूरानी सूरत में पाया और देखा कि सिर्फ़ उनके होंठ ज़ख़्मी हैं और उनसे पीप और ख़ून रिस रहा है तो मैंने उन मरहूम से इसका सबब दरयाफ़्त किया और कहा कि अगर मुझसे कोई ऐसा अमल हो सकता हो जिस से आपके होंठों को फ़ायदा पहुँच सके तो फ़रमाइये ताकि उसे अन्जाम दूँ ,उन्होंने जवाब में फ़रमाया कि इसका इलाज सिर्फ़ तुम्हारी अलवीया माँ के हाथ में है क्योंकि इसका बाएस फ़क़त उसकी वो इहानत है जो मैं दुनिया में किया करता था चूकि उसका नाम सकीना है लिहाज़ा जब मैं पुकारता था तो ख़ानम सक्को कहा करता था और वो इस से रंजीदा ख़ातिर होती थी अगर तुम मुझ से राज़ी कर सको तो फ़ायदे की उम्मीद है मोहतरम नाक़िल फ़रमाते हैं कि मैंने ये सूरते हाल अपनी माँ के सामने पेश की तो उन्होंने जवाब में कहा कि हाँ ! तुम्हारे बाप मुझको पुकारते थे तो मेरी तहक़ीर के लिये ख़ानम सक्को कहते थे मुझे जिस से मैं सख़्त आज़ुरदा ख़ातिर और रंजीदा होती थी लेकिन उसका इज़हार नहीं करती थी और उनके ऐहतेराम के पेशेनज़र कुछ नहीं कहती थी अब जबकि वो ज़हमत में मुब्तिला और परेशान हैं तो मैं उन्हें मुआफ़ करती हूँ और उनसे राज़ी हूँ और उनके लिये समीमे कल्ब से दुआ करती हूँ। इन तीन सवालात और उनके जवाबात में ऐसे मतालिब पोशीदा हैं जिनका जानना ज़रूरी है और मैं मोहतरम नाज़िरीन को मुतावज्जे करने के लिये मुख़्सर तौर पर उनकी यादआवरी करता हूँ।

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