हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के इरशाद

१. तन्दरूस्ती के वक़्त (समय) बीमारी के लिए और ज़िन्दगी में आख़ेरत (परलोक) के लिए तूशा (सामाग्री) फ़राहम करो।


२. मुस्कर (नशे वाली चीज़ें) चीज़ों से परहेज़ करो क्योंकि यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।


३. जो कम रोज़ी पर ख़ुदा से राज़ी होगा ख़ुदावन्दे आलम भी उसके अमले क़लील (कम अमल) पर राज़ी रहेगा।


४. झूठी क़सम माल की नाबूदी (बर्बाद) और तेजारत में अदमे बरकत (बरकत का ख़त्म होना) का बायस (कारण) है।


५. सबसे बेहतर वह शख़्स है जिसकी बातें तुम्हारे इल्म (ज्ञान) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) करें और तुमको ख़ैर की दावत दें।


६. अपनी औलाद का एहतेराम (इज़्ज़त) करो और उनकी अच्छी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो।


७. किसी को उस वक़्त तक परहेज़गार न समझा जायेगा जब तक वह शक व शुबाह (संदिग्ध) वाले कामों से इज्तेनाब (बचना) और हराम से बचेगा नहीं।


८. ज़्यादा माल व दौलत से बहुत ख़ुश न हो और किसी हाल में ख़ुदा को न भूलो।


९. हक़ीक़ी मोमिन वह है जो अपने माल में हाजतमन्दो को शरीक करे और लोगों से इन्साफ़ करे।


१०. जिसने तुम पर एहसान किया उसका हक़ तुम पर यह है कि उसका शुक्रिया अदा करो उसके एहसान को भूलो नहीं और उसके नाम को नेक चीज़ों से शोहरत दो।


११. दुनिया की लालच में मुबतला की मिसाल रेशम के उस कीड़े की सी है के जो जितना घूमता है उतना ही अपने को जाल में उलझा लेता है।


१२. अगर तुमसे कोई गुनाह (पाप) सरज़द हो जाये तो फ़ौरन ख़ुदा से तौबा (प्रायश्चित) करो।


१३. जब तुमसे फ़ैसले की तवक़्क़ो (आशा) की जाए तो बहुत होशियार होकर अदालत (न्याय) का ख़्याल रखो।


१४. जो शख़्स अपने और अपने ख़ुदा के दरमियान मामला साफ़ रखता है ख़ुदावन्दे आलम उसके और दूसरें लोगों के दरमियान मामला साफ़ रखता है।


१५. हर शख़्स की क़द्र उसकी ख़ूबियों के बराबर है।


१६. अपने ख़ुदा के अलावा किसी और से उम्मीदवार मत रहो।


१७. ख़ुदावन्दे आलम बेकार आदमी को पसन्द नहीं करता।


१८. जो शख़्स तुमको बुलाये उसकी दावत क़ुबूल (स्वीकार) करो और मरीज़ो की अयादत (बीमार की हालत पूछना) करो।


१९. क़र्ज़ लेने से इज्तेनाब (बचो) करो (क्योंकि) वह रात में अफ़सोस का बायस (कारण) और दिन में ज़िल्लत का बायस है।


२०. जिससे मिलों उसे सलाम करो ताकि ख़ुदावन्दे आलम तुम्हारे अज्र (इनाम) में इज़ाफ़ा करे।


२१. बदबख़्त वह शख़्स है जो तजुर्बा और अक़्ल के फ़वाएद (फ़ायदा का बहु वचन) से महरूम रहे।


२२. तुम चाहे जितना ताक़त व क़ुव्वत ,माल व दौलत में ज़्यादा रहो फिर भी अपने ख़ानदान व क़ौम के मोहताज रहोगे।


२३. दोस्तों का छूट जाना बेकसी है।


२४. छुप कर सदक़ा (गुप्त दान से) देने से ख़ुदावन्दे आलम का ग़ज़ब (ईशवरीय प्रकोप) ज़ाएल (टल जाता है) हो जाता है।


२५. सब्र व रज़ा तमाम ताक़तों से बलन्द है।


२६. बच्चों की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो जो कल मुआशरे (समाज) में उसकी ख़ुबसूरती का बायस (कारण) है।


२७. अल्लाह से नाउम्मीदी (निराशा) का गुनाह बे गुनाहों का ख़ून बहाने से ज़्यादा है।


२८. अपनी औलाद की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो के ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ शोबों में आबरूमन्द और बाइज़्ज़त ज़िन्दगी गुज़ार सकें और तुम्हारे फ़ख़्र (गर्व) का बायस हों।


२९. जो शख़्स अपने घर वालों पर ज़्यादा फ़ेराख़ दिली दिखाता है ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी उनके शामिल हाल रहती है।


३०. यतिमों पर माँ बाप की तरह रहम करो और यह ख़्याल रहे कि आज जो अमल करोगे कल उसी की जज़ा मिलेगी।


३१. जो शख़्स लोगों पर बहुत मिन्नत (ख़ुशामद) रखता है वह लईम व पस्त है।


३२. ख़ुदावन्दे आलम उस जवान को पसन्द करता है जो अपने नापसन्दीदा आमाल पर नादिम (शर्मिन्दा) हो और तौबा (प्रायश्चित) कर ले।


३३. मोमिन की रातों की इबादत उसका शरफ़ है लोगों में बेनियाज़ी (बेपरवाही) उसकी इज़्ज़त।


३४. क्या कहना उस शख़्स का जो हाज़िर लज़्ज़तों को ग़ाएब नेमतों के हुसूल के लिए छोड़ दे।


३५. ग़रीब वह शख़्स है जिसे मुआशरे (समाज) में अपने साथी न मिल सकें।


३६. आख़री ज़माने में जो चीज़ सबसे कम मिलेगी वह मोरिदे इत्मिनान (विश्वसनीय) दोस्त और हलाल आमदनी है।


३७. ख़ुदावन्दे आलम इस्लाम की उन लोगों से ताईद कराता है जो उसके दाएरे में न भी हों।


३८. उन चीज़ों में मश्ग़ूल रहना जो इन्सान के काम न आने वाली हों सख़्त तरीन ग़लती है।


३९. हासिद (ईर्ष्यालु) कभी बा-इज़्ज़त नहीं हो पाता और कीना परवर (मन में बुराई रखने वाला) अपने ग़ुस्से से मरा करता है।


४०. अज़मत (बढ़ाई) उसी को हासिल है जो लोगों को मेज़ाह (मज़ाक़) का ज़रिया न बनाये उनको धोका न दे और उनकी इज़्ज़त में कमी न करे।