शहीदे राबे रहमतुल्लाह अलैह

नाम
शहीदे राबे (र.अ.) का अस्ल नाम मीरज़ा मौहम्मद था, आपका तख़ल्लुस कामिल था।
 

लक़ब
आपको शहीदे राबे (चौथे शहीद) के लक़ब से याद किया जाता है ।


पिता
शहीदे राबे (र.अ.) के पिता मीरज़ा इनायत अहमद कशमीरी थे।


जन्म स्थान व जन्मदिवस
शहीदे राबे (र.अ.) ने कशमीर के एक इल्म और अहलैबेत दोस्त घराने मे अपनी आँखे खोली जिसका समरा हमारे सामने उनका दरजाऐ इजतेहाद पर फाएज़ होना है शहादत के वक्त आपकी उम्र 50 साल बताई जाती है जिससे आप की विलादत के सन् का अंदाजा 1125 हि. की सूरत मे होता है।


तालीम
आपके इल्मे तिब के उस्ताद जनाब हकीम शरीफ खाँ देहलवी थे और आपने इल्मे फिक़्ह की इबतेदाई तालीम जनाब मौलवी सैय्यद रहम अली साहब साहिबे किताबे बदरुद्दुजा से हासिल की।


इजतेहाद
साहिबे नुजुमुस्समा एक रिसाले कि जो शहीद के बारे मे लिखा गया है, से नकल करते है कि उस रिसाले के मौअल्लिफ लिखते है कि मैने शहीद से किये गऐ कुछ शरई मसलो के जवाबो के आखिर मे उन मौहतरम के दस्तखत देखे है जिस से मालूम होता है कि आप दरजाऐ इजतेहाद पर फाएज़ थे।


इलमी सरमाया
आपने मुखतलिफ मौज़ूआत पर 68 किताबे लिखी और आपकी पहली किताब इल्मे तिब मे थी और आपकी मशहूर किताबो मे से नुजहऐ इस्ना अशरया (कि जो मुहद्दिस देहलवी की किताब तोहफाऐ इस्ना अशरया का जवाब है) को खास अहमियत हासिल है और आपकी दिगर किताबे तंबीहे अहले कमाल,  ईज़ाहुल मक़ाल, मुन्तखबे फैजुल क़दीर, मुन्तखबे अनसाबे समआनी, मुन्तखबे कंज़ुल उम्माल वग़ैरा हैं।


वजहे शहादत
शहीद ने मुहद्दिस देहलवी की किताब तोहफाऐ इसना अशरया का जवाब दिया था कि जो मजहबे अहलैबेत को हक साबित करने मे एक बड़ा क़दम था लिहाज़ा कुछ अहलेबातिल आपके दुश्मन हो गऐ और आपको शहीद करने के मंसूबे बनाने लगे।


शहादत
आपको देहली के पास झज्जर नामी जगह के नवाब अब्दुर रहमान ने अपनी बीमारी का बहाना बना कर झज्जर बुलवाया पहले तो शहीद ने मना किया लेकिन बादशाह के इसरार की बिना पर बादिले नाखास्ता झज्जर के लिऐ रवाना हुऐ और आपने देहली से सफर की शुरुआत मे अपने अज़ीज़ो से फरमाते थे कि शायद इस सफर मे मेरा खुदा के यहाँ का बुलावा आ जाऐ बिल आखिर वही हुआ भी कि उस ग़द्दार ने अपने महबूब  लोगो की पैरवी करते हुऐ इमाम अली के नक़शे क़दम पर चलने वाले इस आलिमो हकीमो दाना शख्सियत को जहर के जरीऐ शहीद कर दिया आपकी क़ब्र के ऊपर लिखे अशआर से मालूम होता है कि ये वाकिया 1225 हि. मुताबिक 1810 मे पेश आया।
 

क़ब्रे मुबारक
शहीद का मज़ारे मुक़द्दस दरगाह पंजा शरीफ देहली मे है और उसी जगह पर एक मदरसा मौजूद है कि जिसका नाम भी आपके नाम पर जामियाऐ शहीदे राबे है और खुद हक़ीर भी उसी मदरसे का एक नाचीज़ तालिबे इल्म है।

 

आपके ही के जवार मे मौलाना मक़बूल अहमद साहब क़िबला की क़ब्र भी मौजूद है जिनका तरजुमा किया हुआ क़ुरान मक़बूल कुरआन के नाम से जाना जाता है।