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सैय्यिद मुर्तज़ा अलमुल हुदा

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सैय्यिद मुर्तज़ा अलमुल हुदा का नाम अली था। वह 355 हिजरी क़मरी मे बग़दाद के एक सम्मानित सैय्यिद परिवार मे पैदा हुए। उनके माता पिता दोनो सैय्यिद थे तथा पाँच पीढीयों के अन्तर से उनका सम्बन्ध हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मिलता है। इस प्रकार कि अली पुत्र हुसैन पुत्र मूसा पुत्र मुहम्मद पुत्र मूसा पुत्र इब्राहीम पुत्र हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पुत्र हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम।


अल्लामा हिल्ली ने उनको शिया इमामिया समुदाय का मुअल्लिम कहा है। वह एक महान फ़क़ीह, मुतःकल्लिम, अदीब थे। फ़िक़्ह के क्षेत्र मे उनके मत अब भी विद्वानो की दृष्टि का केन्द्र बिन्दु हैँ।फ़िक़्ह विषय पर लिखी गयी उन की "इन्तेसार" व "जमलुल इल्म वल अमल" नामक दोनो किताबें बहुत प्रसिद्ध हैँ। वह अपने समय मे उच्च कोटी के अद्वितीय विद्वान थे उनकी विद्वत्ता के कारण उनको चौथी शताब्दी हिजरी का मरूजुज़ जहब या मुजद्दिदे मज़हब कहा जाता है। वह तीस वर्षों तक हज व हरमैन के सर्वे सर्वा व उच्चतम न्यायधीश के पद पर कार्यरत रहे। उन्होने तथा उनके भाई सैय्यिद शरीफ़ ने शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा से ज्ञान प्राप्त किया। तथा शेख मुफ़ीद के स्वर्ग वास के बाद वह शिया सम्प्रदाय के मरजा बने।


अल्लामा हिल्लि ने उनके सम्बन्ध मे लिखा है “कि वह शिय़ा सम्प्रदाय के मुअल्लिम थे तथा शिया सम्प्रदाय का एक स्तम्भ समझे जाते थे।आज तक(सन्693 हिजरी क़मरी) उनके द्वारा लिखी गईं किताबों से ज्ञान लाभ प्राप्त किया जारहा है।”


शेख इज़्ज़ुद्दीन अहमद उनके अर्बी व्याकरण के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “अगर कोई सौगन्ध खाकर यह बात कहे कि अलमुल हुदा अर्बी मे अरबो से अधिक ज्ञान रखते थे, तो न उसने कोई झूट बोला और न कोई गुनाह किया।”

 

सैय्यिद मुर्तुज़ा सुन्नी विद्वानो की दृष्टि मे


सैय्यिद मुर्तज़ा का इल्मी वजूद( विद्वानी स्तित्व) सुन्नी विद्वानो की दृष्टि का भी केन्द्र बना। उनकी अत्याधिक रचनाओं ने सभी को अपनी ओर आकृषित किया।


प्रसिद्ध सुन्नी विद्वान खलकान उनके सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “वह एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। दीन व मुसलमानो के अहकाम से सम्बन्धित उनकी अनेकानेक पुस्तकें इस बात की साक्षी हैं कि वह पैगम्बर के महान तथा प्रतिष्ठित परिवार की एक कड़ी थे।”


एक मिस्री विद्वान उन के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “मैनें सैय्यिद मुर्तज़ा की किताब -ग़रर व दरर- से नह्व के क्षेत्र मे (अर्बी व्याकरण) जो ज्ञान लाभ प्राप्त किया वह अन्य किसी भी लेखक की किताब से प्राप्त न कर सका।”

 

सैय्यिद मुर्तज़ा की शिक्षा का आरम्भ


इस दुनिया मे कुछ खवाब (सपने) अवश्य रूप से सत्य व साकार होते हैं। ऐसे ही सपनो मे से एक सपना वह था जो शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा ने देखा था। एक रात्री शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा ने सपने मे देखा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हसन व हुसैन सलामुल्लाह अलैहिमा को लेकर आईं व कहा कि ऐ शेख तू इन दोनो बच्चों को फ़िक्ह का ज्ञान प्रादान कर। शेख मुफ़ीद जागने पर बहुत अच्मभित हुए। उसी दिन सुबह सवेरे फ़ातिमा नाम की एक सैय्यिद स्त्री अपने साथ दो छोटे बच्चो को लेकर आई व शेख से कहा कि मै इन दोनो बच्चों को आपके पास इस लिए लाई हूँ कि आप इनको फ़िक़्ह का ज्ञान प्रदान करें और यह कह कर दोनो बच्चों को शेख के सपुर्द कर दिया। शेख को अपने रात्री के सपने का फल मिल गया था। अतः उन्होने अपना सपना इस महान स्त्री को सुनाया तथा बच्चो के शिक्षण कार्य को स्वीकार कर लिया।यह स्त्री सैय्यिद मुर्तज़ा व सैय्यिद रज़ी की माता थी।शेख ने परिश्रम के साथ दोनो भाईयो को ज्ञान प्रदान किया जिसके फल स्वरूप दोनो भाई आगे चलकर महान विद्वान बने।

 

सैय्यिद मुर्तज़ा के गुरू जन


शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा के अतिरिक्त सैय्यिद मुर्तज़ा ने इब्ने नबाता व शेख हसन बाबवे से भी ज्ञान लाभ प्राप्त किया।

 

सैय्यिद मुर्तज़ा के शिष्यगण


सैय्यिद मुर्तज़ा ने अनेका नेक शिष्यो को प्रशिक्षित किया इनमे से मुख्य शिष्य इस प्रकार हैं---शेख तूसी, क़ाज़ी पुत्र बिराज,अबु सलाह हलबी, अबुल फ़ताह कराजकी, सालार पुत्र अब्दुल अज़ीज़ देलमी इत्यादि।

 

सैय्यिद मुर्तज़ा की रचनाऐं


सैय्यिद मुर्तज़ा ने बहुतसी किताबे लिखीं जो उनकी महानता व विद्वत्ता का परिचय कराती है। परन्तु मरहूम मुदर्रिस ने अपनी किताब रिहानःतुल अदब मे उनकी लग भग 72 किताबो का नाम के साथ उल्लेख किया है। इनमे से मुख्य किताबें इस प्रकार हैं---


1-अल इन्तेसार


2-जमःलुल इल्मे वल अमल


3-अज़ ज़रिया फ़ी उसूलिश शरिया


4-अल मोहकम वल मुताशाबेह


5-अल मुखतःसर


6-मा तफ़र्रदता बेहिल इमामिया मिन मसाइलिल फ़िक़्हिया


7-अल मिस्बाह


8-अन्नासिरयात


9-अल आमाली


10-दुरारुल फ़वाइद इत्यादि।

 

अलमुल हुदा लक़ब(उपाधि) का कारण


अधिकतर इतिहास कारो ने आप की इस उपाधि का कारण यह लिखा है कि अबू सईद मुहम्मद पुत्र हुसैन जो खलीफ़ा क़ादिर बिल्लाह का वज़ीर था। वह सन् 420 हिजरी क़मरी मे बीमार हुआ तथा उसने सपने मे देखा कि अमीरूल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम ने उससे कहा कि अलमुल हुदा से कहो कि वह तुम्हारे स्वास्थय के लिए दुआ करे। मैने उन से प्रश्न किया कि अलमुल हुदा कौन हैं? उन्होने उत्तर दिया कि अली पुत्र हुसैन मूसवी अलमुल हुदा हैं। जब वह जागे तो उन्होने सैय्यिद मुर्तज़ा के पास एक पत्र लिखा जिसमे उनसे दरख्वास्त(विनती) की कि आप मेरे स्वास्थय के लिए दुआ करने का कष्ट करें तथा इस पत्र मे उन्होने सैय्यिद मुर्तज़ा को अलमुल हुदा की उपाधि से सम्बोधित किया । सैय्यिद ने वज़ीर से कहा कि आप मुझे अलमुल हुदा जैसी उपाधि के साथ पत्र न लिखा करें । वज़ीर ने कहा कि अल्लाह की सौगन्ध मुझे अमीरूल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम ने आदेश दिया है कि आप को अलमुल हुदा की उपाधि से सम्बोधित करू। जब वज़ीर सैय्यिद मुर्तज़ा की दुआ से स्वस्थ हो गये तो उन्होने खलीफ़ा के सम्मुख अपने सपने का वर्णन किया। तथा कहा कि सैय्यिद मुर्तज़ा यह उपाधि धारण नही करना चाहते हैं। खलीफ़ा ने सैय्यिद मुर्तज़ा के पास संदेश भेजा कि जो उपाधि आपको आपके पूर्वज की ओर से प्रदान की गई है उसका धारण करना आपके लिए श्रेष्ठ है। आप इसको धारण करे व इससे मना न करेँ।इसके पश्चात आदेश दिया कि समस्त लोग सैय्यिद मुर्तज़ा को अलमुल हुदा की उपाधि से सम्बोधित करें। इस प्रकार आप इस उपाधि से प्रसिद्ध हो गये।

 

स्वर्गवास


सैय्यिद मुर्तज़ा अलमुल हुदा सन् 436 हिजरी क़मरी मे बग़दाद मे स्वर्गवीसी हुए। अबु अली जाफ़री व सालार पुत्र अब्दुल अज़ीज़ ने उनको ग़ुस्ल दिया और उनके बेटे ने उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई। तथा उनको उनके ही घर मे दफ़्न कर दिया गया। कुछ समय बाद उनके जनाज़े को कर्बला परिवर्तित किया गया तथा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के हरम मे उनको दफ़्न किया गया।
वह एक महान व पवित्र विद्वान थे अल्लाह उन पर रहमत करे।

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