हज़रत अब्बास का ख़ुत्बा

एक रिवायत में आया है कि हज़रत अब्बास (अ) ने मक्का शहर में सन 60 हिजरी में हुसैनी क़ाफ़िले के मक्के से कूफ़े की तरफ़ कूच करने से पहले एक ख़ुत्बा दिया आठ ज़िलहिज्जा सन साठ हिजरी यानी हुसैनी काफ़िले के कर्बला की तरफ़ कूच करने से ठीक एक दिन पहले क़मरे बनी हाशिम हज़रत अबुल फ़ज़लिल अब्बास (अ) ने ख़ान –ए- काबा की छत पर जाकर एक बहुत ही भावुक और क्रांतिकारी ख़ुत्बा दिया।

उस ख़ुत्बे में आप फ़रमाते हैं: “जब तक मेरे पिता अली (अ) जीवित थे किसी में पैग़म्बर (स) की हत्या करने की हिम्मत नहीं थी और जब तक मैं जीवित हूँ किसी में इतनी हिम्मत नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) को क़त्ल कर सके”उन्होने ईश्वर के घर काबे के पास मौजूद लोगों की भीड़ को संबोधित करके फ़रमायाः “आओ मैं तुमको हुसैन (अ) को क़त्ल करने का रास्ता बताता हूँ, अगर तुम हुसैन (अ) को क़त्ल करना चाहते हो तो मुझे पहले क़त्ल करो ताकि हुसैन (अ) तक पहुँच सको”यानी जब तक मैं जीवित हूँ तुम लोग हुसैन का बाल भी बांका नहीं कर सकते, और आप ने सच ही कहा था जब तक हज़रत अब्बास (अ) जीवित थे कोई हुसैन (अ) को क़त्ल करना तो दूर की बात आपको तिरछी निगाहों से देख भी न सका।यह ख़ानदन न तो ईश्वर की राह में क़त्ल कर दिये जाने से डरता है और न ही इमाम की सुरक्षा और उनकी हिमायत में कोई कोताही करता है।रिवायत कहती है कि हज़रत अब्बास काबे की छत पर जाते हैं और यह ख़ुत्बा देते हैمआरम्भ करता हूँ उस ईश्वर के नाम से जो सबसे अधिक दयालु एवं कृपालू है।.शुक्र है उस अल्लाह का जिसने इस घर (काबे) कोउनके पिता (आपका तात्पर्य इमाम हुसैन (अ) के पिता हज़रत अली (अ) है) के क़दमों से सम्मान दिया, जो कल घर था (आज) क़िबला बन गयाنहे काफ़िरों अत्याचारियों क्या घर के रास्ते को नेक लोगों के इमाम पर बंद करते हो? दूसरों के मुक़ाबले में कौन है जो इस घर के लिये अधिक हक़दार है? और इस घर से अधिक नज़दीक है? और अगर उस महान ईश्वर की मसलेहत न होती और बड़े रहस्य और लोगों की परीक्षा न होती तो याद रखो घर (काबा) इन (इमाम हुसैन) कीतरफ़ उड़ कर आ जाता इससे पहले कि आप उसकी तरफ़ क़दम बढ़ाते, और इससे पहले कि लोग हज़रे असवद को चूमते वह आप (इमाम हुसैन) के हाथों का बोसा लेता, और अगर मेरे मौला की मर्ज़ी अल्लाह के मर्ज़ी न होती तो जान लो कि मैं तुम पर उसी प्रकार टूट पड़ता जैसे शिकारी बाज़ चिड़यों पर टूट पड़ता हैات.क्या तुम लोग उस क़बीले को जिसने बचपन में मौत से खेला हो उसको मौत से डराते हो, अब तो जवानी है (शायद आपका इशारा जंगे सिफ़्फ़ीन की तरफ़ जो जब आप तेरह साल की आयु में चेहरे पर नक़ाब लगाकर लड़ने निलकते हैं तो देखने वाले यह समझते हैं कि स्वंय हज़रत अली (अ) युद्ध करने आ गये हैं) मेरे सारी जान क़ुरबान हो जाए सारी सृष्टि के मौला पर जो जानवरों से बढ़कर हैं।.होशियार, देखों फिर देखों कि किसका अनुसरण कर रहे हो उसका जो मदिरापान करता (यानी यज़ीद) या उसका जो हौज़ और कौसर का मालिक है, और जिसके घर में वही और क़ुरआन है (इमाम हुसैन) या जिसके घर में खेलकूद और नजासतों का सामान है (यज़ीज) या उसका अनुसरण कर रहे हो जिसके घर में आयतें और तहारत नाज़िल होतीहै (यानी इमाम हुसैनُ؟तुम उस ग़ल्ती में पड़ गये हो जिसमें क़ुरैशपड़े थे क्योंकि उन्होंने पैग़म्बर (स) की हत्या करने का इरादा किया था और तुमने अपने पैग़म्बर (स) की बेटी के बेटे की हत्या करने का इरादा कर लिया है, और उनकी (कुरैश) यह चाल कामियाब न हो पाई जब तक अमीरुल मोमिनीन (अ) जीवित थे और तुम कैसे अबा अबदिल्लाह को क़त्ल कर सकते हो जब तक मैं जीवित हूँ?.आओ मैं तुमको उन्हें मारने का तरीक़ा बताता हूँ, तुम मुझे मार दो मेरी गर्दन काट दो ताकिअपने लक्ष्य तक पहुँच सको, अल्लाह तुम को अपने लक्ष्य तक न पहुँचाए और तुम्हारी एवं तुम्हारे बच्चों की आयु को कम करे और अल्लाहकी लानत हो तुम पर और तुम्हारे पूर्वजों पर (जिन्होंने पैग़म्बर की हत्या का इरादा किया)