अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

नमूना ए सब्र जनाबे ज़ैनब का महमिल से सर को टकराना

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भारत में तक़रीबन 100 साल पहले अज़ादारी में एक ऐसी रस्म का इज़ाफ़ा किया गया जिसे ख़ूनी मातम कहते हैं, शहीद मुतहरी की तहक़ीक़ के मुताबिक़ ‘‘ ये रस्म क़फ़क़ाज़ के आर्थोडिक्स ईसाइयों से ईरान में आई थी और वहाँ से दुनिया में फ़ैल गई ‘‘ (जाज़ेबा वो दोफ़ेआ ए अली, पेज 154)

 

मराजे तक़लीद ने इस शर्त पर इसकी इजाज़त दी है के ‘‘ इस से बदन को नुक़सान न पहुँचे और दीन वो मज़हब का मज़ाक़ न बने।

 

लेकिन बाज़ जज़बाती लोग इन शर्तों का ख़याल नहीं रखते और जब उन्हें इस तरफ़ मुतवज्जेह किया जाता है तो अपने इजतहाद पेश करते हुए कहते हैं के जनाबे ज़ैनब ने कूफ़ा में अपने भाई इमाम हुसैन (अ) का सर देख कर अपने सर को चोबे महमिल से टकराया था, जिस से आपके सर से ख़ून बहने लगा, लेहाज़ा ख़ून बहाना जायज़ है।

 

इस दासतान को अनपढ़ ज़ाकिरों ने ख़ूब नमक मिर्च लगा कर ख़ूनी मातम को साबित करके जज़बाती नौजवानों से ख़ूब वाह वाह बटोरी, बेहतर तो ये था के लोग अपने अपने मरजा के फ़तवे के मुताबिक़ इस काम को करते लेकिन लोग बजाए इसके ख़ुद इजतहाद करने लगे जो ख़तरनाक सूरते हाल है।

 

इस दासतान को अल्लामा मजलिसी ने बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 114 पर मुस्लिमे जस्सास से नक़ल किया है। मुस्लिमे जस्सास न कोई फ़क़ीह था और न मुहद्दिस, बलके गचकारी (पी0 ओ0 पी0) करने वाला एक आम आदमी था इसी लिए इसे जस्सास कहते हैं।

 

जस्सास अरबी में गचकारी (पी0 ओ0 पी0) करने वाले को कहते हैं, इबने ज़्याद ने इसे दारुलइमारा की पी0 ओ0 पी0 करने के लिए बुलाया था और ये वो वक़्त था जब असीराने कर्बला का कूफ़े में दाख़्ला होने वाला था।

 

अब ये नहीं मालूम के मुस्लिमे जस्सास शीया था या ग़ैर शीया ? अगर शीया था तो ऐसे मौक़े पर जब असीराने कर्बला कूफ़ा आ रहे थे तो ये इबने ज़्याद के दारुल अमारा को सजाने क्यों गया था ?

 

मुस्लिमे जस्सास कूफ़ी था और इसे इबने ज़्याद के शियों पर मज़ालिम भी मालूम होंगे फिर भी ये इबने ज़्याद की खि़दमत करने को तैयार हो गया। अगर ये शिया था तो इस दासतान के मुताबिक़ जो मुस्लिमे जस्सास कहता है कि मैं दारुलइमारा की पी0 ओ0 पी0 में मशग़ूल था के कूफ़े में मैंने अचानक शोरो ग़ुल सूना तो इबने ज़्याद के ख़ादिम से इसकी वजह मालूम की तो ख़ादिम ने कहा के कूफ़े में एक ख़ारजी का सर लाया जा रहा है, जिसने ख़लीफ़ा यज़ीद के खि़लाफ़ ख़ुरुज किया था, मेंने मालूम किया के कौन ख़ारजी? तो ख़ादिम ने जवाब दिया के हुसैन इब्ने अली (अ)। (नऊज़ो बिल्लाह),

 

मुस्लिमे जस्सास की दासतान के इस हिस्से से ज़हन में ये सवाल पैदा होता है के अगर ये शिया था और कूफ़े का रहने वाला था तो ये वाक़े ए कर्बला और कूफ़े में असीराने कर्बला के दाख़ले से बेख़बर क्यों था? जबके वाक़े ए कर्बला में यज़ीदी लश्कर की कमान कूफ़ा ही में थी और सब से ज़्यादा कर्बला से कूफ़ा ही नज़दीक था और तमाम कूफ़ा वाले वाक़े ए आशूरा से बाख़बर थे तो ये कैसा शिया था जो इतने अहम और दिलसोज़ वाक़ेए से बे ख़बर था और इबने ज़्याद के ख़ादिम के ज़रिए बाख़बर हुआ?

 

और अगर ग़ैरे शिया था तो इसकी बात पर भरोसा किस तरह किया जा सकता है?

 

ये दासतान सनद के एतबार से भी बहुत ज़्यादा ज़ईफ़ है, क्योंकि अल्लामा मजलिसी ने इसे ‘‘ नुरुल एैन फ़ी मशहदिल हुसैन‘‘ नामी किताब से नक़ल किया है, जिसका लिखने वाला मालूम नहीं है अलबत्ता बाज़ लोगों ने इस किताब को ‘‘ इब्राहीम बिन मुहम्मद नैशापुरी असफ़रायनी‘‘ से निसबत दी है के जो अशअरी मज़हब और शाफ़ेई मसलक का मान्ने वाला था, क्या ऐसे शख़्स की किताब में लिखी हुई दासतान पर बग़ैर तहक़ीक़ किए भरोसा किया जा सकता है?

 

मुमकिन है बाज़ लोगों के ज़हन में ये सवाल आए के अगर ऐसा था तो अल्लामा मजलिसी जैसे आलिम ने अपनी किताब में इस दासतान को जगह क्यों देदी ?

 

इस का जवाब ये है के अल्लामा मजलिसी को जो भी रिवायत अहलुलबैत (अ) मिली उन्होंने अपनी किताब में जमा करली उस वक़्त उनके पास इतना वक़्त नहीं था के तमाम रिवायात की तहक़ीक़ करते।

 

इसी वजह से अल्लामा मजलिसी ने ये दावा नहीं किया है के जो कुछ बिहारुल अनवार में है वो सब सही है, अलबत्ता जिन उलोमा को मौक़ा मिला उन्होंने इस तहक़ीकि़ काम को बड़ी मेहनत से अंजाम दिया इसी लिए मज़कूरा दासतान को बहुत से उलोमा जैसे आयातुल्लाह हाज मीरज़ा मोहम्मद अरबाब वो मरहूम हाज शैख़ अब्बास क़म्मी वग़ैरा ने ग़ैर मोतबर और ज़ईफ़ क़रार दिया है।

(मुनतहल आमाल, शैख़ अब्बास क़ुम्मी, पेज 478)

 

इसके अलावा मुस्लिमे जस्सास अपनी दासतान में आगे कहता है के: जब ख़ादिम चला गया तो मेंने अपने सरो सूरत को पीटा और अपने आप को ‘‘कनासा‘‘ पहुँचाया जहाँ अहले हरम का क़ाफ़ेला मौजूद था। चालीस बेकजावा ऊँटों पर असीराने कर्बला का क़ाफ़ला था, जनाबे फ़ातेमा (स) की बेटियों को ऊँटों की नंगी पुश्त पर बिठाया गया था। मैंने देखा जैसे ही जनाबे ज़ैनब (स) की निगाह अपने भाई हुसैन (अ) के सर पर पड़ी तो बेसाख़ता अपने सर को चोबे महमिल से टकराया जिसकी वजह से आपके सर से ख़ून जारी हो गया।

 

अक़ीला ए बनी हाशिम और नमूना ए सब्र ज़ैनब (स) से मुमकिन नहीं है के वो इस बेसब्री का मुज़ाहेरा करते हुए अपने सर को चोबे महमिल से टकराकर ज़ख़मी करेंगी ? जबके इमाम हुसैन (अ) ने कर्बला में जनाबे ज़ैनब को सब्र की ख़ास ताकीद फ़रमाई थी।

(मुनतहल आमाल, शैख़ अब्बास क़ुम्मी, पेज 453)

 

और ये भी नसीहत की थी के: "ऐ मेरी बहन, उम्मे कुलसूम, फ़ातेमा, रबाब मेरी शहादत के बाद न गरेबान चाक करना और न रुख़सारों पर तमांचे मारना और न कोई फि़क़रा ज़बान पर लाना जो तुम्हारे लिए शइस्ता न हो"

(लहूफ़, इबने ताऊस अली बिन मूसा, पेज 82, नाशिर जहान, तेहरान)

 

क्या जनाबे ज़ैनब (स) अपने भाई और इमाम की नसीहत के खि़लाफ़ अमल करेंगी? नहीं ! जिस वक़्त जनाबे ज़ैनब (स) ने कर्बला में रोज़े आशूरा अपने भाई इमाम हुसैन (अ) के लाशे को टुक्ड़ों में देखा तो निहायत सब्र के साथ आसमान की जानिब रुख़ करके फ़रमाया के: ‘‘ ऐ अल्लाह ! आले मोहम्मद से ये क़ुर्बानी क़बूल फ़रमाले।‘‘

(मक़तले मुक़र्रम, पेज 199)

 

इसी तरह जब इबने ज़्याद ने भरे दरबार में जनाबे ज़ैनब (स) से कहा के: तुमने देखा! ख़ुदा ने तुम्हारे साथ क्या किया ? इस मौक़े पर बड़े से बड़े बहादुर की ज़बान पर शिकवा आ जाता और रोना धोना शुरु कर देता लेकिन जनाबे ज़ैनब (स), अली (अ) और फ़ातेमा (स) की बेटी हैं और अपने वालेदैन की सिफ़ात की विरसादार हैं, इबने ज़्याद को जवाब देती हैंः मैंने अल्लाह की जानिब से ख़ैर वो ख़ूबी के अलावा कुछ नहीं देखा।

(लहूफ़, इबने ताऊस अली बिन मूसा, पेज 160, नाशिर जहान, तेहरान)

 

मुसीबतों पर शुक्रे ख़ुदा का ऐसा अंदाज़ अली (अ) की बेटी का ही हो सकता है, रिवायात में जनाबे ज़ैनब (स) को नमूना ए सब्र कहा गया है और ये आपकी एक फ़ज़ीलत भी है।

 

तो क्या मुस्लिमे जस्सास की दासतान से जनाबे ज़ैनब (स) की फ़ज़ीलत कमरंग नहीं होती?

 

मक़ातिल ने लिखा है के: अहले हरम को बेकजावा ऊँटों पर सवार करके ले जाया गाया था ( मक़तले मुक़र्रम, पेज 198, वो मुनतहल आमाल, शैख़ अब्बास क़ुम्मी, पेज 474) और ख़ुद मुस्लिमे जस्सास ने भी अपनी दासतान में ये बात नक़ल की है के अहले हरम को चालीस बेकजावा ऊँटों पर लाया गया और दासतान के आख़री हिस्से में जस्सास कहता है के जनाबे ज़ैनब (स) ने चोबे महमिल से अपना सर टकराया ।

जब महमिल ही नहीं थी तो जनाबे ज़ैनब (स) ने महमिल से सर को टकराया किस तरह?

 

ये दासतान अल्लामा मजलिसी ने बग़ैर सनद के नक़ल की है। इसी लिए अल्लामा मजलिसी ने इस दासतान को मुरसल लिखा है, और मुरसल रिवायत ज़ईफ़ होती है।

 

इस दासतान में मुस्लिमे जस्सास मज़ीद कहता है के: ‘‘ चोबे महमिल से सर टकराने के बाद जनाबे ज़ैनब (स) ने ये शेर भी पढ़े ‘‘ जिसमें से एक शेर इस तरह था: ‘‘ ऐ भय्या ! तूम्हारा दिल तो हमारे लिए बहुत नरम और मेहरबान था तो ये अब सख़्त क्यों हो गया ‘‘ ये शेर हाशमी फ़साहत वो बलाग़त के खि़लाफ़ हैं और इस शेर में जनाबे ज़ैनब (स) इमाम हुसैन (अ) को सख़्त दिल बतला रही हैं ! जबके ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता, ऐसी साब्रा बीबी हरगिज़ हरगिज़ इमाम हुसैन (अ) को सख़्त दिल नहीं कह सकतीं, बहर हाल ! ये दासतान हर लिहाज़ से ज़ईफ़, ग़ैर मोतबर और नाक़ाबिले यक़ीन है, और इस से सिवाए जनाबे ज़ैनब (स) की तौहीन के और कुछ हासिल नहीं होता है, लेहाज़ा ख़ुनी मातम करने वालों को इस दासतान से परहेज़ करना चाहिए, अपने जज़बात की तिसकीन की ख़ातिर ऐसी ज़ईफ़ दासतान को शिया समाज में रिवाज देना और मिम्बर से उसे नश्र करना फ़लसफ़ा ए अज़ादारी के खि़लाफ़ है, बिलफ़र्ज़े महाल अगर हम इस दासतान को सच्चा मान लें तब भी इस से ख़ुनी मातम साबित नहीं होता है, क्योंकि शिया मज़हब में दासतानों या वाक़ेआत से हुक्मे शरई साबित नहीं होता है, ख़ुदावंदे आलम तमाम मोमेनीन की अज़ादारी क़बूल फ़रमाए (आमीन)

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