इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की जनाबे मोहम्मद हनफ़िया को वसीयत

जब इमाम हुसैन ने मदीने से मक्के की तरफ़ चलने का इरादा किया तो आपने एक वसीयत लिखी और अपनी अंगूठी से उस पर मोहर लगाई, फिर उसको लपेटा और अपने भाई मोहम्मद बिन हनफिया को दिया और उसके बाद आपने उनसे विदा लिया और तीन शाबान 60 हिजरी को अपने अहलेबैत के साथ मक्के की तरफ़ चल पड़े। उस वसीयत में आपने लिखा था


بِسْمِ اللَهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ. هَذَا مَا أَوْصَي بِهِ الْحُسَيْنُ بْنُ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ إلَي أَخِيهِ مُحَمَّدٍ الْمَعْرُوفِ بِابْنِ الْحَنَفِيَّه:


यह है वह वसीयत जिसे हुसैन इब्ने अली अपने भाई मोहम्मद जो कि इब्ने हनफ़िया के नाम से प्रसिद्ध है के नाम कर रह हैं


إنَّ الْحُسَيْنَ بْنَ عَلِيٍّ يَشْهَدُ أَنْ لاَ إلَهَ إلاَّ اللَهُ، وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ. وَأَنَّ مُحَمَّدًا صَلَّي اللَهُ عَلَيْهِ وَءَالِهِ عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ، جَآءَ بِالْحَقِّ مِنْ عِنْدِ الْحَقِّ. وَأَنَّ الْجَنَّه وَالنَّارَ حَقٌّ. وَأَنَّ السَّاعَه ءَاتِيَه لاَ رَيْبَ فِيهَا. وَأَنَّ اللَهَ يَبْعَثُ مَنْ فِي الْقُبُورِ.


निःसंदेह हुसैन बिन अली गवादी देता है कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई और ख़ुदा नहीं है वह अकेला है जिसका कोई शरीक नहीं है, और निःसंदेह मोहम्मद (स) उसके बंदे और रसूल हैं, जो सच के साथ सच (ख़ुदा) की तरफ़ से आए हैं। और निःसंदेह स्वर्ग और नर्क हक़ है, और क़यामत आने वाली है और उसमें कोई संदेह नहीं है, और यह कि ख़ुदा उन सभी को जो क़ब्रों में हैं दोबारा उठाएंगा।


إنِّي لَمْ أَخْرُجْ أَشِرًا وَلاَبَطِرًا وَلاَمُفْسِدًا وَلاَظَالِمًا وَإنَّمَا خَرَجْتُ لِطَلَبِ الاْءصْلاَحِ فِي أُمَّه جَدِّي مُحَمَّدٍ صَلَّي اللَهُ عَلَيْهِ وَءَالِهِ؛ أُرِيدُ أَنْ ءَامُرَ بِالْمَعْرُوفِ وَأَنْهَي عَنِ الْمُنْكَرِ، وَأَسِيرَ بِسِيرَه جَدِّي وَسِيرَه أَبِي عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ عليه السلام.


मैं तफ़रीह और खिलवाड़ के लिये नहीं निकला हूँ, और न अत्याचार और न फ़साद एवं ख़राबी और न ज़ुल्म व सितम के लिये! बल्कि मैं अपने नाना मोहम्मद (स) की उम्मत के सुधार एवं इस्लाह के लिये निकला हूँ, मैं अम्र बिल मारूफ़ करना चाहता हूँ, और नही अनिल मुनकर करना चाहता हूँ (अच्छाई की तरफ़ बुलाना और बुराई से रोकना चाहता हूँ) और मैं अपने नाना और अपने पिता अली इब्ने अबी तालिब (अ) की सुन्नत और सीरत पर चलना चाहता हूँ,


فَمَنْ قَبِلَنِي بِقَبُولِ الْحَقِّ فَاللَهُ أَوْلَي بِالْحَقِّ، وَمَنْ رَدَّ عَلَيَّ هَذَا أَصْبِرُ حَتَّي يَقْضِيَ اللَهُ بَيْنِي وَبَيْنَ الْقَوْمِ بِالْحَقِّ؛ وَهُوَ خَيْرُ الْحَاكِمِينَ


तो जो भी मुझे स्वीकार कर ले और हक़ को क़ुबूल कर ले तो ख़ुदा हक़ के लिये अधिक योग्य है, और जो भी इस कार्य में मेरा साथ न हे और स्वीकार न करे तो मैं सब्र और धैर्य का दामन नहीं छोड़ूंगा, यहां तक कि अल्लाह मेरे और इस गुट के बीच सच्चा फैसला करे, और वही है जो फ़ैसला करने वालों के बीच बेहतरीन फ़ैसला करने वाला है।


وَ هَذِهِ وَصِيَّتِي إلَيْكَ يَا أَخِي ؛ وَمَا تَوْفِيقِي إلاَّ بِاللَهِ، عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإلَيْهِ أُنِيبُ. وَالسَّلاَمُ عَلَيْكَ وَعَلَي مَنِ اتَّبَعَ الْهُدَي . وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّه إلاَّ بِاللَهِ الْعَلِيِّ الْعَظِيمِ. 1


और यह मेरी वसीयत है तुम को मेरे भाई!  और कोई तौफ़ीक़ नहीं है मेरे लिये मगर अल्लाह की तरफ़ से, मैंने उसपर भरोसा किया और उसी की तरफ़ वापस पलटूँगा, सलाम हो तुम पर और हर उस पर जो हिदायत की पैरवी करे, और कोई शक्ति और ताक़त नहीं है सिवाय महान और अज़ीम ख़ुदा के।


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(1) इस वसीयत को मोहद्दिस क़ुम्मी ने नफ़सुल महमूम में पेज 45 में अल्लामा मजलिसी (बिहारुल अनवार) से मोहम्मद बिन अबी तालिब मूसवी से लिखा है। और मुलहेक़ाते एहक़ाक़ुल हक़ में भी जिल्द 11, पेज 602 पर ख़्वारज़मी मक़तलुल हुसैन जिल्द 1, पेज 188 से लिख़ा है और मक़तले अल्लामा ख़्वारज़मी जिल्द 1, पेज 188 पर भी मौजूद है

(2 लमआतुल हुसैन, अल्लामा हाज सैयय्द मोहम्मद हुसैन हुसैनी तेहरानी, उलूम व मआरिफ़ की साइट