अयाशी समर क़न्दी (र.ह)

आयतुल्लाह मुतह्हरी का कथन (र.ह)”

एक अन्य फ़कीह जो अली पुत्र बाबवे क़ुम्मी से थोड़ा पूर्व थे अयाशी समरक़न्दी हैं। जो अपनी तफ़सीर के कारण प्रसिद्ध हैं। इब्ने नदीम अपनी किताब अलफहरिस्त मे लिखते हैं कि “ उनकी किताबे खुरासान मे प्रचलित थीं। मगर हमने अभी तक फ़िक्ह मे उनके नज़रयात( दृष्टिकोण) नही देखे।शायद उनकी फ़िक्ह की किताबे लुप्त हो चुकी हैं।”

अयाशी पहले सुन्नी थे और बाद मे शिया हुए। उनको अपने पिता से विरसे मे अत्याधिक सम्पत्ति मिली थी। उन्होने वह सम्पत्ति किताबों को जमा करने व अपने शिष्यों को प्रशिक्षित करने मे व्यय की।

मुहम्द पुत्र मसूद पुत्र मुहम्मद पुत्र अयाशी समरक़न्दी कूफ़ी जिनकी कुन्नियत अबूनस्र हैं। वह अयाशी के नाम से प्रसिद्ध हुए। वह एक़ महान फ़कीह व विद्वान थे। अर्बी साहित्य, फ़िक्ह, हदीस व तफ़्सीर मे पूर्ण रूप से दक्ष थे। वह शेख कुलैनी के समय मे शियों के बड़े फ़कीहों व विद्वानों मे गिने जाते थे।

 


मरहूम मुदर्रिस (र.ह) का कथन

रिहानतुल अदब नामक किताब का लेखक लिखता है कि “क्योंकि अयाशी समरकन्द के रहने वाले थे। और क्योंकि समरकन्द व बुखारे के आस पास सुन्नी सम्प्रदाय के अनुयायी रहते थे। अतः अयाशी भी सुन्नी फ़िक्ह का अनुसरण करते थे। बाद मे वह शिया हुए और फ़िक्हे जाफ़री पर आमिल (क्रियान्वित) हो गये। उन्होने अपने पिता से विरसे मे मिले तीस हज़ार दीनार को शिक्षा प्रसार व हदीस के प्रकाशन पर व्यय किया। उनका घर सदैव मस्जिद की तरह लोगों से भरा रहता था। जिनमे क़ारीयाने कुऑन, मुहद्दिस (पैगम्बर व इमामो के कथन का उल्लेख करने वाले) ज्ञानी, मुफ़स्सिर (कुऑन की व्याख्या करने वाले) की अधिकता होती थी। उनके घर मे विभिन्न समूह शिक्षा के विभिन्न कार्यों मे व्यस्त रहते थे।”

 


मरहूम हाज आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी का कथन

“अयाशी तफ़सीर के लेखक अयाशी ने इस्लामी विष्यों पर विभिन्न 200 किताबे लिखी हैँ। वह सिक़्क़ातुल इस्लाम शेख कुलैनी के समकालीन थे तथा इल्मे रिजाल के प्रसिद्ध विद्वान कुशी के गुरू थे। उनके पुत्र जाफ़र ने उनकी जिन किताबों के बारे मे वर्णन किया है उनमे से एक तफ़सीरे अयाशी मौजूद है। जिसका आधा भाग सूराए कहफ़ तक आस्तानाए क़ुदसे रज़वी मशहद, किताब खने खियाबानी तबरेज़, किताब खाने शेखुल इस्लाम ज़नजान, किताब खाना ए सैय्यद हसन सदरूद्दीन काज़मैन मे मौजूद है।”

 


अल्लामा मजलिसी(र.ह)का कथन

“अल्लामा मजलिसी बिहारूल अनवार के शुरू मे लिखते हैं कि तफ़सीरे अयाशी के दो क़दीम नुस्खे (पुरातन प्रति लिपी) देखे गये हैं। परन्तु इखतेसार (संक्षिप्ता) की वजह से उनकी सनद नही लिखी गई थी। ”

 


आयतुल्लाह सैय्यद हसन सद्र(र.ह)का कथन

“तासीसुश- शिया लि उलूमिल इस्लाम किताब के लेखक ने दो स्थानो पर अयाशी का उल्लेख किया है। एक स्थान पर मुफ़स्सेरीन का उल्लेख करते हुए तथा दूसरे स्थान पर इतिहासकारो व सीरत के लेखकों का उल्लेख करते हुए।”

वह पहले स्थान पर लिखते हैं कि अयाशी पुत्र मुहम्मद मस्ऊदी हमारे बुज़ुर्गों मे से एक हैं और वह अपनी तसनीफ़ात( रचनाओं) व तालीफ़ात( संकलनो) के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होने सीरत व इतिहास से सम्बन्धित जो किताबें लिखी हैं उनमे से मक्कातुल हराम, अलमआरीज़, अन्बिया व ओलिया, सीरते अबुबकर, सीरते उमर, सीरते उस्मान व सीरते मुआविया मुख्य हैं। शेख कुलैनी के अनुसार वह तीसरी शताब्दी हिजरी के विद्वानो मे थे।

दूसरे स्थान पर लिखते हैं कि अयाशी एक मुफ़स्सिर थे और उन्होने बहुत सी किताबे लिखी हैँ। उनके द्वारा लिखी गई तफ़सीर दो भागों पर आधारित थी परन्तु वर्तमान समय मे उनकी तफ़सीर का केवल प्रथम भाग ही हमारे पास है। उन्होने 200 के लग भग महत्वपूर्ण किताबें लिखी है। शेख कुलैनी के अनुसार वह तीसरी शताब्दी हिजरी के विद्वानों मे थे।

1380 हिजरी क़मरी मे अल्लामा तबा तबाई ने तफ़सीरे अयाशी पर जो मुक़द्दमा( प्रारम्भिक नोट) लिखा है उसमे उन्होने अयाशी को एक महान व आदरनीय विद्वान के रूप मे याद किया है। और ईरान के कुछ पुस्तकाल्यों मे उनकी तफ़सीर के दूसरे भाग के मौजूद होने की आशंका व्यक्त की है।

 


मरहूम शेख अब्बास क़ुम्मी(र.ह)का कथन

शेख अब्बास क़ुम्मी अपनी किताब सफ़ीने मे लिखते हैं कि “ अयाशी हमारे बुज़ुर्गो मे से एक है। वह जवानी मे शिया हुए और अली पुत्र हसन फ़त्ताल के शिष्यों मे से है। उन्होने कूफ़े बग़दाद व क़ुम के अन्य बुज़ुर्गों से भी ज्ञान लाभ प्राप्त किया। उन्होने अपने पिता से मिलने वाली समस्त सम्पत्ति को शिक्षा और हदीस के प्रचार प्रसार के लिए व्यय किया।

 


अयाशी की रचनाऐं----

इब्ने नदीम ने अयाशी की 208 रचनाओं व संकलनो का उल्लेख किया है। जिनमे से 27 किताबे वर्तमान समय मे लुप्त हो गईं है। उनकी महत्वपूर्ण किताबो मे से एक तफ़सीरे अयाशी है जिसका केवल प्रथम भाग ही वर्तमान समय मे मौजूद है और द्वितीय भाग लुप्त हो चुका है। उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाओ का इब्ने नदीम ने इस प्रकार उल्लेख किया है--- अस्सलात, अत्तहारत, मुख्तसरूस्सलात,मुख्तसरूल हैज़, अल जनाइज़, मुख्तसरूल जनाइज़, अल-मनासिक,अल आलिम वल मुताल्लिम, अद्दावात, अज़्ज़कात, अल अशरबाह, हद्दुश- शारूल अज़ाही इत्यादि।

 


स्वर्गवास

विद्वान ज़रकली ने अपनी किताब अल ऐलाम मे लिखा है कि अयाशी सन् 320 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हुए। इनके अतिरिक्त किसी अन्य लेखक ने अयाशी के स्वर्गवास के बारे मे नही लिखा।

 


अयाशी की संतान

अयाशी ने जाफ़र नामक अपने एक पुत्र को छोड़ा जो अपने समय के ज्ञानीयों व विद्वानो मे विशिष्ठ स्थान रखते थे। उन्होने अपने पिता की बहुतसी बाते उल्लेख की हैं।
अयाशी एक नेक व्यक्ति थे अल्लाह उन पर रहमत करे।