इमाम काज़िम की एक नसीहत

इमाम मूसा काजि़म (अ) के एक हक़ीक़ी शीया ‘‘सफ़वान‘‘ ने एक ज़ालिम को ‘‘सफ़रे हज‘‘ के लिए अपने ऊँट किराए पर दे दिए थे, एक रोज़ सफ़वान की मुलाक़ात इमाम मूसा काजि़म (अ) से हो गई तो इमाम (अ) ने सफ़वान से फ़रमाया के: ऐ सफ़वान! तुम्हारे सब काम अच्छे हैं सिवाए एक के।


सफ़वान ने मालूम किया: वो एक काम कौनसा है ?


इमाम (अ) ने फ़रमाया: वो एक काम (जो अच्छा नहीं है) ये है के तुम अपने ऊँटों को (एक ज़ालिम को) किराए पर दे दिया है।


सफ़वान ने कहा: मैंने अपने ऊँटों को हराम और नाजायज़ काम के लिए किराए पर नहीं दिया है बलकि सफ़रे हज के लिए मुझ से ऊँट किराए पर लिए गए हैं।


इमाम (अ) ने फ़रमाया: सफ़वान ! तुम ने ऊँटों को (ज़ालिम के) इखि़्तयार में दिया है ताके बाद में किराया वसूल करो, क्या ऐसा नहीं है ?


सफ़वान ने कहा: हाँ! ऐसा ही है।


इमाम (अ) ने फ़रमाया: क्या तुम इस बात पर राज़ी हो के ये (ज़ालिम) जब तक सफ़रे हज से न पलटे जि़ंदा रहे ताके तुम्हारे ऊँटों का किराया अदा करदे। ?


सफ़वान ने कहा: हाँ। ऐसा ही है।


इमाम (अ) ने फ़रमाया: बहुत ख़ूब! जो शख़्स किसी भी सबब या उनवान से ये चाहे के ज़ालिम वो सितमगर जि़ंदा रहे, वो उनही ज़ालेमीन में शुमार होगा, और जो भी सितमगरों से होगा वो ख़ुदा के ग़ैज़ो ग़ज़ब में गिरफ़तार होगा और आख़रत में अज़ाब देखेगा।


इसके बाद सफ़वान ने अपने तमाम ऊँटों का बेच डाला।
 
इमाम (अ) की ये नसीहत क़यामत तक के लिए बाइसे हिदायत है।